हास्य व्यंग्य

नाच, मोबाइल नाच
—अविनाश वाचस्पति


एकाएक सड़क पर पैदल चलता व्यक्ति रुक जाता है और नाचना शुरू कर देता है। बस में सीट पर बैठा व्यक्ति उठता है और नाच शुरू। यही हाल रेल के सफ़र का भी है। रेस्तराँ में भोजन कर रही भीड़ में से दो कन्याएँ उठती हैं और ठुमके लगाने लगती हैं। अस्पताल की भीड़ में अपने इलाज के लिए पर्ची बनवाने वालों में एक मरीज नाचने लगता है, जबकि उसके एक हाथ में फ्रैक्चर है। हद तो तब हो गई जब श्मशान घाट में एक तरफ़ चिता जलायमान थी और उधर एक युवक नृत्य करने में मशगूल। उसे बहुत ही कठिनाई से लोगों के कोप से बचाया गया, वरना एक चिता और तैयार हुई थी, समझो। एक पार्क में प्रेमी युगल गलबहियाँ डाले बैठे थे कि प्रेमी युवक उठा और नाचने लगा। प्रेमिका हतप्रभ हो गई।

विश्व इस समय महँगाई के संकट से जूझ रहा है। महँगाई की पकड़ से बचने का जी तोड़ प्रयास कर रहा है। पर महँगाई की गिरफ्त बढ़ती ही जा रही है। महँगाई थामने के प्रयास बेअसर हो चुके हैं। लेकिन दौड़ हर तरफ़ जारी है। दौड़ लग रही है, ठुमके बरस रहे हैं। ठुमकों से मँहगाई का संकट दूर करने के प्रयास चल रहे हैं। जहाँ देखो वहीं ठुमकनिया फिज़ा है। ठुमके कैसे भी हों, मन को मोह ही लेते हैं। कानों में मुरली की मधुर धुन गुंजायमान होने लगती है। कोई ठुमके लगा रहा है और कोई नृत्य कर रहा है। न समय देख रहा है, न माहौल। न उम्र का लिहाज, न शर्म का परदा। सब बेपरदा हो रहे हैं। इस नाचमेनिया या नाचफोबिया का असली कारण अख़बार की वो ख़बर है जिसमें ब्रिटेन की कंपनी ऑरेंज (इसे नागपुरिया संतरा मत समझ बैठना)  का अजूबा सबके सिर पर चढ़कर डांस कर रहा है, लहरिया रहा है। न कंगन की आवाज़ आ रही है, न संगीत की लहरी बज रही है। अब नृत्य से मोबाइल चार्ज करने की नई परंपरा की शुरूआत हो चुकी है।

बिना पाजेब और घुँघरू के मनभावनी ठुमकों की बारात सज रही है। कोई चांस नहीं ले रहा है सिर्फ़ नाच, नाच और नाच। नृत्य की घनघोर घटा छा गई है। ट्रैफ़िक अब टेरेफिक नहीं रहा, जहाँ जाम लगा वहीं नाच के ठुमके शुरू। ट्रैफिक जाम में भी बहार आ गई है। डांस की ऋतु छा गई है। सबके हाथों में काले, पीले, नीले, लाल, गुलाबी मोबाइल सज रहे हैं, पर बज नहीं रहे हैं। इनको बजाने के लिए किया जा रहा उपक्रम है यह नाच। सबके मोबाइल इन नाच और ठुमकों से ऊर्जा पा रहे हैं। क्या मस्त मौसम है, ऊर्जा लुट रही है, मोबाइल की बैटरी में उबाल आ रहा है।

ऑरेंज नाम की कंपनी ने एक ऐसी प्रणाली का आविष्कार किया है जिसमें एक काइनेटिक पोर्टेबल चार्जर बाँह में बँधा रहता है जिससे मोबाइल की बैटरी नृत्य करने पर चार्ज हो जाती है। कंपनी के अनुसार पोर्टेबल पावर सप्लाई का यह फंडा नया नहीं है लेकिन इसमें डांस और ठुमकों का प्रयोग पहली बार हुआ है जिसने इसमें रस भर दिया है। इस रस के कारण ही हर और यह रास बनकर अपना छटा बिखेर रहा है। यह आरेंज का आम रस है (खास नहीं), जिसने आम जनता में मौजां ही मौजां का जुनून तारीं कर देने का बीड़ा उठा लिया है।

नृत्य की ऐसी स्थितियाँ विश्व-भर में जल्दी ही आम होने वाली हैं। इसलिए अगली बार जब आप एकाएक किसी को नाचता देखें तो हैरान मत हों क्योंकि नाचने वाला अपना मोबाइल चार्ज कर रहा होगा। अब मोबाइल की बैटरी तो कहीं पर भी जवाब दे सकती है, चाहे वो मशान घाट ही क्यों न हो? बस मौजां ही मौजां, कर मौजां ही मौजां, हुण मौजां ही मौजां...

२१ जुलाई २००८