| स्टेशन से बाहर निकलते ही आपकी 
							आँखें किरासिन की तीखी 
                          गंध से जलने लगें, सांस भारी होने लगे, और आपको पता चले 
                          कि आप जिस ऑटो पर सवार है, वह किरासिन से ही चलता है, आप 
                          देखें कि ऑटो ड्राइवर चौराहे पर हरी, लाल या किसी भी 
                          बत्ती का इंतज़ार किये बिना और भीड़ में अपना ऑटो निकाल 
                          सकने लायक जगह पाये बिना और अगर रात का वक्त हो तो बिना 
                          हैड और टेल लाइट के अंधाधुंध गाड़ी भगाने लगे, दाएँ बाएँ मुड़ने के लिए वह झट से उस दिशा में अपना पैर 
                          निकाल कर अचानक ही मुड़ने का इशारा कर दे, अगर शहर की 
                          मुख्य सड़क पर भयंकर भीड़ की वजह से एक कि.मी. की दूरी 
                          तय करने में ही आपको एक घंटा लग जाये और इस बीच उस सड़क 
                          पर आप भारत की सड़कों पर आम तौर पर पाये जाने वाले, चल 
                          सकने और न चल सकने वाले सभी मशीनी और गैर मशीनी, हर तरह 
                          के वाहनों के दर्शन कर लें और लगे हाथ आप शिवजी के 
                          साक्षात वाहन नंदी जी को भी, किसी भी सड़क पर ट्रैफ़िक 
                          आयलैंड का निर्माण करके बैठे हुए ट्रैफ़िक नियंत्रण करते 
                          देखें, अगर आप वहीं और तभी औरतों को ठेला खींचते और ठेले 
                          पर आराम से बैठे उसके मरद को देखें, अगर आप उस शहर में 
                          रात को एक बजे भी पहुँचें और आप देखें कि उस वक्त भी तेजी 
                          से काइनैटिक होंडा उड़ाती कोई अकेली लड़की तेज़ी से आपके 
                          आगे से चली जा रही है, और अगर संयोग से आपको उस वक्त भूख 
                          लगी हो और आप देखें कि किसी भी चौराहे पर पेट भरने के 
                          लिए न केवल ताज़ा बल्कि गर्म खाना भी मिल रहा है। एकाध 
                          आइसक्रीम पार्लर भी खुला हो और वहाँ दस बीस युवा लड़के-लड़कियाँ 
                          स्कूटरों पर बैठे हा हा ही ही करते खा-पी रहे हों। और 
                          जीवन का सच्चा आनन्द ले रहे हों तो आप समझ जाइये कि आप 
                          अहमदाबाद पहुंच गये। 
                           बहुत ही खूबसूरत शहर। एक साथ गांव और महानगर की इमेज 
                          रखने वाला, भारत का यह मानचेस्टर पहली ही नज़र में आपका 
                          मन मोह लेता है। इस शहर में इतनी विशेषताएँ हैं कि आप 
                          हमेशा के लिए इसके हो कर रह जाएँगे। हाँ, अगर आप इस शहर 
                          में गलती से बरसात के मौसम में जा पहुँचें और आपको अपने 
                          मन वांछित इलाके में, जिसे यहां विस्तार कहते हैं, एक 
                          तरह से सड़कों पर तैर कर पहुँचना पड़े तो गलती आपकी ही 
                          है। आपने ही गलत वक्त चुना। शहर में बरसाती या छतरी रखने 
                          का रिवाज नहीं है। भीग कर घर जाने का ही फैशन है। जहाँ 
                          इतने भीग रहे हैं, थोड़ा-सा और सही। इसके अलावा अगर आप 
                          वहाँ गर्मी के मौसम में जाएँ तो भी गलती आपकी है। दिन 
                          बेहद गर्म कि आप परेशान हो जाएँ। लेकिन शामें इतनी हसीन और हवादार कि बस, ज़िन्दगी का मज़ा आ जाये। दिन भर 
                          की बेचैनी और शिकायत गायब। क्या ऐसा नहीं हो सकता कि इस 
                          शहर में सिर्फ शामें और रातें ही हों। 
                           रातें वैसे भी वहाँ बहुत देर से होती है। हर चौराहे पर 
                          छ: सात रूपये में बीयर वाली बोतल भर कर मिलने वाली मसाला 
                          छाछ आपकी तबीयत खुश कर देगी। अहमदाबाद में खाने पीने की 
                          चीज़ें खूब मिलती है। मैं बता ही चुका हूँ कि गुजराती 
