व्यक्तित्व


चेक कवि ओदोलेन स्मेकल की कविता
डॉ. गंगा प्रसाद बिमल


आदोलेन स्मेकल हिन्दी साहित्य के अनोखे विद्वानों में से एक थे। उनका जन्म चेकोस्लोवाकिया में हुआ, वे प्राहा विश्वविद्यालय में हिंदी के विभागाध्यक्ष बने और भारत में चेकोस्लाविया के राजदूत भी।

आदोलेन स्मेकल विश्व-हिंदी के एक ऐसे कवि हैं जिनकी कविताओं में भारत में लिखी जाने वाली आधुनिक हिंदी कविता की मुख्यधारा की रचनाओं जैसी प्रौढ़ता है तथापि उसमें एक यूरोपीय मन की वस्तुनिष्ठ वैज्ञानिकता का समावेश भी है। यह विचित्र-सा समन्वयकारी भाव है। एक ओर अतिसंवेदनशील मन है, जो भारत के सनातन स्वभाव के प्रति गहरा अनुराग रखता है तो दूसरी ओर एक विश्लेषणात्मक तर्क-बुद्धि है। यदि इन्हें दो ध्रुव कहें- जो एक दूसरे के विकर्षण में हैं तो श्री स्मेकल की कविता उस धरती की तरह है जो दो ध्रुवों के बीच अस्तित्ववान है- ऐसे ध्रुव जो एक दूसरे से कभी मिल नहीं सकते परंतु एक दूसरे के बीच उपस्थित वस्तु संसार और भाव संसार को आबद्ध रख सकते हैं।

इन कविताओं में भारत की स्तुति भी है, उस भारत की जिसे स्मेकल अपने सुदीर्घ संबंधों से जानते हैं, और मानते हैं कि इसकी सनातनता संसार को वैश्विक सौमनस्य एवं सौहार्द्र से परिपूरित करती है। कवि के अनुराग के क्षेत्र साधारणजन, मेहनतकश लोग, आध्यात्मिक मूल्य, तीर्थ-स्थान, वातावरण, प्रकृति, सदा-नीरा नदियाँ, आद्यज्ञान और आधुनिकीकरण जैसे अनेक विषय हैं। इनसे कवि के गहरे आत्मीय संबंधों का ही परिचय पाठकों को नहीं होता अपितु उस स्थायी प्रेम का भी आभास होता है जिसकी जड़ें प्राचीन भारत प्रेम के प्रकरणों से एक पुष्ट परंपरा के रूप में संवर्धित होती दिखाई देती हैं।

आरंभ में हमने जिस विश्व-हिंदी का उल्लेख किया है, उसके आधुनिक ध्वज के वाहक यूरोपीय भूमि में यदि श्री स्मेकल जैसे ज्ञानानुरागी हैं तो उसकी अपनी ही पुष्ट, अर्थवान परंपरा आज सूरीनाम, मॉरिशस, फीजी, गयाना, त्रिनीनाद में अपना अलग ही स्वरूप ग्रहण कर चुकी है। यद्यपि इस विश्व हिंदी के साहित्य का मूल्यांकन अभी शेष है तथापि यह अपनी एक अलग सत्ता कायम कर चुका है। संदेह नहीं कि इक्कीसवीं सदी के साहित्येतिहासकार को हिंदी साहित्य का जो नया इतिहास लिखना पड़ेगा उसमें विश्व हिंदी में रचे जा रहे साहित्य की उपेक्षा नहीं की जा सकती।

प्रो. स्मेकल की कविताओं का रचना कौशल आधुनिक हिंदी कविताओं जैसा है। उनके विषय भारतीयों जैसे नहीं हैं। भारतीयों के विषय अपनी स्थितियों के प्रति, अपने ही लोगों के प्रति आक्रामकता से भरे भी हो सकते हैं। भारतीयों के विषय कविता की पुरानी परंपराओं की अनुरूपता या उनके प्रति विपरीत भाव से भरे भी हो सकते हैं।

प्रो. स्मेकल की कविताएँ एक उदार कवि की काव्य सर्जनाएँ हैं जिनमें एक विदेशी मन के आत्मिक अधिवास की प्राप्ति की सुखद प्रतीतियाँ हैं और उससे भी अधिक एक मूल्यवान तत्व है उस अदृश्य भव्यता की सराहना जो जन्मांतरों की साधना के बाद ही आध्यात्मिक अर्थों में प्राप्त होती है। यह सराहना भव्यता की गरिमा भर का बखान नहीं है, तात्विक रूप से इस वृत्ति में 'आभार' का भाव है। और यह आभार ईसाइयत की मूल तात्विक स्थिति है। जो लोग प्रो. स्मेकल की भारत स्तुति को केवल एक यायावर की भावुकतापूर्ण अभिव्यक्ति मानते हैं उन्हें कविता की आत्मा से अवश्य जूझना चाहिए।

हिंदी के वैश्विक सृजन को रूपाकृति देने में समर्थ प्रो. स्मेकल की कविताएँ 'चेक' मनीषा से उद्भावित हो मानक हिंदी को स्वीकृति दिलाने वाली सार्थक रचनाएँ हैं। विश्वभर से भविष्य के अनेक कवि उससे प्रेरित होंगे, इन कविताओं को पढ़कर बराबर यही प्रतीति जड़ जमाती है।

कुल मिलाकर प्रो. स्मेकल की कविताएँ निष्पाप अभिव्यंजनाएँ हैं। अपने वस्तु-रूप में वे सार्वजनिक अथवा वैश्विक हैं। अपने कौशल में वे पूर्व और पश्चिम की अद्यतन विधियों का अपूर्व समन्वय है। अपने भाषिक संरचनागत संयोजन में वे हिंदी की भावगत एवं संवेदनागत शक्ति का अद्वितीय प्रमाण हैं। समग्र प्रभाव के रूप में वे अकृत्रिम भावाभिव्यक्तियाँ हैं और कविता के रूप में वे एक ऐसे जिज्ञासु के अनुराग के प्रमाण हैं जो विद्या, कला, ज्ञान तथा विज्ञान की कविता द्वारा हासिल व हल करने की आत्मस्वीकृतियाँ प्रस्तुत कर रहा है।

१७ नवंबर २००८