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हास्य व्यंग्य

सारी खुदायी एक तरफ़!
-गुरमीत बेदी


''सारी खुदायी एक तरफ़, जोरू का भाई एक तरफ़''  यह मुहावरा जब लिखा गया होगा, तब जोरू के भाई की पोज़ीशन बड़ी हाई- फाई होगी। हो सकता है, तब जोरू का भाई अपने जीजाश्री के राज-दरबार में मंत्री हो। लेकिन अब यह मुहावरा गड़बड़ लगता है। अब ऐसा कैसे हो सकता है कि एक तरफ़ सारी खुदायी हो और दूसरी तरफ़ जोरू का भाई ही हो। दूसरी तरफ़ लीडर का डी.ओ. लैटर जेब में लिए कोई कर्मचारी भी हो सकता है, लीडर का सगा रिश्तेदार भी हो सकता है, किसी ब्यूरोक्रैट का 'अपना आदमी' भी हो सकता है। होने को क्या नहीं हो सकता? होने को तो यह भी हो सकता है कि दूसरी तरफ़ नोटों से भरा ब्रीफकेस लिए कोई दलाल खड़ा हो।

यह भी हो सकता है कि दूसरी तरफ़ पुलिस और अपराधी साथ-साथ गप्पें हाँक रहे हों, जैसे लीडर लोग हमारे लोकतंत्र को हाँक रहे हैं। यह भी तो हो सकता है कि दूसरी तरफ़ ओसामा-बिन-लादेन खड़ा हो। दूसरी तरफ़ यानि सीमा के पार। होने को यह भी हो सकता है कि दूसरी तरफ़ वाम वाले बॉम लेकर खड़े हों। कभी-कभी वाम वाले खड़े भी हो जाते हैं और फिर जब उन्हें बैठने को कहा जाता है तो वे सचमुच बैठ भी जाते हैं। दूसरी तरफ़ कोई और सर्कस वाले भी हो सकते हैं। मजमा लगाकर तमाशा दिखाने वाले भी हो सकते हैं। ऐसा भी हो सकता है कि दूसरी तरफ़ हाई-टेक कबूतरबाज़ ही खड़े हों। हाई-टेक मतलब - हाई पोज़ीशन वाले कबूतरबाज़। हाई पोजीशन का मतलब सांसदगिरी भी हो सकता है, जैसे ठंडा का मतलब कोका-कोला होता है। कोका-कोला से याद आया कि दूसरी तरफ़ बहु-राष्ट्रीय कंपनियाँ भी हो सकती हैं। आजकल बहु- राष्ट्रीय कंपनियों की पौं-बारह है। यह भी हो सकता है कि दूसरी तरफ़ रिलांयस या टाटा वाले हों। अगर ये एक तरफ़ न हों तो दूसरी तरफ़ ज़रूर होते हैं।

वैसे यह भी हो सकता है कि दूसरी तरफ़ चैनल वाले साक्षात खड़े हों। आजकल चैनल वाले इस तरफ़ भी होते हैं और दूसरी तरफ़ भी। जैसे राजनीति के गलियारों में 'भाई लोग'  एक साथ इधर भी होते हैं और उधर भी। यानि इस गुट में भी और उस गुट में भी। यानि दोनों तरफ़ बल्ले-बल्ले। चाहे इधर मुँह मार कर मजा लो, चाहे उधर मुँह मार लो। यह भी हो सकता है कि दूसरी तरफ़ स्टिंग आपरेशन वाले खड़े हों। ज़रूरी नहीं कि स्टिंग आपरेशन वाले मीडिया के ही बंदे हों। विरोधी खेमे के अलावा अपने खेमे के बंदे भी स्टिंग आप्रेशन के खिलाड़ी हो सकते हैं। दूसरी तरफ़ डायरैक्टली तौर पर विपक्ष वाले भी हो सकते हैं। क्यों कि दूसरी तरफ़ होने के अलावा उनके पास कोई दूसरा चारा भी नहीं होता। चारे से भी हमें कई बातें याद आ रही हैं। लेकिन यहाँ हम चारे पर ज़्यादा बात नहीं करेंगे क्यों कि इससे गउएँ और भैंसे यह कर अपना एतराज़ जता सकती हैं कि उनका चारा तो कोई और ही खाता रहा है और उनकी कहीं सुनवाई नहीं हुई। हम चारे की बजाए बात को दूसरी तरफ़ घुमाएँगे यानि सिर्फ़ दूसरी तरफ़ की बात करेंगे।

यह भी हो सकता है कि दूसरी तरफ़ बाढ़-पीड़ित, सूखा-पीड़ित, पत्नी पीड़ित और दंगा-पीड़ित खड़े हों। दूसरी तरफ़ पीड़ित लोगों की बजाए उत्पीड़ित लोग भी हो सकते हैं। आजकल उत्पीड़न शब्द का भी काफी बोलबाला है जैसे- महिला उत्पीड़न, कर्मचारी उत्पीड़न वगैरह-वगैरह। यह भी हो सकता है कि सारी खुदायी एक तरफ़ हो और दूसरी तरफ़ उधार दिया पैसा वापस माँगने आए लोग खड़े हों। दूसरी तरफ़ वे लोग भी लाईन लगाकर खड़े हो सकते हैं जिन्हें इस बात की उम्मीद हो कि देर-सवेर राहत तो बँटेगी ही। यह भी हो सकता है कि दूसरी तरफ़ लोगों को गुमराह करने वाले स्वार्थी तत्व खड़े हों। अगर स्वार्थी तत्व नहीं हुए तो किसी मुद्दे पर राजनैतिक रोटियाँ सेंकने वाले लोग भी दूसरी तरफ़ हो सकते हैं। ऐसा भी हो सकता है कि दूसरी तरफ़ अपनी-अपनी स्कीमें लेकर बैंकों वाले खड़े हों। बैंक वालों के पास आजकल बहुत स्कीमें हैं, जैसे लीडरों के पास बेइंतहा स्कीमें होती हैं। वैसे स्कीमें तो मोबाईल कंपनियों के पास भी होती हैं जैसे मोबाईल के साथ कनैक्शन फ्री। ठीक वैसे, जैसे राजनीति के साथ भ्रष्टाचार फ्री।

यह भी हो सकता है कि दूसरी तरफ़ किसी पोलिटिकल पार्टी के कार्यकर्ता दारू और कंबलों से लदे ट्रक के साथ खड़े हों। दारू और कंबल, जो इलैक्शन में बँटने के लिए भिजवाए गए हों। दूसरी तरफ़ बेरोज़गारों की फौज भी हो सकती है। यह भी कहा जा सकता है कि सारी नौकरियाँ एक तरफ़ और बेरोज़गार एक तरफ़। इससे ज़्यादा मैं कुछ नहीं बोलूँगा। बोलूँगा तो यही बोलूँगा कि ऐसा कभी हो ही नहीं सकता कि एक तरफ़ सारी खुदायी हो और दूसरी तरफ़ जोरू का भाई हो। हाँ, आप अगर यह कहते हें कि ''सारी खुदायी एक तरफ़ और जोरू का गुलाम एक तरफ़'' तो यह बात मैं सौ फीसदी मान भी सकता हूँ।

१६ मार्च २००९

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