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संस्कृति

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ध्यान का अभ्यास
- पूर्णिमा पांडेय



ध्यान का अभ्यास विश्व की सभी संस्कृतियों और धर्मों में किया जाता है इतिहास बताता है कि एशियाई देशों जैसे भारत, जापान और चीन की परम्परा में ध्यान रचा बसा है सिन्धु घाटी सभ्यता की पुरातात्विक खोजों में भी ध्यान के साक्ष्य मिले हैं यह साक्ष्य दीवारों पर बने भित्ति चित्र के रूप में मिले हैं जो लगभग ५००० से ३५०० ईसा पूर्व के हैं चित्र में लोगों को उसी मुद्रा में बैठे दिखाया गया है जिसे हम सभी सामान्यतः ध्यान मुद्रा के रूप में जानते हैं जमीन पर पालथी मारकर बैठा व्यक्ति, दोनों हथेलियाँ घुटनों पर और आँखें थोड़ी खुली हुई ध्यान का उल्लेख भारतीय ग्रन्थों में भी मिलता है जो लगभग ३००० वर्ष पुराना है बौद्ध, जैन, ताओ, तिब्बती, ज़ेन, सूफी, यहूदी व इस्लाम धर्मों में तो ध्यान अत्यावश्यक अंग है कुछ इतिहासकार यह तक कहते हैं कि ध्यान उस समय भी था जब धर्म नहीं था, जब इन्सान गुफाओं में गुज़र-बसर करता था।

ध्यान की उत्पत्ति
साफ तौर पर नहीं कहा जा सकता कि ध्यान की प्रथा कब, कहाँ और किसने शुरू की, लेकिन इसका अस्तित्व इसके कारणों की खोज करने के लिये बाध्य करता है कोई भी दर्शन या धर्म, रीति-नीति, प्रथा-प्रणाली, नाम व काल क्यों न हो, ध्यान एक ही उद्देश्य की पूर्ति करता है- वह हमारे मन (चेतन मन और अवचेतन मन) को जगाता है ताकि हम अपने जीवन का अर्थ जानने का प्रयास करें, हम उद्देश्य को जानने का प्रयास करें जिसके लिये हमने जन्म लिया है अपनी खोज करें और जागरुक बनें इस स्थिति में यह कहा जा सकता है कि ध्यान की उत्पत्ति मानव मन में उठने वाले अनेक प्रश्नों का उत्तर जानने की इच्छा के कारण हुई है।

ध्यान है क्या?
सामान्यतः इसे धार्मिक संस्कार या दुःसाध्य कार्य के रूप में देखा जाता है या यह माना जाता है कि इसका ‘एकमात्र उद्देश्य विचारों पर रोक लगाना’है किन्तु ये बहुत सीमित दृष्टिकोण हैं वस्तुतः ध्यान और भी बहुत कुछ है- चिन्तन, अवलोकन, प्रार्थना, विचार, मीमांसा और अध्ययन।

ध्यान की व्याख्या बहुत अलग-अलग ढंग से की गई है इसी सन्दर्भ में योग प्रशिक्षक व लेखक इरा सिंह कहती हैं, "मुझे इस बात में कोई संदेह नहीं कि ध्यान के मायने सभी के लिये अलग-अलग होते होंगे मेरा ऐसा सोचने के पीछे कारण यह है कि यदि यह प्रश्न मुझसे कुछ वर्ष पहले पूछा गया होता तो शायद मेरा उत्तर कुछ और होता आज मेरा उत्तर है - ध्यान का अर्थ है, सहजता अर्थात् अपने साथ शान्तिपूर्ण सम्बन्ध ध्यान क्रिया भी है निष्क्रियता भी, ध्यान भोग भी है योग भी, ध्यान विचार भी है और निर्विचार भी।"

