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साहित्यिक निबंध


 

हिंदी हाइकु कविताओं में माँ
- डॉ. जगदीश व्योम
 


‘माँ’ शब्द दनिया का सबसे छोटा शब्द है, मात्र एक अक्षर का। बन्द होठों के खुलते ही माँ का उच्चारण अनायास ही हो जाता है। परन्तु इस छोटे से शब्द की व्यापकता इतनी विशाल है कि समूची सृष्टि ही इसमें समायी हुई लगती है। सृष्टि के समस्त प्राणियों का अस्तित्व माँ से ही है। माँ की व्याख्या करना शब्दों से परे है। साहित्य में माँ पर प्रायः सभी रचनाकारों नें कुछ न कुछ अवश्य लिखा है। हिन्दी हाइकु कविता में माँ के विविध रूप हमारे सामने खुल कर आते हैं।

अपने शिशु को किलकते देखकर माँ का रोम-रोम खुशी से भर उठता है उसे दुनिया भर की खुशी प्रसन्न मुद्रा में अपने शिशु को किलकारी भरते देखकर मिल जाती है-

शिशु किलके
लोट-पोट होती माँ
अभ्यन्तर में
-रामनिवास पंथी

बच्चा जब थोड़ा बड़ा हो जाता है और पाँव-पाँव चलना शुरू करता है तो प्रायः माएँ उनके पैरों में नन्हें-नन्हें घुँघुरू वाली पैंजनियाँ पैरों में बाँध देती हैं जिनके नूपुर बजते हैं तो बच्चा जिज्ञासावश चलने की कोशिश करता है और माँ इस दृश्य को देख देखकर अभिभूत होती रहती है-
पैंजनी बजी
उमड़ पड़ा सिन्धु
ममता भरा
-सन्तोष कुमार सिंह

कामकाजी माताएँ प्रायः अपने बच्चों को घर पर छोड़कर काम पर निकल जाती है, यह उसकी विवशता होती है। ऐसे ही एक दृश्य को हाइकुकार ने चित्रित किया है जिसमें एक माँ शिक्षिका है और वह सुबह अपनी नन्हीं बिटिया को घर पर छोड़कर स्कूल के लिए निकलती है, माँ को जाते हुए घर की खिड़की से नन्हीं बिटिया उसे देख रही है, इस हाइकु में समूचा दृश्य ही हमारी आँखों के सामने तैरने लगता है-
स्कूल जाती माँ
खिड़की से झाँकती
नन्हीं बिटिया
-पूर्णिमा वर्मन

बच्चे को हँसते हुए देखकर माँ अपने सारे कष्ट भूल जाती है उसे लगता कि समूची कायनात ही हँस रही है-
बच्चा हँसा
कायनात हँस दी
सूरज उगा
-सरला अग्रवाल

बच्चे के मन में क्या है? वह क्या चाहता है? यह सब कुछ एक माँ बच्चे को देखते ही समझ जाती है, यही माँ के व्यक्तित्व की खूबी है जो उसके व्यक्तित्व की विराटता का परिचायक है। यह विशेषता हर माँ में होती है चाहे वह मनुष्य हो या फिर कोई अन्य प्राणी-
जान लेती है
बच्चे के मन को माँ
बिना बोले ही
-ईप्सा

बेटे को खाना खाते हुए देखकर माँ बिना खाना खाये ही तृप्ति का अनुभव करने लगती है-
खाता है बेटा
तृप्त हो जाती है माँ
बिना खाये ही
-कमलेश भट्ट कमल

बच्चे को शैतानी करते देखकर माँ डाँटती भी है, पर बाद में चुपके से रोती भी है कि उसने अपने बच्चे को क्यों डाँटा-
डाँटती है माँ
नहीं रोता है बच्चा
रोती हैं माएँ
-पुरुषोत्तम दीवान

मुझे मारती
खुद रोती, खीझती
माँ भी हारती
-डॉ॰ राजेन जयपुरिया

माँ अपने बच्चे को पाल-पोसकर बड़ा होते पल-पल देखती रहती है और खुश होती रहती है परन्तु जैसे ही बच्चे बड़े होते हैं, वे अपनी माँ से धीरे-धीरे अलग होने लगते हैं-
उड़ना सीखे
बच्चे चिड़िया के
नीड़ न लौटे
-महेश चन्द्र सोनी

निकले पर
उड़े छोड़ घोंसला
सांध्य जीवन
-डॉ॰ गीता गुप्ता

माँ के पास रह जाती हैं अपने बच्चों के साथ बिताये दिनों की स्मृतियाँ, वह उन्हीं के सहारे खुश रहने का प्रयास करती रहती है। बच्चे की छोटी-छोटी चीजें माँ के लिए उसके जीवन की सबसे कीमती थाती बन जाती हैं-
दो जोड़ी मोजे
एक नन्हा स्वेटर
माँ की है थाती
-रंजना श्रीवास्तव रंजू

