संपादक
रामेश्वर कांबोज हिमांशु एवं
भावना कुँवर
*
प्रकाशक
अयन प्रकाशन
*
पृष्ठ - १२०
*
मूल्य :
$ १०.९५ विदेश में (कूरियर से)
१६० रुपये देश में
*
प्राप्ति-स्थल
भारतीय साहित्य संग्रह
वेब पर
दुनिया के हर कोने में
|
'चंदनमन (हाइकु संकलन)
श्री रामेश्वर काम्बोज
‘हिमांशु’ और डॉ भावना कुँअर के संपादन में अयन प्रकाशन से
चंदन मन शीर्षक से प्रकाशित हाइकु संकलन चन्दनमन’ में
अठारह हाइकुकारों के हाइकु संकलित हैं। हाइकु विशेषज्ञों
द्वारा हाइकु काव्य की दर्ज़नों परिभाषाएँ दी गई हैं-‘वह
क्षण काव्य है’, ‘शाश्वत सत्य की ओर संकेत करता है ,’ सतरह
अक्षरी स्वयं में पूर्ण छविचित्र है’,’सद्य पभावी है’, ‘एक
श्वासी काव्य है’,’लघुता में सत्य की प्रतीति कराता है’
आदि-आदि। सम्पादक द्वय ने ‘मनोगत’ शीर्षक भूमिका में हाइकु
के सनातन सत्य ‘क्षण की अनुभूति’ को हाइकु विधा/ छन्द में
विशेष महत्त्व दिया गया है। उपर्युक्त कसौटी पर हम हाइकु
संकलन ‘चन्दनमन’ का विश्लेषण करते हैं।
डॉ भावना कुँअर का एक हाइकु देखें-‘सुबक पड़ी/ कैसी थी वो
निष्ठुर / विदा की घड़ी (पृष्ठ-५) क्षण का सत्य -क्षण की
अनुभूति -सद्य प्रभाव और शाश्वत सत्य की ओर संकेत-कितना
स्पष्ट एवं मनोरम चित्र है ! यह ‘विदा’ किसी विशेष रिश्ते
से नहीं बँधी है-अपार विस्तार है -माता, पिता, भाई, बहन,
बन्धु, प्रिय, परिजन -सभी इस विशाल दायरे में आकर समा गए
हैं - केन्द्र -बिन्दु है- ‘विदा की घड़ी’…अनुपम खूबसूरत
हाइकु है।
देवी नागरानी के एक हाइकु पर पृष्ठ के पृष्ठ लिखे जा सकते
हैं-‘ वो घर मेरा/ जिसका दिल होगा / रोशनदान’- (पृष्ठ-१९)
केवल सतरह वर्णों में जीवन की पूरी कहानी दर्ज़ कर दी गई
है।रोशनदान से ताज़ा हवा, धूप, प्रकाश, सूरज की किरणें
-चाँद की चाँदनी, तारों की झिलमिल, वर्षा की बौछार सभी कुछ
आ जाती हैं, बस दिल में बसेरा हो -यही एकमात्र सपना हो
सकता है।
डॉ हरदीप कौर सन्धु हिन्दी-पंजाबी की अच्छी हाइकुकार हैं ;
हिन्दी हाइकु ब्लॉग का नियमित संचालन भी कर रही हैं। इनकी
यथार्थवादी सोच ने उपभोक्तावादी संस्कृति का ‘काला सच’
उकेर कर रख दिया है- ‘ऊँचे मकान/ रेशमी हैं परदे / उदास
लोग- (पृष्ठ-२५)
कमला निखुर्पा मेरे लिए नया नाम है।उनके हाइकु बेहद ताज़गी
लिये, माटी की सुगन्ध और रिश्तों की पावन चाँदनी, सुगन्ध
से भरे-भरे हैं- ‘आई हिचकी / अभी-अभी भाई ने / ज्यों चोटी
खींची’ (पृष्ठ-३४) पढ़कर मेरी आँखें छलक पड़ीं- मैं मायके
में, बचपन में, भाई-बहनो की मस्ती में जा पहुँची। सच!, बहन
को चिढ़ाने-खिजाने का नायाब तरीका होता था - चोटी खींचना। |
लब्धप्रतिष्ठ गीत-गज़लकार डॉ
कुँअर बेचैन, जिन्होंने पिछले पाँच दशक से हिन्दी कवि
सम्मेलनों के मंच पर जमकर तालियाँ बटोरी हैं, हाइकु -जगत