दी आर्ट एण्ड साइंस ऑफ मेडिटेशन किताब में पूर्व-जीवन प्रतिगमन के अभ्यासकर्ता डॉ. न्यूटन तथा लाइफ स्किल कोच, हीलर व लेखक चित्रा झा ने लिखा है कि ध्यान जीवन में प्रसन्नता को आमन्त्रित करने की कला है अपने दिन की शुरुआत योग व चक्र ध्यान से करने वाली लाईफ पॉज़िटिव वेबसाईट की मैनेजर जमुना रंगाचारी मानती हैं कि यह दिन की शुरुआत करने का सबसे अच्छा तरीका है इसके अलावा ध्यान अपने आन्तरिक स्व के सम्पर्क में आना है यह मानसिक विषयों को भी सुलझाने का काम करता है जैसे आत्म-सम्मान, आत्मविश्वास और उन सभी विषयों की समझ जो हमारे नियन्त्रण में नहीं हैं पहले फैशन रिटेलर और अब पूर्णकालिक लेखक बन चुके मीडीऐट और हीलर सिद्धार्थ शि
व खन्ना भी कुछ ऐसा ही कहते हैं, "ध्यान एक अत्यावश्यक प्रक्रिया है जो आपको मन, हृदय और आत्मा का तालमेल बनाने में सहयोग करती है, यह आपको अपने भीतर व बाहर के ब्रह्माण्ड को खोजने का अवसर देती है।"

अंग्रेजी में प्रयुक्त होने वाले मेडिटेशन शब्द से ध्यान का एक अन्य ही अर्थ निकलता है जिसकी उत्पत्ति लैटिन भाषा के ‘मेडेरी’ शब्द से हुई है, और इसका अर्थ होता है- ‘स्वस्थ करने के लिये’, ‘घाव भरने के लिये’ आधुनिक शोध भी इसी अर्थ की पुष्टि करते हैं


क्या कहता है विज्ञान?
ज्ञान की दृष्टि से देखा जाये तो हम अपने आप में एक छोटा ब्रह्माण्ड हैं हमारे भीतर ५० करोड़ खरब कोशिकायें हैं जब
परिस्थिति उनके अनुकूल हों तब कोशिकायें स्वस्थ और सन्तुलित रहती हैं, लेकिन जब परिस्थिति अनुकूल व स्वस्थ न हो तो वे सन्तुलन खो देती हैं, अस्वस्थ हो जाती हैं और विद्रोह करने लगती हैं यह विद्रोही कोशिकायें रोगों को जन्म देती हैं, जिनमें कैंसर भी शामिल है अक्सर लोग कोशिकाओं को स्वस्थ आहार, नियमित व्यायाम व स्वस्थ जीवनशैली के माध्यम से सन्तुलित रखना चाहते हैं, लेकिन विज्ञान भी प्रमाणित कर चुका है कि हमारा स्वास्थ्य भोजन पर ही नहीं, हमारी सोच पर भी निर्भर करता है और इस काम में ध्यान से अच्छा कुछ नहीं है अनेक शोध पहले ही प्रमाणित कर चुके हैं कि ध्यान के अनगिनत लाभ हैं, जिनमें तनाव कम होना, एकाग्रता व रचनात्मकता का बढ़ना, स्मरण शक्ति में सुधार व सहानुभूति में वृद्धि प्रमुख हैं हम यह भी जानते हैं कि ध्यान हमें मानसिक रूप से बेहतर महसूस करने में मदद करता है, यहाँ तक कि मस्तिष्क के काम करने के तरीके पर भी प्रभाव डालता है तंत्रिका वैज्ञानिकों ने एमआरआई स्कैनिंग में पाया कि ध्यान मस्तिष्क की कोशिकाओं के सम्पर्कों को मजबूती देकर उसे अधिक पुष्ट बनाता है