                          लोग खाने पीने के खूब शौकीन होते हैं। आम तौर पर यहाँ 
                          छुट्टी के दिन, शाम का खाना बाहर खाने का रिवाज है। आपको 
                          किसी भी छोटे बड़े होटल के बाहर लंबी लाइन मिलेगी और 
                          आपको अपनी बारी बुक कराने के लिए वहाँ खड़े स्टाफ़ को 
                          अपना नाम और व्यक्तियों की संख्या बतानी होगी तभी आपका 
                          नम्बर आ पाएगा। यह बात अलग है कि अंदर जा कर आपको पता 
                          चले कि ये सारी मारा मारी इटली, डोसा, और वड़ा साँभार 
                          (स्थानीय उच्चारण) के लिए थी। वे जब शाम को खाना खा कर 
                          घूमने निकलते हैं तो कुछ न कुछ ज़रूर खाते हैं। मूँगदाल 
                          का वड़ा और साथ में तली हुई हरी मिर्च और प्याज, गन्ने 
                          का रस, बर्फ का गोला, सैंडविच, कचेरयूं, फाफड़ा, जलेबी, 
                          समोसा, फरसाण, नाश्तों के नाम पर कुछ न कुछ खाना हर समय 
                          चलता ही रहता है। खाने पीने की चीज़ें आपको हर चौराहे पर 
                          खड़ी लारियों पर खूब मिलेंगी। सस्ता और मज़ेदार नाश्ता। 
                          इनकी लारियाँ इतनी हैं कि शहर के ट्रैफ़िक की गति इन लारी 
                          गल्लों और इनके आस-पास बेतरतीबी से पार्क करके रखे गये 
                          स्कूटरों वगैरह की वजह से काफी धीमी रहती है और 
                          दुर्घटनाएँ नहीं हो पाती। आइसक्रीम तो यहाँ हिंदुस्तान के किसी भी शहर की तुलना में सबसे ज्यादा 
                          खाई जाती है। आयोजन कोई भी हो, आम तौर पर समापन इसी से 
                          होता है। वैसे तो अहमदाबाद का 
                          ट्रैफ़िक और ट्रैफ़िक सेंस इतना 
                          शानदार है कि आपको वहाँ जा कर नये सिरे से ड्राइविंग 
                          सीखनी पड़े। स्कूटर हो, ऊँट गाड़ी, ट्रक, ऑटो, कुछ भी 
                          वाहन हो, हैड या टेल लाइट लगवाने या जलाने का वैसे ही 
                          रिवाज नहीं, लोग-बाग लाइसेंस बनवाए बिना पूरी ज़िंदगी 
                          गाड़ी चलाते रहते हैं और इस पर हम उनसे यह भी उम्मीद 
                          करें कि वे दाएँ मुड़ते समय सिग्नल भी दें तो यह तो 
                          उनके साथ ज्यादती होगी। अलबत्ता इस मायने में ऑटो वाले 
                          इतना तो करते ही है कि मुड़ने से पहले पैर निकाल कर 
                          इशारा कर देते हैं। 
                          एक वक्त था जब अहमदाबाद की तुलना कपड़ा मिलों की वजह से 
                          मानचेस्टर से की जाती थी। आजकल इसकी तुलना हर सड़क के 
                          किनारे सजे ओपेन एयर रेस्तराँओं के कारण पेरिस से की जा 
                          सकती है। अमूमन हर चौराहे पर बने इन ओपेन एयर रेस्तराँओं 
                          में शाम को खूब रौनक रहती है। बेशक वहाँ खाने के लिए दोसा और इडली ही मिले। शाम के वक्त घूमने की एक आदर्श 
                          जगह है लॉ गार्डन। इसे लोग प्यार से लो या लव गार्डन भी 
                          कह देते हैं। वहाँ लॉ कॉलेज और गार्डन तो है ही सही, साथ 
                          ही एक ओर राजस्थान और कच्छ की कलात्मक और अति सुंदर 
                          पोशाकों के और खाने पीने के बहुत से स्टॉल भी हैं। हाँ, 
                          इन कपड़ों को ख़रीदते समय आपको जम कर भाव तोल करना पड़ेगा। 
                          वे आपको कई बार पांच गुना ज्यादा दाम भी बता सकते हैं। 
                          जहाँ तक घूमने फिरने के शौकीन लोगों का सवाल है तो वे 
                          अहमदाबाद जाने के बाद कभी निराश नहीं होंगे। शहर में दस 
                          बीस कि. मी. के दायरे में कई बेहतरीन ऐतिहासिक जगहें तो 
