धर्मराज के कहने पर नारद भोलाराम
के जीव को खोजने पृथ्वीलोक आ गए। उन्होंने भेालाराम का घर भी ढूँढ लिया और उसकी
फैमिली से भी मिल लिए। बात बात में ही उन्हें उस दफतर का भी पता चला जहाँ भोलाराम
जी शासकीय सेवक थे। वे खोजते खोजते उस दफतर मे पहुँच गए। फाइल मे छिपे बैठे भोलाराम
के जीव से उन्होने साथ चलने की रिक्वेस्ट की मगर पेंशन फाईल मे छिपे भोलाराम के जीव
ने साथ चलने से साफ इंकार कर दिया।
थक हार कर नारद ने वापस आने का मन बनाया और इसी उद्देश्य से बड़े साहब के पास गये।
भोलाराम के जीव को वापस ले जाने के लिए उन्होने जो वीणा बड़े साहब को रिश्वत के रूप
मे दी थी उसे वे उठाने लगे तो बड़े साहब ने उन्हें टोंक दिया-
- अरे साधू बाबा! क्या कर रहे हो इस वीणा पर अब आपका हक नहीं है। जानते नहीं हाथी
के मुँह मे गया गन्ना और साहब को दी गई रिश्वत को वापस लेना मुश्किल है। और इंडियन
अफसर से तो यह वापिस लेना और भी मुश्किल काम है। मैंने अपनी संगीत सीखने वाली बेटी
को भी बता दिया है कि मै आज एक तोहफा ला रहा हॅू आप तो बस अब फूट लो।
-मगर मेरा तो काम हुआ नहीं, भेालाराम की पेंशन बनी नहीं।
- बनी नहीं तो बन जायेगी साधु बाबा हैरान क्यों होते हैं ?
मगर नारद को चैन कहाँ थी वह तो जल्द से जल्द धर्मराज
को यह खुशखबरी देना चाहते थे कि भेाला राम का भगौड़ा जीव मिल गया है और पृथ्वी पर
ही एक फाईल मे अटका पड़ा है। किसी तरह से नारद ने साहब को समझाया-उलझाया-बनाया और
वहाँ से रफूचक्कर होकर स्वर्गलोक आ गये। उन्हें इस तरह से आते देख घर्मराज के चेहरे
पे खुशी की लहर दौड़ पडी। चित्रगुप्त भी जो हिसाब करते करते ऊँघ रहे थे संभलकर बैठ
गये। उन्हें लगा कि नारद ने समस्या हल कर ली है इसलिए वे प्रसन्न मुद्रा मे दिखाई
दे रहे हैं। नारायण! नारायण! धर्मराज जी आपके दूत को चकमा देकर जो भेालाराम का जीव
जो पृथ्वीलोक से भाग गया था उसे मैंने ढूँढ निकाला है।
- कहाँ है वो जीव जरा बताइये खाल खिंचवा लेते हैं
धर्मराज गुस्से मे बोले।
- महाराज इसकी जरूरत नहीं है, नाही आपको कोई टेंशन लेने
की जरूरत है बस आप तो एक काम करे उस सरकारी दफतर के बड़े साहब का टिकट काट दें बड़ा
भ्रष्ट है साला। उन्हें अपनी वीणा की याद आ गई जो साहब ने रख ली थी।
नारद जी ने धर्मराज को गुर सिखाते हुए कहा कि साहब के टें बोलते ही नया साहब आ
जायेगा जो कम से कम इस जैसा भ्रष्ट नहीं ही होगा। धर्मराज ने चित्रगुप्त को बड़े
साहब का नाम वगैरा कम्प्यूटर पर फीड कर जानकारी निकालने के लिए कहा। चित्रगुप्त ने
पालन किया और प्रिंट आउट लाकर धर्मराज के हाथ मे थमा दिया।
- मुनिवर, बड़े साहब की तो अभी बहुत आयु बाकी
है उसे तो नहीं ला सकते कोई और उपाय बताओ?
- कुछ खुरचन का इंतजाम कर सकते हैं महाराज?
- प्रभु पहेलियाँ ना बुझाआो यह खुरचन क्या होता है? जरा विस्तार से बताओ?
- महाराज यह पुथ्वी पर चल रही एक लोकप्रिय प्रथा है खासकर इंडिया मे यह बहुत अधिक
प्रचलन मे है कोई भी सरकारी काम कराना हो तो यह खुरचन जिसे शुद्ध हिन्दी मे रिश्वत
कहा जाता है देने से काम बन जाता है। पृथ्वी पर एक अन्ना नाम का जीव हालांकि इस
प्रथा के पीछे पड़ा है।
धर्मराज आश्चर्य मे पड़ गये यह कैसी प्रथा बना ली पृथ्वीवासियों ने और हमे खबर तक
नहीं।कहीं दूत को भी तो भोलाराम के जीव ने यह
खुरचन देकर पटा ना लिया हों, इसलिए दूत ने जीव को मुक्त कर दिया हो।
धर्मराज ने चित्रगुप्त से बात की और लोक के सभी दूतों की सी.आर. तलब की अन्हे अब
शंका हो चली थी कि दूतों मे भी यह रिश्वत की बीमारी बुरी तरह फैल चुकी है वर्ना
क्या कारण है कि नरक मे कम और स्वर्ग मे जीवों की आवक ज्यादा हो रही है कही यह
हेराफेरी दूतों द्वारा ही तो नहीं की जा रही है? उन्होने चित्रगुप्त को आदेश दिया
और भोलाराम के जीव सहित और भी मामलों की जाँच के लिए एक कमेटी बना दी। कई सहस्त्र
वर्ष हो गये अब तक कमेटी की जाँच रपट नहीं आई है, भेालाराम का जीव अभी भी फाईल मे
ही दबा पड़ा है। भोलाराम के बच्चे जैसे तैसे पलकर बड़े हो गये हैं उनमे से एक
घमापुरा के ही एक स्कूल मे मास्टर हो गया है और दूसरा वाला नेतागिरी करते हुए मण्डल
अध्यक्ष हो गया है भोलाराम की पत्नी अभी भी पोस्टमैन का इंतजार कर रही है कि शायद
पेंशन के कागज आते होंगे। हरिषंकर परसाई से क्षमा याचना सहित। |