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कहानियाँ

समकालीन हिंदी कहानियों के स्तंभ में इस सप्ताह प्रस्तुत है
भारत से भारतेन्दु मिश्र की कहानी— काकरोचों की दुनिया


जीवनलाल ठीक समय पर आफिस पहुँचा। उसकी मेज चमक रही थी। चपरासी घनश्याम ने हमेशा की तरह एक ग्लास पानी जीवनलाल की मेज पर रख दिया। पानी पीकर उसने घनश्याम को चाय के लिए आर्डर दिया। घनश्याम गया तो वह अपनी मस्ती में गाने लगा "मैंने चाँद और सितारों से मोहब्बत की थी .." इसी बीच फोन की घंटी बजी-

'हैलो ..कौन?'
'मैं जीवनलाल बोल रहा हूँ...आप?'
'मैं सतपाल..।'
'और सुना भाई?'
'मेरी छोड़ तू सुना ..तेरी ब्रांच में ने जे.डी. की पोस्टिंग हो गयी?'
'सुना तो है यार मगर आर्डर नहीं देखा।'
'आई.पी.शर्मा के आर्डर हुए हैं..आज ज्वाइन करेगा,...महिलालु है साला। ज़रा ध्यान रखना। कायदे कानून का पक्का है मगर लंगोटे का कच्चा है....काँफी का शौक़ीन है।'
'यार महिलालु क्या होता है?'
'अरे,जैसे दयालु,कृपालु वैसे ही महिलाओं के चक्कर में रहने वाले को महिलालु कहते हैं।'
'देख भाई! एक से एक लुगाईबाज लुच्चे आई.ए .एस.-पी.सी.एस.देख लिए। बीस साल की नौकरी हो गयी ..वो सुसरा अपना काम करेगा मैं अपना।'
'तुम तो निभा लोगे..'
'इसमें क्या बात है? अफसर की कुर्सी पर कुत्ता भी बिठा दो उसे भी निभा लूँगा ..अपुन तो भैया कुर्सी को सलाम करते हैं। देख मजे से कट रही है। सरकारी महकमे में दो तीन जुमले सीख लो तो बस गाड़ी पार हो जाती है।'
'यार वो जुमले मुझे भी सिखा दो। मेरा तो अभी प्रमोशन हुआ है..'
'इसमें क्या है, चल नोट कर ले..तू भी क्या याद रखेगा?..फारवर्डेड फार नेसेसरी एक्शन प्लीज। वर्क इज ऑन प्रोग्रेस। कम्प्लाएंस रिपोर्ट इज अंडर प्रोसेस। बस इसी तरह के दो तीन टुकडे और सीख ले। सरकार तो फाईलों और कागजों के साथ सरकती है। बस ध्यान रहे कोई फ़ाइल या कागज़ तेरी टेबल पर न रुके। हर कागज़ को ऊपर या नीचे सरकाता जा। चिंता मत कर। बस काम की फाईलों पर ध्यान दिया कर। धीरे-धीरे सब सीख लेगा ..ठीक है नमस्कार।'

घनश्याम मेज पर चाय रखकर चला गया। जीवनलाल ने चाय का एक सिप लिया और फ़ाइल पलटने लगा। ग्यारह बजने को थे। हमेशा लेट आने वाली मैडम सविता भी आ चुकी थीं। उनकी मेज के आसपास कुछ डीलर्स कुछ एन जी ओ,कुछ दलाल टाइप लोग टहल रहे थे। जैसे मक्खियाँ गुड़ की डली को ढक लेती हैं। वैसे ही अनुदान की फाइलें डील करने के कारण मैडम सविता को तमाम बिचौलिए और कर्मचारी घेर लेते। चपरासी घनश्याम अपनी सेटिंग से मैडम की मदद करता और सबको कमरे से बाहर करता। घनश्याम की खूब चलती। बड़े अधिकारी भी घनश्याम की बात ध्यान से सुनते और जे.डी. का चपरासी होने के नाते उसे खुश रखते। ऑफिस का माहौल होता ही कुछ ऐसा है कि वहाँ कुर्सी के हर पाए को सलाम करना पड़ता है। जीवनलाल ने नोटिंग शुरू ही की थी कि घनश्याम ने बताया-

'नए साहब आ गए।'
'ठीक है ..बैठने दे ..तू जा।' जीवनलाल फिर दबी हुई मुस्कान के साथ गाने लगा-'कौन आया कि निगाहों में चमक जाग उठी..'
साहब के कमरे की घंटी बजी। घनश्याम कमरे में दाखिल हुआ।
'तुम्हारा नाम?'
'जी घनश्याम'
'ठीक है, जाओ ओ.एस.को भेज दो..'
'जी साब!'

