"अजी
सुनती हो फेनी की माँ गजब हो गया।"
“ऐसा कौन पहाड़ टूट पड़ा जो इतना तेज़ चीख रहे हो?"
धनदेवी ने प्रतिक्रिया दी।
“अरे ये जो पड़ोस के मुहल्ले में शर्मा जी रहते थे ना..."
“कौन शर्मा जी...?"
“अरे चीनी मिल वाले..."
“अच्छा-अच्छा, जिनकी लड़की का रिश्ता अपने गाँव के कोटेदार के
लड़के से हुआ है?"
“हाँ-हाँ, वे ही शर्मा जी।"
“हाँ, तो क्या हुआ उनको...?"
“अरे, उनके यहाँ चोरी हुई है, अख़बार में निकला है।"
“हे भगवान, क्या-क्या उठा ले गए..."
“अरे, छोड़ा ही कुछ नहीं, घर खाली कर गए।"
खबर खत्म होते ही सेठ रईसचन्द के चारों लडकों में से तीन वहाँ
आ धमके और क्या हुआ, क्या हुआ के नारे लगाने लगे..
और सेठ रईसचन्द बची-खुची खबर को और जोर-जोर से पढ़ने लगे-
“मूल रूप से अल्हागंज के निवासी रघुवीर शर्मा के यहाँ कल रात
अज्ञात व्यक्तियों के द्वारा नकब लगाकर चोरी की वारदात को
अंजाम दिया गया। शर्मा जी अपने रिश्तेदारों के यहाँ शादी में
गए हुए थे, और ख़बर मिलते ही वापस आये हैं। इस मामले पर उन्हें
किसी पर शक नहीं है इसलिए उन्होंने अज्ञात व्यक्तियों के खिलाफ
पुलिस में तहरीर दे दी है। पुलिस का कहना है कि थाना इंचार्ज
राजेश सिंह ने पूरे प्रकरण को अपने संज्ञान में ले लिया है,
दोषियों को बख्शा नहीं जायेगा और शर्मा जी और उनके शुभचिंतकों
ने पुलिस से कड़ी से कड़ी कार्यवाही की माँग की है।"
सेठ जी खबर की आखिरी लाइन भी पढ़ चुके थे।
अखबार भी अजीब है चन्द शब्दों ने घर में हाहाकार मचा दिया था
और अख़बार की इस खबर के पहले सेठ जी ने कप में जितनी चाय छोड़ी
थी, आयतनात्मक रूप से वो अब भी उतनी ही थी किन्तु फिर भी पूर्व
स्थिति से उस में दो बदलाव आ गए थे, पहला कि अब वह ठंडी हो
चुकी थी, दूसरा कि उसमें अब एक मक्खी भी थी। चाय ठंडी होने का
कारण तो सेठ जी के समझ में आ गया था, किन्तु मक्खी का कप में
कूदना अब भी एक पहेली बना हुआ था, क्योंकि सेठ जी मधुमेह के
शिकार थे और फीकी चाय ही पीते थे।
सेठ रईसचन्द, वाकई रईसों में गिनती रखते थे। कई एक दुकानें थीं
उनकी, गाँव में भी बेतहाशा ज़मीन थी, गाड़ी-घोड़ा किसी चीज़ की कमी
न थी, अकूत संपत्ति के मालिक थे।
पर उन्हें देखकर इस बात का अंदाज़ा लगाना बिलकुल ऐसा था जैसे
खुली आँखों से भूत देखना...उन्हें देखकर लगता था कि मरी चुहिया
भी इनके यहाँ चाकरी नहीं करती होगी। सेठ जी आज भी वही
मैली-चिकटी पीली धोती, जो जब खरीदी थी तब सफ़ेद हुआ करती थी और
धोती के ऊपर खादी का ढीला और लटकता हुआ कुरता और उससे ऊपर सर
पर एक काली फटी टोपी पहनते थे।
सेठ जी घोर अंधविश्वासी थे, किन्तु थे धनी और संयोग से ये बात
उनके गृह-पंडित ब्रजनाथ शास्त्री जी बड़े अच्छे से जानते थे।
अक्सर जब भी पंडित जी के घर के चूल्हे में आग कम पड़ती थी, तो
सेठ जी के ग्रह-नक्षत्रों, राशि आदि में आग लगाकर ही पूरी हुआ
करती थी। उनके अन्धविश्वासीपने के किस्से गली-पड़ोस में
जरूरतमंदों के मुँह से बड़े चाव के साथ सुने जा सकते थे। यहाँ
