मुखपृष्ठ

पुरालेख-तिथि-अनुसार -पुरालेख-विषयानुसार -हिंदी-लिंक -हमारे-लेखक -लेखकों से


दृष्टिकोण

 

आइने के पार जाने का समय
- अंतरा करवड़े
 


एक सहेजा हुआ सपना, यथार्थ में साकार होकर सामने उतर आए, तो क्या किया जाए उसका? खूब सारे संघर्षों के बाद मिली सफलता के सामने आने पर कैसी प्रतिक्रिया होनी चाहिए हमारी? कुछ वैसा ही तो लगता है, जब नया कैलेन्डर, नवीन तारीख, एक नवीन प्रभात दस्तक देते हैं जीवन में!

कहने को एक बड़ा सा बाज़ार पहले ही इसे आपके लिए परिभाषित करने के लिए तैयार होता है। आप कहां, किसके साथ, क्या और कितना खर्च करेंगे, इसके लिए सारे संभावित विकल्प सामने रखकर आपके मन और संवेदनाओं को लगभग बधिर कर देनेवाली यह बाज़ार नीति, एक वर्ग विशेष को भली भी लगती है। खैर यह अपनी - अपनी प्राथमिकता है।

बच गए यदि इस सुनहरे मोहपाश से, तो यह समय, जीवन के प्रवाह को अनुभूत करने का है। एक प्रकार का शून्यकाल या मध्यांतर का उपहार, इस बेला में हम सभी को मिलता है। कोहरे में लिपटी एक ताजी सुबह को अनुभूत करने, अपने सीमित जीवन काल के एक बेहतर पड़ाव को आकार देने का जीवंत अवसर दस्तक दे रहा होता है।

पिछले में ताकझांक और आगे की खूब सारी तैयारी की उहापोह के बीच, जपमाला के मेरुमणि सा यह समय, हम सभी में कुछ ना कुछ पूर्ण करता है, कहीं न कहीं कुछ उर्वर तत्व बरसाता है, किसी अबूझ को पाने के लिए मिट्टी को तैयार करता है। हमें सीखना है, इस समय के साथ न्याय करना, अपनी अनुभूतियों के साथ स्वयं संवाद करना।

मिट्टी के दीपक के शीतल ताप से लगाकर, नववर्ष के झिलमिलाते सपनों की थाप तक, यह लेन देन से परे का गणित, बस ठहर कर अपने आप से बतियाने पर ही, जीवन के समीकरण को संतुलित करता है। अब तक जो और जैसा मिला है, उसकी सीधे समीक्षा ही करते रहने के स्थान पर, पहले उसका होना तो स्वीकार करें!

एक वैचारिक कोना होता है, जिसे गंतव्य तक पहुंचने के स्थान पर यात्रा में रस होता है, पड़ाव में सुख मिलता है। आपकी थाली में चिरप्रतीक्षित पकवान के पधारने पर, सीधे ही स्वादेन्द्रिय को तृप्त करने के स्थान पर, एक भरी थाली के अस्तित्व का सुख अनुभूत करना भी एक प्रक्रिया होती है। ये सारे बारीक रेशे ही, हमें अपने आप से जोड़े रखते हैं और जीवंत रखते हैं हमारे स्वविवेक को, जिसके चलते कोई और, हमारे उत्सव की परिभाषा नही लिख सकता।

नववर्ष के संकल्पों में एक धुंआती सुबह रखिए अपने लिए, बस जीने के लिए। सारे इतिहास, भूगोल और गणित परे रखकर हक से कुछ देर सुस्ताना और बहुत कुछ अपरिभाषित सा क्यों ना रखें हम! कुछ सिद्ध नही करना है, कहीं कोई बाट नही जोह रहा हमारी और रुक भी गए कुछ क्षण को, तो कहीं कोई प्रलय नही आ रहा है। कई बार लगता है कि इस समय में सुभाषित और सूक्तियों को भी समय के साथ चलने की आवश्यकता है। थोड़ा रुकना सीखने के मोड़ पर हैं हम अभी।

