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अध्यात्म गुरु भारत
से विदेशियों का लगाव
- शुचि अग्रवाल
भारत से दूर रहकर भी मन भारत में बसता है।
आज बीस साल हो गए इन बातों को। हम भारत से नए नए
फ़्रांस आये थे एक तरफ़ा टिकट पर हमारे पतिदेव की उच्च
शिक्षा के लिए। हमारे साथ नन्हे मुन्हे प्यारे से
हमारे दो बच्चे भी थे। जीवन के उतार चढ़ाव और चुनातियों
के साथ कुछ खट्टे तो कुछ बड़े मीठे अनुभव रहे हमारे
फ्रेंच प्रवास के। भारत- एक ऐसा देश जो सबसे अलग है।
भारत में रहते हुए शायद मैं कभी इतनी गहराई से समझ ही
नहीं पाती कि भारत की जड़ें कितनी दूर तक फैली हैं।
लन्दन से ऑस्ट्रेलिया हो या दक्षिणी अफ्रीका से
मोजैम्बिक, भारत प्रेमी दूर दूर तक बसे है। लोग
नतमस्तक होते हैं भारतीय सादगी पर। ऐसे बहुत से किस्से
हैं चार साल के फ्रेंच प्रवास के जो आज बरसों से
अमेरिका में रहने के बाद भी मन में बसे हैं। यादों के
झरोखों से कुछ किस्से साझा कर रही हूँ।
एक शाम मैं बच्चों को म्यूजिक स्कूल से लेकर घर लौट
रही थी। पेवमेंट जिसे भारत में हम फुटपाथ कहते हैं, पर
एक छोटा सा चूहा पड़ा था, जो थोड़ा हिल रहा था पर चल
नहीं पा रहा था। हम वहीं रुक गए। मैं अभी सोच ही रही
थी कि इसे कैसे बचाऊँ, कि तभी एक ब्रिटिश महिला जो
म्यूजिक स्कूल से इसी तरफ आ रही थी मुझसे बोली- “क्या
हुआ”?
मैंने कहा- “यह चूहा यहाँ पड़ा है। कहीं मर न जाये किसी
के पैर के नीचे दब कर”।
वो मुझसे बोली- “तुम हिंदू हो क्या”?
प्रश्न बड़ा अटपटा था। चूहे का मेरे धर्म से क्या
संबंध?
मैंने कहा- “हाँ”।
वो बोली- “अच्छा, चलो इसको उठाकर बगल के घर के अन्दर
गमले में रख देते हैं”।
चूहे को उठाकर गमले में रखते हुए वो ब्रिटिश महिला
चूहे से कह रही थी- “प्रिय चूहे, आज एक हिंदू ने
तुम्हारी जान बचा ली, याद रखना”।
फिर वह महिला मुझसे बोली- “मैंने पढ़ा था इंडी (भारत)
के बारे में। देखा आज पहली बार। आपसे मिलकर खुशी हुई”
फिर हमने परिचय का आदान प्रदान किया।
यह देखकर गर्व का अनुभव हुआ कि लोग जानते हैं हम कौन
हैं और क्या है हमारी सभ्यता। भारत के लिए एक सम्मान
का भाव दिखा उस महिला की बातों में। मुझे गर्व हो रहा
था खुद के एक हिन्दू और भारतीय होने पर।
***
हमसे दो साल सीनियर पाकिस्तानी स्कालर जाहिद भी पीएचडी
प्रोग्राम में थे जिनकी शोध वित्तीय विभाग में थी।
उनके भी दो छोटे बच्चे थे। धीरे धीरे पहचान बढ़ने लगी।
गोरा रंग, बड़ी बड़ी बोलती हुई आँखें, नुकीली नाक और
सुंदर नयन नक्श वाली जाहिद की पत्नी आयशा बहुत मिलनसार
थी। पाकिस्तान में किसी कूटनीतिक परिवार से ताल्लुक
रखती थी। उसका उर्दू बोलने का लहजा कुछ वैसा ही था