अध्ययन में यह भी सामने आया कि जो लोग ध्यान करते हैं उनके मस्तिष्क में ‘उच्चस्तरीय कुण्डलीकरण’ होता है, जिसके कारण मस्तिष्क सूचनाओं को अधिक तेजी से संसाधित करता है इसी के कारण मस्तिष्क तेज़ी से सूचना पर प्रक्रिया करता है, निर्णय लेता है, याद करता है और ध्यान देता है यह कार्टिकल को स्थूल बनाता है जिससे पीड़ा के प्रति संवेदनशीलता कम हो जाती है तंत्रिका वैज्ञानिकों ने यह भी पाया कि मस्तिष्क के पूर्ववर्ती भाग एंटेरिअर सिंगुलेट कॉर्टेक्स में ग्रे मैटर के घनत्व में भी बढ़त होती है यह ज्ञानात्मक, भावनात्मक और प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया को सुधारता है हमारी भावनायें अधिक सकारात्मक बनती हैं, उनमें स्थिरता आती है और हम अधिक सचेत व्यवहार करते हैं यह हमारी श्वसन व हृदय गति को भी सकारात्मक ढंग से प्रभावित करता है ध्यान मस्तिष्क की थीटा और अल्फा ईईजी एक्टिविटी (विद्युतीय गतिविधि) में भी परिवर्तन लाता है, जो जागृत बनाने और तनाव मुक्ति करने का काम करता है जबकि इसकी निष्क्रियता सीधे-सीधे चिन्ता, एडीएचडी, एल्ज़ाइमर रोगों के लिये उत्तरदायी होती है। लेकिन पहली बार यह तथ्य सामने आया कि यह हमारी जैविकी पर भी प्रभाव डालता है कैंसर जर्नल में प्रकाशित लिंडा कार्लसन का लेख यही प्रमाणित करता है उन्होंने अपने शोध में ५५ वर्ष से अधिक आयु के ८८ लागों को शामिल किया जो कैंसर रोग से मुक्त होने के बाद भी भावनात्मक रूप से तनावग्रस्त थे इन लोगों को तीन समूहों में बाँटा गया और प्रयोग शुरू करने से पहले इनके खून के नमूने लिये गए उसके बाद पहले समूह को हर दिन ४५ मिनट तक हठ योग का अभ्यास करवाया गया दूसरे समूह को हर सप्ताह नकारात्मक व सकारात्मक संवेदनाओं के बारे में विचार-विमर्श करने को कहा गया और तीसरे
समूह को छह घंटे की एक कार्यशाला में भाग लेने को कहा गया जिसमें उन्हें तनाव कम करने की तकनीक सिखाने के साथ ही ध्यान भी करवाया गया अध्ययन के अन्त में जब दुबारा खून के नमूने लिये गए तो इन समूहों के बीच बड़ा अन्तर देखने को मिला लिंडा लिखती हैं, "हमारे रक्त में टेलोमीर प्रोटीन होता है जिसकी लम्बाई पर कोशिका की उम्र निर्भर करती है इसकी लम्बाई का छोटा होना कोशिका की सेहत के लिये ठीक नहीं होता है ध्यान का अभ्यास करने वाले समूह में टेलोमीर की लम्बाई ध्यान न करने वाले समूहों की तुलना में अधिक थी।" तो क्या मान लेना चाहिये कि सेहत, शान्ति और प्रसन्नता देने वाला ध्यान हमारे लिये अत्यन्त उपयोगी और लाभकारी है?

ध्यान का प्रभाव
लगभग सभी धर्म, आध्यात्मिक मान्यताओं व विज्ञान के साथ ही ध्यान की विभिन्न पद्धतियों तथा विधाओं का उपयोग करने वाले लोगों का भी यही कहना है कि ध्यान काम करता है और अद्भुत ढंग से करता है।

