मुखपृष्ठ

पुरालेख-तिथि-अनुसार -पुरालेख-विषयानुसार -हिंदी-लिंक -हमारे-लेखक -लेखकों से


हास्य व्यंग्य

तोहफ़ा टमाटरों का
- मनोहर पुरी


कनछेदी का पत्र पढ़ कर मैं हैरान था। पत्र के साथ लिफ़ाफ़े में कुछ सामान था। कनछेदी ने लिखा था पत्र पढ़ कर हैरान न होना, इतनी कीमती चीज़ को देख कर परेशान मत होना। विवाह में तोहफ़े के रूप में हेमामलिनी के गाल सरीखे लाल और चिकने टमाटर भिजवा रहा हूँ। यह मत समझ लेना कि इन दिनों मैं कोई मोटी रिश्वत खा रहा हूँ। पत्र पूरा पढ़ना और धैर्य मत खोना, पीली धातु से भी कहीं अधिक उत्तम है लिफ़ाफ़े में रखा हुआ लाल-लाल सोना। भीमजी झवेरी और मेहरा सन्स जैसे सुनारों की दुकानों पर भी इतने नखरे से माल नहीं बेचा जाता जितने नखरे से सब्ज़ी वाला टमाटर बेच रहा था और भाव बताने से पहले ग्राहक के क्रेडिट कार्ड की वेल्यू सहेज रहा था। ज्वैलर्स की दुकानों पर तो ग्राहकों को आदर से बिठाया जाता है और किसी न किसी रूपसी द्वारा कोई कोला पिलाया जाता है। यहाँ तो वह कमबख़्त खूसट बात करने पर भी इतरा रहा था और धक्के दे कर आगे बढ़ने का भाव दिखा रहा था। बड़ी कठिनाई से थोड़े से हाथ में आए हैं और भगवान कसम सभी के सभी तुम्हें तोहफ़े के रूप में भिजवाए हैं। तुम्हारी भाभी इनके लिए बहुत ललचा रही थी और नथनी गढ़वा लेने के बाद भी गम खा रही थी।

शायद तुम नहीं जानते कि टमाटर पहले 'लव एपल' कहलाता था और भोजन की मेज़ सजाने के काम आता था। प्रेमी इसे भेंट में प्रेमिका को सौंपता था और किसान इसे मात्र शोभा की वस्तु के रूप में रोपता था। 'जिंटो मैटल' के पौधे का फल 'टो मैटल' कहलाया और बहुत बाद में इसने टोमेटो नाम पाया। ''19वीं'' शताब्दी के प्रारंभ तक इसे अमरीका में दुत्कारा गया और यूरोपीय देशों में नासूर और गठिया का कारण स्वीकारा गया। हाँ, स्पेन और इटली ने इसे हाथों-हाथ अपनाया फिर भी प्राय: शेष यूरोप में 'मैड एपल' ही कहलाया। किसी ने भले ही इसे क्रोध फल कहा पर फ्रांस ने इसे 'पौम दायूर' अर्थात प्रेमफल की तरह चाहा। विवाह के शुभ अवसर पर वही प्रेम फल आपको भिजवाया है समझ लो अपना कलेजा निकाल कर दिखाया है।

सब्ज़ी वाला भी एक एक टमाटर को मोती सरीखा तौल रहा था और हर एक की तारीफ़ में नए-नए छंद बोल रहा था। कहता था यह टमाटर नहीं रूबी पर लिखी हुई रूबाई है, इसे वही ले जाएगा जिसके पास हवाला की कमाई है। उमर ख़य्याम यदि इन टमाटरों की एक झलक पा जाता, खुदा कसम शराब और शबाब को भूल कर बौरा जाता। आय कर वाले तुम्हें तंग न करें इसके लिए धर्म काँटे की पर्ची भी भिजवा रहा हूँ और अपने क्रेडिट कार्ड का नंबर भी लिखवा रहा हूँ।

