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मध्यपूर्व की हिंदी कहानी
- पूर्णिमा वर्मन

 


मध्यपूर्व की हिंदी कहानी इंग्लैंड या अमेरिका की हिंदी कहानियों से काफी अलग है। इसका विशेष कारण है अरब देशों की परिस्थितियाँ। कोई भी अरब देश अपने यहाँ काम करने वाले प्रवासियों को स्थायी निवास की अनुमति नहीं देते हैं। इसलिये अपने पैर वहाँ जमाने और बस जाने की जद्दोहद वहाँ नहीं दिखाई देती। वहाँ रहने वाले भारतीय और भारतीय उपमहाद्वीप के सभी देशों के लोगों के मन में यह बात होती है कि कम से कम पैसे खर्च किये जाएँ और ज्यादा से ज्यादा बचाकर घर भेज दिये जाएँ। महँगे घर खरीदने या किराये पर लेने और बहुत सा सामान जमा करने पर लोग ध्यान नहीं देते। सिवाय उन लोगों के जो वहाँ व्यापार करते हैं क्योंकि वे तब तक वहाँ रह सकते हैं जब तक वे यूएई की अर्थ व्यवस्था में निवेश करते रहें।

इन परिस्थितियों में तीन प्रकार के भारतीय वहाँ रहते हैं। एक वे जो किसी भी प्रकार के श्रमिक या स्किल्ड वर्कर हैं, दूसरे वे जो डाक्टर इंजीनियर या अध्यापक हैं और तीसरे जो व्यापारी हैं। इन तीनों की अलग अलग परिस्थितियाँ हमें मध्यपूर्व की हिंदी कहानी में देखने को मिलती हैं। हर देश की प्रवासी कहानी की तरह मध्यपूर्व की कहानियों में भी देश की याद, अपने मूल्यों से प्रेम, सांस्कृतिक बदलाव से तालमेल बैठाने में आने वाली समस्याएँ मुख्य रूप से दिखाई देती हैं।

मध्यपूर्व को हिंदी कहानी में लाने का सबसे महत्वपूर्ण कार्य लगभग 30 वर्षों तक अबूधाबी में रहने वाले कृष्ण बिहारी ने किया है। उनकी कहानियों के अधिकतर पात्र मध्यवर्गीय या निम्नवर्गीय हैं। पाकिस्तानी और अरबी पात्र भी उनकी कहानियों के पात्र बने हैं। अरबी समाज में स्त्री पुरुष के आपसी संबंधों को समझने के लिये उनकी 3 कहानियाँ पढ़नी चाहिये ब बाय, आँसुओं में लड़की और अंततः पारदर्शी। इन सभी कहानियों में महिलाओं के प्रति पुरुष की संकुचित दृष्टि का चित्रण हुआ है। उनकी कहानी इंतजार में वापसी की लालसा झलकती है जो हर प्रवासी की किसी न किसी कहानी में जरूर मिल जाएगी। शिक्षक होने के नाते अरब देश की शिक्षा पद्धति भी उनकी कहानियों में देखी जा सकती है। पापा हम स्कूल कब जाएँगे, हरामी और कुचई ऐसी ही कहानियाँ है। नातूर, जड़ों से कटने पर और हरामी कहानी व्यवस्था से टकराव की कहानियाँ हैं कुल मिलाकर यह कि कृष्णबिहारी की कहानियों के पात्र हाशिए पर खड़े लोग हैं, जिनमें मजदूरों के साथ-साथ निम्न तबके के बच्चे हैं तो दूसरे देशों से लाई गई स्त्रियां भी हैं, जो देह व्यापार में धकेली जाती हैं। ये कहानियां मानवीय संवेदना को बहुत ही करीब से छूती हैं।

अबूधाबी के एक और कथाकार अशोक कुमार श्रीवास्तव की कहानी मृगतृष्णा एक ऐसे व्यक्ति की कहानी है जो विदेश के आकर्षण से बँधकर यूएई चला तो आता है लेकिन यहाँ के स्कूलों की दुर्व्यवस्था का शिकार हो जाता है। दुबई में रहने वाले मिलिंद तिखे की कहानी एक प्यार का पल हो यूएई के ग्रामीण परिवेश और आपराधिक जीवन का ऐसा चिट्ठा खोलती है जिसकी जानकारी आमतौर पर किसी को नहीं होती। वहाँ के गाँव कितने समृद्ध हैं और हर तरह की सुविधा और पुलिस की सक्रियता के बावजूद वहाँ लोग किस-किस तरह के अपराध करते रहते हैं इस बात को इस कहानी से समझा जा सकता है। दुबई की ही एक और कथाकार स्वाती भालोटिया की कहानी क्या लौटेगा वसंत एक संवेदनशील प्रेमकथा है जिसका ताना बाना अंतरराष्ट्रीय परिवेश में बुना गया है।

