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हास्य व्यंग्य


स्वामी आलोकानंद जी महाराज का बिजली उपवास
- आलोक सक्सेना


जब से हमारे एक प्राकृतिक चिकित्सक मित्र स्वामी आलोकानंद जी महाराज बने हैं। उन्होंने चिकित्सा-विकित्सा छोड़ कर यह नया स्वामीगिरी का प्रोफेशन अपनाया है। उनकी ख्याति में तो चार चाँद लग गए हैं। देश में पिछले दिनों बिजली का ग्रिड क्या फेल हुआ। उनको तो ख्याति प्राप्त करने का सफल फार्मूला हाथ लग गया। वर्षों से जो बात हम सब तमाम सारे प्राकृतिक चिकित्सक भारत की जनता को कह-कह कर थक गए बस, वही बात उनके दिल से 'बिजली उपवास' के फार्मूले के रूप में जब समाज के सामने निकलकर आई तो देशभर में ग्रिड फेल होने के दौरान बाईस राज्यों की सत्तर करोड़ जनता की आँखों के साथ अपनी आखें खोलकर उन्होंने चमत्कार कर दिखाया।

उनके द्वारा प्रतिपादित 'बिजली उपवास' फार्मूले की दिन दूनी रात चौगुनी तरक्की को देखकर मुझे उनसे जलन होने लगी। मुकद्दमा करना चाहा कि यह कोई नई बात नहीं है। वर्षों पहले भी ऐसा होता था। वही इस आधुनिक युग में भी 'बिजली उपवास' के नाम से जनता के समक्ष परोसा जा रहा है। मगर फिर मैंने भारत का एक जागरुक नागरिक व प्राकृतिक चिकित्सक होने के नाते चुप रहकर अपनी विद्रोहभरी भावनाओं के ऊपर नियंत्रण कर लिया।

मेरे इस प्राकृतिक चिकित्सक मित्र ने हाल ही में प्राकृतिक चिकित्सा एवं योग की उपाधि हासिल की ही थी कि बिजली का ग्रिड फेल हो गया। बस यही अंधकार वाली रात्रि इनके लिए अलादीन का चिराग बनी। ग्रिड फेलियर के दूसरे दिन जब सारा राष्ट्र, राष्ट्रपति भवन से लेकर प्रधानमंत्री भवन, संसद भवन तक देश में व्याप्त अँधेरे पर अपनी-अपनी तरह -तरह से प्रतिक्रियाएँ दे रहे थे । शोक व्यक्त कर रहे थे, उधर हमारे यह मित्र आकाशवाणी एवं दूरदर्शन के मीडियाकर्मी को लेकर बैठ गए। शहर के नामी-गिरामी अखबारों व पत्रिकाओं के संपादकों को अपने घर दोपहर भोज पर बुलाकर अच्छी-खासी प्रेस-कांफ्रेंस कर डाली। तब इन्होंने अपने 'बिजली उपवास' के बारे में कहा कि,-'बिजली उपवास' कुछ भी नहीं है और है भी बहुत कुछ। इस उपवास का असली महत्व वही जान सकता है जो अपने घर पर प्रत्येक सप्ताह में कम से कम एक दिन बिजली से चलने वाली सभी वस्तुओं का त्याग करेगा। इसे ही हमने 'बिजली उपवास' का नाम दिया है।'

उन्होंने यह भी बताया कि "अपना घरेलू काम-काज स्वयं करने से आप प्रकृति के एकदम नजदीक हो जाते हैं। आपको पंचतत्वों का अहसास होता है। आप आकाश, वायु, अग्नि, जल तथा मिट्टी की उपयोगिता समझ जाते हैं। दिमागी फितूर जैसे क्रोध, चिंता, भय व अनावश्यक मानसिक तनाव से मुक्ति मिलती है। आप सुशील, शांतप्रिय तथा अहिंसावादी बनते हैं। वैसे भी घर पर बिजली से चलने वाली भौतिक वस्तुओं का अनावश्यक संग्रह करना उचित नहीं होता है। आपका घर है कोई राष्ट्रीय विज्ञान केंद्र तो नहीं।"

उस दिन सभी मीडियाकर्मी व संपादकों को उनकी बात जंच गई और उन्होंने अगले दिन उनके बेहतर फोटो के साथ 'बिजली उपवास' पर उनका अच्छा-खासा लेख छाप डाला। फोटो के नीचे हमारे मित्र के नाम के आगे से डॉक्टर शब्द गायब था इसके बदले में छपा था स्वामी आलोकानंद जी महाराज, उनकी फोटो में भी उन्होंने गेरुए वस्त्र धारण कर माथे पर लाल टीका लगाया हुआ था तथा उन्होंने अपने बदन पर दो-चार रुद्राक्ष की मालाएँ भी पहन रखी थीं।

एक ही बार की शानदार पब्लिसिटी से उनका 'बिजली उपवास' चर्चा में आ चुका था। जग प्रसिद्ध हो चुका था। तो मैंने उन्हें इस शानदार सफलता की बधाई देते हुए पूछा कि,-"मित्र, अब कहाँ पर अपना प्राकृतिक चिकित्सालय खोलने का विचार है। हमें भी अपने साथ रख लीजिएगा। हम भी ओपीडी में बैठकर दो-चार असाध्य रोगी देख लिया करेंगे।"

