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हमारा गौरवशाली संविधान
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डॉ. नंदकिशोर शाह
भारत का संविधान
ऐसा महत्वपूर्ण दस्तावेज है, जो देश के प्रत्येक
नागरिकों को समान अधिकार देता है। साथ ही हमारे
कर्तव्यों को भी निर्धारित करता है। लिखते समय मूल
संविधान में ३९५ अनुच्छेद, २२ भाग और १२ अनुसूचियाँ
शामिल थी। भारतीय संविधान में स्पष्ट लिखा है कि भारत
एक संप्रभुता संपन्न, समाजवादी, सेकुलर लोकतांत्रिक
गणराज्य है। संप्रभुता शब्द स्वतंत्र होने के मायने
बताता है, तो समाजवादी शब्द को १९७६ में हुए ४२वें
संवैधानिक संशोधन अधिनियम के जरिए प्रस्तावना में जोड़ा
गया। पंथनिरपेक्ष या धर्मनिरपेक्ष शब्द भी इसी संशोधन
में शामिल किया गया था। लोकतांत्रिक भारत एक स्वतंत्र
देश है, जहाँ लोगों को अपने अनुसार नेता चुनने की
स्वतंत्रता दी गई है।
प्रारूप समिति का गठन- आजादी के १३ दिन बाद २८ अगस्त,
१९४७ को एक बैठक में निर्णय लिया गया कि प्रारूप समिति
भारत के स्थाई संविधान का प्रारूप तैयार करेगी। इसके
लिए डॉ. भीमराव अंबेडकर ने पूरी दुनिया के तमाम
संविधानों का बारीकी से अध्ययन किया और प्रारूप तैयार
किया। भारत के संविधान का मसौदा तैयार करने वाली समिति
की स्थापना २९ अगस्त १९४७ को की गई थी, जिसके अध्यक्ष
के तौर पर डॉ भीमराव आंबेडकर की नियुक्ति की गई।
संविधान प्रारूप समिति की बैठक ११४ दिनों तक चली।
संविधान सभा में सदस्य- संविधान सभा में शुरू में ३८९
सदस्य थे किंतु मुस्लिम लीग द्वारा स्वयं को इससे अलग
कर लिए जाने के बाद संविधान सभा के सदस्यों की संख्या
२९९ रह गई थी। संविधान सभा के सदस्य भारत के राज्यों
की सभाओं के निर्वाचित सदस्यों द्वारा चुने गए थे। ९
दिसंबर १९४८ को संविधान सभा सच्चिदानंद सिन्हा की
अध्यक्षता में पहली बार समावेषित हुई थी, लेकिन
मुस्लिम लीग ने अलग पाकिस्तान बनाने की मांग को लेकर
इस बैठक का बहिष्कार किया था। ११ दिसंबर १९४६ को हुई
संविधान सभा की बैठक में राजेन्द्र प्रसाद को संविधान
सभा का अध्यक्ष चुना गया और वे संविधान के निर्माण का
कार्य पूरा होने तक इस पद पर रहे। पंडित जवाहरलाल
नेहरू, डॉ राजेंद्र प्रसाद, सरदार वल्लभ भाई पटेल,
मौलाना अबुल कलाम आजाद इत्यादि इस सभा के प्रमुख सदस्य
थे। संविधान सभा में १५ महिला सदस्य थी, जिनमें से
दुर्गाबाई देशमुख, हंसा मेहता, राजकुमारी अमृत कौर और
अन्य महिलाओं ने भी महिलाओं, वंचित समाज और मजदूरों से
संबंधित कई विषयों पर महत्वपूर्ण योगदान दिया।
संविधान का हस्तलेखन- संविधान को लिखना एक बड़ा काम था।
इस महत्वपूर्ण काम को दिल्ली निवासी प्रेम बिहारी
नारायण रायजादा ने पूरा किया। इस काम में उन्हें ६
महीने का वक्त लगा। हस्त लेखन उनका खानदानी पेशा था।
इसलिए हिंदी और अंग्रेजी भाषाओं में संविधान की मूल
प्रति को रायजादा ने अपने हाथों से लिखा था। इसी
संविधान की ३ प्रतियाँ बनाई गई, जिसमें से दो को
नंदलाल बोस और राम मनोहर सिन्हा द्वारा सुसज्जित
पत्रों पर तैयार किया। १४९९ पन्नों की संविधान की एक
प्रति को अंग्रेजी में रासबिहारी ने और हिंदी में बी
के वैध ने लिखा। उन्होंने इसे लिखने का कार्य एक हफ्ते
में ही पूरा कर दिया था। जबकि तीसरी प्रति को अंग्रेजी
में देहरादून में छपवाया गया। यह हमारे लिए आश्चर्य के
साथ गौरव की बात है कि इतना महत्वपूर्ण दस्तावेज होते
हुए भी भारतीय संविधान की मूल प्रति हस्तलिखित ही है,
जिसकी पहली दो प्रतियाँ हिंदी और अंग्रेजी में है।
संविधान को चित्रकारी से सजाया- मशहूर चित्रकार आचार्य
नंदलाल बोस और उनके सहयोगियों ने भारत के संविधान को
सजाया था। तब २२ चित्र बनाए गए थे। सभी चित्र ८ गुणा
१३ इंच के आकार में है। पंडित जवाहरलाल नेहरू के आग्रह
पर बोस द्वारा २२१ पृष्ठों के इस दस्तावेज के सभी २२
भागों में से प्रत्येक को एक-एक चित्र से सजाया गया।
