कलम गही नहिं हाथ
सूरज चमक रहा!
३० मई को अचानक मौसम का पारा गर्म हुआ और यह
५०-५१ डिग्री सेल्सियस पर जा टिका। इमारात में मई जून के महीने, दोपहर
छोड़ दें तो, सुहावने होते हैं। स्कूल भी खुले होते हैं। सुबह शाम बगीचे में
बैठना अच्छा लगता है। सुबहें तो फिलहाल सुंदर बनी हुई हैं लेकिन शामें गर्म
हैं, हल्की उमस है। सुबह स्कूल जाना आसान है पर दोपहर स्कूल से लौटते समय की
गर्मी बच्चों के झेलने लायक नहीं हैं। स्कूल की बसें वातानुकूलित होती हैं
लेकिन बस से उतरने के बाद घर तक जाना भी खतरनाक हो सकता है। इससे बचने के लिए
बस स्टाप पर माएँ अपनी अपनी कार में एसी चालू रखकर बच्चों की प्रतीक्षा करती
देखी जा सकती हैं। अखबार गर्मी से
सुरक्षा के उपायों से भरे हैं और सूचना यह है कि इस साल समय से पूर्व शरू
हुई गर्मी ने पुराने कीर्तिमान ध्वस्त कर दिए हैं। मई के महीने में पिछले
१२ सालों से इतनी गर्मी नहीं पड़ी।
मध्यपूर्व में गर्मी का मौसम जुलाई अगस्त
में होता है, जब भारतीय उपमहाद्वीप की मानसूनी हवाएँ यहाँ भयंकर उमस पैदा
करती हैं और सुबह शाम भी इतनी गर्मी होती है कि बाहर बैठना नहीं सुहाता।
उस समय स्कूलों में छुट्टी होती है और लोग बंद कमरों में आराम करते हैं।
खुले में काम करने वाले मजदूरों के लिए भी नियम होता है कि १२ से ३ बजे
तक काम बंद रहे। इस साल की गर्मी को देखकर निर्माण व्यवसाय के लोग दोपहर
की इस छुट्टी को अभी से लागू करने के विषय में सोचने लगे हैं। इस गर्मी
का असर पर्यटन पर भी पड़ा है और दुबई की सड़कों पर सारे दिन घूमती खुली
छत वाली दुतल्ली पर्यटक बसों पर ऊपर बैठने वाले अलमस्त पर्यटकों के लाले
पड़ने शुरू हो गए हैं। लोग यह सोचकर भी हैरान हैं कि जब मई जून में इतनी
गर्मी पड़ रही है तो जुलाई अगस्त में क्या होगा।
यों तो इस साल शुरू से ही मौसम दीवाना रहा
है। सर्दी ज्यादा पड़ी फिर बारिश ज्यादा हुई और अब गर्मी भी
अपने रंग दिखाने लगी है। कबीरदास जी कह गए
हैं- अति का भला न बोलना, अति की भली न चूप। अति का भला न बरसना, अति की
भली न धूप। कबीरदादा क्या जानें भलाई का तो जमाना ही नहीं रहा, जमाना है
विज्ञापन और व्यापार का। गर्मी बढ़ेगी तो एसी बिकेंगे। सर्दी बढ़ेगी तो
हीटर बिकेंगे। एसी और हीटर जितने ज्यादा चलेंगे उतनी गर्मी और बढ़ेगी।
फिर इस गर्मी से ग्लोबल वार्मिग का हौआ खड़ा कर के बड़े बड़े देश बड़ी
बड़ी परियोजनाएँ बनाएँगे और अंतर्राष्ट्रीय संगठनों का ज्यादा से ज्यादा
पैसा लूटकर अपने ही देश को रईस बनाएँगे। इस तरह मौसम लड़खड़ाता रहेगा,
सूरज तो उन्हीं लोगों का चमकेगा जो विज्ञापन और व्यापार में लगे हैं।
पूर्णिमा वर्मन
१ जून २००९
|