तक कि उन्होंने शादी भी उस लड़की से की जिसकी माता का नाम
लक्ष्मी, पिता का नाम कुबेरनाथ और स्वयं लड़की का नाम धनदेवी
था।
पर सेठ जी ने तरक्की भी खूब की, उनकी शादी के चार साल बाद ही
उनके नाम को ‘सेठ रईसचन्द खादी मिल वाले’ करके बुलाया जाने लगा
और लोगों ने भी उनसे प्रेम से मिलना शुरू कर दिया था पर उनके
व्यवहार की वजह से... ये कहना जरा मुश्किल था।
खैर, समय बीतता गया और अबतक सेठ जी चार पुत्र-रत्नों के पिता
भी हो गए थे। अब वे पुत्र, रत्न थे कि नहीं, सो सेठ जी ही
जानें, पर अब वे चारों ही सेठ जी के सभी धन्धों के मालिक थे।
सबसे बड़ा सदालाल जो कि सबसे कम पढ़ा-लिखा था, को खादी मिल, मिल
गयी। उस से छोटा धरमवीर जो अपने ज्येष्ठ भ्राता सदालाल से कुछ
ही अधिक पढ़ा-लिखा था, ने डेयरी का काम सँभाला। सदालाल और
धरमवीर से छोटा था गोपाल, जो कि इस घर में सबसे अधिक पढ़ा-लिखा
था, क्योंकि वह अपने पिता जी से एक कक्षा अधिक पढ़ा हुआ था और
सेठ जी केवल आठवीं पास थे। सबसे छोटे लड़के का नाम था ‘फेनी’,
जिसके बारे में सेठ रईसचन्द जी का खुद का कहना था-
“उस रात शराब नहीं पीनी थी, नहीं जानता था उसका असर इस तक भी
पहुँचेगा।" फेनी बिलकुल नाकारा था, किन्तु सिर्फ पिता जी और
मुहल्ले वालों की नज़रों में, खुद की नज़र में, वह इस घर का सबसे
अधिक बुद्धिमान प्राणी था।
खैर, खबर का असर कहो या घर में मचे हो-हल्ले का...फेनी भी
लड़खड़ाते-डगमगाते क़दमों से अपने कमरे से बाहर निकल आया था। नारा
उसका भी यही था कि “क्या हुआ- क्या हुआ?” पर इस बार सेठ जी ने
खबर दुबारा नहीं पढ़ी, ज्यों का त्यों अखबार उठा के फेनी को दे
दिया। चूँकि फेनी की नज़रों में उसके वक्त की कीमत बहुत अधिक थी
सो फेनी ने पूरी खबर को विस्तार-पूर्वक न पढ़ते हुए केवल
हेड-लाइन पढ़ी और खबर में ये ढूँढ कर कि ये हेड-लाइन किसके
सम्बंध में है, अखबार को ज्यों का त्यों, जैसा कि लिया था, मेज
पर रख दिया।
इतनी देर में गृह-पंडित शास्त्री जी भी उधर से गुजर रहे थे।
शायद उनकी धर्मपत्नी जी की शाम कोई फरमाइश रही होगी, सो
सुबह-सुबह बकरे की खोज में थे तो कहाँ जाते, जैसे ‘मुल्ला की
दौड़, मस्जिद तक’ वैसे ही पंडित जी की दौड़ सेठ जी तक रहती थी,
सो पंडित जी ने बड़ी तहज़ीब से साइकिल को दीवार से टिका दिया और
गहरी साँस ली, फिर ऊपर देखा, और तब दरवाजा खट-खटा दिया।
फेनी ने दरवाजा खोला और साथ ही मुँह भी...
“अरे पंडित, तुम सवेरे-सवेरे...?"
“हाँ, आपके पिता जी से कुछ काम था।" पंडित जी बोले।
इतने में अन्दर से सेठ जी की आवाज आती है...
“आओ-आओ, ब्रजनाथ जी...बैठो।"
“जी-जी, धन्यवाद सेठ जी।"
“कोई खास काम...?"
“नहीं, सेठ जी, बस अभी कल ही हरिद्वार से लौटा हूँ, आपके नाम
से भी प्रसाद चढ़ाया था, इधर से गुजरना ही था तो सोचा देता
चलूँ, और ये ताबीज़ भी।" जेब से काले-काले धागे निकालते हुए
पंडित जी बोले।
सेठ जी ने हाथ बढ़ाकर तावीजों को लपक लिया और दूसरे हाथ से
प्रसाद को...
