हास्य व्यंग्य

खूबसूरत दुर्घटना
सुधीर ओखदे


सड़क किसी दंगारहित प्रदेश की तरह खामोश थी। तभी एक खूबसूरत सी कन्या अपनी जवानी के मद में चूर तेज गति से अपनी मोपेड चलाती हुई बिहार के कानून व्यवस्था की तरह सड़क पर अवतरित हुई और सड़क पर चल रहे भारतीय अर्थव्यवस्था की तरह डगमगाते एक बूढ़े को ठोकर मारती हुई निकल गई। संयुक्त राष्ट्र संघ के समक्ष कमजोर देश की भाँति बूढ़े की चीख निकल गई।

जहाँ बूढ़ा उछल कर दूर जा गिरा वहाँ लड़की अपनी मोपेड सम्हाल न सकी और वह भी वहीं पास में गिर पड़ी। दृष्य रोमांचित करने वाला था। दुर्घटना हो चुकी थी और दो घायल आमने-सामने पड़े थे।

भारतीय जनमानस भीड़ जुटाने में जितना प्रगतिशील है उतना शायद ही कोई दूसरा देश होगा। संत महात्मा आ जाएँ तो भीड़ जुट जाती है। अपराध घटित हो जाए तो भीड़ जुट जाती है। जादू खेल तमाशा आ जाए तो भीड़ जुट जाती है। फिल्मी कलाकारों से जहाँ भीड़ जुटती है वहीं पागलों के आने पर भी जुट जाती है। क्रिकेट खिलाड़ियों के कारण भीड़ जुट जाती है वहीं हिजड़ों का नृत्य भी भीड़ जुटाने का कार्य करता है।

भीड़ के मामले में जनमानस भारतीय पुलिस व्यवस्था की तरह सारे देश में एक सा है। वहीं घटने के मामले में भी उसका व्यवहार एक सा है। दुर्घटना हुई भीड़ जुटी। पुलिस आई, भीड़ घटी। बाद में पुलिस सिर मारती रह जाती है पर पूरा शहर धृतराष्ट्र की तरह अंधा हो जाता हैं

मैं वहाँ नहीं था। मैं कार्य में इतना व्यस्त था कि यहाँ-वहाँ देखने की फुरसत ही कहाँ थी। अपराधी की दहशत कहें या पुलिस का खौफ सच्चाई सज्जनता की तरह दब कर रह जाती है।

पर यहाँ तो मामला ही अलग था। दोनों कमजोर। दोनों असहाय। दोनों घायल। लड़की खूबसूरत थी। खूबसूरती जब जुल्म करती है तो इल्जाम मजलूम को ही झेलना पड़ता है।

बूढ़ा कराह रहा था और लड़की इठला रही थी। भीड़ जम चुकी थी और अपनी सार्थकता को सिद्ध करने की कोशिश कर रही थी।

आपको चोट तो नहीं आई ? कितने नालायक हैं ये पैदल चलने वाले अंधों की तरह चलते हैं। आइए मैं आपको सहारा देता हूँ। एक नौजवान ने अपना हाथ नवयुवती की तरफ बढ़ाया। तभी बूढ़ा कराह उठा। उसे घुड़की मिली,
"चुप रह। तुझे भी उठाते हैं। देखकर चल नहीं सकता था ? देख। कितनी खरोंच आई मेम साहब को। तेरा क्या है, उठेगा और चलता बनेगा। मोपेड के नुकसान की बात भूल कर भी न करेगा।"

"यार ! मै तो कहता हूँ इन बूढ़ों को घर से बाहर निकलने की आवश्यकता ही क्या है। न ये निकलता और न मेम साहब परेशानी में पड़तीं आइये मैं आपको घर पहुँचा देता हूँ। एक अधेड़ ने नवयुवती को देखते हुए कहा।"
बूढ़ा फिर कराह उठा।
"अरे ! आपका तो चश्मा ही टूट गया है। बूढ़े के चोट लगे सर की तरफ देखते हुए एक नवयुवक बोल उठा, "इसका क्या है हल्दी लगाएगा तो ठीक हो जाएगा। पर ऐसा गॉगल यहाँ मिलना तो मुश्किल लगता है। विदेशी है क्या ?"

"भैया विदेश में भी क्या-क्या चीजें बनती हैं। देखते रहो बस नजर ही नहीं हटती। अपने देश में कहाँ हैं ये सब। अपना देश तो इस बूढ़े की तरह और जर्जर होता जा रहा है। जोर का धक्का लगने की देर है और भुस्स।"

"और नहीं तो क्या। यदि अपने देश में ही सारी सुविधाएँ होती तो भला बड़े-बड़े व्यापारियों, मंत्रियों, अधिकारियों के बच्चे विदेशों में क्यों पढ़ते ? मैंने तो सुना है बड़े लोग अपने पालतू कुत्तों का इलाज भी यहाँ नहीं कराते ?"

"कुत्ता विदेशी हो तो उसका इलाज अपने देश में कैसे हो सकता है भला। यह भी कोई पूछने की बात है।"

जब अपने देसी नेताओं का इलाज विदेशों में हो सकता है तो विदेशी कुत्तों का इलाज अपने देश में क्यों नहीं हो सकता।

"भैय्या कुत्ते और नेताओं में कुछ तो अन्तर होता है न ? नेताओं को अपने देश को छोड़ विदेशों की सुविधाएँ भले ही पसन्द आती हों पर विदेशी कुत्तों को तो अपने देश की ही योग्यता पर विश्वास होता होगा।"

नवयुवती अब तक सदमे से उबर चुकी थी और अपने आप को सम्हालती हुई खड़े होने का प्रयत्न कर रही थी कि सहायता के लिए बढ़े हाथों से घबरा कर वह पुनः बैठ गई। उसने एक दृष्टि बूढ़े बाबा पर डाली जो कराह रहा था। उसकी हालत देख नवयुवती की आँखें ग्लानि से गीली हो गईं।

"देखा। कितना दर्द हो रहा है मेमसाहब को। आइये मैं आपको सहारा देता हूँ। आइये मैं आपको उठाता हूँ। आइये मैं आपको घर पहुँचा देता हूँ।" भीड़ सहायता के लिए प्रतिबद्ध थी। कई हाथ एक साथ नवयुवती को सहारा देने को तत्पर नजर आ रहे थे।

इधर वह बूढ़ा धीरे-धीरे अपने कदमों पर खड़ा हुआ और भीड़ चीरता हुआ उस खूबसूरत लड़की के पास पहुँचा और अपना लड़खड़ाता हाथ उसने लड़की की तरफ बढ़ाया, जिसे लड़की ने तुरन्त थाम लिया और बूढ़े बाबा से बोली, "बाबा! खूब कष्ट हो रहा है न ?"

बूढ़े ने मजबूती से अपनी गर्दन नकारात्मक अन्दाज से हिलाते हुए कहा, "नहीं बेटी ! तेरा कष्ट देख कर मेरा दर्द भाग गया है। तेरी तो अनजाने में मुझे ठोकर लगी थी। पर यहाँ यह भीड़ तुझे आँखों से, हाथों से, बातों से जो ठोकर मार रही है वह असहनीय है। मैं ठीक हूँ बेटी तू घर जा।"

और वह बूढ़ा भीड़ चीरता हुआ धीमे कदमों से वहाँ से निकल गया।

१६ जनवरी २०१२