कलम गही नहिं हाथ
धुंध में डूबा ग्रीष्माकाश
जुलाई अगस्त के महीने मध्यपूर्व में गर्मी
के होते हैं। कभी ऐसी गर्मी देखी है
जब आसमान कोहरे से ढक जाए? इमारात में पहली बार
जब ऐसी धुंध देखी तो आश्चर्य का ठिकाना न रहा क्यों कि भारत में तो धुंध सिर्फ
सर्दियों के दिनों में होती थी। गर्मी के मौसम
में यहाँ आमतौर पर पाँच-सात दिन ऐसे होते ही हैं। आज शारजाह में वही कोहरेवाला दिन है। दोपहर तक
दुबई और शारजाह का कोहरा काफ़ी कुछ छँट गया था जबकि आबूधाबी में इसके
दिनभर जमे रहने की संभावना जताई गई है। गर्मी भी कलेंडर देखकर आती है।
जैसे इंतज़ार कर रही हो कि कब जून खत्म हो और कब वो अपने कदम धरा पर
उतारे।
भारत में होने वाली
मानसूनी बारिश खाड़ी के देशों में घनी नमी पैदा करती है। पिछले दो दिनों
से नमी का स्तर बढ़ कर ९० प्रतिशत तक पहुँच रहा था। शाम को बाहर टहलना
पसीने में नहाने जैसा था। नमी से तापमान में तेज गिरावट हुई और आज मौसम
पर धुंध छा गई। समाचार है कि कुवैत, सऊदी और ईराक की ओर से उठने वाली
उत्तर पश्चिमी हवाओं से बना धूल का तूफ़ान इमारात की ओर बढ़ रहा हैं। यह
तूफ़ान आगामी तीन दिनों तक साँस की तकलीफ़ वालों के लिए मुसीबत खड़ी कर
सकता है पर शुभ समाचार यह है, कि पिछले दो दिनों में ५० डिग्री सेलसियस से
ऊपर चढ़ता हुआ अधिकतम तापमान, आने वाले तीन दिनों तक ४० डिग्री सेल्सियस
से ऊपर नहीं जाएगा। नमी का स्तर भी कम होकर ५५ प्रतिशत पर आ गया है। सो
गर्मी की तंग साँस में राहत पाकर लोग भी सड़कों पर आ गए हैं देखिए
चित्र में एक नवयुवक किस तरह के हथियारों से लैस होकर गर्मी का आनंद ले
रहा है।
नमी, धुंध और रेत के
तूफ़ान खाड़ी देशों के लिए कोई नई बात नहीं लोग इनका जमकर मज़ा लूटते
हैं। जरा पारा ४० डिग्री पर पहुँचा नहीं कि समुद्र तटों बाज़ारों,
फुहारों और आइस्क्रीम की दूकानों पर मेले लग जाते हैं। अखबार छापते रहते
हैं कि गर्मियों में सुरक्षित कैसे रहें- छाता हमेशा साथ रखें... त्वचा को
नम रखने के लिए कोई क्रीम लगाएँ... पुदीना, इलायची या सौंफ़ चबाते रहें...
तरबूज, नाशपाती और आम खाएँ... जूते की बजाय खुले सैंडिल पहनें और त्वचा जल
जाए तो ठंडा पानी डालें। उत्तर भारत की सख्त गर्मीवाली लखनऊ या
जयपुर की कड़ी दोपहर में घंटों धूप में घूमने के बावजूद त्वचा जलने का अनुभव मुझे
कभी नहीं हुआ। पर यहाँ १० मिनट की धूप में ज़रा सा समय बाहर रहने पर ही
कलाई के पास एक लाल चकत्ता उभर आया है। दवा लगाई है। पहले यह काला होगा
फिर पपड़ी बनकर झर जाएगा। माँ बचपन में कहती थीं- धूप में मत घूमो काली
हो जाओगी। अब मैं उनसे कहती हूँ- भारत की धूप रंग चाहे बदल दे पर जलाती नहीं है।
पूर्णिमा वर्मन
६ जुलाई २००९
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