कम्बोडिया के डाकटिकटों पर
सीता, राम, लव, कुश और हनुमान
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पूर्णिमा वर्मन
पौराणिक काल
का कंबोजदेश, कल का कंपूचिया और आज का कंबोडिया पहले हिन्दू
रहा और फिर बौद्ध हो गया। विश्व का सबसे बड़ा हिन्दू मंदिर
परिसर तथा विश्व का सबसे बड़ा धार्मिक स्मारक कंबोडिया में
स्थित है। यह कंबोडिया के अंकोर में है जिसका पुराना नाम
'यशोधरपुर' था। इसका निर्माण सम्राट
सूर्यवर्मन द्वितीय
(१११२-५३ ई.) के शासनकाल में हुआ था। यह विष्णु मंदिर है जबकि
इसके पूर्ववर्ती शासकों ने प्राय: शिव मंदिरों का निर्माण किया
था।
कंबोडिया में बड़ी संख्या में हिन्दू और बौद्ध मंदिर हैं,
जो इस बात की गवाही देते हैं कि कभी यहाँ भी हिन्दू धर्म अपने
चरम पर था। देश का मुख्य धर्म बौद्ध धर्म है (लगभग ९७%
जनसंख्या बौद्ध है)। कुल जनसंख्या में हिंदुओं की हिस्सेदारी
०.२% से भी कम है। हालाँकि, कंबोडिया अपने हिंदू अतीत से जुड़ा
हुआ है और उस पर कई टिकट जारी किए हैं। भगवान विष्णु और उनके
अवतारों से जुड़े पात्रों को कंबोडिया के अनेक डाक टिकटों में
स्थान मिला है।
१० अक्टूबर १९६४ को,
कंबोडिया ने हनुमान पर ५ टिकटों का एक सेट जारी किया। इन
टिकटों को मूल्य क्रमशः पाँच, दस, बीस, चालीस और अस्सी रिएल
है। रिएल कंबोडिया की मुद्रा है। ये टिकट हवाई डाक के लिये
तैयार किये गए थे अतः इनमें नीचे दाहिने कोने पर एअर पोस्टे
लिखा गया है। इन टिकटों के कुछ संसकरणों पर ''ओलंपिक खेल,
टोकियो १९६४'' फ्रेंच भाषा में लिखा गया था और ओलंपिक के
प्रतीक चिह्न पाँच वलयों को भी प्रदर्शित किया गया था। (दाहिनी
ओर)
१३ अप्रैल २००६ को, कंबोडिया ने लव कुश, भगवान राम, सीता, रावण
और हनुमान को चित्रित करते हुए ५ टिकटों का एक और सेट जारी
किया। इसमें १००० रिएल वाले पहले डाकटिकट पर लवकुश का चित्र
प्रकाशित किया गया है, जबकि १४०० रिएल वाले डाकटिकट पर राम का,
१९०० रिएल वाले डाकटिकट पर रावण का और २१०० रिएल वाले डाकटिकट
पर हनुमान का चित्र प्रकाशित किया गया है। (बायीं ओर)
कंबोडिया का
इतिहास भारत की तरह प्राचीन है। माना जाता है कि प्रथम शताब्दी
में कौंडिन्य नामक एक ब्राह्मण ने हिन्द-चीन में हिन्दू
राज्य
की स्थापना की थी। इन्हीं के नाम पर कंबोडिया देश हुआ। हालांकि
कंबोडिया की प्राचीन दंतकथाओं के अनुसार इस उपनिवेश की नींव
'आर्यदेश' के शिवभक्त राजा कम्बु स्वायम्भुव ने डाली थी। वे इस
भयानक जंगल में आए और यहाँ बसी हुई नाग जाति के राजा की सहायता
से उन्होंने यहाँ एक नया राज्य बसाया, जो नागराज की अद्भुत
जादुगरी से हरे-भरे, सुंदर प्रदेश में परिणत हो गया। कम्बु ने
नागराज की कन्या मेरा से विवाह कर लिया और कम्बुज राजवंश की
नींव डाली। कंबोडिया में हजारों प्राचीन हिन्दू और बौद्ध मंदिर
हैं।
यहाँ की संस्कृति में रामकथा
का महत्वपूर्ण स्थान है।
१३ अप्रैल
२००६ को कम्बोडिया ने हनुमान के चित्र वाला एक सुंदर टिकट
(चित्र ऊपर दाएँ जारी किया इसका मूल्य था २१०० रिएल। इसके साथ
ही हनुमान के साथ मत्स्य की एक विशिष्ट लघु शीट भी जारी की गयी
थी। ध्यान देने की बात यह है लगभग इसी अवसर पर भारत में वैशाखी
का पर्व मनाया जाता है जो भारत के अनेक राज्यों में वसंत उत्सव
और सिख नववर्ष के रूप में मनाया जाता है।
कंबोडिया पर ईशानवर्मन, भववर्मन द्वितीय, जयवर्मन प्रथम,
जयवर्मन द्वितीय, सूर्यवर्मन प्रथम, जयवर्मन सप्तम आदि ने राज
किया। राजवंशों के अंत के बाद इसके बाद राजा अंकडुओंग के
शासनकाल में कंबोडिया पर फ्रांसीसियों का शासन हो गया। १९वीं
सदी में फ्रांसीसी का प्रभाव इंडोचीन में बढ़ चला था। वैसे वे
१६वीं सदी में ही इस प्रायद्वीप में आ गए थे और अपनी शक्ति
बढ़ाने के अवसर की ताक में थे। वह अवसर आया और १८५४ ई. में
कंबोज के निर्बल राजा अंकडुओंग ने अपना देश फ्रांसीसियों के
हाथों सौंप दिया। नोरदम (नरोत्तम) प्रथम (१८५८-१९०४) ने ११
अगस्त १८६३ ई. को इस समझौते को पक्का कर दिया और अगले ८०
वर्षों तक कंबोज या कंबोडिया फ्रेंच-इंडोचीन का एक भाग बना
रहा। कंबोडिया को १९५३ में फ्रांस से आजादी मिली।
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