वेब पत्रिका अभिव्यक्ति-अनुभूति की सम्पादक व सहज योग का अभ्यास करने वाली पूर्णिमा वर्मन कहती हैं कि ध्यान ने पहले दिन से उन पर असर डाला उन्हें अनुभूति हुई कि उनमें बहुत सारा धैर्य और समझ विकसित हुई जिससे उनके शारीरिक, मानसिक और सामाजिक सम्बन्धों की सेहत में सुधार आया।” इसने मुझे कहीं अधिक प्रसन्नता दी, मुझे अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिये ऊर्जा दी।" पूर्णिमा को उनके गुरु ने ध्यान के सन्दर्भ में मूल मंत्र दिया-ज्ञान अपने भीतर है और हमें उसका पता लगाना है गहन ध्यान इस कार्य में हमारी सहायता करता है ताकि हम सही पात्र, उचित समय, उपयुक्त परिस्थिति से मिलें, ताकि हम आत्म ब्रह्माण्ड के प्रति अधिक जागरुक हो सकें।

मुम्बई में रहने वाली एनर्जी हीलर अनुपमा एस. जोशी कहती हैं- "वैकल्पिक चिकित्सा पद्धतियों की अभ्यासकर्ता व
आरोग्यसाधक के रूप में कार्य करते हुए, मैंने हमेशा अपने क्लाइंट्स को ध्यान को अपनाने की सलाह दी है ध्यान के कारण ही मैं अपने हाइपोथाइरॉइडिज़्म, अवसाद और तनाव सम्बन्धी रोगों से मुक्त हो सकी मीटिंग या महत्वपूर्ण निर्णय लेने से पहले ध्यान करना हमें कहीं अधिक जागरुक और सन्तुलित कार्य करने में सहयोग करता है ध्यान के कारण मैंने अपने सहजबोध में भी सुधार होते देखा है

कौनसी शैली उपयुक्त?

ध्यान का इतना प्रभावशाली प्रभाव होने के बाद भी हमने किसी न किसी या अपने आपको भी यह कहते सुना होगा, "मैंने
ध्यान का अभ्यास किया लेकिन ध्यान लगा नहीं।" यहाँ तक कि आज ध्यान में मग्न रहने वाले टोरोंट के भक्तानन्द योगी पहले एक पल के लिये भी ध्यान नहीं लगा पाते थे उन्हीं के शब्द हैं, "किसी भी दूसरे इंसान की तरह शुरुआत में मुझे ध्यान लगाने में परेशानी हुई।" इस स्थिति के बारे में सिद्धार्थ कहते हैं, "शुरुआत में धीमी से धीमी आवाज़ या हल्की सी हलचल भी मेरे ध्यान को भंग कर देती थी, और धैर्य रखना भी कठिन होता था।"

इरा सिंह भी इस बात पर सहमति जताती हैं, "ध्यान का रास्ता आसान नहीं है बहुत दिक्कते आती हैं मन भटकता है, बार-बार विचारों का दंगल होता है, अन्दर-बाहर विरोध होते हैं, आलस्य और संकल्प शक्ति की कमी भी प्रबल होती है।" कतर्निया इको वाइल्डलाइफ के सीईओ, यायावर और साधक हिमांशु प्रदीप कालिया को भी पहले पहल ऐसी ही परेशानियों का सामना करना पड़ा था "मेरे लिये ध्यान केन्द्रित करना कठिन था विचारों को नियन्त्रित करने का प्रयास भी किया, लेकिन विफल रहा फिर मैंने महसूस किया कि मुझे सभी विचारों को एक तरफ कर देना चाहिये और अपनी साँस, इस अनुभव, इस पल पर ध्यान देना चाहिये इससे ध्यान केन्द्रित करने और एकाग्रचित्त बने रहने में सहायता मिली विचार हमारे मन में बिन बुलाये चले जाते हैं और हलचल मचाते हैं उनसे उलझने की कोशिश करने से अच्छा है कि वे जैसे हैं उन्हें वैसा ही रहने दें अगर आप खुद को मन में चल रही उथल-पुथल के बारे में सोचते हुये पाएँ, तो अपनी साँस पर ध्यान दें, उसके प्रति जागरुक बनें- ज़ल्दी ही आप विचारों की भूलभुलैया से होते हुये ध्यान की गहराई में पहुँच जायेंगे।"

