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दृष्टिकोण

सन २००८ की आहट
विशाखा शर्मा

नया साल अपने कदम बढ़ा चुका है, और यह वक्त है भविष्य की आहट सुनने का। इतना हम जानते हैं कि साल २००८ कई मायनों में हम सब के लिए अहम साबित होगा, लेकिन असल में कौन से बदलाव, कौन से रुझान और हलचलें हमारे ज़ीवन को घेरेंगी, इसका अनुमान विशेषज्ञ ही लगा सकते हैं। इसीलिए इस बार दृष्टिकोण में हमने सामाजिक जीवन के एक गहरे जानकार और कई जाने-माने लोगों से कहा कि वे अपने अनुभव के जादुई शीशे में झाँकें और बताएँ वहाँ क्या दिखता है। हमने इस विषय पर अलग-अलग क्षेत्र से जुड़े नौजवानों से भी बातचीत की। हमें जो रोचक जानकारी मिली, वह यहाँ पेश है-

टेक्नॉलजी के क्षेत्र में मिलेगी सफलता

युवाओं के बीच बेहतर जीवन के लिए प्रतिस्पर्धा का असर है कि आज हमारे इंजीनियर पूरी दुनिया में नाम कमा रहे हैं। योग्यता के बल पर भारतीय इंजीनियरों की धाक विदेशी धरती पर आने वाले साल में और बढ़ेगी। तकनीक ने भारत को लगातार समृद्ध किया है और २००८ में भी यह सिलसिला जारी रहेगा। अगले साल सॉफ्टवेयर आउटसोर्सिंग और कॉलसेंटरों में जॉब के अवसर बढ़ेंगे। तकनीकी क्षेत्र में हो रही तरक्की का लाभ हमें मोबाइल, इंटरनेट और घरेलू सामानों के मूल्यों में कमी के रूप में दिखेगा। साथ ही एड्यूसैट और इनसेट सीरीज़ के उपग्रहों की सफलता शिक्षा, कृषि, भू विज्ञान और जैव तकनीक के क्षेत्र के विकास में योगदान देगी। कुछ साल पहले तक भारतीय उत्पादों को अमेरिका और यूरोपीय बाज़ारों में स्वीकार नहीं किया जाता था लेकिन तकनीक के क्षेत्र में हमारी सफलता ने अब उन बाज़ाारों में भी अपना परचम लहरा दिया है जिसका लाभ आने वाले समय में भारतीय इकॉनामी को मिलेगा।
हितेश नेगी (बी.टेक), आई.आई.टी, दिल्ली

नए साल में होंगी कड़ी चुनौतियाँ

हमारे देश में, जहाँ सामाजिक और आर्थिक विषमता कई स्तरों पर और कई रूपों में उभरकर आ रही हो, नए साल के बहुत अच्छा रहने की बात करना एक व्यंग्य ही कहा जाएगा। निसंदेह भारत विकास कर रहा है, यहाँ मध्यवर्ग की संख्या बढ़ी है गरीबी कम हुई है। लेकिन हर नया विकास भविष्य में कई समस्याओं के साथ ही आएगा। गुड़गांव के एक स्कूल में छात्र द्वारा साथी को गोली मारने की घटना जाहिर करती है कि शहरी बच्चे अपनी भावनाओं को नियंत्रित नहीं कर पा रहे हैं। दूसरी ओर टीवी और सिनेमा के साथ पढ़ाई का बोझ बच्चों को सामाजिक संस्कारों से अलग-थलग कर रहा है। हमारा शहरी जीवन पश्चिमी सभ्यता और संस्कृति की दिशा में बढ़ रहा है। हिंदुस्तान में गाँव अभी भी उपेक्षित बने हुए हैं। जातिवाद अब समाज से ज़्यादा राजनीति का हथियार बन चुका है। नए साल में इन सामाजिक पहलुओं को हम चुनौती के रूप में पाएँगे।
रामानुज कौशिक, रिसर्च स्कॉलर, जे.एन.यू

