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हास्य व्यंग्य

शॉपिंग का सुरूर
सुरेन्द्र अग्निहोत्री


फागुन मास सुहायो, रुठे सैंया घर आयो। यानि कि पति नामक प्राणी के प्रति उनके गहरे प्रेम की चर्चा तो सभी करते है रंग-बिरंगे कपड़े पहन कर अबीर और गुलाल उड़ा कर मुहल्ले भर में अपनी भावनात्मक प्रेम की पींगों की कथा मंद-मंद गति से सुनाकर लौटी तो झूम-झूम कर गुझियाँ खिलाते बोली होली का उल्लास और आनंद तो तभी है जब त्यौहार पर शापिंग हो जाए।

उनको शापिंग करना बेहद पसन्द है पर, शनिवार को वह बाजार नहीं जाती है। उनका विश्वास है इस दिन नया कुछ खरीदना अपशगुन है। चलो ठीक है कभी और दिन शापिंग कर ले मुझे क्या फर्क पड़ता है। रविवार की सुबह जब मैं दूध लेने डिपो जा रहा था तो उन्होंने कागज का पुर्जा थमा दिया। मैने समझा शायद कपड़े धुलने गये होगे, जेब में बिना पढ़े डाल दिया। लौटकर घर आया तो मेरे हाथ में दूध का पैकिट देखकर नाक भौं सिकाड़े खिन्न स्वर में बोली-यदि मुझे पहले पता होता कि तुम मेरी छोटी-छोटी माँगें भी पूरी नहीं कर पाओगे तो मैं, तुमसे कभी विवाह के बंधन में नहीं बँधती। मैंने भी कह दिया कि एक बार माँग भरने के बाद तुम रोज नई-नई माँगें मेरे सामने रखोगी तो काहे को यह भूल करता!

बस इतनी सी बात पर उनका मूड मायावती हो गया, आनन-फानन में मुझे सबक सिखाने के उपक्रम में जुट गईं। मैडम के मूड में आये अचानक परिवर्तन से होने वाले प्रभाव से उपाय हेतु आर.के. लक्ष्मण की दुनिया के मोटा भाई की तरह शरणागत होने में ही हित समझकर सामान की लिस्ट ले ली। लिस्ट में लिखा था होटल न्यू ग्लयू में लगी महासेल से दो सोफा कवर सेट! अब आप ही बताओ जब घर में एक भी सोफा नहीं तो कवर लेकर क्या करते? मगर उनके दुरदर्शी सुझाव को अमली जामा पहनाने में ही अपनी भलाई समझी। छोटी-छोटी बातों के लिऐ नाक, भौंहों को कष्ट काहे दें। भई मूड तो मस्त है। पर वे हैं कि झमेले-पर झमेले खड़ी करती रहती हैं उनके झमेलों से परेशान होरक मैं अपने गुरूजी के पास पहुँचा और अपने दिली जज्बात हसरत साहब के इस शेर द्वारा व्यक्त किये-
इक तुम कि वफा तुमसे होगी, न हुई है
इक हम कि तकाजा न किया है न करेंगे।

गुरूजी बोले, लगता है तुम एको भार्या के चक्कर में कटोरे में चाँद का उपक्रम पूर्ण नहीं कर सके। और मुलायम की तरह मातम मना रहे हो। खैर! हैरान, परेशान होने की जरूरत भू-दृश्य पर मेरे रहते नहीं है आज मैं तुम्हें पत्नी व्रत निभाने के लिए कथा सुनाता हूँ।

सतयुग के अंतिम पहर में कठिन जीवन-यापन कर अपना भव सुधारने हेतु तपस्यारत युवक दिव्य स्वरूप के तेज से स्वर्ग की गणिकाएँ उसका वरण करने पहुँचीं, सबने उससे परिणय सूत्र में बँधने अन्यथा परिणाम भुगतने की चेतावनी दे दी। अब एक व्यक्ति और हजारों गणिकायें किसी एक की बात मानें तो दूसरी नाराज। दिव्य स्वरूप पहुँचे अपने गुरू से विचार विमर्श करने, गुरू जी बोले अरे यह भी कोई काम है? तीन सिद्धान्तों के आधार पर नौ गणिकाएँ चुन लो। दिव्यस्वरूप ने गुरू जी से विनती की, जरा ये तीन सिद्धांत मुझे समझा दो? एक जिसे किसी से प्रतिस्पर्धा न हो। सभी गणिकायें एक दूसरे के प्रति भारी स्पर्धा कर रही थीं उनके नाम पहले ही सूत्र के कारण परिणय सूत्र में बँधने वाली लिस्ट से स्वतः कट गये हैं। हे नर! तू नारी से मत डर, मन, बुद्धि और इंद्रियों को सुन्दर और कुरूप नारी के ऊपर प्रयोग करो। गुरूजी के मंत्र को मन के भीतर डालकर (ऊपर वाला गवाह है।) झाड़ू लगाने वाली महरी से लेकर आठ बच्चों की माँ श्रीमती गुप्ता तक बड़ी शान से इजहार कर दिया। सारी कालोनी की वे मुझे फ्री सैम्पिल की तरह यूज करने लगीं (बात समझा करो) सो उनका मिड मूड पंचर हो गया। मुझे खुश करने के लिए उन्होंने वर्षों पहले पाक कला में प्राप्त महारत से अंग्रेजी के ए से जेड तक कोई भी डिश पकाने में देरी नहीं की, उनकी हालत ऐसी हुई कि पूछिऐ मत! घर के अन्दर छिड़ा महाभारत विधानसभा में बहुमत पक्ष में होने की तरह रफू चक्कर हो गया।

नजारा बदलते ही मेरी हालत बोनस में मिली खुशी के कारण मन में गुद-गुदी मचा रही थी, गुरूमंत्र के कारण चुनाचे मैं अपनी भार्या को सीधी राह पर लाने में कामयाब रहा इसका मतलब यह नहीं कि तुम अपने हथियार डाल दो।
बेलन, कलछुरी, चमचा आदि अस्त्रों के साथ वाणी के प्रहारों से करो चोटिल, हे नारी वर से मत डर। अल्पमत को ताकत के बल से बना दो बहुमत।

मार्च २०१५

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