घनश्याम ने जीवनलाल को सन्देश दिया ,वो अभी उसी गाने की कड़ी गाए जा रहा था –कौन आया...। फिर वो फ़ाइल समेट कर साहब के कमरे की ओर बढ गया। साहब से नजर मिलते ही उसने एक चौड़ी मुस्कान फेंकते हुए सिर झुका कर नमस्कार किया।
'बैठिए'
'थैंक यू सर!'
'आप पर्सनल ब्रांच के ओ.एस. हैं?'
'जी साब!'

साहब ने अपने ब्रीफकेस से स्थानान्तरण आदेश निकालकर जीवनलाल की ओर बढ़ा दिया।
'मेरी ज्वाइनिग हेडक्वार्टर भेज दीजिए। ..और हाँ अगर ठीक समझें तो लंच के बाद एक स्टाफ मीटिंग रख ली जाये'
'जी जनाब! स्टाफ से आपका परिचय भी हो जाएगा'

इसी बीच घनश्याम दो प्याला कॉफ़ी ले आया। जीवनलाल ने लखनौवा अंदाज में कॉफ़ी का प्याला शर्मा की ओर बढाया।
'कॉफ़ी है क्या ?'
'जी साब!'
'वेरी गुड, मैं चाय नहीं लेता।'
'जी मैं जानता हूँ'
'लेकिन कैसे?..मेरा मतलब है हम पहली बार मिल रहे हैं।'
'जबसे आपके आर्डर हुए हैं, साहब! आपकी तमाम अच्छी आदतों के बारे में.. साहब! हमने आपके पिछले ओ.एस.से जानकारी ले ली है।'
'अतिउत्तम ,जीवनलाल जी! इट्स माई प्लेजर ,...तुम्हें तो यह भी मालूम होगा कि मैं आफिस टाइम के बाद भी एक घंटा बैठता हूँ ..कभी कभी दो घंटा भी हो जाता है..'

मस्का लगाते हुए जीवनलाल ने कहा 'सर! आप जैसे कर्मठ बॉस की बहुत दिनों से जरूरत थी। मैंने सुना है सर! आप कठोर निर्णय लेने में संकोच नहीं करते ।'
'भाई, जब काम करना है तो डर किस बात का?..अनुशासन बनाए रखने के लिए कभी कभी कठोर निर्णय भी लेने पड़ते हैं।'
'आप ठीक कहते हैं सर! यदि आप कुछ कठोर निर्णय ले सकेंगे तो देश का भविष्य गुमराह होने से बचाया जा सकेगा और लोगों क़ा सरकारी शिक्षा व्यवस्था पर से खोया हुआ विश्वास लौटेगा।'
'राजनीतिक दबाव न हो तो किसी भी आफिस को सुधारने में अधिक से अधिक एक महीना लगता है।'
'बिल्कुल ठीक कहा सर आपने'
'सुना है कल कपूर साहब की विदाई आपने बड़े अच्छे ढंग से ..'
'जी कोई पचपन हजार का कलेक्शन हो गया था। सब ठीक ठाक निपट गया। ..आप इजाजत दें तो आपकी वेलकम पार्टी कर लें '

'भाई अब आपके परिवार में शामिल हूँ जैसा ठीक समझो..'

