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हास्य व्यंग्य

 

दाढ़ी पर गाज
— महेश चंद्र द्विवेदी


दाी बड़े आन¸ बान और शान की चीज होती हैं।  मेरी ज़िन्दगी में तो बचपन से ही दाढ़ी का बड़ा असर रहा है और बचपन से ही मेरा विश्वास हो गया था¸"रहिमन दाढ़ी राखिये¸ बिन दाढ़ी¸ सब सून

मेरे ताऊ¸ जो गांव के मुखिया थे¸ का अटूट विश्वास था¸ "ना जाने किस वेश में नारायन मिल जाय"¸ और उनके इस विश्वास के चलते कोई गेरूआ वस्त्रधारी दाढ़ीवाला राहगीर मेरे गांव से उनकी सेवा–सत्कार स्वीकार किये बिना नहीं गुजर सकता था।  यद्यपि अटपटे वक्त पर आने वाले बहुत से ऐसे बाबाओं और उनकी खातिर में मुस्तैद मेरे ताऊ के लिये चूल्हे पर रोटी सेंकती मेरी ताई आंखों का धुंआं पोंछती हुई बार बार गिनती भूलकर गालियां बका करती थीं¸ परंतु ताऊ उन्हें बिना पूरी तरह छकाये¸ बिना उनके पैर दबाकर उनका आशीर्वाद लिये¸ और बिना उन्हें अच्छी–खासी दान दक्षिणा दिये जाने नहीं देते थे।  

मेरे ताऊ की यह खातिरदारी दूर–दूर तक मशहूर हो गई थी¸ इसलिये चारों ओर के साधुओं–सबाधुओं¸ चोर–उचक्कों¸ ठगों¸ हत्यारों की बन आयी थी।  उनमें ज्यादातर ने लम्बी फहराती दाढ़ी रख ली थी और उन्हें जब भी मेरे गांव से गुजरना होता या पीछा करती पुलिस से बचना होता तो तहाकर रखे हुए गेरूआ वस्त्र निकालते और शाम होते होते मेरे गांव के किनारे स्थित नहर के पुल पर आ बैठते।  फिर धीरे से किसी आते जाते व्यक्ति से मेरे ताऊ के बारे में बात छेड़ देते।  फिर क्या था – आनन फानन में मेरे ताऊ को महात्मा जी के आने की खबर हो जाती और उनके स्वागत–सत्कार का प्रबंध होने लगता।

दाढ़ी के प्रति मेरी श्रद्धा का पूरा श्रेय मेरे ताऊ को ही जाता हो ऐसी बात नहीं हैं।  धर्मग्रथों के अध्ययन ने भी मेरी दाढ़ियों के प्रति आदर और सम्मान की भावना को दृढ़ किया है।  चाहे राम–लक्ष्मण के गुरू विश्वामित्र हों¸ अर्जुन–भीम के गुरू द्रोणाचार्य हों¸ पितामह भीम हों¸ ईसा मसीह हों¸ कोई नामी–गिरामी मौलवी हों¸ या सरदार हों¸ बिना दाढ़ी के उनमें बडप्पन का नूर नहीं आता हैं।  मैंने बचपन से विभिन्न धर्मों के लोगों को छोटी–छोटी बातों जैसे होली पर बच्चों द्वारा रंग डाल दिये जाने¸ नासमझ सुअर के मस्जिद में घुस जाने आदि पर लड़ते देखा है परंतु दाढ़ी के मसले पर सभी को एकमत पाया हैं।  किसी भी धर्म में अगर उच्च पदवी हासिल करनी है तो दाढ़ी बढ़ाओ और श्रद्धेय बन जाओ।

ऐसी सर्वपूज्य दाढ़ी पर आफत आ सकती है और दाढ़ी रखने वालों की लानत मलामत हों सकती हैं¸ हिन्दुस्तान में रहते हुए कोई सोच भी नहीं सकता हैं।  आजकल दाढ़ियों पर गाज गिरी हुई हैं¸ यह तो मुझे अमरिका जाने पर पता चला।  दाढ़ी जो कभी इंसान की ऊंची शख्सियत की शान हुआ करती थी¸ आज अमरिका में अपने करम पर जार जार आंसू बहा रही है।  अमरिका के जो बाशिंदे कभी बड़े गुरूर से अपनी दाढ़ी लहराया करते थे¸ आजकल प्राय: हेयर कटिंग सलून पर क्यू में खड़े दिखायी पड़ते हैं।  वर्षोंं प्यार से पाली–पोसी दाढ़ी से जल्दी से जल्दी छुटकारा पाने में वे एक दूसरे से होड़ लगाये हुए हैं।  अमरीका के नाइयों ने भी मौके का फायदा उठाते हुए आजकल बाल कटवाने की अपेक्षा दाढ़ी साफ कराने के रेट दुगुने कर दिये हैं।