बेटा या बेटी जब पढ़ाई के लिए या नौकरी करने के लिए किसी अन्य शहर में या विदेश चला जाता है तो माँ उसके कपड़ों को बड़े यत्न से सहेज कर रखती है, धूप दिखाती है और उसके आने की प्रतीक्षा करती रहती है-
बेटे का कोट
रोज धूप दिखाती
प्रतीक्षा में माँ
-रचना श्रीवास्तव

माँ से दूर रहने वाले बेटे-बेटियों को भी माँ की याद हमेशा आती रहती है। माँ परिवार को एक बनाये रखने की भरपूर कोशिश करती है। रिश्तों को निभाने के लिए बच्चों को माँ हमेशा याद आती रहती है-
उधड़े रिश्ते
सीती हुई हमेशा
याद आती माँ
-डॉ॰ अनिता कपूर

माँ बुनती है
सम्बंधों का स्वेटर
नेह-धागे से
-हरेराम समीप

बड़े से बड़े दुख भी माँ अपने ऊपर ले लेती है और अपने बच्चों को दुखों की वारिश से हर हाल में सुरक्षित बचा ही लेती है-
माँ की गोद है
दुखों की बारिश में
इक छाता-सी
-डॉ॰ अनिता कपूर

घर में दिनभर रसोई में जुटी रहने वाली माँ पसीने से सराबोर होती रहती है, उसके पसीने में मशालों की गंध महकती है जो किसी भी बेटे के लिए सबसे सुखद गंध के रूप में जीवन भर उसे किसी अलौकिक खुशबू का अहसास कराती रहती है-
माँ महकती
मसाले पसीने की
मिश्रित गंध
-चन्द्रशेखर विष्ट

कोई भी माँ यह नहीं चाहती है कि उसके बच्चे उसके कष्टों को जानकर दुखी हों इसलिए माँ अपने दुख दर्द को अपने तक ही सीमित रखने की कोशिश करती रहती है। अपने पत्र में भी वह लिखती या लिखवाती है कि वह एकदम खुश है, पर बच्चों को भी वास्तविकता का अहसास तो आखिर है ही-
अम्मा की पाती
कुशलक्षेम लिखा
दर्द ही दिखा
-डा० बिन्दूजी महाराज बिन्दू

बेटे बेटियाँ दूर देश में जाकर ही माँ से अलग नहीं होते बल्कि अपने घर में रहकर भी माँ से कभी-कभी दूरी बना लेते हें। आपस में भाई-बहनों का बँटवारा हो जाता है। बेटे के घर में माँ के लिए जगह की कमी होने लगती है, यह एक बड़ी त्रासदी है वर्तमान समय में बढ़ती उम्र के बुजुर्गों के लिए। नई पीढ़ी में बढ़ती संवेदनहीनता चिन्ता का विषय है। माँ का शरीर शिथिल होता जाता है ऐसे में उन्हें बेटे-बेटियों का प्यार चाहिए, सहारा चाहिए पर ऐसा होता नहीं है, बेटे के आलीशान घर में माँ के लिए जगह की कमी हो ही जाती है-
कहाँ बैठे माँ
टूट गया ओसारा
नये घर में
-डॉ॰ वीरेन्द्र आज़म

बेटे घर का बँटवारा तो कर लेते हैं पर माँ के दुख दर्द को नहीं बाँटते, माँ किसके पास कितने-कितने दिन रहे इस तरह के समझौते भी हो जाते हैं, परन्तु माँ के आँसू कौन बाँटे, इन हाइकु कविताओं में माँ का यह दर्द देखा जा सकता है-

घर तो बाँटा
बाँट न पाये बेटे
अम्मा के आँसू
-योगेन्द्र वर्मा

बेटों में बँटी
चीजें सभी घर की
माँ की दुविधा
-वीरेश कुमार अरोड़ा

दीवार बँटी
घर-आँगन बँटा
माँ की दुविधा
-कृष्णकुमार तिवारी किशन
बेटे के घर में माँ आ भी जाये तो भी वह सहमी-सहमी सी ही रहती है क्योंकि सब कुछ बदल चुका होता है। बेटे के घर की किसी चीज को नुकसान न पहुँच जाये इसलिए बेचारी माँ एक-एक कदम सँभाल-सँभाल कर रखती है-
बेटे का घर
फिर भी है सहमी
माँ यहाँ पर
-ओमप्रकाश यती