पंडित जी ने पुनः एक बार अपनी जिह्वा को कष्ट दिया और
उपदेशात्मक मुद्रा में बोले-
“इन ताबीजों को पहन कर यदि आपके घर का प्रत्येक सदस्य
गंगा-स्नान करेगा, और गंगा-जल लाकर के घर पर भी छिड़केगा तो उस
पर और उसके घर पर किसी भी प्रकार की विपत्ति नहीं आवेगी...”
“अरे, हाँ पंडित जी, आपने आज का अखबार पढ़ा, अपने शर्मा जी के
यहाँ...”
सेठ जी अपनी बात पूरी कर पाते उस से पहले पंडित जी के मुख ने
सुबूत दिया कि उसमें कोई विकार नहीं है, वह जब चाहे खुलने के
लिए स्वतंत्र है।
“बड़ा कलियुगी दौर है सेठ जी, चोर-चण्डालों ने बड़ा तांडव मचा
रखा है। बहुत बुरा हुआ, आपके यहाँ से सीधा उनके यहाँ ही
जाऊँगा।"
“अच्छा, यह ताबीज, चोर-चण्डालों से भी रक्षा करेगा पंडित
जी...?
“हाँ-हाँ, ये धन एवं यश में तो वृद्धि करेगा ही करेगा और साथ
ही साथ इनको अक्षुण्य बनाने में भी...चोर-चण्डालों की तो छाया
भी आपके घर से कोसों दूर रहेगी।"
“पंडित जी आपने तो हमारी समस्त शंकाओ का समाधान कर दिया।"
“अरे, सेठ जी, विघ्नहर्ता तो वे हैं, मैं तो निमित्त मात्र
हूँ।"
“जी-जी सो तो है...पर हम तो आपकी ही कृपा से उनकी कृपा का
पात्र बन पाएँगे न ।"
शायद पंडित जी अब इस व्यर्थ वार्तालाप से ऊब गए थे, बोले-
“अच्छा, सेठ जी, अब मुझे देर हो रही है, शर्मा जी के यहाँ भी
जाना है, आप शीघ्र-अति-शीघ्र गंगा-स्नान की योजना बनायें,
क्योंकि सभी बातें तभी फलीभूत होंगी।"
सेठ जी सिर्फ ‘जी-जी’ बोले।
“अच्छा, फिर मैं चलता हूँ सेठ जी”
“फिर आते रहियेगा।"
“जी-जी, जरुर, क्यों नहीं” कहते हुए पंडित जी ने कुर्सी तो
छोंड दी, किन्तु अर्थपूर्ण दृष्टि से सेठ जी को देखने लगे।
सेठ जी ने भी हमेशा की तरह इस बार भी पंडित जी की आँखों के
भावों को को अपनी आँखों से पढ़ लिया था, सो तुरंत चीखे- “अरे
सदालाल, पंडित जी जा रहे हैं, इनको दक्षिणा देकर विदा तो कर
आओ, और काम सब बाद में करना”
“जी पिता जी” कहकर सदालाल ने पंडित जी के सामने शिष्टाचारी
पुत्र होने का ढोंग किया।
खैर, पंडित जी की, बकरे की तलाश प्रथम प्रयास में ही पूर्ण हो
चुकी थी, बल्कि वे उसे हलाल भी कर चुके थे तो उनके अब यहाँ
रुकने की कोई वजह न थी, सो चलते बने।
पंडित जी के जाते ही प्रस्ताव ये बना कि कल ही गंगा-स्नान के
लिए निकलना उचित रहेगा किन्तु फेनी ने साफ़ इनकार कर दिया। अधिक
दबाब देने पे फेनी बोला- “सब ढकोसला है, आप ही पंडित की बातों
में पड़ियेगा, मैं तो चला...”
