चित्रलेख

    

खुल गया पूरब का प्रेक्षागृह
रेशमी पर्दों में हुई हलचल
पवन पढ़ने लगा
नए नाटक का मंगलाचरण
लहराने लगे दिवस के उत्तरीय
उषा भरने लगी
चुनरी में
सरसों के फूल
आ़काश में
छाने लगा वसंत
हवा की धुन पर
थिरकने लगीं
बादलों में मोहक मुद्राएँ

 

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© सर्वाधिका सुरक्षित
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