प्रचलित कल्पनाओं से ऊपर उठकर, अतिवाद से परे जाकर यह समय अब आईने के भी पार जाने का है। हम जैसे हैं, वैसे तो आईने को भी स्वीकार नही। सांचे में ढ़ले अति आदर्शवादी होने का ढोंग परोसते हुए, अब तो मुखमण्डल की झुर्रियां भी टीसने लगी हैं। दौड़ते भागते और अचानक हमला करते वैचारिक डकैतों से पार निकलकर, अपने होने की धूप को इस नववर्ष के संधिकाल में महसूस करना, यह अपने साथ किया गया एक कल्याणकारी कर्म होगा।

एक अलाव के समक्ष पसरा मौन, एक कोहरे के समक्ष विस्मित से क्षण, एक ओंस में भीगी सुबह के समक्ष कृतार्थ जीवन और एक आईने से परे स्वयं को देख पाने के चमत्कार से अभिभूत हम! जैसे प्रकृति हमें खुश होकर फूल देती है, संतुष्ट होकर फल देती है, हम भी तो उसके साथ एकाकार होकर उसके अस्तित्व को पूर्ण करने के अपने कर्तव्य पूर्ण करें!

किसी के विचारों में मौजूद हमारा व्यक्तित्व, किसी परिस्थिति विशेष में उभरकर आए हुए हमारे गुण दोष, किसी समयावधि में रहने वाली प्राथमिकताएं या रंग, स्वाद को लेकर हमारी पसंद..... बस ये ही तो हम नही। एकांत में, "देखे जा सकते हैं" की अनुभूति से परे, मन भरकर कल्पनाओं में रमने को स्वतंत्र और ठहरकर अपने जीवन पर्व को महसूस कर पाने का अवसर, हमें ही अपने लिए बनाना होता है।

नवीन वर्ष की बेला में कोई चमत्कार अपने आप नही होता, हमारी सोच उर्वर होती है, सो नवांकुर भले लगते हैं। प्रकृति का चक्र यह नही जानता कि कुछ बीत चला है या कुछ आने को उद्यत है! वह सृजनरत है, निरंतर अपनी आत्म हरितीमा के प्रति समर्पित। प्रतीकात्मक संदेशों को समझ पाने के लिए हमें भी तो अपने मन की दूब को छूना होगा, मिट्टी को सहलाना होगा, शिशु सम विचारों को अपनाकर धूप जैसे चमत्कार पर भी कौतूहल का भाव जीवंत रखना होगा।

क्या हम अपने होने पर आश्चर्य नही कर सकते? एक चमत्कार, जिसने एक समय चक्र पूरा किया है वैविध्य के साथ! किसी वृक्ष को अपने मित्र या सहचर के समान देख पाना, उसके साहचर्य से भी एक आश्वस्ति पाना, वास्तव में मानव होने की प्रक्रिया में अपने आप को वास्तविक रुप से परिपक्व करना है। जैसे एक बीज से अंकुर का फूटना हमें आज भी आनंदित करता है, तब हमारा अपना अस्तित्व भी तो नित नव लय के साथ ऊर्जावान है, जीवंत है।

नववर्ष उत्सव है इस ऊर्जा का, अपने आप को जीवंत कर लेने का, होने का और जीने का। अपने संकल्प तो आनेवाले समय में पूरे कर ही लेंगे आप लेकिन एक बार आईने से पार जाकर अपनी पहचान से परिचित होने के लिए इस संधिकाल में से थोड़ा समय अवश्य चुरा लें!
नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ!

१ जनवरी २०२४

1

1
मुखपृष्ठ पुरालेख तिथि अनुसार । पुरालेख विषयानुसार । अपनी प्रतिक्रिया  लिखें / पढ़े
1
1

© सर्वाधिका सुरक्षित
"अभिव्यक्ति" व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इस में प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक
सोमवार को परिवर्धित होती है।