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स्वाद और स्वास्थ्य

करेले में कमाल के गुण  

 
 क्या आप जानते हैं?

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मूल रूप से भारत का निवासी- करेला सदियों से मानव स्वास्थ्य के साथ जुड़ा हुआ है।

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करेले के बीज में लेक्टिन नामक तत्व है जो आँतों तक प्रोटीन के संचार को रोक सकता है।

करेला एक गुणकारी सब्जी है, इसकी खेती प्रायः सभी प्रदेशों में की जाती है। इसकी बेल (लता) से साल में दो फसलें ली जा सकती हैं। करेले के फूल पीले रंग के होते हैं, जिनमें विशेष खुशबू आती है। सब्जी बनाने में मुख्यतः कच्चे करेले का ही उपयोग किया जाता है, जो हरे रंग का होता है। पके हुए करेले का बीज के अलावा कोई उपयोग नहीं होता है।

विभिन्न भाषाओं में-

करेले को संस्कृत में कारवेल्लक काठिल्य, हिन्दी में करेला, अंग्रेजी में बिटरगोर्ड, लेटिन में मोमोर्डिका चरंशिया, तमिल में पाखरकाई, मलयालम में काईपक्का, तेलुगु में काकरा काई, गजराती में करेलु, बंगाली में कोरोला, मराठी में कराली, उडिया में कालरा चांखाल, नेपाली में तीते करेला कहते हैं।

रासायनिक तत्व-

१०० ग्राम करेले के रासायनिक विश्लेषण में जल ९२.४ प्रतिशत, प्रोटीन १.९ प्रतिशत, वसा ०.२ प्रतिशत, कार्बोहाइड्रेट ४.२ प्रतिशत, कैल्शियम २० मि.ग्रा., फास्फोरस ७० मि.ग्रा., लोहा ०.६ एम जी, कैरोटिन-१२६ मा. ग्रा., थायेमिन-०.०७ मि.ग्रा., राइबोफ्लेविन-०.०९ मि.ग्रा., नियासिन-०.५ मि.ग्रा., विटामिन-सी प्रति १०० ग्राम में ८८ मिलीग्राम होता है। इसके अलावा विटामिन ए, बी और सी, बीटाकैरोटीन, लूटीन, जिंक, पोटैशियम, मैग्नीशियम और मैगनीज जैसे फ्लावोन्वाइड भी पाए जाते हैं। इसमें स्थित गुरमरिन तत्व एक पोलीपेप्टाइड होता है जिसमें शरीर की शर्करा को नियंत्रित करने वाले बोवीन इंसुलिन के गुण पाए जाते हैं।

इतिहास-

मूल रूप से भारत का निवासी- करेला सदियों से मानव स्वास्थ्य के साथ जुड़ा हुआ है। भारत और चीन की गहन सांस्कृतिक विरासत में करेले को औषधि तथा सब्जी के रूप में प्रयोग करने का इतिहास बहुत पुराना है। यूरोप में इसकी जानकारी १७१० के आस पास हुई। फ्रांस में १८७० में इसे बगीचों में उगाए जाने के उल्लेख मिलते हैं। एशिया अफ्रीका कैरेबियन तथा दक्षिणी अमेरिका में भी काफी पहले से इसका इतिहास पाया जाता है। चीन ताइवान, वियतनाम, थाईलैंड, भारत फिलीपीन, मलेशिया, दक्षिणी अमेरिका तथा कैरेबियन में यह व्यापारिक लाभ के लिये उगी जाने वाली सब्जियों में से एक है।

अपनी औषधीय गुणवत्ता के कारण अमेजॉन की घाटी में करेले की पत्तियों का प्रयोग किया जाता रहा है। पेरू में इसे मिजिल्स और मलेरिया के विरुद्ध एंटी बायोटिक के रूप में रोगी को दिया जाता था। निकारागुआ में इनका प्रयोग मधुमेह, उच्चरक्तचाप एवं शिशु के जन्म के समय किया जाता है। करेले के विभिन्न अंगों का प्रयोग गर्भ निरोधक के रूप में भी किया जाता है।

आयुर्वेद में -

आयुर्वेद के मतानुसार करेला कड़वा, भूख बढ़ाने वाला, पाचन करने वाला, खून साफ करने वाला, रोगनाशक, आँखों के लिए लाभकारी, स्तन्य शोधक, मेद, गुल्म, प्लीहा, शूल नाशक है। यह ज्वर, पित्त, कफ, पीलिया रोग, प्रमेह व कृमिनाशक भी होता है। कई रोगों में औषधि व पथ्य के रूप में यह हितकर व लाभदायक माना है। करेले स्वयं तो रुचिकारक नहीं होते पर अरुचि को नष्ट करते हैं।

प्राकृतिक औषधि -

  • मधुमेह में करेला महाऔषधि है। रोजाना प्रातः ताजे करेले का रस पीने से लाभ होता है छाया में सुखाए हुए करेलों का चूर्ण छह ग्राम, दिन में एक बार लेने से मूत्र में शर्करा आनी बन्द हो जाती है।