फिर साहब ने एक हजार का नोट जीवनलाल की ओर बढाते हुए कहा-'इतने में तो हो जाएगा।'
'नहीं साब! क्यों शर्मिन्दा कर रहे हैं? आते ही आपसे ..'
साहब ने नोट वापस रखते हुए कहा-'देखो जीवनलाल मैं मौज मस्ती से नौकरी करता हूँ। खाता हूँ खिलाता हूँ, सरकारी ग्रांट पूरी ठिकाने लगाता हूँ और फ़ाइलों में पूरे कागज़ रखवाता हूँ। सारे काम नियम से करता हूँ। बस मुझे आपका सहयोग चाहिए।'
'ठीक है सर, अब मैं आपकी स्टेनो मिस पूनम को आपके पास भेजता हूँ। थोड़ी देर वह आपको एंटरटेन करेगी..'
शर्मा मुस्कुराया 'ठीक ठाक है तुम्हारी मिस पूनम?'
'यस सर, शी इज स्मार्ट'
'गुड, जीवनलाल! अगर अच्छी स्टेनो मिल जाती है तो काम करने का मजा आता है। आफिसर, बाबू और स्टेनो तीनों मिलकर ही देश को चला रहे हैं।'
'ठीक कहा सर आपने ..'
'कोई अर्जेंट लेटर या फ़ाइल तो नहीं ?'
'नो सर, आज तो आपका पहला दिन है सर!..'

जीवनलाल अपने कमरे में गया तो साथियों ने उसे घेर लिया । सब एक ही सवाल कर रहे थे 'सर,कैसे हैं?'
'पता लगा जाएगा। तुम लोग अपना काम करो। ..हाँ पूनम जी ! ज़रा आप मिल आइये..साहब याद कर रहे हैं..'
'जी,..कुछ तो बताइए कैसे लगे पहली नजर में ?'
'मैडम, जनानी नजर और मर्दानी नजर में फर्क होता है, आप जिस नज़र से देखेंगी मेरे पास वो नजर नहीं है..मेरे लिए तो चाहे जिस गधे को कुर्सी पर बिठा दो –मेरी सेहत पर कोई फर्क नहीं पड़ता।'
'आपसे तो बात करना ही गुनाह है।'
'मैडम मुझसे तो रोज ही बात होती है फिलहाल बड़े साहब से ज़रा दो चार मीठी बातें कर लीजिए। पहला इम्प्रेशन ज़रा अच्छे से जमाओ। डायरी और पेन लेते जाना।'

पूनम ने अपनी पर्स से छोटा सा आइना निकाला, शक्ल देखी। बालों पर हाथ फिराया। मुँह झुकाकर सीने पर नजर डाली। चुन्नी ठीक की और फिर डायरी पेन लेकर साहब के कमरे की ओर बढ़ गयी। आज वह गुलाबी सूट में बहुत जम रही थी। नैन नक्श तीखे थे ही गोरे रंग पर गुलाबी सूट फब रहा था। वह निकली ही थी कि जीवनलाल गाने लगा-'चली गोरी पी से मिलन को चली..'
पूनम साहब के केबिन की ओर बढ गयी।
'मे आई ..?'
'ओह श्योर ,आओ नारी शक्ति!..आप मिस पूनम?'
'यस सर!'

बड़े साहब चश्मे की छनी नजर से पूनम को देखते ही रह गए। मानो वो आखों से ही उसके रूप सौन्दर्य को पी रहे हों। क्षण भर अवाक रहने के बाद -'नाईस, प्लीज हैव सीट ..'
'थैंक यू सर!'
'ये आपके हाथ में क्या है?'
'नोटबुक है सर!'

पूनम का सिक्स्थ -सेंस जागने लगा था। शर्मा मुस्कुरा रहा था। उसकी नजर पूनम की छाती और कमर की नाप ले रही थी। फिर आखों में आखेँ डाल कर उसने पूछा -'दिखाओ क्या नोट करती हो इसमें?'
'अभी मत देखिए सर' पूनम सकपका गयी। पहली मुलाक़ात थी। चालाक भेड़िए की तरह शर्मा ने पूछा- 'क्यों?'
'सर इसमें कुछ पर्सनल है ..मैंने ..'
'इट्स हाईली आब्जेक्शनेबल ..आफिस में पर्सनल बातें ..वो भी सरकारी नोटबुक पर ?..दिखाओ इधर ..कम आन ..'
'साँरी सर!'
'ह्वाट डू यू मीन बाई सारी ?'