आप पूछ सकते हैं कि दाढ़ी ने अमरीका वालों की क्या फसल काट ली है जो उन्हें दाढ़ी से जुनूनी नफरत हो गयी हैं।  असलियत में दाढ़ियों पर अमरीकावालों की बुरी नज़र ग्यारह सितम्बर दो हज़ार एक को उस समय लग गई थी जब वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर दाढ़ी रखने के शौकीन लोगों ने आक्रमण किया था।  फिर क्या था अमरीकावालों ने चालू कर दिया दाढ़ी मारो अभियान और 'जहां दाढ़ी देखी मारने लगे¸ यह शौक हमारा अच्छा हैं'  का नारा चारों ओर गूंजने लगा।  हर दाढ़ीवाला – चाहे वह झाडूकट रखे हो या बकराकट – अमेरीकनों को बमवाला दिखने लगा।  चूंकि टावर्स पर हमला करने वाले अरबी पाये गये¸ इसलिये अरबी दाढ़ियों पर खास तौर से गाज गिरी – पुलिसवालों ने अरबीकट दाढ़ियों की बेतहाशा धरपकड़ शुरू कर दी और जनता ने उन पर अपने गुस्से का इज़हार करना चालू कर दिया।  नतीजतन कई सौ ऐसी दाढ़ियां अमरीकन कालापानी ग्विंटानमो बे नामक टापू में सजा भुगत रही हैं। 

लेकिन ऐसा नहीं हैं कि अमरीकनों का यह दाढ़ी मार जुनून किसी खास मजहब तक सीमित रहा हो – न्यू जर्सी में एक ग्रंथी महोदय सुबह जल्दी तैयार होकर ब्राम्हवेला में गुरूद्वारे को चल देते थे¸ सो पड़ोसियों ने पुलिस को खबर कर दी कि उनकी गतिविधियां संदिग्ध हैं और शुरू हो गई उनके खिलाफ पुलिसिया पूछताछ।  एरीजोना में तो एक बिचारे गैस स्टेशन के मालिक सरदार जी को जुनूनी भीड़ ने इतना मारा कि उन्होंने दम ही तोड़ दिया।  

हाल मे फ्लोरिड़ा के एक रेस्ट्रां में किसी वेट्रेस ने अरबी शक्ल–सूरत वालों की बातचीत को संदिग्ध मानकर पुलिस को सूचना दे दी¸ तो लग गयीं उनके पीछे पुलिस की दर्जनों कारें और आधा दर्जन हवाई जहाज¸ तमाम खौजी कुत्ते ड्‌यूटी पर मुस्तैद हो गये और बंद कर दी गयी ऐटलांटा हाईवे की ट्रैफिक। चूंकि सारी कार्यवाही टी•वी• पर दिखायी जा रही थी¸ इसलिये दिन भर ठलुओं का मनोरंजन रहा और प्रेस और टी• वी• चैनलों की चांदी।  दिन भर की मशक्कत के बाद पुलिस को पता चला कि खोदा पहाड़ और निकली चुहिया – वे अरब के अवश्य थे और बोल भी अरबी रहे थे लेकिन थे साधारण मेडिकल स्टूडेंट।

अमेरीकनों की इस सनक का खतरा केवल दाढ़ीवालों के लिये ही सीमित नहीं हैं – एक नयी भारतीय एक्ट्रेस अपने परिवार के साथ पहली बार लंदन से न्यूयार्क आ रही थी।  उनकी बदकिस्मती कि उन सबको न्यूयार्क के ऊपर का दृश्य हवाई जहाज से बहुत सुंदर लगने लगा और चूंकि उनमें विंडो–सीट एक के पास ही थी इसलिये वे सीट बदल–बदलकर वह दृश्य देखने लगे।  बस उनकी यह 'संदिग्ध' हरकत अमेरिकन यात्रियों ने चुपचाप कैप्टैन को सूचित कर दी और फिर हवाई जहाज को विस्फोटित होने से बचाने और आतंकियों को धर दबोचने के  लिये उसके उतरने के पहले ही एयरपोर्ट को पुलिस¸ कमांडो¸ बम–डिस्पोजल स्क्वाड़¸ फायर–ब्रिगेड़ और हेलीकाप्टरों द्वारा घेर लिया गया।  घंटों ड्रामा चला¸ जिसके दौरान बिचारी ऐक्ट्रेस और उसके परिवार की जान सांसत में रही।  पता नहीं अमेरीकनों को भारतीय सिने–कलाकारों से खास चिढ़ क्यों हैं क्योंकि खबरों के अनुसार वे शाहरूखखान और कमल हसन को भी एयरपोर्ट से वापस कर चुके हैं।  इनमें बिचारे कमल हसन तो केवल अपने नाम के कारण फंस गये थे क्योंकि अंग्रेजी में लिखा हुआ इनका नाम अमेरिकनों ने कमाल हसन पढ़ लिया था।

एक जमाने में मैं भी बूढ़ा होने पर लम्बी सी दाढ़ी रखकर महापुरूष बनने के सपने देखा करता था परंतु अब अमेरिकनों की दाढ़ियों से यह खास तौर की उन्सियत देखकर मैंने महापुरूष बनने का विचार त्याग दिया है क्योंकि जान गंवाकर भूतपूर्व महापुरूष बनने का मुझे कोई शौक नहीं हैं।

 
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