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घर-परिवार बचपन की आहट


नवजात शिशु का तीसरा सप्ताह
इला गौतम


इस डरावनी दुनिया में-

माँ के गर्भ का वातावरण बच्चे के लिए नरम और आरामदायक था। शिशु को समय लगेगा माँ के शरीर के बाहर के विभिन्न दृश्य, ध्वनि और सम्वेदनाओं से समायोजित होने में।

शिशु का व्यक्तित्व अभी इतना पता नही चलता क्योंकि वह अपना अधिकतर समय सोने, शांत चेतना, और क्रियाशील चेतना, जैसी विभिन्न अवस्थाओं मे जाने और उनसे निकलने मे बिताता है। शिशु केवल रोकर सम्वाद करना जानता है, लेकिन माँ अपनी आवाज़ और स्पर्श से शिशु के साथ बातचीत कर सकती है। अब शिशु अन्य आवाज़ों मे से अपनी माँ की आवाज़ पहचान सकता है।


जब माँ शिशु को गोद में लेती है, सहलाती है, चूमती है, प्यार से उस पर हाथ फिराती है, और मालिश करती है, तो शिशु को आनंद आता है। वह माँ की आवाज़ सुनने पर या उसका चेहरा देखने पर "अह" की आवाज़ भी निकाल सकता है। वह भीड़ में अपनी माँ का चेहरा देखने के लिए हमेशा उत्सुक रहता है।

दर्द की पुकार

शिशु यदि करीब तीन हफ्तों तक, हफ्ते में तीन दिन से अधिक, प्रतिदिन तीन घंटे से ज़्यादा लगातार रोए तो यद्यपि इसकी कोई चिकित्सा व्याख्या नही लेकिन सम्भव है कि शिशु के पेट में दर्द हो।

पेट के दर्द से पीड़ित शिशु काफ़ी बेचैन लगेगा। वह कभी अपने पैर फैलाते हुए या समेटते हुए गैस निकालेगा। शिशु का रोना और बेचैनी कभी भी हो सकती है लेकिन यह आमतौर पर शाम ६ बजे से मध्य रात्रि के बीच होता है।

शुक्र है कि पेट का दर्द हमेशा नही रहता। ६० प्रतिशत शिशुओ में यह ३ महीने तक होता है और ९० प्रतिशत शिशु चौथे महीने के बाद बेहतर महसूस करते हैं। डाक्टर की सलाह से इसका सरल उपचार किया जा सकता है।

नाल और नाभि

जब शिशु पैदा होता है तो डॉक्टर उसकी नाल काट कर वहाँ क्लैम्प लगा देता है। कुछ ही हफ़्तो में नाल का बचा हुआ हिस्सा सूख कर गिर जाता है। इस समय शिशु को टब में नहलाने की बजाय स्पंज करना चाहिए ताकि वह हिस्सा सूखा रहे। जब नाल पूरी तरह अलग होकर गिर जाती है तो जो बचा है उसे शिशु की नाभि कहते हैं।

शाम की उदासी

दिन ढलते-ढलते कभी-कभी देखा गया है कि शिशु चिड़चिड़ा हो जाता है। यह सामान्य है। हो सकता है कि शिशु दिन भर इतने सारे नए दृश्य और आवाज़ें सुनकर परेशान हो गया हो। एक शांत कमरे में भी शिशु के लिए बहुत सारी चीज़ें होती हैं।

जब बच्चा कोई आवाज़ सुनता है तो उसकी दिल की धड़कन तेज़ हो जाती है और उसके स्तनपान का तरीका बदल जाता है। जब लगे कि बच्चा उत्तेजित हो रहा है तो उसके लिए शांत और सुखदायक माहौल का प्रबंध करें जैसे उसकी मालिश कर दें, या उससे सट कर लेट जाएँ, या उसे लेकर झूलने वाली कुर्सी पर बैठ जाइए। इससे बच्चे को आराम मिलेगा।

निराशा के घेरे

नई माँ के लिए भावुक और निराश अनुभव करना सामान्य बात है। ६० से ८० प्रतिशत नई माएँ प्रसव के बाद निराशा का अनुभव करती हैं। यह भावनात्मक निराशा अवसाद का हल्का प्रकार है जिसमें रोना आता है, चिन्ता, बदमिज़ाजी, और चिड़चिड़ापन महसूस होता है। इसके कारण सोने मे भी परेशानी होती है।

यदि माँ को अवसाद दो या तीन हफ्ते से अधिक रहे तो उसे प्रसवोत्तर अवसाद हो सकता है। यह एक गंभीर अवस्था है जिससे २० प्रतिशत नई माँएँ प्रभावित होती हैं। यदि माँ को - नींद न आना, रोना आना या उदासी का पूरे दिन बने रहना, किसी भी गतिविधि में मन ना लगना, ध्यान एकाग्र करने में कठिनाई होना, भूख न लगना, चिन्ता, अत्याधिक अपराध भावना होना, या आकस्मिक दौरा पड़ने के लक्षण (जैसे दिल की धड़कन तेज़ होना, चक्कर आना, घबराहट, कुछ बुरा होने का एहसास) दिखें या आत्महत्या का विचार आए तो तुरंत अपने नजदीकी स्वास्थ्य केंद्र से सम्पर्क करना चाहिये। इससे न सिर्फ माँ को आवश्यक सहायता मिलेगी, बल्कि शिशु को भी अपनी माँ की स्वस्थ मानसिकता से लाभ होगा।


याद रखें, हर बच्चा अलग होता है

सभी बच्चे अलग होते हैं और अपनी गति से बढते हैं। विकास के दिशा निर्देश केवल यह बताते हैं कि शिशु में क्या सिद्ध करने की संभावना है - यदि अभी नही तो बहुत जल्द। ध्यान रखें कि समय से पहले पैदा हुए बच्चे सभी र्कियाएँ करने में ज़्यादा वक्त लेते हैं। यदि माँ को बच्चे के स्वास्थ सम्बन्धित कोई भी प्रश्न हो तो उसे अपने स्वास्थ्य केंद्र की सहायता लेनी चाहिए।

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