                          हैं ही, सौ पचास कि.मी. के दायरे में भी आपको कई ऐसी 
                          जगहें मिलेंगी कि आप की और आपके परिवार की छुट्टियाँ 
                          बेहतरीन तरीके से बीत सकें। अहमदाबाद में एक शानदार 
                          चिड़िया घर है और उसके सामने पांच सौ साल पुरानी 
                          काँकरिया झील है। यह पिकनिक स्पॉट है। अहमदाबाद में ही 
                          गांधी आश्रम है, उसके साथ साबरमती नदी है जो कभी कभार 
                          बहती भी है। साबरमती एक तरह से शहर को दो हिस्सों में 
                          बाँटती है। यह बाँटना सिर्फ भौगोलिक ही नहीं, बल्कि 
                          सांस्कृतिक, भाषिक और आर्थिक भी है। दिल्ली के जमना पार 
                          वाला मामला समझ लीजिये। जब इस नदी में पानी आता है तो 
                          इसके सातों पुलों पर एक तरह का मेला लग जाता है। लोगबाग 
                          बाकायदा अपने बीवी बच्चों को नदी में बहता पानी दिखाने 
                          लाते हैं। इनके अलावा अदलज वाव हैं जो चार पांच सौ साल 
                          पुराने ज़मीन के अंदर सात मंजिले नीचे बने हुए कलात्मक 
                          कुएँ हैं। बर्ड वाचर्स के लिए नल सरोवर तो इतिहास की 
                          ख़ाक छानने वालों के लिए मोहेंजोदड़ो की तर्ज पर कच्छ है। 
                          वैसे भी आपको सोमनाथ जाना हो, पोरबंदर या द्वारका या 
                          कच्छ सबके रास्ते अहमदाबाद हो कर जाते हैं। 
                          अहमदाबाद में खाने पीने की बहुत विविधता है। हर तरह के, 
                          हर जेब को माफिक आ सकने वाले रेस्तराँ हैं। हाइ-वे ढाबे 
                          हैं, गुजराती, कच्छी और राजस्थानी टेस्ट के बेहतरीन होटल 
                          हैं और कुछ महँगे होटल भी। शाम को आम तौर पर गरम नाश्ता 
                          करने का रिवाज है जिसके अन्तर्गत आपको हर चौराहे पर खूब 
                          सारी चीज़ें मिलेंगी। गुजरात में जैन समुदाय के लोग बहुत 
                          है अत: सभी होटल वाले उनका ख्याल रखते हैं। आपको वहाँ 
                          जैन ऑमलेट, जैन पिज़ा, जैन पाव भाजी तो मिलेगी ही, कहीं 
                          पर आपको अगर जैन हैमबर्गर का बोर्ड भी नज़र आ जाये तो 
                          चकित न हों। जहाँ तक फुटपाथ बैठ कर खाने या 
                          वहाँ खड़े हो कर चाय पीने 
                          का सवाल है, तो आपको बता दें कि अहमदाबाद में सबसे अच्छी 
                          चाय मिलती ही फुटपाथ पर है। बेशक शुरू शुरू में आपको 
                          वहाँ का माहौल देख कर चाय पीने की इच्छा ही न रहे लेकिन 
                          एक बार वहाँ की चाय पी लेने के बाद आपको फिर कहीं की भी 
                          चाय अच्छी ही नहीं लगेगी। आप हमेशा अडधी चा लें, अक्खी 
                          चा का आर्डर कभी ना दें। अडधी चा कप के कंधे तक आती है 
                          जबकि अक्खी चा प्याले से बह कर पूरी प्लेट में फैल जाने 
                          के बाद ही दी जाती है। वैसे भी उसका रिवाज नहीं है। अगर 
                          आप किसी स्थानीय आदमी के मेहमान हैं और उसके साथ चा पी 
                          रहे हैं तो वह अक्खी चा ले कर उस के दो हिस्से करेगा और 
                          खुद कप में ले कर आपको प्लेट में देगा। यह उनका प्यार 
                          जताने का तरीका है। एक बात और, जब भी आप फुटपाथ पर चा 
                          पीयें या उससे पानी मांगें, आप उसे कप या गिलास अलग से 
                          धोने के लिए कहें। वहाँ जिस पानी में चा के कप धोये जाते 
                          हैं वह पानी ही आधे घंटे में चा बन चुका होता है। 
                          अहमदाबाद में स्कूल कॉलेज बहुत हैं, अच्छे हैं और अमूमन 
