कलम गही नहिं हाथ
टूटे गिटार का ग़म
कहते है शब्द के वार का घाव तलवार से गहरा
होता है और संगीत की शक्ति से बुझे दिये जल उठते हैं। कहने की बात नहीं
कि अगर ये दोनों
साथ हो तो ताकत का ऐसा स्रोत बह सकता है जिससे कुछ भी जीता जा सकता
है। जीत कितनी सहज हो सकती है और कितनी कठिन यह कहना आसान नहीं फिर भी इन दोनों ताकतों को साथ लेकर देव कैरोल साहब निकल पड़े हैं
व्यवस्था के विरोध में।
देव कैरोल कैनेडा के पॉप गायक हैं और उनका
एक छोटा सा पॉप समूह है जिसके साथ वे देश विदेश की यात्रा करते हुए अपने
कार्यक्रम प्रस्तुत करते हैं। पिछले साल, ऐसी ही किसी संगीत यात्रा
में जब वे यूनाइटेड एअरलाइन के साथ उड़ान भर रहे थे तब यात्रियों के
सामान की देखरेख करने वालों की गलती से उनका साढ़े तीन हज़ार कैनेडियन
डॉलर का कीमती गिटार टूट गया। देव साहब कहते हैं कि उन्होंने विमान की
खिड़की से सामान उठाने वाले कुलियों को गिटार फेंकते हुए देखा। विमान
कंपनियाँ आसानी से अपनी गलती नहीं मानतीं। वे हवाई अड्डे के अधिकारियों
पर दोष मढ़ती हैं और हवाई अड्डे के अधिकारी माल ढोने वाली कंपनियों पर।
इन सबके बीच अलग अलग अधिकारियों से मिलते हुए मुआवज़ा पा लेना किसी
मुसीबत से कम नहीं। देव साहब भी इस भाग दौड़ से तंग आगए और उन्होंने इससे
निबटने के लिए एक गीत बनाया
यूनाइटेड ब्रेक्स
गिटार। इसका वीडियो बनाकर
उन्होंने ६ जुलाई २००९ को वेब पर अपलोड किया तो पहले चार दिनों में ही इस
पर दस लाख से ज्यादा हिट लगे। टूटे दिल का संगीत किसे लूट नहीं लेता?
मालूम नहीं इस शब्द और संगीत की शक्ति से एअरलाइन के कान पर जूँ रेंगी या
नहीं पर देव साहब की लोकप्रियता के नए रेकार्ड ज़रूर कायम हो गए।
सुना है देव साहब ने अपना गिटार खुद ही पैसे खर्च कर के मरम्मत
करवा लिया है पर उसकी आवाज़ अब वैसी नहीं रही जैसी पहले थी। रहीमदादा कह
ही चुके हैं- टूटे फिर से ना जुड़े, जुड़े गाँठ पड़ि जाय
हवाई यात्रा में वाद्ययंत्रों के टूटने और
इससे टूटे दिल द्वारा संगीत रचने की यह पहली घटना नहीं है। इससे पहले एक
अमरीकी गायक टॉम पैक्सटन महोदय भी टूटे गिटार के लिए
गीत गाकर रिपब्लिक एअरलाइन को गालियाँ दे चुके हैं। दुख की बात है!
लेकिन खुशी की बात यह है कि हमारी गालियाँ गाने की खालिस भारतीय परंपरा
भी सात समुंदर पार पहुँच गई है और
वेब पर परचम लहरा रही है। काश हमने इसे समय रहते पटेंट करवा लिया होता।
हम तो सिर्फ होली या विवाह आदि के अवसरों पर गालियाँ गाते हैं जबकि ये
लोग हर जगह गा रहे है। यह सब कहानियाँ पढ़ते हुए मुझे अपनी बहन की याद आ
रही है जो बीस साल पहले अपने महीने भर के वेतन से खरीदे गए कीमती
हारमोनियम को एअरलाइन की हिदायतों के अनुसार तरह तरह से पैक कर के दिल्ली
से सैन होज़े के लिए उड़ी और वहाँ पहुँचकर उसे बक्से में हारमोनियम की
बजाय हारमोनियम के हज़ार टुकड़े मिले। फ़ोन पर हारमोनियम की बात करते
उसकी सिसकियाँ रोके न रुकती थीं। बहना तुमने क्यों न कोई गीत बनाकर वेब
पर अपलोड किया?
पूर्णिमा वर्मन
३ अगस्त २००९
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