जानता हूँ विवाह में ख़ास-ख़ास मेहमान आएँगे और उनके लिए अलग से जाम भी छलकाए जाएँगे। जिस कोने में बड़े-बड़े नेताओं को बिठाओगे और जहाँ शाकाहारियों को चिल्ली चिकन खिलाओगे वहीं पर इनको भी सजाना, दावत का यही तो भरपूर होगा खज़ाना। देखना कहीं कोई सुरक्षा गार्ड इनका बदन न थपथपाए और मानवाधिकार सरीखी किसी संस्था की लार न टपक जाए। कौन जाने किसी ने टमाटराधिकार की कोई संस्था बनाई हो जो सब्ज़ियों पर होने वाले जुल्मों की लड़ती लड़ाई हो। या फिर मेनका गांधी ही उठा ले कोई झंडा अथवा यू. एन. ओ. का ही बरस पड़े डंडा।

तुम जानते हो हेमामालिनी के गाल टमाटर जैसे चिकने और लाल हैं जिनसे अपने लालू यादव बहुत बेहाल हैं। उन्होंने बिहार की सड़कें हेमा मालिनी की गाल सरीखी बनाने का बजाया है डंका, शायद वह पटना में बसाना चाहते हों लाल सोने की लंका। उस लंका को लोग बेकार ही जला रहे हैं और बिहार की सड़कों को ओम पुरी की गालों सरीखा बता रहे हैं। पर यह उसी घोषणा का है प्रभाव, जो बाज़ार में टमाटरों का हो गया है अभाव। कमबख़्त पशुओं के चारे जैसे गुम हो गए और सी. बी. आई. की लंबी दुम हो गए। इसी दुम ने जब पटना में आग लगाई तो गद्दी पर राबड़ी देवी को बिठाना पड़ा भाई।

इसमें कोई संदेह नहीं कि टमाटर दिल का प्रतिरूप दिखाई देता है और गालों के अनुरूप गोलाई लेता है। वैसी ही शक्ल सूरत और वैसा ही रूप, देखना इसे लगने न पाए दिल्ली की कड़ी धूप। ज़रा-सी ठेस लगते ही फूट जाता है जैसे प्रेयसी के मुँह मोड़ते ही दिल टूट जाता है। वैसे टमाटर इन दिनों खाने के कम दिखाने के ज़्यादा काम आते हैं, जैसे हमारे नेता पाँच बरस में एक बार ही सूरत दिखाते हैं। नेताओं का दिल भले ही काला हो पर चेहरा टमाटर जैसा ही लाल होता है, ऐसी ओछी उपमा पर मेरा दिल ज़ार-ज़ार रोता है। शायद इसीलिए लालू ने सड़कों की उपमा गालों से दी है, टमाटरों की जानबूझ कर अनदेखी नहीं की है। वहाँ तो वैसे भी टमाटरों का बड़ा मान है, जल्से जुलूसों वाले बड़े मैदानों के आस पास सड़े-गले टमाटरों तक की सजी दुकान है। वहाँ पर प्रत्येक बुद्धिजीवी एक दूसरे का भेजा खाता है, शाकाहारी मात्र सत्तू खा कर ही ज़िंदगी बीताता है।

हमारे देश में भले ही शेयर बाज़ारों में लगेगी टमाटरों की बोली, स्पेन में तो लोग खेलते हैं टमाटरों की होली। लोग जब मस्ती में आ कर टमाटरों की होली खेलते हैं तो एक दिन में लाखों टन टमाटरों को सड़कों पर बिछाते हैं। एक दूसरे पर टमाटरों के निशाने लगाते हैं। गड्ढे न होने के कारण सड़कें चिकनी हो जाती हैं और लालू सरीखे पर्यटक के मन भाती हैं। हमारे देश में यदि होगी ऐसी होली तो सभी गड्ढे टमाटरों से भर जाएँगे और लोग टमाटरों के दलदलों में डुबकियाँ लगाएँगे। पर सोचता हूँ कि इतने टमाटर कब और कहाँ से आएँगे जो हमारी सड़कों को भी चिकना बनाएँगे।