                          हर चौराहे पर है। भारत का सबसे अच्छा प्रबंध संस्थान आइ 
                          आइ एम और नेशनल स्कूल ऑफ डिजाइन यहीं पर हैं। बेशक आपके 
                          बच्चे वहाँ पर न पढ़ रहे हों, फिर भी आप ये दोनों कैंपस 
                          ज़रूर देखें। ऑफिस के सामने ही आश्रम 
                          रोड पर गांधी जी द्वारा 1920 में 
                          स्थापित गुजरात विद्यापीठ है। वहाँ दक्षिण भारत का सबसे 
                          बड़ा पुस्तकालय और गांधी जी के बारे में सम्पूर्ण साहित्य 
                          प्राप्त करने का एक मात्र स्थान है। वहीं पर गांधी जी 
                          द्वारा स्थापित नवजीवन प्रेस है जहाँ आपको गांधी जी का 
                          साहित्य बहुत कम दामों पर मिल सकता है। 
                          अहमदाबाद में विद्यार्थियों में आम तौर पर साल भर पढ़ने 
                          का रिवाज़ नहीं है। अब चूंकि कॉलेज यारों दोस्तों से 
                          मिलने, खाने पीने, मस्ती करने, ड्राइव करने और मज़ा लेने 
                          जाना ही होता है इसलिए वे लोग घर से निकलते समय अपनी हिप 
                          पॉकेट में एक छोटी सी कॉपी फ़ोल्ड करके रख लेते हैं। शायद 
                          कहीं काम आ जाये। जिस तरह पूरे हिंदुस्तान में आज़ादी 
                          के इतने सालों के बाद और साक्षरता का प्रतिशत पचास के 
                          आसपास पहुँच जाने के बाद भी पेन खरीदने का रिवाज नहीं है 
                          और हर तीसरा आदमी पेन माँगते हुए नज़र आता है, उसी तरह 
                          अहमदाबाद भी इसका अपवाद नहीं है। स्टूडेंट्स बहुत 
                          मजबूरी में ही, साल में एक बार परीक्षाओं के लिए ही 
                          पेन ख़रीदते हैं। 
                          अहमदाबाद में एक अच्छी बात ये हैं कि बच्चों को कोई न 
                          कोई रोज़ाना परीक्षा सेंटर तक छोड़ने और वापिस लेने 
                          ज़रूर जायेगा। यह एक ऐसी परम्परा है जिसका पालन हर कोई 
                          करता है और पूरी निष्ठा के साथ करता है। उन दिनों 
                          दफ़्तरों में काम करने वाले उनके मां बाप फ्रेंच लीव लेकर 
                          इस महान कार्य को सम्पन्न कर रहे होते हैं। गहरी छानबीन 
                          करने पर पता चला कि घर से सेंटर तक जाने का वक्त ही 
                          दरअसल साल भर का वह इकलौता वक्त होता है जब स्टूडेंट 
                          मां, पिता या भाई वगैरह के स्कूटर आदि के पीछे बैठ कर 
                          इधर उधर से जुगाड़ कर लाये गये या मां बाप द्वारा तैयार 
                          किये गये नोट्स देख पाता है। वहीं और तभी उसे पता चल 
                          पाता है कि आज का पेपर किस चीज़ का है और उसका सेलेबस 
                          क्या है। अहमदाबाद में आपको भाषा संबंधी कोई तकलीफ नहीं होगी। 
                          गुजराती भाषा इतनी आसान है कि आप इसे समझना, पढ़ना, 
                          लिखना और इसमें बहस करना एक ही हफ़्ते में ही सीख जाएँगे। 
                          सिर्फ एक सप्ताह तक गुजराती अखबार मंगाने या पड़ोसी से 
                          माँग कर पढ़ने की ज़रूरत होगी। आपको अपने ऑफिस और पड़ोस 
                          में सैंकड़ों ऐसे तमिलियन, मलयाली, कोंकणी और विदेशी भी 
                          मिल जाएँगे जो धड़ल्ले से गुजराती में बात करते हैं और 
                          घर में गुजराती अखबार ही मँगाते हैं। 
                          अहमदाबाद में कई अच्छे बाज़ार हैं। अहमदाबाद के शॉपिंग 
                          कॉम्पलैक्सों की शानदार बनावट आपका मन मोह लेंगी। आजकल 
                          सभी सड़कों पर पुराने बंगले तोड़ कर वहाँ बहुमंज़िला शॉपिंग कॉम्पलेक्स बनाने का रिवाज सा चल पड़ा है। 
