चिलगोजा, चीड़ या सनोबर जाति के पेड़ों का छोटा,
लंबोतरा फल है, जिसके अंदर मीठी और स्वादिष्ट गिरी
होती है और इसीलिए इसकी गिनती मेवों में होती है।
स्थानीय भाषा में चिलगोजे को न्योजा कहते हैं।
किन्नौर तथा उसके समीपवती प्रदेश में विवाह के
अवसर पर मेहमानों को सूखे मेवे की जो मालाएँ पहनाई
जाती हैं उसमें अखरोट और चूल्ही के साथ चिलगोजे की
गिरी भी पिरोई जाती है। सफेद तनों वाला इनका पेड़
देवदार से कुछ कम लंबाई वाला, हरा भरा होता है।
इसका वानस्पतिक नाम पाइंस जिराडियाना है। चिलगोजा
समुद्रतल से लगभग २००० फुट की ऊँचाई वाले दुनिया
के इने गिने इलाकों में ही मिलता है। यह कुछ गहरी
और पहाड़ी घाटियों के आरपार उन जंगलों में उगता
है, जहाँ ठंडा व सूखा मौसम एक साथ होता हो, ऐसे
जंगलों के आसपास कोई नदी भी हो सकती है और वहाँ से
तेज हवाएँ गुजरती हों। चट्टानी, पर्वत मालाएँ सीथी
खड़ी मिलती हों और वृक्ष चट्टानों को फाड़कर उगने
के अभ्यासी हों। ऐसी जलवायु में जहाँ भी इसका बीज
अंकुरित हो जाय यह सदाबहार हो उठता है।
चिलगोजे के पेड़ पर चीड़ की ही तरह भूरे रंगरूप
वाला तथा कुछ ज्यादा गोलाई वाला लक्कड़फूल लगता
है। मार्च अप्रैल में आकार लेकर यह फूल सितंबर
अक्तूबर तक पक जाता है। यह बेहद कड़ा होता है। इसे
तोड़कर इसकी गिरियाँ बाहर निकाली जा सकती हैं
लेकिन ये गिरियाँ भी एक मजबूत आवरण से ढकी रहती
है। इस भूरे या काले आवरण को दाँत से कुतर कर
हटाया जा सकता है। भीतर पतली व लंबी गिरी निकलती
है जो सफेद मुलायम व तेलयुक्त होती है। इसे चबाना
बेहद आसान होता है। इसका स्वाद किसी भी अन्य कच्ची
गिरी से तो मिलता ही है, मगर काफी अलग तरह का होता
है। मूँगफली या बादाम से तो यह बहुत भिन्न होता
है। छिले हुए चिलगोजे जल्दी खरीब हो जाते हैं
लेकिन बिना छिले हुए चिलगोजे बहुत दिनों तक रखे जा
सकता है।
दुनिया के अधिकतर देश इस फल से वंचित हैं लेकिन
किन्नर कैलास के पास वास्पा और सतलुज की घाटी में
कड़छम नामक स्थान पर चिलगोजे के पेड़ों का भरा
पूरा जंगल है। रावी के निकट के कुछ इलाकों तथा
गढ़वाल के उत्तर पश्चिम के क्षेत्र, किन्नौर में
कल्पा व सांगला की घाटी तथा चंबा में पांगी-भरमौर
की घाटी इनके लिये प्रसिद्ध है। चिनाब नदी के कुछ
ऊँचे बहाव वाले स्थानों पर भी यह मिलता है।
अफगानिस्तान तथा बलूचिस्तान में भी यह मिलता है।
इसके अतिरिक्त दक्षिण पश्चिम अमेरिका में इसे पाया
जाता है। लेकिन एशियन और अमेरिकन चिलगोजे स्वाद और
आकार में भिन्नता पाई जाती है।
चिलगोजा भूख बढ़ाता है इसका स्पर्श नरम लेकिन
मिजाज गरम है। इसमें पचास प्रतिशत तेल रहता है।
इसलिये ठंडे इलाकों में यह अधिक उपयोगी माना जाता
है। सर्दियों में इसका सेवन हर जगह लाभदायक है। यह
पाचन शक्ति को बढ़ाता है, इसको खाने से बलगम की
शिकायत दूर होती है। मुँह में तरावट लाने तथा गले
को खुश्की से बचाने में भी यह उपयोगी है।
वनस्पति शास्त्र का इतिहास लिखने वालों का मानना
है कि चिलगोजे को भोजन में शामिल करने का इतिहास
पाषाण काल जितना पुराना है। इन्हें मांस, मछली और
सब्जी में डालकर पकाया जाता है तथा ब्रेड में बेक
किया जाता है। इटली में इसे पिग्नोली कहते हैं और
इसे इटालियन पेस्टो सॉस की प्रमुख सामग्री माना
गया है। जबकि अमेरिका में इसे पिनोली नाम से जाना
जाता है और पिनोली कुकीज़ में इसका ही प्रयोग किया
जाता है। अँग्रेजी में इसे आमतौर पर पाइन नट कहा
जाता है। स्पेन में भी बादाम और चीनी से बनी एक
मिठाई के ऊपर इसे चिपकाकर बेक किया जाता है। यह
मिठाई स्पेन में हर जगह मिलती है। हिंदी में इसे
चिलगोजे के लड्डू कह सकते हैं। कुछ स्थानों पर
इसका प्रयोग सलाद के लिये किया जाता है।
चिलगोजे की काफी जिसे पिनोन कहा जाता है दक्षिण
पश्चिम अमेरिका में न्यू मेक्सिको के आसपास बहुत
लोकप्रिय होती है जो काली और मेवे के गहरे स्वाद
वाली होती है। हल्के भुने और नमक लगे चिलगोजे तो
आज सारी दुनिया में बिकने लगे हैं। दक्षिण पश्चिम
अमेरिका में नेवादा के ग्रेट बेसिन का चिलगोजा
अपने मीठे और फल जैसे स्वाद, बड़े आकार तथा आसानी
से छीले जाने के लिये प्रसिद्ध है। मध्यपूर्व में
भी चिलगोजे का प्रयोग भोजन के रूप में बहुतायत से
होता है
तथा
किब्बेह, संबुसेक जैसे व्यंजन तथा बकलावा जैसी
मिठाइयों की यह प्रमुख सामग्रियों में से एक है।
लगभग १०० ग्राम चिलगोजे में ६७३ कैलरी होती है।
साथ ही २.३ ग्राम पानी, १३.१ ग्राम
कार्बोहाइड्रेट, ३.६ ग्राम शर्करा, ३.७ ग्राम
रेशा, ६८.४ ग्राम तेल, १३.७ ग्राम प्रोटीन, १६
मिली ग्राम कैलसियम, ५.५ मिली ग्राम लोहा, २५१
मिली ग्राम मैगनीशियम, ८.८ मिलीग्राम मैगनीज, ५७५
मिलीग्राम फासफोरस, ५९७ मिलीग्राम पोटैशियम तथा
६.४ मिलीग्राम ज़िंक इनमें पाया जाता है। इसके
अतिरिक्त इसमें विटामिन बी, सी, ई, के भी पाए जाते
है। इसमें कोलेस्ट्राल बिलकुल नहीं होता है।
चिलगोजे के विकास और अनुसंधान के लिये शारबो,
किन्नौर में एक संस्थान कार्यरत है। |