हमारे लिए तो ताज़ा ही नहीं सड़ा हुआ टमाटर भी गुणकारी है, नेताओं और कवियों को स्थापित होने के लिए इनको खाने की लाचारी है। जो नेता और कवि जितने सड़े-गले टमाटर खाता है वह उतनी ही बड़ी हस्ती बन जाता है। इस क्षेत्र में टमाटरों का सदियों से एक छत्र राज है, वह सब्ज़ियों और अंडों का एक मात्र सरताज है।

वनस्पति शास्त्र की भाषा में कहें तो यह 'नेज पादप' जाति का एक अंग है जिसका बैलेडोना, हेंनवेंन और मैंड्रेक जैसे विषैले पौधों से सीधा संबंध है। एक जहाज़ी रंग साज को इसका रंग बहुत भाया था और उसी ने सर्वप्रथम इसके ज़हरीले न होने का पता लगाया था।

कुछ लोगों को टमाटर विशेष रूप से भाता है क्यों कि इसका हमारे रक्त से रंग रूप का नाता है। खून चूसने वाले इससे गहरा संबंध बनाते हैं और इसी के सहारे अपने अभाव भरे कठिन दिन बिताते हैं। जिन दिनों खून उपलब्ध नहीं होता टमाटर से काम चलाते हैं और इन्हें सोने के भाव बिकवाते हैं। आजकल रक्त बेचने पर सरकारी प्रतिबंध है इसी प्रतिबंध का टमाटरों के भाव से भी संबंध है। कुछ लोग रुपए को भी रक्त मानते हैं मैंने खून दे कर इन्हें ख़रीदा है और तुम्हारे लिए तोहफ़े के रूप में भेजा है।

वैसे भी टमाटर रक्त शोधक है, हृदय की कमज़ोरी का रोधक है। विवाह में आने वाले अनेक लोगों का खून पानी बन चुका होगा, स्वार्थ की छलनी से रिश्तों का रस छन चुका होगा। ऐसे में यह रसराज बहुत कमाल दिखाएगा और रिश्तों की भूख बढ़ाएगा। स्वयं खाओगे तो यह दाँतों को मज़बूत करेगा और तुम बहुत आराम से मुझ पर अपने दाँत पीस सकोगे और विवाह में सम्मिलित न होने के कारण खीज सकोगे। खुश करने के लिए ही तो इतना महँगा सब्ज़ी कम फल तोहफ़े के रूप में तुम्हें भिजवा रहा हूँ क्यों कि रेल आरक्षण न मिलने के कारण मैं स्वयं नहीं आ पा रहा हूँ। बहुत संभव था कि मैं यह तोहफ़ा किसी टिकट बाबू को थमाता तो आसानी से आरक्षण पा जाता। पर तब तुम कहाँ देख पाते यह टमाटर चिकने और लाल, इसकी जगह देखने पड़ते मेरे पीले और पिचके हुए गाल। सफ़र की थकान से वे और भी पिचक जाते जिन्हें देख कर तुम्हारे ससुराल वाले खिसक जाते। जल्दी ही आर्चीस से ख़रीद कर विवाह की शुभकामनाओं का कार्ड भिजवाऊँगा और भावी वैवाहिक जीवन में टमाटरों की सार्थक भूमिका के विषय में विस्तार से मिलने पर समझाऊँगा।

9 मई 2006

1

1
मुखपृष्ठ पुरालेख तिथि अनुसार । पुरालेख विषयानुसार । अपनी प्रतिक्रिया  लिखें / पढ़े
1
1

© सर्वाधिका सुरक्षित
"अभिव्यक्ति" व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इस में प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक
सोमवार को परिवर्धित होती है।