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टिकट संग्रह

डाक टिकटों में बाल दिवस
राजेश कुमार सिंह

१९८५ का समय भारत में कंप्यूटर के व्यापक प्रसार का था। अतः इस वर्ष आधुनिक शिक्षा के उपकरणों को प्रदर्शित करने के उद्देश्य से बाल दिवस पर जारी डाक टिकट पर कंप्यूटर का प्रयोग करते हुए एक बालिका दिखाई गई। 

वर्ष १९८६ और १९८७ तथा वर्ष १९९० से वर्ष १९९२ तक के सभी वर्षों में और पुनः वर्ष १९९४ में जारी डाक टिकटों के संदर्भ भिन्न कलाकारों की कलाकृतियों से चुने गए। नीचे इनके संक्षिप्त विवरण दिए गए हैं।

 
 

 
सुजाता दास गुप्ता की कलाकृति पर्वतारोही बालिका पर आधारित डाक टिकट १९९६ में

सिद्धार्थ देशपांडे की कलाकृति मेरा घर पर आधारित डाक टिकट १९८७ में प्रकाशित

सुभाष कुमार नागराजन की कलाकृति गुडिया और बिल्ली पर आधारित डाक टिकट १९९० में प्रकाशित

 
hiYa-t अर्पि स्नेहल भाई शाह की कलाकृति 'पारंपरिक वेशभूषा में बच्चे पर आधारित डाक टिकट १९९१ में प्रकाशित

हर्षित प्रशांत पटेल की कलाकृति सूरज पर आधारित डाक टिकट १९९२ में प्रकाशित

नम्रता अमित शाह की कलाकृति
' मैं और मेरे दोस्त पर आधारित डाक टिकट १९९४ में प्रकाशित

वर्ष १९९६ में बालदिवस पर जारी डाक टिकट में भारतीय गावों में पर्यावरण संबंधी जागरूकता को दिखाने का प्रयत्न किया गया था।
इस टिकट में गांव की हरियाली और प्राकृतिक संपन्नता को दिखाया गया है।

 १९९७ में जारी डाक टिकट पर प्रथम भारतीय प्रधानमंत्री स्वर्गीय पंडित नेहरू को याद करते हुए बच्चों के प्रति उनके सहज लगाव को दिखाने का प्रयत्न किया गया था।
१९९८ में बाल दिवस पर जारी डाक टिकट का विषय था समर्थ बालिका- समर्थ समाज इस टिकट में पढती हुई एक लडक़ी का बहुरंगी चित्र था। इस टिकट को तीन रुपये मूल्य में जारी किया गया था।

१९९५ में जारी इस डाकटिकट में हाथ पकडे हुए बच्चों का एक वृत्त दिखाया गया है। अंदाज लगाया जा सकता है कि परस्पर सहयोग की भावना को प्रदर्शित करने के लिए इस चित्र का चुनाव किया गया।

वर्ष १९९९ में पर्यावरण के महत्व को ध्यान रखते हुए बाल दिवस पर जारी डाक टिकट पर दर्शाई गई कलाकृति के साथ लेट अस लिव टुमारो वाक्य अंग्रेजी में अंकित किया गया है।

वर्ष २००० में जारी डाक टिकट में बच्चों की अभिरुचि को ध्यान में रखते हुए ''मेरा पक्का दोस्त'' शीर्षक से बनी कलाकृति को चुना गया जिसमें एक बालिका को हाथी के सूंड से लिपटा हुआ दर्शाया गया है।

वर्ष २००१ के बाल दिवस पर जारी डाक टिकट विश्व बंधुत्व की भावना से जोडने के उद्देश्य से चुना गया था।

२००२ का बाल दिवस मनोरंजन पर आधारित डाक टिकट जारी कर मनाया गया इसमें लोगों को नाचते गाते और ढोल बजाते हुए दिखाया गया है।


बाल दिवस पर डाकटिकटों को जारी कर मनाने की ऐसी ही परंपरा में ऐसे विषयों पर ध्यान दिया जाता है जिससे समाज में बच्चों के अधिकारों और उनके विकास के प्रति जागरूकता बढ़े। इनके द्वरा हमें बच्चों के लिए सही सामाजिक दिशा और समुचित महत्व के विषयों का बोध होता है। साथ ही बचोचों की विभिन्न अभिरुचियों को भी इनके माध्यम से विकास मिलता है।

१६ नवंबर २००५

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