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कलम गही नहिं हाथ   
 

 

 

 

ऊँचाइयों की प्रतीक दीवार

दीवार को भारतीय संस्कृति में विशेष श्रद्धा की दृष्टि से नहीं देखा जाता- कहीं यह रुकावट की प्रतीक है तो कहीं बँटवारे की लेकिन जहाँ बात आन, बान और शान की हो वहाँ यह अपने बंदों को महान बनाने में भी पीछे नहीं रहती। अमिताभ बच्चन और चीन दोनों के इतिहास में दीवार का गहरा प्रभाव देखा जा सकता है। दोनों ही दीवारे पुरानी और प्रसिद्ध हैं। जहाँ अमिताभ बच्चन की दीवार ने उन्हें लोकप्रियता की पराकाष्ठा तक पहुँचाया वहीं चीन की दीवार ने उसे विश्व प्रसिद्ध बनाया।

दीवार से प्रसिद्धि पाने वाले कुछ गिने चुने लोगों की भीड़ में अब हांगकांग की कैंटीन शृंखला 'अ-होल-इन-द-वॉल' का नाम भी आ जुड़ा है। यों तो इसके रेस्त्राँ बैंकाक से लेकर मेक्सिको तक हर जगह मिल जाते हैं लेकिन शंघाई स्थित इसके 'टिम हो वान' रेस्त्राँ की प्रसिद्धि सस्ते भोजन के कारण है। मिशेलिन गाइड के निदेशक जीन लुक नरेट के अनुसार इस वर्ष यह रेस्त्राँ ऐसे मिशेलिन स्टार प्राप्त भोजनालयों में सबसे सस्ता है, जिनमें स्थानीय व्यंजनों की प्रमाणिकता का समुचित ध्यान रखा जाता है। बीस लोगों के बैठने की क्षमतावाले इस छोटे से रेस्त्रां की 'डिम सम बास्केट' पौने पाँच दिरहम (लगभग पचास रुपये) की है। डिम सम बास्केट में अपनी पसंद के व्यंजन चुनने की सुविधा होती हैं। मोटे तौर पर इसे मैक्डॉनेल मील का एक रूप समझा जा सकता है।

मिशेलिन स्टार, मिशेलिन पर्यटन गाइड नामक संस्था द्वारा कड़ी पड़ताल के बाद दिए जाते हैं। यह संस्था सन १९०० से पर्यटकों के लिए उनकी सुविधाओं को ध्यान में रखते हुए प्रति वर्ष एक पर्यटन निर्देशिका का प्रकाशन भी करती है जिसमें महत्त्वपूर्ण होटलों, गैराजों और दर्शनीय स्थलों आदि की जानकारी दी जाती है।

'टिम हो वान' के मालिक मैक पुई गोर यह भोजनालय खोलने से पहले नगर के प्रसिद्ध 'फ़ोर सीज़न्स होटल' के तीन सितारा रेस्त्रां 'लुंग किंग हीन' में काम कर चुके हैं। आर्थिक संकट के इस दौर में जब उन्हें नौकरी से निकाल दिया गया तो उन्होंने सस्ते खाने के इस केन्द्र का विकास किया। आज इसकी लोकप्रियता इतनी है कि दोपहर और रात के भोजन के समय ग्राहकों को अपनी बारी के लिए एक-एक घंटे तक प्रतीक्षा करनी पड़ती है। मिशेलिन गाइड में कहा गया है कि इस रेस्त्रां ने 'मांग कॉक' की सूनी गली को भाप में पकाए गए चीनी बड़ों, 'चीऊ च्यू', अंडेवाले केक और बेक किए गए बन के शौकीन ग्राहकों की चहल-पहले से भर दिया है।

यह सब लिखते हुए मुझे हरियाणा की चौड़ी सड़कों के दोनो ओर खूब खुली जगह छोड़कर बनाए गए बड़े बड़े ढाबे याद आते हैं, जिनसे उड़ती मसालेदार सुगंध, परोसे जाते स्वादिष्ट व्यंजन और उचित मूल्य का जवाब पूरे संसार में नहीं। उन्हें किसी मिशेलिन स्टार की ज़रूरत नहीं... और हाँ छेद वाली दीवार की ज़रूरत भी नहीं।

पूर्णिमा वर्मन
३० नवंबर २००९
 

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