लगभग ढाई दशक से शारजाह में रहते हुए हालांकि मैंने ज्यादा समय वेब पर हिंदी की स्थापना करने और अभिव्यक्ति तथा अनुभूति पत्रिकाओं को बनाने में लगाया तो भी कुछ समय जरूर मिला था जहाँ मुझे यूएई के परिवेश को चित्रित करती हुई कुछ कहानियाँ लिखने का अवसर मिला। यों ही चलते हुए और जड़ों से उखड़े ये दो कहानियाँ ऐसी प्रवासी महिलाओं की कहानियाँ हैं जो हाल ही में यूएई आयी हैं और अपने को वहाँ के वातावरण के साथ सामंजस्य बैठाने की प्रक्रिया से गुजर रही हैं जबकि उड़ान एक ऐसी लड़की की कहानी है जो यूएई में पली बढ़ी है और अंतरराष्ट्रीय समाज में अपनी उड़ान से सभी को अचंभे में डाल देती है। वहीं फुटबॉल कहानी इमारात में रहने वाले बिजनेस कम्युनिटी की एक महिला की कहानी है। देश से दूर एक अलग माहौल में कई साल गुजार लेने के बाद वह एक प्रौढ़ गृहणी के सुविधा सम्पन्न जीवन को जी रही है। खालीपन और उसको भरने के छोटे छोटे उपक्रम और बेचैनियों को व्यक्त करती यह कहानी यूएई की अनेक सम्पन्न महिलाओं की कहानी है। एक और कहानी नमस्ते कौर्निश एक सफल अध्यापिका की कहानी है जो पति के निधन और पुत्र के विदेश चले जाने के कारण यूएई में अकेली रह रही है। प्रवासी भारतीयों की आर्थिक सफलता और व्यक्तिगत अकेलेपन को सामने रखती यह कहानी हर हाल में स्वयं को मजबूत बनाए रखने की कहानी है। कहानी मुखौटे महत्वाकांक्षी पति की व्यस्तता में जीवन का अर्थ खोजती पत्नी की कहानी है जहाँ पति की बीमारी दम्पत्ति के बीच की दूरी समाप्त कर के उन्हें समीप ला देती है। इमारात की कहानियाँ महत्वाकांक्षा, तेज दौड़, उसमें भटकते लोग, अकेलेपन और रिश्तेदारों की प्रताड़ना और उनकी उदासी की अनेक पर्तों को खोलती हैं।

कुवैत से दीपिका जोशी की दो कहानियाँ भी उल्लेखनीय हैं जिसमें कुवैत के जीवन का वर्णन मिलता है। कुवैत का अरबी समाज यूएई की तरह खुले विचारों का नहीं है। जहाँ कहीं भी भारतीय जाते हैं वे वहाँ पर अपना छोटा सा अलग मिनी भारत बना लेते हैं। कुवैत शहर के अब्बासिया में एक ऐसा ही मिनी भारत है। अनेक गृहणियों को कुवैत जैसे देशों में रिश्तेदारों और मित्रों का अभाव बहुत कष्टकारी बन जाता है। विशेष रूप से इसलिये क्योंकि उनके पतियों के वर्किं आवर्स बहुत लंबे होते हैं जो लगभग 8 घंटे से 10 घंटे तक भी हो सकते हैं क्योंकि प्रतियोगिता तो हर जगह है और हर व्यक्ति कम से कम समय में जीवन भर के लिये कमाकर घर लौटना चाहता है। उनकी कहानी कच्ची नींव में ऐसी परिस्थिति में घर में एक रिश्तेदार आकर किस प्रकार पति-पत्नी के बीच दरार बन जाता है इस बात को बड़ी खूबी से दर्शाया गया है। उनकी दूसरी कहानी सदाफूली एक बिखरे हुए परिवार की कहानी है जो विदेश में अपने को ठीक से संभाल नहीं पाता है।

एक और महत्वपूर्ण लेखक सऊदी अरब से लिख रहे हैं जिनका नाम है विद्याभूषण धर। उनकी दो तीन कहानियों की चर्चा करना चाहूँगी। पहली कहानी अनोखी रात कश्मीर से विस्थापित हिंदू पंडित की अत्यंत संवेदनशील कहानी है। उनकी कहानियों में कश्मी की प्रकृति, समाज और जीवन शैली की दर्शन बहुत ही प्रमाणिक रूप से होते हैं। उनकी एक और कहानी लावारिस भी एक कश्मीरी पिता की कहानी है जो लावारिस की तरह दम तोड़ देता है। इस कहानी में टूटते हुए पारिवारि ढाँचे, कश्मीर के बिगड़ते हुए हालात और अकेलेपन का सफल चित्रण हुआ है। उनकी एक और कहानी नंगा में कश्मीरी विस्थापितों के कठिन जीवन का विवरण मिलता है, जिससे पता चलता है कि विस्थापन मानसिक रूप से इतना कष्टप्रद हो सकता है कि परिवार का सामाजिक ढँचा ही चरमरा उठे।

पिछले लगभग ५ वर्षों में संयुक्त अरब इमारात में कहानी लेखन के क्षेत्र में सक्रिय रूप से लेखन हुआ है। डॉ. आरती लोकेश कविता कहानी उपन्यास एवं समीक्षा सभी क्षेत्रों में सक्रिय हैं उनके दो कहानी संग्रह ‘झरोखे’ (२०१९), तथा “साँच की आँच” (२०२१) प्रकाशित हुए हैं। इसके अतिरिक्त लघुकथाओं के क्षेत्र में महत्वपूर्ण लेखन करने वालों में नितिन उपाध्ये, करुणा राठौर, मीरा सिंह, मंजु सिंह, स्नेहा देव, कौसर भुट्टो और उर्मिला चौधरी के नाम प्रमुख हैं। इन सभी की कहानियों में समकालीन भारतीय और अरबी दुनिया के अनेक रंग देखे जा सकते हैं। प्रवास की कठिनाइयों, मानसिक उलझनों, सामाजिक दबावो आदि का चित्रण इन कहानियों में आसानी से देखा जा सकता है।

कुल मिलाकर यह कि मध्यूपर्व में कहानी लिखने वाले कम भले ही हों लेकिन उनका लेखन समर्थ लेखन है और हिंदी साहित्य में महत्वपूर्ण स्थान रखता है। हम सभी मध्यपूर्व के प्रवासी लेखक यह आशा रखते हैं कि भारत में हमारे लेखन को उचित पहचान मिलेगी।

१ सितंबर २०१९

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