चश्मा उतार कर मेज पर रखते हुए शर्मा उठ खडा हुआ और जोर से हँसने लगा। पूनम डर गयी थी फिर वह भी अवसर के अनुकूल मुस्कुराने लगी। इसी बीच शर्मा पूनम की ओर आ गया था। पूनम को पहली बार ऐसे आफीसर का सामना करना पड़ा रहा था। जीवनलाल तो केवल बकवास करता है। उलटे सीधे गाने गाकर बोर करता है ,पर यह तो गिद्ध की तरह टूट पड़ा है। वह इसी उधेड़बुन में खोयी थी कि शर्मा ने हाथ पकड़ लिया।

'इट्स नाट फेयर सर !'
'देखो, जब तुम सरकारी नोटबुक में अपना पर्सनल मैटर लिख सकती हो तो मैं सरकारी स्टेनो का हाथ नहीं पकड़ सकता ?'

जब तक कुछ सोचे समझे पूनम तब तक अचानक बूढ़े शिकारी अजगर की तरह शर्मा ने पूनम को अपनी बाँहों में कस लिया। कमरे में कोई तीसरा नहीं था।
'मैडम ,अगर शोर मचाओगी तो मेरा कुछ नहीं बिगड़ेगा।'

पूनम छटपटा कर 'बचाओ-बचाओ' चीखने लगी। उसकी चीख सुनकर घनश्याम कमरे में भागता हुआ आया। शर्मा ने पूनम को छोड़कर मेज के नीचे रेंग रहे काक्रोच की ओर इशारा किया। थोड़ी देर पहले ही शर्मा की नजर काक्रोच पर पडी होगी ,या अचानक काक्रोच को देखकर शर्मा ने यह शिकार योजना बनाई। बहरहाल साहबी अंदाज में उसने घनश्याम को फटकारा-

'ये काक्रोच कैसे आगया?..यहाँ रोज डस्टिंग नहीं होती?.. देख रहे हो पूनम कैसे डर गयी?'-पूनम कभी काक्रोच की ओर देख रही थी कभी शर्मा की ओर। उसे शर्मा के चहरे पर भी कई काक्रोच नजर आने लगे थे। वह चुप थी। निम्न मध्यवर्ग में नौकरी खोने का दर्द इज्जत खोने से कहीं बड़ा होता है । पूनम भौंचक होकर सोच रही थी।
'मैडम को पानी पिलाओ ..काक्रोच को बाहर फेंको।'
'जी साब!'

घनश्याम कमरे से बाहर आया तो पूनम भी बाहर आ गयी। बाहर की साफ़ हवा में अब वह सुरक्षित अनुभव कर रही थी। शोर सुनकर जीवनलाल और दूसरे कर्मचारी भी साहब के कमरे में आ गए थे।
'क्या हुआ सर?'
'नथिंग, पूनम काक्रोच से डर गयी और चीखने लगी।'
'आई सी ..औरतें कमजोर दिल की होती हैं..सर! पता नहीं कब किस बात पर और किस चीज से डर जाएँ?'-चश्मे की कमानी ठीक करते हुए जीवनलाल ने कहा। शर्माँ ने मुँह बिचकाकर और कंधे उचकाकर हैरानी व्यक्त की।

पूनम की मेज पर घनश्याम पानी रख गया था । वह अभी गुमसुम थी। बस आँखें छलक रही थीं। जीवनलाल समझाने लगा-
'मैडम, आपका इतना बड़ा शरीर और आप काक्रोच से डर गयीं? मैं तो समझा था कुछ और हंगामा हो गया। काक्रोच से कैसा डर ?'

पूनम चुप रही। बस अन्दर ही अन्दर घुटती रही। आफिस के अधिकाँश साथी उसे समझा रहे थे। कुछ उपदेशक और कुछ विदूषक की तरह हँस भी रहे थे। पास बैठी मैडम सविता ने अपनी बहादुरी का बखान किया-
'भई, मैं तो काक्रोच को चप्पल से ही रगड़ देती हूँ। इसमें डरने की क्या बात है ?'

