विज्ञान वार्ता

कैसे काम करता है

स्मोक डिटेक्टर
आशीष गर्ग


धुआँ सूँघक या स्मोक डिटेक्टर आग से बचाव के लिए इस्तेमाल में लाया जाने वाला एक छोटा सा उपकरण है जिसकी तस्वीर ऊपर देखी जा सकती है। घरों, बहुमंज़िली इमारतों, होटलों और शॉपिंग मालों में आग से सावधान करने के लिए इनका महत्वपूर्ण योगदान है। कीमत भी कुछ ख़ास नहीं सबसे सस्ता लगभग ५०० रुपए का मिल जाता है, आकार भी छोटा सा यानि ८ से १२ से मी व्यास का घरेलू उपयोग के लिए बढ़िया रहता है। इसे ९–१२ वोल्ट की बैटरी से चलाया जा सकता है।
 
इसके दो भाग होते हैं— एक तो मुख्य यंत्र जो धुआँ सूघता है और दूसरा एक जोरदार हार्न या अलार्म यानि भोंपू जिसका काम होता है लोगों को चेताना।

सूँघने वाले यंत्र दो तरह के हो सकते हैं—

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फ़ोटोइलेक्ट्रिक सूँघक और

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आयोनाइज़ेशन सूँघक

फ़ोटोइलेक्ट्रिक सूँघक

पहले देखते हैं कि फ़ोटोइलेक्ट्रिक सूँघक किस तरह काम करता है। फ़ोटोइलेक्ट्रिक सूँघक का संधि विच्छेद करें तो फोटो का मतलब है प्रकाश फोटोन से यानी प्रकाश ऊर्जा को लेकर चलने वाला अति सूक्ष्म कण, इलेक्ट्रिक का अर्थ है विद्युत से और सूँघक यानि डिटेक्टर जो इन दोनों के प्रभाव से मिलकर बनता है और काम करता है। फोटो इलेक्ट्रिक सिद्धांत के अनुसार कुछ पदार्थों पर यदि प्रकाश पड़ता है तो उससे इलेक्ट्रॉन उत्पन्न होते हैं और फिर विद्युतधारा का प्रवाह उत्पन्न हो जाता है। (नीचे चित्र–१ में देखें
)

चित्र- १ चित्र- २ चित्र- ३

सूँघक पर फोटोन की जितनी ऊर्जा पड़ेगी उतनी ही विद्युत धारा ह्यऔर वोल्टेज यानी विभवहृ उत्पन्न करेगा और यदि बिलकुल प्रकाश नहीं पड़ेगा तो धारा बिलकुल उत्पन्न नहीं होगी। ऊपर दिए गए चित्र–२ में यदि देखें तो उसमें स्रोत ह्यअहृ किनारे की ओर ऊपर लगा है और सूँघक ह्यभ्हृ नीचे की ओर बीच में। प्रकाश सीधे बाहर की ओर जा रहा है। सूँघक की ओर नीचे नहीं आ रहा है। सामान्य स्थिति में प्रकाश सूँघक की ओर नहीं आता है। लेकिन यदि इस स्थान पर धुआँ होता है तो धुएँ के कणों से प्रकाश बिखर जाता है और कुछ प्रकाश सूँघक की ओर चला जाता है। जैसे ही प्रकाश सूँघक की ओर जाता है विद्युत धारा प्रवाहित होने लगती है और पीछे जुड़ा हुआ सर्किट चालू हो जाता है। इस सर्किट के चालू होने से इसमें जुड़ा हुआ अलार्म बजने लगता है। चित्र–३

आयोनाइज़ेशन सूँघक

ये सूँघक काफी कम धुएँ में काम कर सकते हैं और सस्ते भी होते हैं। इसमें एक नाभिकीय या रेडियोएक्टिव तत्व अमेरीसियम–२४१ होता है जो अल्फा कणों का अच्छा स्रोत है। अल्फा किरणे घातक नहीं होतीं इसलिए स्वास्थ्य के लिए हानिकारक भी नहीं हैं। सूँघक के अंदर इनकी मात्रा बहुत कम यानी १ माइक्रोग्राम होती है।

इसके काम करने का सिद्धांत बहुत ही सरल है। दो विपरीत आवेशित प्लेटों के बीच अमेरीसियम के कणों द्वारा बनी हुई अल्फ़ा किरणें प्लेटों के बीच मौजूद नाइट्रोज़न और ऑक्सीज़न गैस के अणुओं को आयनीकृत कर देती हैं। इस प्रक्रिया में नाइट्रोज़न व ऑक्सीज़न गैस के अणुओं के बाहरी इलेक्ट्रॉन निकल जाते हैं और ये अणु धनावेशित हो जाते हैं। धनावेशित और ऋणावेशित इलेक्ट्रॉन क्रमशः विपरीत आवेशित प्लेटों की ओर प्रवाहित होते हैं। जिससे विद्युत धारा का प्रवाह होता है। इस सूँघक में इलेक्ट्रानिक्स इस तरह की होती है कि वह कम से कम विद्युत धारा के प्रवाह को भी माप सके। जब धुआँ इस प्रवाह के बीच में आता है वह इस आयनीकृत ऑक्सीज़न और नाइट्रोज़न के अणुओं से चिपक जाता है और उनको आवेशहीन या न्यूट्रल बना देता है। इससे विद्युत धारा का प्रवाह कम हो जाता है। इस कमी को सूँघक की इलेक्ट्रानिक्स द्वारा माप लिया जाता है और यह अलार्म बजा देता है।

आइये अब देखते हैं कि यह अंदर से कैसा दिखता है। इसमें एक बक्सा है जिसमें आयनीकरण होता है। यहीं स्थित होता है अमेरीसियम एक अलार्म और बाकी इलेक्ट्रानिक्स। है न एक छोटी सी चीज़ पर कितने काम की और कितने सरल सिद्धांत पर काम करती है। यही है विज्ञान की विशेषता, इन्हीं सरल सिद्धांतों को खोजने में बड़े बड़े वैज्ञानिकों ने अपना जीवन लगा दिया। हम इस कड़ी मेहनत का महत्व तभी जान पाते हैं जब यह मूर्त रूप में हमारे सामने आता है और हमारे जीवन में क्रांति लाता है।

२४ मई २००५