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लघुकथाएँ

लघुकथाओं के स्तंभ में प्रस्तुत है महानगर की कहानियाँ के अंतर्गत
सूरज प्रकाश की बम्बइया लघुकथाएँ। इस माह की लघुकथा का शीर्षक है — "संतुलन"


एक साथ तीन छुट्टियाँ आ रही है। वे चारों एक साथ काम करते हैं और पिकनिक जाने के मूड में हैं। एक खास और सीमित ग्रुप ही की प्राइवेट पिकनिक होगी ये ताकि पूरी तरह से मौज मस्ती मनायी जा सके। माथेरान या लोनावला जाने की बात है। कम से कम दो रातें वहाँ गुजारनी ही हैं। बहुत दिन हो गये हैं इस तरह से मजा मारे।
किस–किस महिला सहकर्मी को जाने के लिए पटाया जा सकता है, इसके लिए सूचियाँ बन रही हैं और नाम जुड़ और कट रहे हैं।

पूरे ऑफिस में वैसे तो ढेरों ऐसी महिलाएँ हैं जो खुशी–खुशी साथ तो चली चलेंगी लेकिन उन्हें फैमिली गैदरिंग नहीं चाहिये। कुछ मौज–मजा करने और कुछ 'छूट' लेने और देने वालियाँ ही चाहिये।
ऐसी सूची में तीन नाम तो तय हो गये हैं। चौथे नाम पर बात अटक गयी है। उससे कहा कैसे जाये। वही सबसे तेज तर्रार और काम की 'चीज' है। बाकी तीन को भी वही पटाये रख सकती है।
"इसकी जिम्मेवारी वासु ने ले ली है।"
"लेकिन तुम उसे तैयार कैसे करोगे? हालाँकि वहाँ स्टार आइटम वही होगी। चली चले तो मजा आ जाये। सवाल पूछा गया है।"
"वो तुम मुझ पर छोड़ दो।"
"लेकिन सुना है, उसका हसबैंड बहुत ही खडूस है। रोज शाम को ऑफिस के गेट पर आ खड़ा होता है उसे ले जाने के लिए। कहीं आने–जाने नहीं देता।"
"वह खुद सँभाल लेगी उसे।"
"वो कैसे?"
"उसने खुद ही बताया था एक बार कि जब भी इस तरह का कोई प्रोग्राम हो तो उसे एक हफ्ता पहले बता दो। वह अगले दिन ही मायके चली जायेगी और फिर वहीं से चली आयेगी। तब उसकी हसबैंड के प्रति कोई जवाबदेही नहीं होती। इस तरह के सारे काम वह मायके रहते हुए ही करती है।"

९ नवंबर २००२

 
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