मुखपृष्ठ

पुरालेख-तिथि-अनुसार -पुरालेख-विषयानुसार -हिंदी-लिंक -हमारे-लेखक -लेखकों से


बतरस से लिखवट                                         यारा नदी के किनारे

सोचता कुछ हूँ और लिखना किसी और टापिक पर हो जाता है। बहुत सारे कारण हैं। एक तो यह कि सामग्री बहुत सारी इकट्ठी होती जाती है और लिखना उस गति से नहीं हो पाता। दूसरी उलझन रहती कि यह ठीक नहीं है इसे रहने देते हैं। इस चक्कर में कुछ फोटो महीनों डेस्क टाप पर लटके रहते हैं। अब इसी फोटो को देख लो। आठ महीनों से अटका हुआ है।

यारा नदी के दोनों किनारों पर बहुत सारा जंगलनुमा हराभरा क्षेत्र छोड़ा हुआ है मीलों लम्बाई लिए। इसमें कई सारे मैदान भी हैं जहाँ पर हरी भरी घास छोड़ रखी है। इस घास की कटाई छंटाई करना अपने बहुत बड़ा काम है। इस काम को टैक्टर से होते देखा था तो बहुत भला लगा था। तब समझ में आया था कि कैसे इतना बढ़िया रखरखाव होता है इन बड़े बड़े लॉन्स का।

- रतन मूलचंदानी

१ सितंबर २०२५

1

1
मुखपृष्ठ पुरालेख तिथि अनुसार । पुरालेख विषयानुसार । अपनी प्रतिक्रिया  लिखें / पढ़े
1
1

© सर्वाधिका सुरक्षित
"अभिव्यक्ति" व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इस में प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक
सोमवार को परिवर्धित होती है।