जैसे अपने भारत में पंजाबी लोग हिन्दी बोलते हैं।
आयशा ने हमें अपने घर खाने पर बुलाया। हमारे लिए
खासतौर पर शाकाहारी बिरयानी बनायी। एक खास किस्म की
बिरयानी जो मैं पहली बार खा रही थी। बहुत स्वाद था
उसमें और दिल जीत लेने वाली खुशबू। उसने बताया कि इसे
बॉम्बे बिरयानी कहते हैं। उसने हमारे साथ अपनी बिरयानी
की विधि भी साझा की। आज भी मेरी वेबसाइट पर आयशा की
बतायी हुई बॉम्बे बिरयानी की रेसिपी खूब सराही जाती
है।
आयशा कहती थी- “अरबी मुसलमानों से ज्यादा वह स्वयं को
भारतीय हिंदुओं के करीब महसूस करती हैं”। उसका कहना था
कि “हम दोनों का खानपान, वेशभूषा, भाषा, संस्कृति आदि
काफी मिलती जुलती है, जिससे उसका भारतीयों के साथ एक
जुड़ाव सा था”। उसकी यह बात मन को बहुत भाती थी ।
***
साँवले रंग और तीखे नयन नक्श वाली लिंडा दक्षिण
अफ्रीका की रहने वाली थी। वह इंसेयाड में काम करती थी।
लिंडा की दो छोटी बेटियाँ थीं और उसका स्पैनिश पति
खदान संस्थान में प्रोफेसर था। लिंडा से खूब बात हो
जाती। वह हमेशा हँसती रहती थी। उसने बताया कि जब गाँधी
जी दक्षिण अफ्रीका में रंगभेद के खिलाफ आंदोलन कर रहे
थे, उसी समय उसके परिवार के कुछ लोग भारत से दक्षिण
अफ्रीका में बस रहे थे। उसके बाद वहीं लोकल लोगों में
शादी हो गई - इस प्रकार उसके परिवार में भारत और
दक्षिण अफ्रीका दोनों का संगम था। पिछली पीढ़ी में रही
भारतीय जड़ें लिंडा को भारत से जोड़े थीं और वो चाहती थी
कि कभी मौका मिले तो वो भारत जाकर कुछ समय वहाँ बिताए।
छोटा सा शहर था तो आते जाते हमारी मुलाकात हो ही जाती
और फिर हमारी दोस्ती हो गई और एक दूसरे के घर आना जाना
शुरू हो गया।
***
गर्मी के मौसम में हमारे अपार्टमेंट की सोसायटी की तरफ
से एक पार्टी का आयोजन किया गया। मौसम खूब सुहाना हो
रहा था। शाम का समय था। बड़ी बड़ी मेज के इर्द गिर्द
कुर्सियाँ लगीं थीं। सामने बफ़े सजा था। बफ़े मौलिक रूप
से फ्रेंच भाषा का ही शब्द है। बफे में कई प्रकार के
व्यंजन एक साथ रखे होते हैं– जिसे खुद से परोसा जा
सकता है। फ़्रांस में खाना बैठकर ही खाने का चलन है–
खड़े होकर कोई नहीं खाता।
बच्चे झूलों पर खेल रहे थे और बड़े एक दूसरे से बातें
कर रहे थे। हमें कोई पहचान का नहीं दिख रहा था तो हम
दोनों पति पत्नी आपस में बातें कर रहे थे।
अचानक एक हैंडसम से फ्रेंच सज्जन हमारी तरफ आए। हमको
देखकर मुस्कराये और बोले- “बोंजूर, आप लोग नए हैं
क्या”?
हमने भी बोंजूर बोला और बताया हम पिछले महीने ही इस
अपार्टमेंट में शिफ्ट हुए हैं।
उन सज्जन ने अपना परिचय दिया। उनका नाम था ओलिवर।
ओलिवर ने हमसे पूछा- “हम भारतीय हैं क्या”?
