मुखपृष्ठ

पुरालेख-तिथि-अनुसार -पुरालेख-विषयानुसार -हिंदी-लिंक -हमारे-लेखक -लेखकों से


रामायण की विश्वविजय
-पूर्णिमा वर्मन

भारत के इतिहास में राम जैसा विजेता कोई नहीं हुआ। उन्होंने रावण और उसके सहयोगी अनेक राक्षसों का वध कर के न केवल भारत में शांति की स्थापना की बल्कि सुदूर पूर्व और आस्ट्रेलिया तक में सुख और आनंद की एक लहर व्याप्त कर दी। श्री राम अदभुत सामरिक पराक्रम व्यवहार कुशलता और विदश नीति के स्वामी थे। उन्होंने किसी दश पर अधिकार नहीं किया लेकिन विश्व के अनेकों दशों में उनकी प्रशंसा के विवरण मिलते हैं जिससे पता चलता है कि उनकी लोकप्रियता दूर-दूर तक फैली हुई थी।

आजकल मेडागास्कर कहे जाने वाले द्वीप से लेकर आस्ट्रेलिया तक के द्वीप समूह पर रावण का राज्य था। राम विजय के बाद इस सारे भू भाग पर राम की कीर्ति फैल गई। राम के नाम के साथ रामकथा भी इस भाग में फैली और बरसों तक यहाँ के निवासियों के जीवन का प्रेरक अंग बनी रही।
श्री लंका और बर्मा में रामायण कई रूपों में प्रचलित है। लोक गीतों के अतिरिक्त रामलीला की तरह के नाटक भी खेले जाते हैं। बर्मा में बहुत से नाम राम के नाम पर हैं। रामावती नगर तो राम नाम के ऊपर ही स्थापित हुआ था। अमरपुर के एक विहार में राम लक्ष्मण सीता और हनुमान के चित्र आज तक अंकित हैं।

मलेशिया में रामकथा का प्रचार अभी तक है। वहाँ मुस्लिम भी अपने नाम के साथ अक्सर राम लक्ष्मण और सीता नाम जोड़ते हैं। यहाँ रामायण को "हिकायत सेरीराम" कहते हैं।

थाईलैंड के पुराने रजवाड़ों में भरत की भाँति राम की पादुकाएँ लेकर राज्य करने की परंपरा पाई जाती है। वे सभी अपने को रामवंशी मनते थे। यहाँ "अजुधिया" "लवपुरी" और "जनकपुर" जैसे नाम वाले शहर हैं । यहाँ पर राम कथा को "रामकीर्ति" कहते हैं और मंदिरों में जगह-जगह रामकथा के प्रसंग अंकित हैं।

हिंद चीन के अनाम में कई शिलालेख मिले हैं जिनमें राम का यशोगान है। यहाँ के निवासियों में ऐसा विश्वास प्रचलित है कि वे वानर कुल से उत्पन्न हैं और श्रीराम नाम के राजा यहाँ के सर्वप्रथम शासक थे। रामायण पर आधारित कई नाटक यहाँ के साहित्य में भी मिलते हैं।

कंबोडिया में भी हिंदू सभ्यता के अन्य अंगों के साथ-साथ रामायण का प्रचलन आज तक पाया जाता है। छठी शताब्दी के एक शिलालेख के अनुसार वहाँ कई स्थानों पर रामायण और महाभारत का पाठ होता था।

जावा में रामचंद्र राष्ट्रीय पुरुषोत्तम के रूप में सम्मानित हैं। वहाँ की सबसे बड़ी नदी का नाम सरयू है। "रामायण" के कई प्रसंगों के आधार पर वहाँ आज भी रात-रात भर कठपुतलियों का नाच होता है। जावा के मंदिरों में वाल्मीकि रामायण के श्लोक जगह-जगह अंकित मिलते हैं।

सुमात्रा द्वीप का वाल्मीकि रामायण में "स्वर्णभूमि" नाम दिया गया है। रामायण यहाँ के जनजीवन में वैसे ही अनुप्राणित है जैसे भारतवासियों के। बाली द्वीप भी थाईलैंड जावा और सुमात्रा की तरह आर्य संस्कृति का एक दूरस्थ सीमा स्तंभ है। "रामायण" का प्रचार यहाँ भी घर-घर में है।

इन देशों के अतिरिक्त फिलीपीन, चीन, जापान और प्राचीन अमरीका तक राम कथा का प्रभाव मिलता है।

मैक्सिको और मध्य अमरीका की मय सभ्यता और इंका सभ्यता पर प्राचीन भारतीय संस्कृति की जो छाप मिलती है उसमें रामायण कालीन संस्कारों का प्राचुर्य है। पेरू में राजा अपने को सूर्यवंशी ही नहीं "काशल्यासुत राम" वंशज भी मानते हैं। "रामसीतव" नाम से आज भी यहाँ "राम सीता उत्सव" मनाया जाता है।

अक्तूबर २००१


1

1
मुखपृष्ठ पुरालेख तिथि अनुसार । पुरालेख विषयानुसार । अपनी प्रतिक्रिया  लिखें / पढ़े
1
1

© सर्वाधिका सुरक्षित
"अभिव्यक्ति" व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इस में प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक
सोमवार को परिवर्धित होती है।