वह बोले,-"भाई, हमने गाँधी जी के द्वारा बताई गई प्राकृतिक चिकित्सा को करना जरूर सीखा है लेकिन गाँधी युग में जन्म नहीं लिया है। आजकल का युग तो बाबाओं का युग है। तो अब तो स्वामी जी बनकर स्वामीगिरी करने में ही मजा आने लगा है। हम लोगों को प्राकृतिक चिकित्सा में रंग चिकित्सा का भी बड़ा महत्व बताया गया है इसलिए मैं तो रंग बदलती इस दुनिया में रंग बदलने में माहिर हो गया हूँ। यहाँ पर हल्दी लगे न फिटकरी और रंग सदा चोखा और रंग में भंग करना तो मुझे आता ही नहीं है। तुम भी यदि मेरे साथ इस रंग में रँग कर मेरे ग्रुप में शामिल हो जाओ तो मैं तुम्हें कल से ही अपने संत-समागम के दौरान आए हुए लोगों को लालटेन बेचने का काम-धंधा सँभालने की जिम्मेदारी दे सकता हूँ। क्योंकि 'बिजली उपवास' के महत्व को समझकर लोग बेहतर स्वास्थ्य लाभ के चक्कर में लालटेन भी खूब खरीदेंगे।"

इसबार मैंने भी उन्हें स्वामी जी कहकर संबोधित करते हुए कहा,-"ठीक है स्वामी जी, मगर आजकल के लोग तो लालटेन को जानते तक नहीं। कहाँ मिलेगी उन्हें लालटेन और मिल भी गई तो केरोसिन का तेल उन्हें कहाँ मिलेगा?" आश्चर्य से मैंने कहा।

वह बोले,-"वत्स, इस बात की तो तुम बिल्कुल चिंता मत करो। मैंने भी अपने जीवन में कच्ची गोलियाँ नहीं खेली हैं। इसलिए मैंने पहले ही सरकार से कलयुग की नई लालटेन बनाने का पेटेंट प्राप्त कर लिया है। अब इसे मेरे अलावा कोई और नहीं बना सकता। सारा मुनाफा अपनी जेब में। एक पंथ दो काज। और रही उसे जलाने हेतु केरोसिन तेल की बात तो जंतर-मंतर है न, लगा दूँगा मैं भी इसबार अपना बिजलीरहित तंबू और सरकार से गुजारिश करूँगा कि भारत की जनता को बिजली नहीं अब केरोसिन तेल चाहिए ताकि उनका 'बिजली उपवास' पूरा हो सके। 'बिजली उपवास' द्वारा अब गरीबी की रेखा और अमीरी की रेखा मिलकर एक हो गई है इसलिए सभी को चाहिए एक समान रूप से केरोसिन तेल। जो काम सरकार अभी तक नहीं कर पाई मैं कर दिखाऊँगा।"

इस प्रकार एक तीर से दो शिकार होते देर न लगी और मैं अपने प्राकृतिक चिकित्सक मित्र की चतुरता और बहती अशुद्ध गंगा में हाथ धोने की प्रवृत्ति को अच्छी तरह से समझ गया मगर मेरे पास अब और कोई चारा नहीं था उससे अपनी मित्रता को निभाने का तो मैंने भी उसके स्वामी ग्रुप में शामिल हो जाने का एग्रीमेंट साइन करके उसे दे दिया और लोगों को लालटेन बेचने के साथ-साथ, अँधेरे में लालटेन जलाने का ज्ञान देने लगा। बिना बिजली वाले आश्रम में लगे अपने सफल मित्र के संत-समागम के समय कुछ अज्ञानी महिलाएँ बच्चा पैदा हो जाने का आशीर्वाद लेने भी आ जातीं तो सबसे पहले मैं ही इन महिलाओं को बच्चा पैदा होने की प्राकृतिक जड़ी-बूटियाँ बताता और योगासन एवं क्रिया को गुप्त रूप में प्रैक्टीकल तरीके से समझाकर उनके मुँह में मौन रहने का लड्डू डाल कर वापस भेज देता। जिसके बेहतर सफल परिणामस्वरूप सब की सब अगले माह में ही गर्भवती हो जातीं और इस खुशी में इतनी पागल हो जाया करतीं कि मुझे भी स्वामी जी कहकर अपने बढ़ते हुए पेट पर हाथ फेर कर कहा करतीं कि यह सब तो आपका ही आशीर्वाद है। स्वामी जी हम धन्य हुए। आपने हमारे कुल की लाज अपने आश्रम में रख ली। हम पर सदा कृपा बनाए रखें। हम खुद भी आते-जाते रहेंगे और अपनी तरह प्रताडित होकर बाँझ कही जाने वाली अपनी दूसरी जवान बहनों को भी लेकर आएँगे। वैसे भी बड़े स्वामी आलोकानंद जी महाराज से तो हमें 'बिजली उपवास' के दौरान उनकी बुझी हुई ट्यूबलाइट के अँधेरे में अब संयमित होकर रहने का पूर्ण ज्ञान लेना तो अभी बाकी ही है।

२८ जुलाई २०१४

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