भारतीय संविधान के इस मूल प्रति पर इन २२ चित्रों को
बनाने में ३ साल से ज्यादा का वक्त लगा। कहते हैं इस
काम के लिए नंदलाल बोस को ₹२१९९९ मिले थे। उन्होंने जो
चित्र बनाया है, उसमें मोहनजोदड़ो, वैदिक काल, रामायण,
महाभारत, बुद्ध के उपदेश, महावीर के जीवन, मौर्य गुप्त
और मुगल काल की झांकी थी। इसके अलावा गांधी, सुभाष
चंद्र बोस, हिमालय से लेकर समुद्र आदि के चित्र है।
देखा जाए तो यह चित्र भारतीय इतिहास की विकास यात्रा
है। बोस के ही शिष्य राम मनोहर सिन्हा ने संविधान के
प्रस्तावना पेज को सजाया। संविधान के जो सजे हुए चित्र
हम देखते हैं, वह संविधान की पहली हस्तलिखित प्रति के
ही चित्र है। संविधान की प्रस्तावना को सुनहरे बॉर्डर
से घेरा गया है।
संविधान की मूल प्रति सुरक्षित किया- टाइपिंग या
प्रिंटिंग का कोई इस्तेमाल नहीं किया। एक हजार वर्ष से
अधिक सालों तक बचे रहने वाले सूक्ष्मजीवी रोधक चर्म
पत्रों पर भारतीय संविधान की पांडुलिपि लिख कर तैयार
की। संविधान की बेशकीमती प्रतियों को संसद भवन की
लाइब्रेरी के एक कोने में बने स्ट्रांग रूम में सहेज
कर रखा गया है, जिसे पढ़ने की इजाजत किसी को भी नहीं
है। संविधान की यह प्रतियाँ कभी खराब न हो। इसके लिए
इसे हिलियम गैस से भरे केस में सुरक्षित रखा गया है।
यही कारण है कि हमारे देश की यह अमूल्य धरोहर हमारे
पास सुरक्षित और आज भी मूल अवस्था में है। हिलियम एक
ऐसी अक्रिय गैस है, जो संविधान की प्रति के पन्नों को
वातावरण के साथ रासायनिक प्रतिक्रिया करने से रोकता
है।
संविधान लागू हुआ- २६ नवंबर १९४९ को भारतीय संविधान के
प्रारूप को संविधान सभा के सामने पेश किया गया।
संविधान सभा में इसकी प्रारूप को कुछ जरूरी संशोधन के
बाद संविधान की शक्ल दे दी। इसलिए प्रत्येक वर्ष २६
नवंबर को हम लोग संविधान दिवस के रूप में मनाते हैं और
२६ जनवरी, १९५९ को भारत का संविधान लागू कर दिया गया।
तभी से हम इस दिन को गणतंत्र दिवस के रूप में मना रहे
हैं। संविधान लागू होने से २ दिन पहले २४ जनवरी १९५९
को संविधान की तीनों प्रतियों पर संविधान सभा के २८४
सदस्यों ने हस्ताक्षर किए थे। १४ अगस्त १९४७ की रात
संविधान सभा की पहली बैठक का आगाज वंदे मातरम के साथ
हुआ था और समापन जन-गण- मन के साथ। वंदे मातरम की रचना
महान स्वतंत्रता सेनानी बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय उर्फ
बंकिम चंद्र चटर्जी ने की थी। बंगाल में आजादी के
आंदोलन के दौरान क्रांतिकारियों में जोश भरने के लिए
यह गीत गाया जाता था। धीरे-धीरे यह गीत बहुत लोकप्रिय
हो गया। इसलिए राजपथ पर गणतंत्र दिवस समारोह में जन गण
मन के साथ वंदे मातरम की धुन भी बजाई जाती है। हर साल
२६ जनवरी को गणतंत्र दिवस समारोह की शुरुआत राष्ट्रपति
तिरंगा फहरा कर करते हैं। संविधान निर्माण में २ वर्ष
११ महीने और १८ दिन का वक्त लगा। संविधान के निर्माण
कार्य पर कुल ₹६३,९६,७२९ का खर्च आया और इसके निर्माण
कार्य में कुल ७,६३५ सूचनाओं पर चर्चा की गई।
संविधान में संशोधन- इसमें अभी तक १९१ बार संशोधन हो
चुके हैं संविधान में किए गए संशोधनों के जरिए सामाजिक
जरूरतों के अनुरूप जनतंत्र और शासन प्रणाली को मजबूती
प्रदान करने के प्रयास किए गए। संविधान में पहला
संशोधन वर्ष १९५१ में किया गया था, जिसके तहत
स्वतंत्रता, समानता और संपत्ति से संबंधित मौलिक
अधिकार को लागू करने संबंधी व्यावहारिक कठिनाइयों का
निराकरण करने के लिए संविधान नौवीं अनुसूची जोड़ी गई
थी।
हमारा संविधान आज के युवा भारत में और भी अधिक
प्रासंगिक हो गया है। आज के युवाओं में संविधान को
लेकर समझ बनानी होगी। युवा में संविधान के प्रति जो
निष्ठा पैदा होगी, वह हमारे लोकतंत्र को, हमारे
संविधान को और देश के भविष्य को मजबूत करेगी। आजादी के
अमृत काल में यह देश की अहम जरूरत है।
२८ अप्रैल २००८
१
अगस्त २०२२ |