आखिर ऐसा क्यों होता है? क्यों कुछ लोग ध्यान को आसानी से साध लेते हैं और उसका लाभ उठाते हैं और कुछ इससे जूझते ही रह जाते हैं? इस सवाल का जवाब बहुत आसान है! वीएके मॉडल को लोकप्रिय बनाने वाले न्यूज़ीलैण्ड के शिक्षक व लेखक नील फ्लेमिंग यही कहते हैं उनका कहना है कि हम सभी का कुछ भी सीखने का अपना तरीका होता है अक्सर हम बहुत सारे तरीकों से सीखते हैं, लेकिन हम सभी में सीखने की कोई एक शैली प्रधान होती है

मुख्य रूप से सीखने वालों को तीन श्रेणियों में वर्गीकृत किया जा सकता है- दृश्य (विजुअल लर्नर), श्रवण (ऑडिटॉरी लर्नर) और क्रियात्मक (किनेस्थेटिक लर्नर) अगर आप देखकर सीखने वाले हैं, तो आपको उस ध्यान में आनन्द आयेगा जिसमें दृश्य या रचनात्मक मानसिक चित्रण हो विजुअल लर्नर को मण्डल ध्यान या पेन्टिंग से शुरू होने वाले ध्यान में आनन्द आता है जिनमें उनकी कल्पनाशीलता उन्हें ध्यान की अवस्था में ले जाती है

ऑडिटरी लर्नर को ध्वनि, संगीत या निर्देश युक्त ध्यान में आनन्द आता है मंत्र, संगीत, घंटी या मेडिटेशन बाउल का स्पन्दन उन्हें ध्यान केन्द्रित करने में सहयोग करता है क्रियात्मक या किनेस्थेटिक लर्नर जिसे टैक्टिकल लर्नर भी कहा जाता है, को अगर एक जगह बैठकर मोमबत्ती की लौ या समुद्र की लहरों पर ध्यान केन्द्रित करना हो तो वे इस अनुभव के द्वारा सहज ही ध्यान में लीन हो जाते हैं ऐसे लोगों को नृत्य या सैर के साथ किया जाने वाला ध्यान भी अच्छा लगता है अगर आपने ध्यान का अभ्यास किया है और आपको आनन्द का अनुभव नहीं हुआ तो सम्भव है कि आपने अपने लिये उपयुक्त शैली को नहीं चुना इसी बात को इरा कुछ इस तरह कहती हैं, "जैसे ही हमारे जीवन में आनन्द और शान्ति का विस्तार हो तो समझना चाहिये कि ध्यान हो रहा है।"


कैसे करें ध्यान?
आनन्द को ही ध्यान की एकमात्र कसौटी मानने वाले आध्यात्मिक गुरुओं व मार्गदर्शकों के अनुसार ध्यान जटिल तकनीकी की माँग नहीं करता न ही यह उच्च बौद्धिक क्षमता की माँग करता है चित्रा की राय में कोई भी ध्यान कर सकता है "यह सभी के लिये उपयुक्त है-निराशाग्रस्त व्यक्ति को छोड़कर हमें मात्र इसका अभ्यास करना चाहिये।" प्रेरक वक्ता, लेखक, हीलर व हैप्पिनेस कोच नित्य शान्ति ने अपने फेसबुक पोस्ट में कुछ ऐसा लिखा है- "किसी ने मुझे आज यह पूछने के लिये ईमेल किया कि ध्यान कैसे किया जाए मैंने उससे कहा कि हर दिन एक मिनट के ध्यान के साथ शुरुआत करें ‘स्वयं के साथ होने’ और ‘कुछ न करने’ का आनन्द लें इसे स्वाभाविक रूप से विस्तार पाने दें यही सर्वश्रेष्ठ तरीका है

