मुखपृष्ठ

पुरालेख-तिथि-अनुसार -पुरालेख-विषयानुसार -हिंदी-लिंक -हमारे-लेखक -लेखकों से


स्वाद और स्वास्थ्य

साग चौलाई का  

 
 क्या आप जानते हैं?

bullet

चौलाई दो तरह की होती है, एक सामान्य हरे पत्तों वाली दूसरी लाल पत्तों वाली जिसे लाल साग भी कहते हैं।
 

bullet

कटेली चौलाई तिनछठ के व्रत में खोजी जाती है। भादों की कृष्ण पक्ष की षष्ठी को यह व्रत होता है।
 

bullet

चौलाई की कुछ प्रजातियाँ बहुरंगी आकर्षक होती हैं इनका प्रयोग सजावटी पौधों के रूप में किया जाता है।

हरी पत्तेदार सब्जी में चौलाई का मुख्य स्थान है। चौलाई दो तरह की होती है ,एक सामान्य हरे पत्तों वाली दूसरी लाल पत्तों वाली। यह कफ और पित्त का नाश करती है जिससे रक्त विकार दूर होते हैं। पेट और कब्ज के लिए चौलाई का साग बहुत उत्तम माना जाता है। चौलाई की सब्जी का नियमित सेवन करने से वात, रक्त व त्वचा विकार दूर होते हैं। सबसे बडा गुण सभी प्रकार के विषों का निवारण करना है, इसलिए इसे विषदन नाम दिया गया है। इसके डंठल और पत्तों में पौष्टिक तत्वों की प्रचुर मात्रा पाई जाती है। पेट और कब्ज के लिए चौलाई बहुत उत्तम मानी जाती है। कुल मिलाकर चौलाई एक स्वादिष्ट सब्जी भी है और महत्वपूर्ण दवा भी।

विविध भाषाओं में-

इसे तन्दुलीय भी कहते हैं। संस्कृत में मेघनाथ भी कहते है। मराठी, गुजराती में तान्दल्जा, बंगाली में चप्तनिया, तमिल में कपिकिरी, तेलगू में मोलाकुरा, फारसी में सुपेजमर्ज, अंग्रेजी में प्रिकली ऐमरेन्थस,और वैज्ञानिक भाषा में एमरेन्थस स्पिनोसस (Amaranthus spinosus) कहते हैं।


आयुर्वेद में-

माना गया है कि किसी भी तरह के चर्म रोग में इसके पत्ते पीस कर लेप कर २१ दिनों तक लगातार लेप करने से वह ठीक हो जाता है। शरीर में अगर कही भी खून बह रहा है और बंद नहीं हो रहा लाल पत्ते वाली चौलाई की जड़ को पानी में पीस कर पी लेने से ही रुक जाता है। एक बार पीने से नहीं रुक रहा तो बारह घंटे बाद दुबारा पीने को कहा गया है। चाहे गर्भाशय से खून बह रहा हो या मल द्वार से या बलगम के साथ यह सबमें उपयोगी बताई गई है। मान्यता है कि गर्भवती को खून दिखाई दे जाए तो फ़ौरन पी ले, गिरता हुआ गर्भ रुक जायेगा। जिनको गर्भ गिरने की बीमारी हो उन महिलाओं के लिये मासिक धर्म के समय में रोज जड़ पीस कर चावलों के पानी के साथ पीने का उल्लेख मिलता है।

रासायनिक तत्व-

चौलाई में कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, कैल्शियम और विटामिन-ए, मिनिरल्स और आयरन प्रचुर मात्रा में पाए जाते है। इसमें सोना धातु पाया जाता है जो किसी और साग-सब्जियों में नहीं पाया जाता। औषधि के रूप में चौलाई के पंचांग यानि पांचों अंग- जड, डंठल, पत्ते, फल, फूल काम में लाए जाते हैं। इसकी डंडियों, पत्तियों में प्रोटीन, खनिज, विटामिन ए, सी प्रचुर मात्रा में है।

