हास्य व्यंग्य

बच्चों के मुख से
मीरा ठाकुर


हास्य हमारे चारों ओर बिखरा पड़ा है। यह हवा की तरह है जिसे हम महसूस कर सकते हैं पर देख नहीं सकते। यह एक ऐसी चीज है जिसे एक बार देखने का नजरिया बन जाए तो हमारी जिंदगी गुलजार हो जाए। जिस तरह फूल अपनी खुशबू फैलता है ठीक उसी तरह हम सभी को हास्य प्यारा लगता है ।

बड़े–बूढ़े तो हास्य का मजा भरपूर लेते हैं पर बच्चे भी इनसे कम नहीं हैं, उनकी बात- बात में हास्य हम देख सकते हैं हम सभी के घर में बच्चे हैं जो अनजाने में ही ऐसी बातें बोल जाते हैं जो अनायास हास्य उत्पन्न करती हैं। देखिए एक पिता ने अपने पुत्र से कहा –बेटा, जब तुम छोटे थे तब मैं जो कुछ कहता था, तुम मान लेते थे, लेकिन अब बड़े होकर तुम बात-बात में बहुत जिद करने लगे हो। बेटे ने उत्तर दिया- पिताजी तब मुझमें अक्ल नहीं थी। माता – पिता के बीच यह बात हमेशा चलती रहती है कि तुम मेरे बेटे हो या माँ के। ऐसी परिस्थिति में बच्चे के दिल पर क्या गुजरती होगी यह हम सोच सकते हैं लेकिन इस परिस्थिति को वह कितनी आसानी से झेल जाता है देखिए- कि एक पिता अपने पुत्र से पूछता है बेटा ! तुम जिसके बेटे हो रात में उसी के साथ सोया करो। यदि तुम हमारे बेटे नहीं हो तो फिर हम तुम्हें कल से दिन में घुमाने नहीं ले जाएंगे ।तुम अपनी माँ के पास ही रहना। बेटे ने तुरंत उत्तर दिया – पापा! मैं दिनभर आपका और रात को अपनी माँ का बेटा हूँ।

हम सबके घरों में एक–एक बच्चे के कई घरेलू नाम होते हैं जिसे कई बार वह पसंद नहीं आता पर हमें उन्हें उस नाम से बुलाना अच्छा लगता है पर वे इसका विरोध कुछ यों कर देते हैं – एक बच्चे को घर में बिल्लू नाम से पुकारा जाता था जो उसे पसंद नहीं था, पर माता – पिता को यह नाम बहुत अच्छा लगता था। एक बार उसके पिता के मित्र ने उससे पूछा- ‘बेटा! तुम्हारा नाम क्या है?’ बच्चे ने कहा- ‘ वीरेंद्र ।’ पिता के मित्र ने फिर उससे पूछा बेटा–नहीं, बेटे अपना घर का नाम बताओ । बच्चे ने तुरंत जवाब दिया – मलिक मेंशन, पहला माला, नई दिल्ली।

आजकल बच्चे फिल्मों और कार्टून के दीवाने हैं । सुपर हीरो की दुनिया में वे खोए रहते हैं, पर बच्चों के असली हीरो उनके माता- पिता ही होते हैं । वे समझते हैं उनके माता- पिता दुनिया का हर असंभव काम कर सकते हैं । इसकी एक बानगी हम उनकी आपसी बातचीत द्वारा देख सकते हैं ।एक बार सोहन के सिर में दर्द हो रहा था , उसने अपनी दीदी से कहा- “दीदी सिर में बहुत तेज दर्द हो रहा है।” यह बात पास में ही उनका चचेरा भाई सुन रहा था। वह तुरंत बोला – “मेरी मानो तो माँ के हाथ का चाँटा खा लो। तेज, असरदार और विश्वसनीय। बच्चों के लिए खास बनाया गया है।” यह सुनते ही सोहन का सिरदर्द तो नहीं गया पर चेहरे पर मुस्कान जरूर छा गई।