दिल्ली के द हीलिंग आइलैण्ड की हिप्नोथेरैपिस्ट व साइकोलॉजिस्ट अमृषा अहुजा ध्यान को सरल और आदत बनाने के लिये कुछ ऐसा ही सुझाव देती हैं "मैं कहूँगी कि ध्यान को सीखने की शुरुआत एक मिनट के मौन ध्यान से करें जिसमें आप अपने साँस को भीतर और बाहर आते-जाते देखें यह आपके मन को ध्यान का अभ्यस्त बनाता है धीरे-धीरे, इस अभ्यास की अवधि बढ़ायें और ध्यान के विभिन्न रूपों को जोड़ें अनुशासित अभ्यास विकसित करने के लिये ध्यान की गति धीमी रखें और अवधि कम प्रकृति के सानिध्य में अधिक से अधिक रहें, उसे निहारें और अपने खाने, चलने और बात करने की रफ़्तार कम करें ये छोटे-छोटे बदलाव बहुत काम आ सकते हैं।"

लेकिन अपने अनुभव के आधार पर ग्राफिक डिजाइनर और व्हाइट कैनवस में ब्राण्ड असोसिएट अनूप थॉमस बिल्कुल अलग बात कहते हैं, "ध्यान की कोई तकनीक नहीं होती है ध्यान के सन्दर्भ में कोई भी तकनीक केवल सुझाव होती हैं न कि श्योरशॉट फॉर्मूला ध्यान हमारे सभी अनुभवों की पृष्ठभूमि या आधार होता है यह एक अनुभूति है यही सबसे सरल और प्रत्यक्ष मार्ग है।"

लाइफ पॉज़िटिव अंग्रेजी की सहयोगी सम्पादक, मेरी मित्र और साधक शिवी वर्मा का अनुभव अनूप की दी गयी परिभाषा को विस्तार देता हैं ध्यान में उनकी रुचि अपने मित्र के कारण जागी जिसने उनसे कहा था कि वह ईश्वर से बात कर सकता है इस विचार से प्रभावित होकर शिवी ने भी इस रास्ते को आजमाने का फैसला किया बिना किसी प्रशिक्षण और दीक्षा के वह एक दिन बिस्तर पर बैठीं, अपनी आँखें बन्द कीं और कल्पना की कि ईश्वर उसने बात करने के लिये आया है उसके बाद के अनुभव आश्चर्यजनक थे "चूँकि मेरी लालसा तीव्र और वास्तविक थी मुझे अपने आज्ञा चक्र पर असाधारण ऊर्जा केन्द्रित होती लगी मुझे अपने भीतर हल्कापन अनुभव हुआ और लगा कि मेरा शरीर सतह से ऊपर उठा हालाँकि जब मैंने आँखें खोली तो पाया कि यह मात्र अनुभूति थी उसके बाद मेरा ध्यान कभी विफल नहीं हुआ।" वह ध्यान के सम्बन्ध में ही अपने पूर्व अनुभव को बताती हैं, "इससे पहले एक बार मैंने पड़ोस में रहने वाले एक बुजुर्ग के कहने पर ध्यान लगाने का प्रयास किया था उन्होंने ध्यान की पद्धति के प्रत्येक चरण पर मेरा मार्गदर्शन किया जिसका अन्तिम चरण इस प्रश्न पर समाप्त हुआ कि मैं कौन हूँ? मुझे अनोखे जवाब मिले और मेरी आँखों से आँसू बहने लगे लेकिन मेरी अपेक्षा बढ़ी और मैंने चाहा कि यह आवाज़ मेरे सपनों को पूरा करे जब ऐसा नहीं हुआ तो मुझे ध्यान पर संदेह हुआ और मैंने ध्यान करना छोड़ दिया लेकिन अपने उस मित्र से मिलकर एक बार फिर मेरी रुचि जागी।"

बाद में उन्होंने नाड़ी शुद्धि, अल्फा माइण्ड मेडिटेशन, स्काई मेडिटेशन, सम्बोध ध्यान सीखा...लेकिन अब भी उनका पसंदीदा और सबसे प्रभावी तरीका उनका प्रत्यक्ष मार्ग है "मैं तकनीकी पर कम और ईश्वर से संवाद में अधिक विश्वास करती हूँ मैं सुबह जल्दी उठती हूँ और नहा-धोकर बिस्तर पर सुखासन की अवस्था में बैठ जाती हूँ मैं एक मिनट तक अनुलोम-विलोम करती हूँ ताकि नाड़ी का निर्मलन हो जाये