पूनम ने किसी की बात पर कोई प्रतिक्रया नहीं दी। पर सोच तो वह भी रही थी कि ऐसे आदमी को चप्पल से ही पीट पीट कर मारना चाहिए। नौकरी खोने का डर और अपमान की टीस दोनों उसके लिए बड़े मुद्दे थे। आखिरकार उसने आधी छुट्टी लेकर घर जाने का निर्णय लिया।

घर पहुँचने पर माँ ने पूछा भी कि आज जल्दी क्यों आ गयी? पर वह सिरदर्द का बहाना बनाकर अपने कमरे में लेट गयी तनाव और मानसिक थकान के बाद शांत वातावरण में उसे नीद आ गयी।

और फिर उसने देखा कि आफिस के सभी कर्मचारी काम में लगे हैं । जीवनलाल शर्मा की वेलकम पार्टी का संचालन कर रहा है। सेमीनार रूम में सभी कर्मचारी बैठे हैं । सविता बड़े साहब को बुके दे रही है। तालियाँ बज रही हैं। जीवनलाल बोल रहा है 'आज हमारे लिए गौरव का दिन है कि आदरणीय श्री आई.पी.शर्मा जैसे कर्मठ और ईमानदार आफीसर हमारे मुखिया के रूप में पधारे हैं। वे जहाँ भी रहे हैं विभाग ने तरक्की की है। आपको दो बार अच्छी प्रशासनिक सेवा के लिए राजकीय सम्मान मिल चुका है। अब तो आप सभी इनकी कार्यशैली से स्वयं परिचित हो जाएँगे। ..मैं स्टाफ की ओर से साहब को आश्वस्त कराता हूँ कि हम सब कंधे से कंधा मिलाकर आपका साथ देंगे।'

तालियों के बाद जीवनलाल पूनम को अपने विचार रखने के लिए आमंत्रित करता है। पूनम को मंच की ओर आते देख शर्मा टोकता है-
'रहने दीजिए मैडम, जीवन बाबू तो बोल चुके। आपको कहीं फिर काक्रोच दिखा जाएगा तो ?' सभी हँस रहे हैं। पूनम चप्पल लेकर मंच पर बढ रही है। सभी हैरत से उसे देख रहे हैं। झाँसी की रानी की तरह उसने माइक पकड़ कर कहा-
'भाइयों और बहनों! आपने बड़े बाबू को सुना। अब सिक्के का दूसरा पहलू मैं आपको दिखाती हूँ। इस कमीने कुत्ते ने मुझे अपने कमरे में बुलाया और पहली मुलाक़ात में ही मुझे आइसक्रीम समझकर निगल जाना चाहता था। अगर मेरी चीख सुनकर घनश्याम भाई समय पर न पहुँच जाते तो पता नहीं क्या हो जाता। घनश्याम को देखकर इसने काक्रोच का बहाना बनाकर अपनी इज्जत बचा ली । इस हरामजादे ने यह भी नहीं सोचा कि मै इसकी बेटी की उम्र की हूँ । ..अब आप तालियाँ बजाइए मैं चप्पलों से इसका स्वागत करती हूँ। पूनम लपकी, शर्मा भागते हुए बोला-'जीवनलाल! इसको पकड़ो ..लगता है पागल हो गयी है । इसे मेमो दो ।'

लेकिन जीवनलाल ने शर्मा को मजबूती से पकड़ लिया-'लेकिन साहब! अभी स्वागत समाप्त नहीं हुआ।'
जीवनलाल शर्मा को पकड़े रहा। पूनम चप्पलों से उसे पीटती रही । तमाम काक्रोचों जैसे कुर्सी पर बैठे लोग अब भी तालियाँ बजा रहे थे। जीवनलाल मद्धम सुर में गा रहा था- 'जैसा कर्म करेगा वैसा फल देगा भगवान'
पूनम के कमरे से अजीबोगरीब आवाजें सुनकर उसकी माँ ने उसे हिलाया- 'क्याहुआ?'
'कुछ नहीं माँ, काक्रोचों की दुनिया में फँस गयी थी।'

१८ नवंबर २०१३

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