माँ और बेटे का रिश्ता अब फोन तक सिमट कर रह गया है। बेटा फोन पर हाल-चाल पूछ लेता है और माँ इसी में खुश हो जाती है-
माँ है गाँव में
बेटा है शहर में
रिश्ता फोन में
-आर.पी. शुक्ल

बेटा कितना ही बड़ा क्यों न हो जाये, कितना ही वैभवशाली जीवन जी रहा हो पर माँ तो आखिर माँ है उसे अपने बेटे की चिन्ता हमेशा बनी ही रहती है-
परदेश में
बेटा भूखा तो नहीं
सोचती माता
-डॉ॰ सरोजिनी कुलश्रेष्ठ

बेटे माँ को साथ रखने में आने वाली तमाम दिक्कतों से बचना चाहते हैं। माँ साथ रहेगी तो बार-बार टोका टाकी करेगी, अपनी पुरानी बातों और विचारों को लेकर बैठ जायेगी, इसका सरल सा उपाय निकाल लिया है बच्चों ने कि माँ को वृद्धाश्रम भेज दो। होता भी यही है परन्तु माँ वहाँ भी बेटे की चिन्ता से मुक्त कहाँ हो पाती है, उसे अपनी चिन्ता नहीं है, बेटे की चिन्ता है-
मैया की आई
वृद्धाश्रम से चिट्ठी
कैसे हो बेटा

-अभिषेक जैन

माँ बेटे की प्रतीक्षा करते-करते टूट जाती है और एक न एक दिन चल बसती है। कई बार अन्तिम समय में भी बेटा अपना काम छोड़कर माँ के अन्तिम समय में भी पास नहीं आ पाता है-
माँ हुई राख
फिर भी नहीं आया
कोख से जाया

-सन्तोष कुमार सिंह

माँ की अस्थियों को गंगा जी में बहाने के लिए बेटे को जाना ही होता है। माँ मर कर भी बेटे का मोह नहीं छोड़ पाती होगी, यह निश्चय है। अस्थियाँ बहाकर वापस लौटने पर माँ की आत्मा जो कहती होगी उसकी कल्पना करके हाइकुकार ने इस हाइकु में समूची संवेदना को झकझोर कर रख दिया है-
बहा अस्थियाँ
चले तो बोली अम्मा
दो पल बैठो

-महेश चन्द्र सोती

माँ चली जाती है पर उसकी यादें रह जाती हैं। माँ की निशानियाँ उनके नजदीक होने का अहसास कराती रहती हैं। बच्चों को लगता है कि उनके माता-पिता उनके साथ हैं, यहीं कहीं उनके ही आस-पास अदृश्य रूप में-
बड़ा सुकून
खूँटी पे टँगे वस्त्र
अम्मा बाबा के

-डॉ॰ शैल रस्तोगी

अपना गाँव छोड़कर शहरों और महानगरों में रह रहे लोग जब कभी अपने पुस्तैनी घर जाते हैं तो प्रायः उपेक्षित से पड़े पुराने घर की दीवारें और छत सीलन भरे होते हैं, परन्तु वह उपेक्षित और अनाकर्षक घर भी हमारी संवेदना के साथ जुड़ जाता है। सीलन से भरी दीवारों की बदबू भी माँ की स्मृतियों से जुड़कर महकने का आभास कराने लगती है, लगता है कि माँ की महक इन्हीं दीवारों में कहीं रची बसी है-
सीली दीवार
रात भर महकी
अम्मा की याद

-डा० जगदीश व्योम

अम्मा बाबा की यादें तो हमेशा साथ रहती ही हैं, उनकी हिदायतें भी जिन्हें वे जीवन भर समय-समय पर देते रहते हैं, वे हिदायतें भी हमेशा हमारे साथ रहती हैं और पग-पग पर हमें कठिन समय में रास्ता दिखाती रहती हैं-
साथ हैं सदा
अम्मा बाबा की यादें
हिदायतें भी

-डॉ॰ रमा द्विवेदी

हिन्दी हाइकु कविताओं में माँ को केन्द्र में रखकर अनेक हाइकु लिखे गये हैं। इन हाइकु कविताओं में माँ के विविध रूप उभर कर सामने आते हैं। माँ के इन रूपों से माँ की जो समग्र प्रतिछवि उभर कर आती है उससे स्पष्ट है कि माँ की उपमा किसी और से हो ही नहीं सकती, माँ की तुलना केवल और केवल माँ से ही की जा सकती है। ‘माँ की उपमा केवल माँ है, माँ सचमुच भगवान है’।

२९ सितंबर २०१४

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