उसके बाद मैं अन्तर्मन से ईश्वर से मुझसे बात करने के लिये अपील करती हूँ आवश्यक रूप से, मेरा इन्द्रिय बोध अक्रिय हो जाता है, मैं एक गहन सुख का बोध करती हूँ और सुगति का अनुभव करती हूँ मैं मन ही मन प्रश्न पूछती हूँ और उत्तर के लिये हृदय पर ध्यान केन्द्रित करती हूँ और जो उत्तर मिलता है, वह हमेशा सत्य, व्यावहारिक, तार्किक और सुगम होता है इस संवाद में कब और कितना समय बीत जाता है पता ही नहीं चलता लेकिन जब मैं आँखे खोलती हूँ तो तरोताजगी, स्फूर्ति और स्पष्टता का अनुभव करती हूँ।"

ध्यान का एक प्रमुख गुण यह है कि यह स्वयं विकसित की जाने वाली पद्धति है इरा कहती है, "ध्यान की यात्रा बड़ी रोचक होती है यह जीवन को भव्य व सरल बना देती है मैंने अपनी यात्रा को सहज बनाने के लिये एक बात का हमेशा ध्यान रखा और वह है, मेरे दिल की गवाही हमारी चेतना इस बात को तुरन्त ग्रहण कर लेती है कि हमारे लिये क्या ज़रूरी है और क्या गैर-ज़रूरी सहजता ही ध्यान की कसौटी है औपचारिकता से मात्र असहजता का अनुभव होता है इसीलिये मैंने ध्यान के लिये उस तकनीक को खोजा जिसमें औपचारिकताओं को न निभाना पड़े मेरे लिये लिखना सहज है मुझे इसी में आनन्द आता है और यह मुझे ध्यान की अवस्था में ले जाता है।" वह सुझाव भी देती हैं कि यदि हम संवेदनशील व सजग रहें तो ध्यान को बढ़ाने के लिये नित नये उपाय मिलते हैं

सिद्धार्थ को भी मन के भटकाव को रोकने के उपाय मिले उनकी तकनीकियाँ वास्तव में विभिन्न विधियों का मिश्रण हैं उनमें से एक तकनीक में सूर्य को बन्द आँखों से देखना और जब वह ओम का ध्यान कर रहे हों तो सूर्य द्वारा उन्हें ऊर्जा देने की कल्पना करना शामिल है सरल से सरल तकनीक भी ध्यान की तकनीक बन सकती है साँस लेना, साँसों पर ध्यान देना, मन में धीरे-धीरे दस तक गिनना कुछ भी और सबकुछ ध्यान की श्रेणी में आता है अल्बर्टा के ग्रैण्ड प्रेरी में रहने वाले आध्यात्मिक व्याख्याता संजीव कुमार ने अपने और अपने क्लाइण्ट्स के लिये एक नया ध्यान अभ्यास विकसित किया है जो बहुत सरल है "आप पार्क में बैठे हों या कहीं और, अपनी चिन्ताओं, अपने अतीत, अपने डर, अपने गुस्से, ऐसे ही सारी बातों को एक ओर करते हुये, अपनी साँस पर ध्यान दें अतीत और भविष्य से अपना सम्पर्क तोड़ लें हमारे मन में हर दिन ६५००० विचार आते हैं इसीलिये मन हमेशा बोलता रहता है, घूमता रहता है, व्यस्त रहता है, आप उसे उसका काम करने दें, उन विचारों का आकलन न करें न ही उन पर अच्छे या बुरे का लेबल चिपकायें, बस अपनी नाक से होकर आती-जाती साँस पर केन्द्रित रहें धीरे-धीरे आपको महसूस होने लगेगा कि मन की आवाज़ मन्द पड़ गयी क्योंकि उसकी ९९.९९ प्रतिशत बातें बेकार हैं जो आपको अतीत या भविष्य की चिन्ता करने को बाध्य करती हैं और आपकी शान्ति भंग करती हैं इसीलिये चाहे कितनी ही बार आपका ध्यान भटके अपना अभ्यास जारी रखें।"