जारी रहेगा आर्थिक विकास

इसमें कोई संदेह नहीं कि 2007 मैनेजमेंट और इससे संबंधित क्षेत्रों के लिए काफ़ी सुखद रहा। हमारे मैनेजरों ने दुनिया की बड़ी कंपनियों में अपना नाम दर्ज कराया। आर्थिक विकास में योगदान का एक मॉडल पेश किया। सेवा क्षेत्र में नई बुलंदियों को छुआ, प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि हुई और शेयर बाज़ार ने नए रेकॉर्ड बनाए। आने वाले साल में भी इन क्षेत्रों में तेजी जारी रहेगी। हमारी इकॉनॉमी का विकास और भी योजनाबद्ध तरीके से होगा। लेकिन केवल आर्थिक विकास और प्रति व्यक्ति आय ही विकास का सूचक नहीं। आज हमारे देश में लाइफ़ स्टाइल में काफ़ी बदलाव आ चुका है। ख़ासकर आज के युवाओं की जीवन शैली को देखकर ऐसा लगता है कि वे मानवीय मूल्यों तथा असमान विकास को लेकर ज़रा भी चिंतित नहीं है। मैं चाहता हूँ कि नए साल में हम सामाजिक मूल्यों के मामले में भी विकास करें।
हेमंत कुमार (एम.बी.ए) जामिया मिल्लिया इस्लामिया, नई दिल्ली

नए साल में भी बनी रहेंगी समस्याएँ

मौजूदा दौर में ग्लोबलाइजेशन और उदारीकरण की वजह से भारत का आर्थिक विकास तो हो रहा है लेकिन सामाजिक विकास नहीं। अगर कोई ठोस पहल नहीं हुई तो नया साल सामाजिक विकास के लिए कुछ भी नया नहीं होगा। देश में गरीबी, अशिक्षा और बेरोज़गारी जैसी समस्याएँ नए साल में भी मुँह बांये खड़ी होंगी। हमारी इकॉनमी में जो स्ट्रक्चरल चेंज किए जा रहे हैं, उसमें कृषि क्षेत्र पर ध्यान नहीं दिया जा रहा है। आने वाले साल में भी कृषि से जुड़ी समस्याएँ दूर होने की उम्मीद कम ही है। नीतियाँ बनाते समय बेरोज़गारी, निरक्षरता जैसी समस्याओं पर ध्यान नहीं दिया गया तो नया साल भी समस्याओं से भरा ही होगा। भारत जिस ग्लोबलाइज़ेशन के पीछे भाग रहा है उससे समस्याएँ बढ़ेंगी ही। ठोस पहल नहीं की गई तो नए साल में भले ही भारत अमीर हो जाए लेकिन भारतीय गरीब ही रहेंगे।
निमिशा पांडे, रिसर्च स्कॉलर, जेएनयू

खुशहाली भरा होगा नया साल

अगला साल आर्थिक दृष्टि से भारत के लिए खुशहाली और तरक्की से भरा होगा। तेजी से विकास कर रही इकॉनॉमी का लाभ शेयर बाजार, विनिर्माण उद्योग, शिक्षा, बुनियादी ढाँचे हर दिशा में देखने को मिलेगा। विदेशी निवेश जहाँ भारत में शिक्षा, रोज़गार, स्वास्थ्य और इन्फ्रास्ट्रक्चर को आगे ले जाने में मदद देगा वहीं एफआईआई (विदेशी संस्थागत निवेश) से शेयर बाज़ार में रौनक बनी रहेगी। हालाँकि आने वाले अमेरिकी चुनाव, भारत में यूपीए-लेफ्ट संबंधों में खींचतान और एफआईआई के स्त्रोतों पर निगरानी का असर भी शेयर बाज़ार पर दिखेगा। गरीबी और भुखमरी भारत के लिए एक बड़ी समस्या रही है लेकिन इस समस्या को एक दिन में ख़त्म नहीं किया जा सकता। किसानों का आत्महत्या करना एक चिंता का विषय है। लेकिन हमें उम्मीद करनी चाहिए कि अगली पंचवर्षीय योजना में इन क्षेत्रों पर ध्यान दिया जाएगा।

१ जनवरी २००८

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