घरेलू उपयोग-

पेट या आमाशय में कोई रोग हो तो रोज चौलाई का साग खाने से लाभ मिलता है।
शरीर में जलन हो रही हो चौलाई का काढा लाभदायक होता है। सांप, बिच्छू या किसी जहरीले कीड़े के काट लेने पर चौलाई की जड़ के साथ पंद्रह दाने काली मिर्च एक साथ पीस कर चावलों के धोवन में घोल कर पिलाने से लाभ मिलता है। पथरी में चौलाई का साग चालीस दिनों तक प्रतिदिन खाने पर पथरी गल जाती है। चौलाई जलाकर राख बना लें, उस राख को पानी में मिलाकर लेप बनाएँ, इस लेप को मुंह में लगाकर सूर्य की किरणों में बैठने से कील मुंहासे और झाइयों में लाभ होता है। चौलाई का सेवन गठिया, ब्लडप्रेशर और हृदय रोगियों के लिए लाभदायक है। खूनी बवासीर हो या मूत्र में खून आता हो, चौलाई के पत्ते पीस कर मिश्री मिलाकर शरबत बनाकर ३ दिन लगातार पियें।

अन्य औषधीय गुण-

  • छोटे बच्चों को कब्ज होने पर उन्हें औषधि के रूप में २-३ चम्मच चौलाई का रस पिलाने से लाभ होता है।

  • पेट के विभिन्न रोगों से छुटकारा पाने के लिए सुबह शाम चौलाई का रस पीने से लाभ मिलता है।

  • बालों के टूटने की परेशानी को दूर करने के लिए मौसम में चौलाई का रस १५ मि.ली. (एक बड़ा चम्मच) नियमित लें।

  • प्रसव के बाद अगर प्रसूता महिला को चौलाई का साग नियमित दिया जाए तो दूध की कमी नहीं रहती।
    पेशाब में होने वाली जलन को शांत करने के लिए चौलाई के रस का कुछ दिनों तक सेवन करने से मूत्रवृध्दि होती है और जलन ठीक होती है।

  • खून की कमी में चौलाई का लाल साग सब्जी के रूप में या सूप के रूप में लेने से लाभ मिलता है। हाथ-पैर, शरीर की जलन में एक कप चौलाई के रस में थोड़ी शक्कर मिलाकर पीने से लाभ मिलता है।

  • फोड़े-फुंसी पर चौलाई के पत्तों की पुल्टिस बना कर लगाने से फोड़ा जल्द पक कर फूट जाता है। सूजन होने पर उस स्थान पर इसका लेप करने से सूजन दूर होती है।

धार्मिक उपयोग-

भारतीय संस्कृति में आमतौर पर यह देखा गया है कि स्वास्थ्य के लिये उपयोगी वस्तुओं को उस मौसम के धर्मिक उत्सवों या परंपराओं से जोड़ा गया है। इसी क्रम में भादों की कृष्ण पक्ष की षष्ठी को मनाए जाने वाले तिनछठ व्रत में कटेली चौलाई का बहुत महत्व है।

सजावटी उपयोग-

चौलाई की अनेक प्रजातियों की पत्तियाँ बहुत सुंदर रंगों वाली होती हैं जिनका प्रयोग बगीचे में सजावटी पौधों के रूप में किया जाता है। गौरैया जैसे बहुत से पक्षी इनके रंगों से आकर्षित होते हैं और इन्हें चाव से खाते हैं इसलिये इनके छोटे पौधों को चिड़ियों से बचाकर रखने की आवश्यकता होती है।

१६ फरवरी २०१५

1

1
मुखपृष्ठ पुरालेख तिथि अनुसार । पुरालेख विषयानुसार । अपनी प्रतिक्रिया  लिखें / पढ़े
1
1

© सर्वाधिका सुरक्षित
"अभिव्यक्ति" व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इस में प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक
सोमवार को परिवर्धित होती है।