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दृष्टिकोण

 

ये लाल रंग
- डॉ. निशांत कुमार
 


जी नहीं - यह किशोर का नगमा नहीं है, न ही मैं भूले बिसरे गीतों के बारे में बात कर रहा हूँ। यों तो सभी का कोई न कोई रंग पसंदीदा होता है। किसी का मेरा वाला 'पिंक' तो किसी का नीला आसमानी। लोगों ने तो रंगों के ऊपर शोध लिख डाले हैं। रंगों को आपका व्यक्तित्व, पहचान, स्वभाव जानने के लिये इस्तेमाल किया जाता है तो कहीं यह दावा किया जाता है कि फलां रंग के इस्तेमाल से आप अपना भविष्य तक बदल सकते हैं। देखा जाए तो रंगों का यह प्रभाव जगह, जाति और समयानुसार परिवर्तित होता रहता है। ठीक वैसे ही जैसे सफेद रंग एक समुदाय में खुशी का प्रतीक है, वहीं दूसरी तरफ उसे मातम में पहना जाता है।

किन्तु रंगों में अगर ताकत का अनुमान लगाया जाये तो निश्चय ही लाल रंग सबसे ताकतवर है। क्यों भला? क्यों नहीं। लाल रंग खतरे का प्रतीक माना गया है। वैज्ञानिक कारणों पर जाएँ तो लाल रंग सभी रंगों में सबसे दूर से दिखाई देता है। विश्व में आप कहीं पर हों, लाल रंग रुकने का प्रतीक है। यदि लाल रंग दिख जाये, सब थम जाओ। आगे खतरा है। इसका मेरी समझ में दो ही अपवाद हैं। या तो स्पेन में लाल पोषाक में लाल कपड़ा लहराता मेटाडोर - जिसे देखकर फुंकार मारता बैल उसकी तरफ दौड़ता है, और दूसरा- वह मेरी आपबीती से जुड़ा है।

सर्दियों का मौसम था। दिल्ली में हलकी धुंध पड़नी शुरू हो चुकी थी। आप मौसम के मिज़ाज का अंदाज़ा लगा सकते हैं। और ऐसे मौसम में सुबह रजाई छोड़ना उतना ही मुश्किल है जितना पाकिस्तान से यह मनवाना कि आतंकी उनकी शह से सीमा पार करते हैं। खैर नौकरी तो नौकरी ही है। आँखें मलते, कँपकँपाते हुए जैसे तैसे खुद को 'ड्राइक्लीन' कर रोज़ का का सफर शुरू किया- गुडगाँव से दिल्ली गेट। जो लोग रोज़ाना इस रास्ते का प्रयोग करते हैं उनके लिये तो नहीं, बाकी सबकी जानकारी के लिये बता दूँ कि मानेकशॉ सेंटर तक तो यह सफर है, और उसके आगे अंग्रेजी वाला सफर यानि कष्ट ही कष्ट । ११ मूर्ति के बाद अकबर रोड भी सफर ही है।

यह उन दिनों कि बात है जब दिल्ली कैंट पर फ्लाई ओवर नहीं हुआ करता था। उसे बनाने के लिये भी तो केंद्रीय परिवहन मंत्री जी कि गाड़ी को ४० मिनट तक जाम में फँस जाने के कारण विमान छोड़ देना पड़ा था। आम जनता सालों से गुहार लगा रही थी, लेकिन आम जनता का समय कीमती थोड़े ही है।
खैर फ्लाई ओवर बनने के बाद से मानेकशॉ ११ मूर्ति भी अब मक्खन हो गया है लेकिन जो इस सफर को कष्ट वाले सफर में तब्दील करता है, वो है लाल रंग। नहीं मैं यातायात नियंत्रण बत्ती (ट्रैफिक लाइट) कि बात नहीं कर रहा हूँ। मैं बात कर रहा हूँ गाड़ियों के माथे पे सुहागन कि बिंदी सी टिमटिमाती लाल बत्ती। और यह है दूसरा अपवाद।