में अपनी इच्छा से आए हैं।मँजे हुए कवि और भाषाविद् होने
से अपेक्षाएँ बढ़ जाती हैं।डॉ कुँअर बेचैन ने प्रतीकों के
सधे हुए प्रयोगों से हाइकु को चमत्कार प्रदान किया है -‘
नीची मुँडेर /पहुँची पड़ोस में / युवा कनेर’ -(पृष्ठ-३१) और
‘हुई अधीर / छुआ जब मेघ ने /नदी का नीर’-(पृष्ठ-४०) ऐसे ही
विशिष्ट हाइकु हैं।
मंजु मिश्रा की संवेदना निराली है-‘देहरी दीया / बाहर तेज़
आँधी /लौ काँपती है’--(पृष्ठ-४१) अनूठा बिम्ब …अनुपम
चित्र… पढ़कर मन की लौ काँप उठी।मानव की जिजीविषा और साथ ही
छोटे-छोटे सपनों को साकार कर लेने की अदम्य इच्छा-‘चलो
बटोरें / जुगनू ; चाँद - तारे/मिलें न मिले’ -(पृष्ठ-४२)
खूबसूरत हाइकु है।
आज हाइकु-जगत में इस बात पर ज़्यादा ज़ोर दिया जा रहा कि
हाइकु प्रकृति, अध्याम, शाश्वत सत्य को छोड़कर यथार्थ से
दो-चार हो।हाइकुकार मुमताज - टी एच खान ने समाज के ज्वलन्त
सत्य को हाइकु में बाँध दिया है-‘प्राण बेटियाँ / घरौंदे
ये बसाए/ लोभी जलाएँ’--(पृष्ठ-४५)
डॉ सतीशराज पुष्करणा ने इसी लोक सत्य को इस प्रकार व्यक्त
किया है-‘ हर रिश्ते में /दुख ही सहती हैं / प्राय:
बेटियाँ -(पृष्ठ-९०)
पूर्णिमा वर्मन ने ‘खाड़ी के दिन, दोपहर,शाम सभी कुछ को
लेखनी के कैमरे में खूबसूरती से क़ैद कर लिया है-
‘भोर सुहानी/ तपती दोपहर /खाड़ी के दिन/-(पृष्ठ-५५)
‘बाँह उठाए / खजूर की कतारें। हमें पुकारें’--( पृष्ठ-५५)
‘आँगन तक / छम-छम् दोपहरी /नीम पायलें’-(पृष्ठ-५७)
‘धूप ओढ़नी /उतरी दुपहर / सूरज बिन्दी’- (पृष्ठ-५८)
रचना श्रीवास्तव की हाइकु-दुनिया इन सबसे अलग रंगों की
पिटारी से भरी है। वहाँ वात्सल्य का पितृगृह के प्रति
कन्याओं के प्रेम का अछूता, अनूठा रूप बिखरा है।बेटा
प्रवास में है (शायद शिक्षा प्राप्ति के लिए )। माँ की
ममता घर में हर उस चीज़ को दुलारती है जो उसके बेटे की
है-‘बेटे का कोट /रोज़ धूप दिखाती / प्रतीक्षा में माँ’ -(
पृष्ठ-६४)। बेटी अपने पितृगृह में है, उसे भविष्य का ज्ञान
है कि कहीं दूर उसे अपना घरौंदा बसाना है,उड़ जाना है। आज
की ज्वलन्त समस्या -प्रतिभा-पलायन से उत्पन्न उन
माता-पिताओं की है जो बुढ़ापे की असह्य वेदना अकेले भुगतने
को मज़बूर हैं-
‘डॉलर छीने / बेसहारा की लाठी/ सूना आँगन’-(पृष्ठ-६२)
वरिष्ठ हाइकुकार श्री रमाकान्त श्रीवास्तव इस संकलन में भी
प्रकृति के प्रति अटूट प्यार को, अपने गाँव की सुगन्ध को,
अतीत के खुशनुमा दौर को पुनरुज्जीवित करते हैं।पर्यावरण
सन्तुलन की चिन्ता उनकी प्राथमिकता है-
‘कटे बिरिछ/ गाँव की दोपहर /खोजती साया’- (पृष्ठ-७१)
‘गाँव मुझको / मैँ ढूँढ़ता गाँव को / खो गए दोनो’-
(पृष्ठ-७१)
वसन्त की आहट कवि ने यूँ पाई-
कौन आया है ?/कोंपल ओढ़ लिये/ शाख़ -शाख़ ने- (पृष्ठ-७३)
रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु के हाइकु मानवीय और प्राकृतिक
प्रेम के उच्छल प्रयास हैं-
खिलखिलाए / पहाड़ी नदी जैसी / मेरी मुनिया’‘- (पृष्ठ-७७)
तुतली बोली /आरती में किसी ने / मिसरी घोली- (पृष्ठ-७७)
सचमुच कानों में चाँदी की घण्टियों की मधुर ध्वनि गूँज
उठती है। हिमांशु जी के हाइकुओं में प्रकृति के नाना रूपों
के मनोहर चित्रों के साथ मानवीय संवेदनाओं की निश्छल, पावन
अनुगूँज भी है :
‘बीते बरसों/ अभी तक मन में /खिली सरसों’- (पृष्ठ-८१)
‘दर्द था मेरा / मिले शब्द तुम्हारे / गीत बने थे’-
(पृष्ठ-८३)
आज मनुष्य के पास अपने कुकृत्यों के लिए करने को सिर्फ़
पश्चात्ताप बचा है और कुछ नहीं।कुछ ऐसे ही अन्दाज़ में
सुदर्शन रत्नाकर ने कहा है -‘हर टहनी / जीवन से भरी थी /
काट दी मैंने’- (पृष्ठ-१००)
डॉ उर्मिला अग्रवाल हाइकु -जगत् में एक जाना पहचाना नाम
है। उनकी हाइकु की दुनिया के केन्द्र में है-प्रकृति और वे
स्वयं।
‘तारों के फूल / डलिया भर लाई/मालिन रात’--(पृष्ठ-१०९)
‘धूप सेंकती/ गठियाए घुटने/ वृद्धा सर्दी के’--
(पृष्ठ-११०) जैसे मनमोहक चित्र हैं साथ ही उर्मिला जी निज
जीवन के कटु अनुभवों से बेज़ार होकर निराशा के गर्त में
डूबने -उतराने लगती है-
‘भटक रहे / पिण्डदान माँगते / मेरे सपने’- (पृष्ठ-१११) और
स्वयं को इस कारा में बन्दी बना बैठी हैं-‘यादे पिंजरा /
तड़पता रहता / मन-सुगना’- (पृष्ठ-१११)
डॉ सुधा गुप्ता हिन्दी -साहित्य-जगत् की वरिष्ठ हाइकुकार
हैं; जो पिछले तीन दशक से भी अधिक अवधि से हाइकु रचना कर
रही हैं। उनके द्वारा रचित ‘बारहमासा’ इस संकलन में संकलित
है। महाकवि बाशो के अनुसार एक सफल हाइकुकार की सबसे बड़ी
विशेषता है कि वह दृश्य के प्रति ‘तटस्थ द्रष्टा’, ‘असंग
दर्शक’ मात्र रह कर हाइकु रचना करे। उस दृश्य / घटना में
स्वयं संलिप्त न हो। इस कसौटी पर बहुत कम हाइकुकार खरे
उतरेंगे।डॉ सुधा गुप्ता का बारहमासा ऐसा उदाहरण ; जिसमें
प्रकृति के चित्र ‘यथास्थिति’ उकेर दिए गए हैं-
‘चैत्र जो आया / मटकी भर नशा/ महुआ लाया’- (पृष्ठ-९९)
‘बजे नगाड़े / राजा ‘इन्दर आए’ /लेके बारात’ - (पृष्ठ-९१)
‘धूप-जल में / आँखें मूँद नहाते /ठिठुरे पंछी’ -
(पृष्ठ-९७)
‘भादौ के मेघ /बिजली के फूलों की/ माला पहने’- (पृष्ठ-९४)
‘लाल गुलाल /पूरी देह पर लगा / हँसे पलाश - (पृष्ठ-९८)
‘खेतों में दौड़ती / पगली कटखन्नी / पूस की हवा- (पृष्ठ-९७)
‘जोगिया टेसू / धारे युवा वैष्णवी / वन में खड़ी’-
(पृष्ठ-९९)
ये सभी प्रकृति के दुर्लभ चित्र हैं, जिनको सफल हाइकुकार
ने अपने शब्दों के कैमरे में क़ैद कर लिया है। कुल मिलाकर
‘चन्दनमन’ एक पठनीय संकलन है।सम्पादक द्वय अपने सतर्क चयन
के लिए बहुत-बहुत बधाई के पात्र हैं।
- डॉ अर्पिता गुप्ता
१३ फरवरी
२०१२ |