इतने सरल अभ्यासों के बाद भी अगर ध्यान के विफल होने या ध्यान में विफल होने की स्थिति उत्पन्न हो तो इसकी दोषी इससे जुड़ी अनेक मिथ्या धारणायें और अपेक्षायें हैं इसी विषय पर अनुपमा प्रकाश डालती हैं, "उपचार विधाओं में जहाँ हम तकनीकों का उपयोग विशिष्ट समस्या के निदान के लिये करते हैं, वहीं ध्यान हमारी विभन्न समस्याओं को किसी विशिष्ट एजेंडा के बिना सुलझाता है इसे समझने के साथ ही मैं ज्यादातर लोगों के बीच फैली ग़लतफहमी को समझ सकी...कि ध्यान के लिये एजेंडा होना चाहिये कारण या एजेण्डा पूरे उद्देश्य को झूठा बना देता है दूसरा मुद्दा यह है कि ज़्यादातर लोग कहते हैं कि मन को रिक्त नहीं कर पाते उन्हें लगता है कि हमारे मन में उठने वाले विचार ध्यान को बाधित करते हैं जो कि सही नहीं है असल में हम ध्यान के दौरान विचारों में लिप्त होने की जगह उनको केवल देखते हैं, उनका अवलोकन करते हैं अंततः विचार धीमे पड़ जाते हैं और स्थिरता की झलक मिलने लगती है जो जापानी भाषा में ‘सतोरी’ के नाम से जानी जाती है निरन्तर अभ्यास के साथ स्थिरता के इन पलों की आवृत्ति व अवधि बढ़ती जाती है किसी को भी अपने ध्यान और अपने अनुभवों की तुलना दूसरे से नहीं करनी चाहिये, न ही अच्छे अनुभवों की इच्छा और बुरे अनुभवों के प्रति अनिच्छा होनी चाहिये हमेशा याद रखें कि आप ध्यान का अभ्यास बस करने के लिये कर रहे हैं ध्यान करने के लिये कोई कोशिश नहीं करनी, न ही उससे कुछ हासिल करने के लिये।"

मैं अनुपमा की बात से सहमत हूँ और मैं अपने व्यक्तिगत अनुभव के आधार पर यह कहना चाहूँगी- ध्यान कठिन नहीं है! अगर आप एक जगह बैठकर ध्यान नहीं कर पाते, अपने मन में उठने वाली विचारों की लहर को नहीं रोक पाते, अगर आप विशेष प्रकार की अनुभूति नहीं करते? तो भी आप ध्यान कर सकते हैं दरअसल हम सभी जाने-अनजाने ध्यान का अभ्यास करते हैं अपना ही उदाहरण देती हूँ...मेहनत करने के बाद भी अपने काम की गिनती न करवा पाने, अपनी बात या अपना पक्ष ठीक से न रख पाने, इन दिनों अपने परिवार के ज़्यादातर लोगों को बीमारियों से जूझते हुए देखने, दिन-रात घर और बाहर दौड़ भाग करते रहने, वित्त वर्ष के अन्त में अपने बैंक खाते में सेविंग के नाम पर एक रुपये भी जमा न होने के बावजूद अगर मैं अपने कमरे में रखे छोटे से फिश एक्वेरियम में तैरती मछलियों को अठखेलियाँ करता देख अपनी सारी परेशानियाँ भूलकर उस पल में खो जाती हूँ तो यह भी ध्यान में मग्न होना ही तो है- एकमात्र ऐसी ध्यान विधा जो सभी के लिये सुविधाजनक है!

 

  २० जुलाई २०१५

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