  • मूत्र कृच्छ में बार-बार पेशाब करने की इच्छा होती है और कष्ट (दर्द) के साथ मूत्र बूँद-बूँद होकर आता है। करेले के २ तोले रस में १ माशा कलमीशोरा मिलाकर पीने से और इसी मिश्रण में कपड़े को भिगोकर पेडू पर रखने से शीध्र लाभ होता है। किसी कारणवश पेशाब के साथ खून आता हो तो एक छोटे करेले का रस ३ दिन तक दोपहर में पीने से लाभ होता है व खून आना बन्द हो जाता है।

  • भोजन की इच्छा न होना, बिना खाए ही खट्टी डकारें आना, साधारण श्रम से ही थक जाना और भूख की कमी, कब्ज होना, ये सब मन्दाग्नि के लक्षण हैं। करेला स्वयं अरुचिकर होते हुए भी अरुचि को नष्ट करता है। करेले की कम तेल मसाले की सब्जी सप्ताह भर खाने से मन्दाग्नि, उदर रोग, कब्ज, आफरा आना सभी रोग नष्ट होते हैं।
    करेले में विटामिन ‘सी’ लोहा, कैल्शियम फॉस्फोरस आदि खनिज विद्यमान हैं, जो यकृत की क्रिया को सुधारते हैं अतः करेला पाण्डु रोग में हितकर है। ताजे करेले को जल के साथ पीसकर उसका रस २-३ तोला रोगी को नित्य प्रातः ८-१० दिन तक पिलाने से पाण्डु रोग में आराम मिलता है।

घरेलू उपयोग-

  • ६ माशा कुटकी के चूर्ण में २तोले करेले का रस मिलाकर कुछ दिनों तक सेवन करने से पाण्डुरोग में लाभ मिलता है।

  • करेले का ताजा रस दो या ढाई तोला लेकर उसमें नीम का रस, लहसुन का रस, वायविडंग का चूर्ण ३-४ माशा, इनमें से कोई भी एक रस या चूर्ण, इसके रस के साथ पीने से पेट के कीड़े मर जाते हैं।

  • करेले के रस में नीबू का रस मिलाकर पीने या उसमें १/२ ग्राम यवक्षार मिलाकर पीने से मोटापा कम होता है।

  • करेले का रस ५ तोला, मकोय का रस या अर्क १ तोला नित्य प्रातः खाली पेट व सायं खाने के बाद पीने से सभी प्रकार की सूजन में लाभ मिलता है।

  • करेले की चटनी पीस कर गठिया की सूजन पर लेप करने से सूजन कम हो जाती है तथा इसके बाद करेले के रस में राई का तेल मिलाकर मालिश करने से दर्द भी कम हो जाता है।

  • मुँह में छाले होने पर करेले के रस से कुल्ला करने पर आराम मिलता है।

  • गर्मी की घमोरियों पर १/४ कप करेले के रस में १ चम्मच मीठा सोडा (खाने वाला) मिलाकर लेप दिन में २-३ बार करने से सारी घमोरियाँ शान्त हो जाती हैं।

सावधानियाँ-

  • करेले के रस में मोमोकैरिन नामक तत्व होता है जो मासिक का रक्तस्राव बढ़ा देता है। गर्भावस्था के दौरान इसका अधिक सेवन गर्भपात का कारण हो सकता है। कई बार यह गर्भावस्था के समय मासिक की स्थिति भी पैदा कर सकता है। करेले में एंटी लैक्टोलन तत्व भी हैं जो गर्भावस्था के दौरान दूध बनने की प्रक्रिया में बाधा डालते हैं।

  • न केवल गर्भावस्था बल्कि गर्भधारण की चाह रखने वाली महिलाओं और पुरुषों के लिए इसका सेवन नुकसानदायक हो सकता है। फर्टिलिटी से संबंधित दवाओं का असर करेले में मौजूद तत्व खत्म कर देते हैं। इसमें मौजूद एमएपी ३० नामक तत्व का कुत्तों पर किए गए परीक्षण में यह माना गया है लेकिन इसपर अभी काफी अध्ययन की आवश्यकता है।

  • लिवर व किडनी के मरीजों के लिए इसका अत्याधिक सेवन नुकसानदायक हो सकता है। यह लिवर में एन्जाइम्स का निर्माण बढ़ा देता है जिससे लिवर प्रभावित होता है। करेले के बीज में लेक्टिन नामक तत्व है जो आँतों तक प्रोटीन के संचार को रोक सकता है।

  • करेले का सेवन शरीर में चीनी कम करता है लेकिन आवश्यकता से अधिक रक्त में चीनी का स्तर इतना कम कर देता है कि यह हाइपोग्लाइकोमिया कोमा नामक मानसिक समस्या का कारण हो सकता है।

  • करेले के अत्याधिक सेवन से हेमोलाइटिक अनीमिया हो सकता है। इस स्थिति में पेट में दर्द, सिर दर्द, बुखार या कोमा जैसी समस्याएँ हो सकती हैं।

  • करेला गर्मी करता है अतः सेवन करते समय इसकी गर्मी की ओर ध्यान देना चाहिए

२५ मई २०१५

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