हमने हाँ में सिर हिलाया और फिर अंग्रेजी और फ्रेंच के
मिश्रण के साथ बातचीत शुरू हुई।
ओलिवर ने “ला सोरबोन यूनिवर्सिटी” पैरिस से कला विषय
में परास्नातक किया था। वो पेंटर थे और घर के पास ही
उनका स्टूडियो भी था। पेंटिंग बनाना ही उनका काम था और
यही उनकी जीविका थी।
हम साथ ही बैठ गए। बातों का सिलसिला शुरू हुआ। ओलिवर
ने बताया कि उनका भारत से विशेष लगाव है। दो साल पहले
ओलिवर भारत गए थे। नयी दिल्ली हवाई अड्डे पर उनका
सूटकेस नहीं मिला। दिल्ली से उसी दिन उनको बनारस जाना
था तो वो बनारस चले गए और बनारस के होटल का पता लिखा
गए। बनारस पहुँचने पर किसी ने उनको किसी मंदिर के बारे
में बताया कि अगर वहाँ जाकर माथा टेकोगे तो तुम्हारा
सूटकेस मिल जाएगा। और ओलिवर उस मंदिर में दर्शन को गए।
अगले दिन ओलिवर का सूटकेस मिल गया! ओलिवर ने जिस अंदाज
में किस्सा सुनाया वो बड़ा रुचिकर था। हमें आनंद आ गया
उनकी कहानी सुनकर।
फिर ओलिवर ने हमसे पूछा कि- “क्या हम भी कुछ पाने को
ईश्वर के दरबार में जाते हैं”?
हम लोग मुस्कराये- “हाँ बिल्कुल, हम भी परमपिता ईश्वर
के दरबार में अर्जी लगाते रहते हैं”।
उस शाम पार्टी में मांसाहार ही ज्यादा था और हर तरफ
बेकन (सूअर का माँस) की बदबू थी तो हमने कुछ खाया तो
नहीं किन्तु ओलिवर से दोस्ती हो गई। ओलिवर एक महिला
लिज के साथ लिव इन में थे जो उनसे उम्र में कोई १५ साल
बड़ी रही होंगीं। वह महिला बहुत अच्छे स्वभाव की थीं।
उनका अपने पहले पति के साथ तलाक का केस चल रहा था। और
वे अपने तीन बेटों के साथ ओलिवर के साथ रह रहीं थीं।
फ़्रांस का यह नियम है कि लिव इन या फिर दूसरी शादी में
बच्चों को भी अपनाना होता है।
इसके बाद हमारी और ओलिवर की दोस्ती हो गई और हमने एक
दूसरे को कई बार खाने पर भी बुलाया। लिज ने एक बार
बहुत स्वादिष्ट “एप्पल क्रम्बल” बनाया था। उन्होंने
इसको बनाने की विधि भी हमारे साथ साझा की जिसे बाद में
कुछ बदलाव के साथ मैंने अपने पाठकों के साथ साझा किया।
लिज के बड़े बेटे को रोटी बनाना सीखना था तो मैंने उसे
रोटी बनाना सिखाया और मजे की बात यह कि उसने तीसरी
रोटी ही एकदम गोल बेल ली। इस तरह से अपने इस फ्रेंच
प्रवास में मैंने अलग अलग देशों के व्यंजन बनाने सीखे
और भारतीय व्यंजन बनाने सिखाए भी।
फ़्रांस छोड़ते समय ओलिवर ने हमें एक पेंटिग भेंट की। यह
पेंटिग ओलिवर ने फोनतेनब्लो के जंगल में बैठकर बनायी
थी। “ल फोरे द फोनतेनब्लो” यानि कि फोनतेनब्लो का जंगल
का बहुत सुंदर चित्रण था। आज इतने सालों बाद भी वह
पेंटिंग हमारे घर में सजी है जो हमें ओलिवर की याद
दिलाती रहती है।
***
हमारे छः वर्षीय सुपुत्र के स्कूल में लगभग २२
नागरिकता के बच्चे पढ़ते थे। हर वर्ष अप्रैल के महीने
में स्कूल में “फैत ऐंतरनैसियोनेल” यानि कि