जो लाल रंग सबको रोकता है, गाड़ी के सर पर बैठ कर दनदनाते हुए जाने कि इजाज़त दे देता है। अग्निशमन, पुलिस और एम्बुलेंस पर तो इसका इस्तेमाल समझ आता है, किन्तु राजनीतिज्ञ? चाहे फिर मीलों लम्बा जाम लग जाए या आपात कालीन सेवाएँ फँस जाएँ उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता। पुलिस तो फिर भी डंडे के जोर पर और कानून को ताक पर रख कर निकल जाती है, आम जनता का क्या? राजनीतिज्ञों का तो खैर कानून से कुछ लेना देना होता ही नहीं- कानून बन गया, जनता पालन करे। उस दिन ११ मूर्ति पर मुझे ज़्यादा यातायात नहीं मिला। शुक्र था कि दनदनाती हुई लाल बत्तियों वाली कोई गाड़ी भी नहीं टकराई। सर्दियों में अकबर रोड के दोनों तरफ लगे पेड़ों की पत्तियों से छनछनाती धूप, साफ़ यातायात रहित सड़क एकबारगी तो यही एहसास दिलाती हैं कि आप कहीं विदेश में हो। इसी फंतासी में मंत्रमुग्ध मैं अपने गंतव्य कि तरफ बढ़ रहा था। अचानक एक लाल बत्ती वाली एम्बेसडर मेरी दायीं तरफ से निकली।

मेरी तन्द्रा टूटी और सही समय का आभास हो गया। सुबह अलसाने कि वजह से मैं करीब १० मिनट कि देर से चल रहा था। वैसे तो भारतीय मानक समय के अनुसार मैं समय से पहले ही था, किन्तु इस मामले मैं अंग्रेज़ों का अनुयायी रहा हूँ और जीएमटी से ५:३० घंटे आगे ही चलता हूँ। इससे एक आश्वासन यह भी रहता है कि कम से कम मैं वह एक भारतीय हूँ जो अंग्रेज़ों से सदैव आगे रहता है।
जहाँ लाल बत्ती वाली गाड़ी ने मुझे हमेशा रोका था, आज मेरे पास मौका था इसका लाभ उठाने का। मुझे यह तो ज्ञात था कि यह गाड़ी अपना रास्ता आप बनाएगी, सो आव देखा न ताव, लगा दी अपनी गाड़ी उस के पीछे। हालाँकि एम्बेसडर के पीछे पुलिसवालों ने मुझे कुछ इशारे तो किये, किन्तु उचित दूरी बना मैं उस गाड़ी के पीछे लगा रहा। 'विनाशकाले विपरीत बुद्धि' और सावधानी हटी दुर्घटना घटी। जहाँ लाल रंग ने मुझे बिना रोकटोक रास्ता खोलकर दिया था, वहीं उसी धुन में उस अति विशिष्ट गाड़ी के साथ मैंने भी यातायात की लाल बत्ती पार कर दी।
 
क्योंकि दोनों गाड़ियों में फासला कम था, चौराहे पर खड़े हवलदारों ने मेरी गाड़ी को भी उसी कारवाँ का हिस्सा समझ जाने दिया। मैं भी आम से ख़ास हो गया था। कानून मेरे लिये भी लागू नहीं हुआ। हालाँकि सड़क उस वक्त बिलकुल खाली थी और बत्ती को लाल से हरा होने में केवल १५ सेकंड ही बाकी थे, मैं भी इस अहमियत का अनुभव लेना चाहता था। किन्तु मेरा यह अनुभव केवल १०० मीटर तक ही बना रह सका। आगे खड़े हवलदार ने मेरे आगे वाली गाड़ियों को जाने दिया, पर मुझे रोक लिया।

एक उत्कंठा मेरे दिल में बनी हुई थी। आखिर ऐसा कौन सा अति विशिष्ट व्यक्ति है जिसके लिये सुबह के ८ बजे १५ सेकंड का समय भी इतना कीमती है। राष्ट्रपति और प्रधान मंत्री तो हो नहीं सकते। उनकी गाड़ियों का काफिला ही कम से कम १०-१५ गाड़ियों का होता है। जैसे ही वह गाड़ी आगे वाले गेट में घुसी, सारा मामला साफ हो गया। नंबर प्लेट पर लाल अक्षरों से लिखा हुआ था- मुख्य न्यायाधीश, सर्वोच्च न्यायालय, भारत सरकार।

ई २०२२

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