अनुवादक
कुमुद अधिकारी
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प्रकाशक
वाणी प्रकाशन, विराटनगर, नेपाल
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ISBN ९९९४६३६२६
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पृष्ठ :१५९
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मूल्य :
नेपाली रूपए १९९/-(US$
१•५)
(डाक खर्च एक प्रति साधारण डाक से यू एस ए के लिए
US$ ६•९९, यूरोपीय
देशों के लिए
US$ ५•९९, खाड़ी
देशों के लिए US$
४•९९ तथा भारत व
सार्क देशों के लिए
US$ ३•९९)
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ज़िंदगी एक
फोटोफ्रेम (अनूदित कहानी संग्रह)
'ज़िंदग़ी
एक फोटोफ्रेम' अभिव्यक्ति में प्रकाशित हिंदी के आठ
प्रतिष्ठित लेखकों की सोलह कहानियों का नेपाली अनुवाद है।
अनुवादक हैं कुमुद अधिकारी जो अभिव्यक्ति के पाठकों में
पहले ही अपनी पहचान बना चुके हैं। हिंदी से नेपाली और
नेपाली से हिंदी अनुवाद में दक्ष कुमुद की शिक्षा
दार्जिलिंग में हुई है जिसके कारण उनकी हिंदी की समझ और
पकड़ हिंदुस्तानी लेखक जैसी है।
नेपाली
बुद्धिजीवियों में अंग्रेज़ी साहित्य को विश्वसाहित्य के
रूप में पहचाना जाता है लेकिन बिलकुल समीप स्थित भारत का
हिंदी साहित्य आम नेपाली पाठक को सहजता से प्राप्त नहीं
होता। जो लोग अंग्रेज़ी और अंग्रेज़ी में अनूदित फ्रेंच,
जर्मन, इटालियन, रूसी या चीनी साहित्य पढ़ते हैं वे भी
समसामयिक हिंदी साहित्य को कम ही पहचानते हैं। भारतीय
उपमहाद्वीप बहुत कारणों से एक ही परिवार है और इस परिवार
के भीतर संवाद और लेन–देन को जितना मज़बूत किया जाए परिवार
का प्रत्येक सदस्य उतना ही लाभान्वित होगा। इसी बात को
ध्यान में रखते हुए उन्होंने इन कहानियों को नेपाली में
रूपांतर को निजी खर्चे से छपवाकर भारतीय और नेपाली साहित्य
के आदान–प्रदान की दिशा में एक महत्वपूर्ण और ठोस कदम
उठाया है।
'जिंदगी एक
फ़ोटो–फ्रेम' भारत के निवासी और प्रवासी लेखकों की सशक्त
अभिव्यक्तियों को सुंदर ढंग से समेटकर तैयार की गई है। इस
संग्रह में भारत से संतोष गोयल, जयनंदन और डा .नरेश, यू एस
ए से सुषम बेदी, कैनेडा से अश्विन गांधी, यू के से शैल
अग्रवाल और तेजेंद्र शर्मा तथा यू ए ई से कृष्ण बिहारी की
दो–दो कहानियों को नेपाली में रूपांतरित किया गया है। इस
प्रकार यह हिंदी का पहला ऐसा संकलन है जिसमें विश्व के हर
कोने से हिंदी लेखकों को चुना गया है।
श्री
अधिकारी सशक्त संपादक, जीवंत कथाकार एवं सफल शिक्षक हैं।
उनका अनुवाद शिल्प खासकर हिंदी और बंगाली में बेजोड़ है।
वे हिंदी, अंग्रेज़ी, बंगाली और नेपाली भाषाओं पर समान
अधिकार रखते हैं।
प्रस्तुत
कहानी संग्रह में हर कहानी एक अलग संसार समेटे हुए है और
हर कहानी हमें एक अलग से कथालोक में पहुंचाती हैं। शीर्षक
कथा 'जिंदगी एक फ़ोटो फ्रेम' के निम्न वाक्य देखें – "यों
यात्रा विदेशबाट स्वदेश फर्कने थिएन . . .हरबाट गाउं
फर्कने पनि थिएऩ यो यात्रा थियो जिंदगीभित्र गएर फेरि
जिउंदो भएर आउने . . .कहिल्यै नसकिने अद्भुत अनुभव यात्रा
थियो। अनुभवको न रङ हुन्छ, न रूप न गन्ध।" (यह सफ़र विदेश
से स्वदेश लौटने का नहीं था . . . शहर से अपने गांव चले
आने का नहीं था, ये तो जिंदगी के भीतर जाकर पुनः जिंदा हो
जाने का सफ़र था . . .कभी न ख़त्म होनेवाली अदभुत अनुभव
यात्रा थी। अनुभवों का ना तो कोई रंग होता है न रूप न
गंध।)
पार्थ और
शैलेश के बीच विभाजित संतोष गोयल की पात्र 'मैं' कथा में
निष्काम कर्म में विश्वास करनेवाली गीता दर्शनवादी हिंदू
चरित्र है। उनका जीवन प्रेम देखने लायक है, काबिले तारीफ़
है। कथा 'जरै देखि काटदा' (जड़ों से काटने पर) का आंतरिक
द्वन्द्व हो या बाह्य द्वन्द्व, 'ब्लडमनी' हो या 'चरमराहट'
खाड़ी देशों की यथार्थ की इतनी सुंदर प्रस्तुति और कहां
देखने को मिलती है? यों तो कोई भी कहानी दूसरे से कम नहीं
है पर सितंबर ११ का सजीव चित्रण करनेवाली अश्विन गांधी की
कहानी 'मर्नैर्पर्ने एक दिन' (मरना है एकबार) ऐसी कहानी है
जिसे पढ़े बगैर सग्रह पढ़ने का मज़ा नहीं आएगा।
लेखक चयन
और कथा चयन की दृष्टि से पुस्तक में कहीं खोट नहीं है।
अनुवाद की दृष्टि में कोई ग़ैर नेपाली शब्दों और वाक्यों
के प्रशस्त प्रयोग पर उंगली ऊठा सकता है, पर मूल कहानियों
का रसास्वादन करने के लिए कुमुद ने जो किया है, वही एक
विकल्प था। कुमुद ने अपने कथाशिल्प और अनुवाद शिल्प को
काफ़ी समय देकर सजाई गई इस कृति में उनका हुनर आसानी से
देखा जा सकता है। शायद इस कृति में शामिल आठों कहानीकार
नेपाली में पहली बार अनूदित हुए हैं। इस अर्थ में
कहानीकारों को बधाई और कुमुद जी अनुवाद कार्य में और आगे
बढ़ते रहें, इन्ही शुभकामनाओं के साथ।
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