अंतर्राष्ट्रीय महोत्सव मनाया जाता था। इस अवसर पर
स्कूल में विभिन्न देशों के स्टॉल सजते जिसको उस देश
से संबंधित अभिवावक सजाते और अपने देश का प्रतिनिधित्व
करते। कोशिश यह होती कि उस छोटे से स्टॉल पर आप अपने
देश को ज्यादा से ज्यादा दिखा सकें। अपने देश की
विशेषता जैसे कि भोजन, संस्कृति, इतिहास, वेशभूषा जो
भी आप प्रदर्शित करना चाहें कर सकते हैं।
स्कूल में एक भारतीय अध्यापिका भी थीं। वे अंग्रेजी
पढ़ाती थीं। हमने मिलकर भारत का स्टॉल लगाया। जिसमें
बाकी सब जानकारी और सजावट के साथ हमने बच्चों के खाने
के लिए थोड़ा मीठा और नमकीन भी बना कर रखा। काजू बर्फी,
समोसे, मठरी आदि बच्चों और अभिवावकों को बहुत पसंद आ
रहे थे। मैं बच्चों के हाथ पर मेहंदी से टैटू जैसे
छोटे डिजायन भी बना रही थी। बच्चे खुश हो रहे थे।
यहीं पर मेरी मुलाकात हुई वौरलेत से। वौरलेत फ्रेंच
थीं लेकिन फर्राटा हिन्दी बोलती थीं। मैं तो वौरलेत की
हिन्दी सुनकर दंग रह गई। मैं उत्सुक थी यह जानने के
किये कि इतनी अच्छी हिन्दी कैसे बोलती हैं वे ?
मेरे यह पूछने पर वौरलेत बोलीं- “मम्मी की कृपा से”।
वौरलेत ने बताया कि जब वे पहली बार भारत घूमने गयीं तो
सबसे पहले वे राजस्थान गयीं। यहाँ वो एक स्थानीय
परिवार से मिलीं। परिवार की महिला जिसे सब मम्मी कहते
थे, उनको अंग्रेजी बिल्कुल नहीं आती थी। उन महिला के
साथ पहली ही मुलाकात में जैसे वौरलेत का जुड़ाव सा हो
गया। वौरलेत और मम्मी के बीच मूक ममता की भाषा थी।
वौरलेत उस महिला को मम्मी कहने लगीं। मम्मी से बात
करने के लिए वे धीरे धीरे हिन्दी शब्दकोश से शब्द
जोड़ने लगी। उस पूरे परिवार ने वौरलेत को अपनी बेटी के
जैसे अपना लिया और वौरलेत भी उस परिवार से जुड़ती गयीं।
वौरलेत लगभग हर वर्ष भारत जाने लगीं। उनके भारत प्रेम
का आलम यह था कि वौरलेत अपने बॉयफ्रेंड को भारत लेकर
गयीं और वहाँ हिन्दू रीतिरिवाज से शादी की।
अगले वर्ष स्कूल के सालाना उत्सव, “फैत ऐंतरनैसियोनेल”
के लिए वौरलेत हमारे साथ भारतीय स्टॉल में साड़ी में
खड़ी थीं। बाकी सब तो ठीक है लेकिन भारतीय खाने की
उन्होंने बड़ी रेड़ पीट दी जब वो सूजी का हलवा जैतून के
तेल में बना लायीं। दोस्ती और प्यार तो ठीक है, लेकिन
जैतून के तेल का बना वो हेल्दी हलवा ना हलक के नीचे जा
रहा था और ना ही उसे थूक सकते थे। वह हलवा उस शाम
नीलकंठ के जैसे मेरे गले में ही अटका रहा।
ऐसे रोचक किस्से रोजाना में होते रहते हमारे साथ। कभी
लगता कहाँ फँस गयी परदेस आकर तो कभी किसी विदेशी की
मदद और प्यार अभिभूत कर देता। कभी मैं आश्चर्य से भर
उठती जब किसी विदेशी से पूछती आपको अंग्रेजी आती है
क्या, मेरी फ्रेंच कमजोर है और वो कहती कि अंग्रेजी तो
नहीं लेकिन हिन्दी आती है। |