                          कार-वालों के लिए नवरंगपुरा है तो आम आदमी के लिए तीन 
                          दरवाज़ा बाज़ार, जो आपको भीड़ के कारण दिल्ली के चांदनी 
                          चौक, मुंबई के दादर या मद्रास के पॉन्डि बाज़ार की याद 
                          दिलाएँगे। वैसे 
                          जहाँ तक रोज़ाना की ज़रूरत की चीज़ों की खरीदारी का 
                          सवाल है, आपको जो कुछ भी चाहिये, कोई भी प्रॉडक्ट या 
                          सर्विस, आपको अपने ऑफिस में ही सीट पर बैठे बैठे, उसी 
                          दिन, सस्ती और गारंटी सहित मिल जाएगी। आपको गैस कनेक्शन 
                          चाहिए, लाइसेंस, राशन कार्ड, पासपोर्ट, एलआयसी की 
                          पॉलिसी चाहिए या बचत करने के लिए किसी योजना के ब्यौरे, 
                          शेयर खरीदने बेचने हों या बच्चे का एडमीशन कराना हो, 
                          ट्यूशन का मामला हो, इनकम टैक्स रिटर्न भरनी हो या 
                          अलमारी, फ़र्नीचर, कपड़ा, तौलिया, सिलेंडर, दीवाली की 
                          मिठाई, पटाखे, होली के रंग या पिचकारी, स्कूल के लिए 
                          कॉपियाँ या मौसम में आम, जो भी आपको चाहिए, आपको सीट पर 
                          ही मिल जायेगा। यहाँ तक कि अगर आपको नया चश्मा बनवाना है 
                          तो आप अपनी सीट पर बैठे हुए ही फ़्रेम पसंद करा दिया 
                          जायेगा, लंच टाइम में आपको स्कूटर पर बिठा कर नम्बर चेक 
                          कराने ले जाया जायेगा और तीसरे दिन आपकी सीट पर नया 
                          चश्मा होगा। बाज़ार से दस प्रतिशत कम कीमत पर। ये सब 
                          कैसे आएगा ये, आप को खुद ही पता चल पाएगा। हां, वैसे 
                          बैंक की एनेक्सी बिल्डिंग में ही एक को-ऑपरेटिव स्टोर भी 
                          है, वहाँ से भी आपको ये सारी चीज़ें मिल सकती हैं। 
                          गुजराती लोग बहुत ही त्यौहार प्रिय हैं। वे सभी 
                          त्यौहार बहुत धूमधाम से मनाते हैं और खुल कर खर्च भी 
                          करते हैं। चौमासा के खत्म होते न होते जो त्यौहारों का 
                          सिलसिला शुरू होता है, वह जा कर होली पर ही थमता है। 
                          नवरात्र, दीवाली और उत्तरायण में अगर आप अहमदाबाद में 
                          या गुजरात के किसी और शहर में हैं तभी आप अपनी आँखों से 
                          इन त्यौहारों की रौनक देख सकते हैं। इन्हें शब्दों में 
                          बयान नहीं किया जा सकता। उस समय पूरा गुजरात जैसे एक नशे 
                          के आलम में होता है। हर तरफ वही धूम, रंगीनियाँ और एक 
                          उमंग जो पूरी दुनिया में दुर्लभ है। उत्तरायण यानी मकर 
                          संक्रांति पर तो पूरा आकाश जैसे रंगबिरंगी पतंगों का 
                          चंदोवा तान लेता है। शायद ही किसी शहर में पतंगबाज़ी का 
                          ऐसा माहौल मिले। हर घर में सौ पचास पतंगें आना तो मामूली 
                          बात है। क्या छोटे क्या बड़े, औरतें, पुरूष सभी जैसे 
                          छतों से चिपक जाते हैं और खाना पीना, संगीत और शोर शराबे 
                          के बीच पतंगें न केवल उड़ाई जाती हैं बल्कि उत्तरायण को 
                          एक सांस्कृतिक उत्सव के रूप में जिया जाता है। अहमदाबाद 
                          में पतंगबाज़ी को अंतर्राष्ट्रीय दर्जा मिला हुआ है। 
                          तो उम्मीद करें कि आप अहमदाबाद आएँगे-जाएँगे। आप 
                          खुद अपनी आँखों से वह सब कुछ देखेंगे और जिएँगे जिसे 
                          फिर से जीने के लिए मैं वहाँ से लौटने के बाद तरस रहा 
                          हूँ।आवजो।
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