बच्चे अपने माता- पिता की हर बात को बहुत ध्यान से सुनते हैं, हमारा ध्यान इस ओर नहीं जाता।
कभी- कभी हमारी ही बात हम पर ही पलटकर वार कर देती हैं। जैसे– एक बच्ची ठंडी में नहाना कम पसंद करती थी । उसे नहलाने के लिए बड़ी हिकमत लगानी पड़ती थी। एक दिन उसकी बूढ़ी ने कहा आ बेटी ! चल मैं तुम्हारा मुँह धो दूँ! पर बच्ची किसी भी तरहा मुँह धुलवाने के लिए तैयार न हुई तो उसकी दादी ने फिर कहा- जब मैं तुम्हारी उम्र की थी, तब दिन में दस बार मुँह धोती थी। इस पर बच्ची ने तुरंत जवाब दिया- दादीजी ! तभी तो आपका मुँह इतना सिकुड़ गया है। अब बताएँ इस बात का बच्चे को क्या जबाब दिया जाय। एक और उदाहरण देखें, एक दिन सोमेश की दादी ने उससे कहा- “ बेटा! बड़े होकर श्रवणकुमार की तरह अपने माता- पिता की सेवा करना। ”सोमेश ने तपाक से उत्तर दिया – “दादीजी! श्रवणकुमार के माँ-बाप तो अंधे थे। मेरे माँ-बाप उनकी तरह अंधे थोड़े ही हैं।”

बच्चों की समझ का एक उदाहरण देखें-- त्योहार के समय एक पिता अपने बच्चे से कहा बेटा तुम्हें क्या उपहार में क्या चाहिए? बच्चा बोला – पापा मेरे लिए एक ढोल ला दीजिए। पिता बोले – नही बेटा, तुम दिन भर ढोल बजाकर मुझे परेशान करोगे और मैं कोई काम आराम से नहीं कर पाऊँगा। बच्चा तपाक से बोला- नहीं, पापा ! ऐसा हरगिज नहीं करूँगा, मैं उस वक्त ढोल बजाऊँगा, जब आप सो रहे होंगे। कभी–कभी छोटे बच्चों की बातें इतना भोलापन लिए होती हैं कि हमारे चेहरों पर सहज ही मुस्कान छा जाती है। एक बार शर्मा जी के यहाँ कुछ मेहमान आए हुए थे। श्रीमती शर्मा मेहमानों की आवभगत में लगी हुई थीं। सभी मेहमान खाने की मेज पर बैठे हुए थे, तभी उनका सात वर्षीय बेटा बाहर से खेलकर वापस आया और खाने की मेज पर बैठ गया। मेहमान के सामने
बड़े प्यार से श्रीमती शर्मा ने उससे कहा – सोनू बेटा, तुम इन हाथों से खाना खाओगे ? सोनू तुनककर बोला, “ ओ हो! मम्मी आपको पता है , मेरे ये ही दो हाथ हैं। अब खाना खाने के लिए और हाथ कहाँ से लाऊँ? ”

बच्चों के मुँह से गंभीर से गंभीर बात भी बहुत प्यारी लगती हैं। कहा भी जाता है कि बच्चे भगवान का रूप होते हैं। बच्चे अपने पैदा होने की बात को लेकर बड़ा परेशान रहते हैं। ऐसे ही एक बार तीन बच्चे आपस में बात कर रहे थे। एक ने कहा- “ मुझे मेरी माँ ने अस्पताल से लाई थी।” दूसरा बड़ी शान से बोला-“मुझे मेरी माँ एक दुकान से खरीद कर लाई थी ।” तीसरे ने झट से कहा- “ अरे मेरी माँ तो बड़ी गरीब थी। मुझे वह कहीं से खरीद न सकी। उसने मुझे घर पर ही तैयार कर लिया था।” तो देखें एक –एक पल में बच्चों की बातचीत हमारी बड़ी से बड़ी परेशानी पल भर में दूर कर देती हैं। देखें जिस घर में बच्चें हों वहाँ हास परिहास की कैसी फुलझड़ियाँ छूटती हैं!!

१९ नवंबर २०१२