“कहाँ?” सेठ जी ने पूछा पर फेनी ने कोई जबाब नहीं दिया सिर्फ
गेट के बाहर निकल गया। निकलते ही घर का नौकर भोला मिल गया जो
पिताजी की खैनी लेने गया था। भोला ने भी वही प्रश्न पूछा जिसका
जबाब फेनी ने सेठ जी को नहीं दिया था। पर पता नहीं क्यों इस
बार फेनी ने जबाब दे दिया - “पिताजी से कह देना कि मैं ज़रा
दो-तीन दिन बाद आऊँगा, जरूरी काम है।"
भोला ने बड़े भोलेपन से सिर्फ अंग्रेजी वर्णमाला का सातवाँ वर्ण
बोला – “G”, जिसे फेनी ने हिंदी में “जी” समझ लिया और आगे बढ़
गया।
जैसा कि तय था अगले दिन सब गंगा-स्नान को निकले और तीसरे दिन
की सुबह में वे सब अपने शहर में, अपने मुहल्ले की गली में थे।
उनके घर से अब बस कुछ कदमों का फासला रह गया था कि सेठ जी के
फ़ोन की घंटी बजती है, सेठ जी थोड़ा चौंकते हैं कि इतनी सुबह
दौलतराम जी (सेठ जी के पड़ोसी) का फ़ोन...?
खैर वे फ़ोन में अनेक बटनों में से एक बटन दबा के उसको अपने
कानों तक ले जाते हैं और ‘हेलो’ का उच्चारण करते हैं। उधर से
आवाज़ आती है- “अजी, हेलो को मारिये गोली, घर पहुँचिये, चोरों
ने आपका घर साफ़ कर दिया...हैं कहाँ आप...?"
इतना सुनना था कि सेठ जी ने घर की दिशा में दौड़ लगा दी और उनके
पीछे, उनके शेष परिवार ने... उनके घर के बाहर पड़ोसियों की भीड़
थी जो उनके आने पर उन्हें दया की दृष्टि से देख रही थी। पुलिस
को भी खबर की जा चुकी थी।
सेठ जी के मुँह से आवाज़ नहीं निकल रही थी। उनके मन में अब
सिर्फ पंडित जी घूम रहे थे और उनकी बातें... उन्होंने तुरंत
गंगा-जल की पिपिया वहीं फेंक दी, गले से ताबीज़ निकाल कर नाली
में डाल दिया और पुलिस का इंतजार करने लगे।
पुलिस तो न आई पर उनका नाकारा पुत्र फेनी जो गंगा-स्नान के लिए
नहीं गया था, वहाँ पहुँचा और पहुँचते ही पिता जी को जली-कटी
सुनाने लगा- “लेओ...और कर लेओ गंगा-स्नान, बाँध लेओ
ताबीज़...मैं न कहता था इस पंडित के चक्कर में न पड़ियेगा।"
सेठ जी केवल मूक दर्शक बने खड़े थे और फेनी जो अब तक सिर्फ खुद
की नज़रों में इस घर का सबसे अधिक बुद्धिमान प्राणी था, अब
पिताजी और मुहल्ले वालों की नज़रों में भी इस घर का सबसे अधिक
बुद्धिमान प्राणी बन चुका था।
खैर पुलिस आई, मौका-मुआयना हुआ, और सेठ जी द्वारा अज्ञात
व्यक्तियों के खिलाफ तहरीर दी गयी।
***
अगला दिन समय – प्रातः काल
स्थान – पडोसी के.पी. सिंह का घर
“अजी, सुनती हो, अरविन्द की माँ, गजब हो गया।"
“क्या हुआ...?" अरविन्द की माँ ने प्रतिक्रिया दी।
“अरे, ये जो पड़ोस में सेठ जी रहते थे न, रईस चन्द जी, खादी मिल
वाले।"
“अच्छा- अच्छा जिनका छोटा लड़का निकम्मा है, और दिन भर दारू में
डूबा रहता है।”
“हाँ-हाँ, वे ही सेठ रईसचन्द जी।"
“तो क्या हुआ उनको...?”
“अरे
उनके यहाँ चोरी हुयी...अखबार में निकला है।"
और यह कहकर के.पी. सिंह जोर-जोर से अखबार पढने लगे....
“मूल रूप से खुदागंज के निवासी सेठ रईसचन्द के यहाँ कल ताला
तोड़ कर चोरी की वारदात को अंजाम दिया गया, सेठ जी पूरे परिवार
समेत गंगा-स्नान को गए थे। इस मामले पर उन्हें किसी पर शक नहीं
है, इसलिए उन्होंने अज्ञात व्यक्तियों के खिलाफ पुलिस में
तहरीर दे दी है। पुलिस का कहना है कि थाना इंचार्ज राजेश सिंह
ने पूरे प्रकरण को संज्ञान में ले लिया है, दोषियों को बख्शा
नहीं जायेगा। सेठ रईसचन्द और उनके शुभचिंतकों ने पुलिस से कड़ी
से कड़ी कार्यवाही की माँग की है।" |