हास्य व्यंग्य

विरह में व्यंग्य
दीपक राज कुकरेजा "भारतदीप"


बंदा उस दिन एक पार्क में घूम रहा था तो उसकी पुरानी प्रेमिका सामने आकर खड़ी हो गई। पहले तो उसने उसे पहचाना ही नहीं क्योंकि वह अब खाते-पीते घर की लग रही थी और जब वह उसके साथ तथाकथित प्यार (जिसे अलग होते समय प्रेमिका ने दोस्ती कहा था) करता था तब वह दुबली पतली थी। बंदे ने जब उसे पहचाना तो सोच में पड़ गया इससे पहले वह कुछ बोलता उसने कहा, ''क्या बात है पहचान नहीं रहे हो? किसी चिंता में पड़े हुए हो। क्या घर पर झगड़ा कर आए हो?"
''नहीं! कुछ लिखने की सोच रहा हूँ।'' बंदे ने कहा।
''मुझे पता है कि तुम ब्लॉग पर लिखते हो। उस दिन तुम्हारी पत्नी से भेंट एक महिला सम्मेलन में हुई थी तब उसने बताया था। मुझे भी ब्लॉगिंग सिखा दो ना, आजकल भारत में ब्लॉगिंग की बहुत धूम है जिसको देखो वही ब्लॉगिंग कर रहा है। जो महिला खुद ब्लॉगिंग नहीं करती वह अपने ब्लॉगर पति का रौब झाड़ती है। मैंने उसे नहीं बताया कि हम दोनों एक दूसरे को जानते है। वह चहकते हुए बोली, ''क्या लिखते हो? मेरी विरह में कविताएँ न! यकीनन बहुत हिट होतीं होंगी।''
बंदे ने सहमते हुए कहा, ''नहीं विरह की कविताएँ तुम्हारी याद में नहीं लिखता वे तो वैसे ही फ्लॉप हो जातीं हैं। वे कविताएँ मैं अपनी दूसरी प्रेमिका की याद में लिखता हूँ।''
''धोखेबाज़! मेरे बाद दूसरी से भी प्यार किया था। अच्छा कौन थी वह? वह मुझसे अधिक सुंदर थी।'' उसने घूरकर पूछा।
''हाँ हाँ। वह तुमसे अधिक खूबसूरत थी, और इस समय भी अधिक ही होगी। वह अब मेरी पत्नी है। बंदे ने धीरे से उत्तर दिया।
प्रेमिका हँसी, ''पर तुम्हारा तो उससे मिलन हो गया न! फिर उसकी विरह में क्यों लिखते हो?''
''पहले प्रेमिका थी, और अब पत्नी बन गई तो प्रेम में विरह तो हुआ न!'' बंदे ने कहा।
पुरानी प्रेमिका ने पूछा, ''अच्छा! मेरे विरह में क्या लिखते हो?''
''हास्य कविताएँ और व्यंग्य लिखता हूँ।'' बंदे ने डरते हुए कहा, ''लेकिन तुम्हें खुश होना चाहिए कि वे हिट हो जाती है।''
''हिटें हो या पिटें, मुझे कोई मतलब नहीं।'' वह गुस्से में बोली, ''मुझे पर हास्य लिखते हो। तुम्हें शर्म नहीं आती। अच्छा हुआ तुमसे शादी नहीं की। वरना तुम तो मेरे को बदनाम कर देते। आज तो मेरा मूड खराब हो गया। इतने सालों बाद तुमसे मिली तो खुशी हुई पर तुमने मुझ पर हास्य कविताएँ लिखीं। ऐसा क्या हास्यास्पद है मुझमें जो तुम यह सब लिखते हो?''
बंदा सहमते हुए बोला, "मैंने देखा एक दिन तुम्हारे पति का उस कार के शोरूम पर झगड़ा हो रहा था जहाँ से उसने वह खरीदी थी। कार का दरवाज़ा टूटा हुआ था और तुम्हारा पति उससे झगड़ा कर रहा था। मालिक उसे कह रहा था कि साहब। कार बेचते समय ही मैंने आपको बताया था कि दरवाज़े की साइज़ क्या है और आपने इसमें इससे अधिक वज़न वाले किसी हाथी को बिठाया है जिससे उसके निकलने पर यह टूट गया है और हम इसके लिए ज़िम्मेदार नहीं हैं। तुम्हारा पति कह रहा था कि उसमें तो केवल हम पति-पत्नी ने ही सवारी की है, तुम्हारे पति की कमर देखकर मैं समझ गया कि...वहाँ मुझे हँसी आ गई और हास्य कविता निकल पड़ी। तब से लेकर अब जब तुम्हारी याद आती है तब हास्य रस की रचना हो जाती है...अब मैं और क्या कहूँ?''

वह बिफर गई और बोली, ''तुमने मेरा मूड़ खराब किया। मेरा ब्लड प्रेशर वैसे ही बढ़ा रहता है। डाक्टर ने सलाह दी कि तुम पार्क वगैरह में घूमा करो। अब तो मुझे यहाँ आना भी बंद करना पड़ेगा। अब मैं तो चली।"

बंदा पीछे से बोला, ''तुम यहाँ आती रहना। मैं तो आज ही आया हूँ। मेरा घर दूर है रोज़ यहाँ नहीं आता। आज कोई व्यंग्य का आइडिया ढूँढ रहा था, और तुम्हारी यह खुराक साल भर के लिए काफ़ी है। जब ज़रूरत होगी तब ही आऊँगा। तुम्हारे भले के लिए मैं इतना त्याग तो कर ही सकता हूँ। प्रेमिका आखिर प्रेमिका होती है। उसके ऊपर चाहे विरह गीत लिखो चाहे हास्य व्यंग्य सब हिट होता है। वह प्रेरणा होती है उसके बिना लेखन असंभव है और ग़लती से संभव हो भी गया तो हिट नहीं होता सिर्फ़ पिट जाता है।''

मेरी इस प्रशंसा और स्वीकारोक्ति को उसने नहीं सुना। वह गुस्से में थी और वैसे ही गुस्से में देखती हुई चली गई। बंदा सोचने लगा, ''अच्छा ही हुआ कि मैंने इसे यह नहीं बताया कि इस पर मैं हास्य आलेख भी लिखता हूँ। नहीं तो और ज़्यादा गुस्सा करती।''

दोस्तों और पाठकों मैं दीपक कुकरेजा भारतदीप आपने पूरे होशो हवास में यह प्रमाणित करता हूँ कि ऊपर लिखी गई रचना पूर्णतया काल्पनिक है। इसमें जीवित और मृत किसी भी व्यक्ति अथवा घटना का सच्चाई से कोई भी संबंध नहीं है। यदि फिर भी कहीं जाने अनजाने कोई समानता किसी भी व्यक्ति को महसूस होती है तो वह केवल संयोग है। इसका उत्तरदायित्व लेखक अथवा प्रकाशक पर नहीं है।

४ फरवरी २००८