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								'व्यंग्य
                              यात्रा' एवं हिंदी भवन के संयुक्त
                              तत्वावधान में आयोजित, 'रवींद्रनाथ
                              त्यागी स्मृति व्याख्यान माला' का उद्घाटन
                              व्याख्यान देते हुए प्रख्यात कथाकार श्री कमलेश्वर
                              ने कहा - "आज देश जल रहा है, पैट्रोल
                              डालकर एक व्यक्ति अपने को आग लगा रहा है,
                              ऐसे में बस एक कैमरा दूसरे कैमरे को शूट
                              कर रहा है। न किसी के हाथ में पानी की बाल्टी
                              है और न ही हाथों में कंबल है। मीडिया के
                              सरोकार आज उस रूप में ख़त्म हो गए हैं जिस
                              प्रकार मनुष्य के मनुष्य से सरोकार होते हैं।
                              आज मीडिया को केवल अपने ही सरोकारों से
                              मतलब रह गया है। आज गाते-गाते लोग
                              चिल्लाने लगे हैं और यह चिल्लाहट व्यंग्य
                              में बदल गई है।" इस अवसर पर श्री
                              कमलेश्वर ने अनेक ऐसे किस्सों को याद किया
                              जिनके केंद्र में रवींद्रनाथ त्यागी थे।
                              इलाहबाद से लेकर मुंबई तक कैसे उनका क्लास
                              फैलो उनके जीवन से जुड़ता चला गया,
                              इसे ब्यान करते हुए कमलेश्वर अनेक बार भावुक
                              भी हुए। अपने
                              अध्यक्षीय भाषण में डॉ .कन्हैयालाल नंदन
                              ने कहा - "अगर समाज बदलता है, समाज
                              के हालात बदलते हैं तो मीडिया के सरोकार
                              बदले बिना नहीं रह सकते। आज संपादक की
                              भूमिका नगण्य हो गई है। अब तो सारे
                              सरोकार प्रबंधक ही तय करता है। एक दशक में
                              मीडिया के जिस तेज़ी से सरोकार बदले हैं,
                              पिछले चालीस सालों में नहीं बदले। आज
                              परचेज़िंग पॉवर वाले जनजीवन पर ही
                              मीडिया की नज़र है, आदिवासी जनजीवन पर
                              नहीं। अपवाद हर जगह पर हैं, मीडिया में भी
                              हैं। लेकिन बहुलांश विज्ञापन बटोरने के
                              लिए मीडिया का इस्तेमाल कर रहा है। ज़ाहिर है
                              कि जब सौ और सवा सौ करोड़ की रकम
                              लगाकार कोई चैनल खड़ा किया जाएगा तो खास
                              ब्याज के साथ उसकी वसूली भी तो की जाएगी।
                              अख़बारों और मीडिया में साहित्य और संस्कृति
                              के प्रति सरोकार खारिज की तरफ़ ज्यादा हैं।" इस
                              अवसर पर श्री हरिपाल त्यागी द्वारा तैयार किए गए
                              रवींद्रनाथ त्यागी के तैलचित्र का अनावरण भी
                              किया गया।कार्यक्रम के आरंभ में डॉ .ज्ञान चतुर्वेदी,
                              प्रेम जनमेजय, सुश्री इंदु त्यागी एवं हरीश
                              नवल ने रवींद्रनाथ त्यागी की रचनाओं का
                              पाठ किया और उनको अनेक संस्मरणों के
                              माध्यम से याद किया। इस अवसर पर श्रीमती
                              शरदा त्यागी, विष्णु नागर, अनिल जोशी,
                              गोविंद व्यास, प्रताप सहगल, आदि समेत
                              राजधानी के अनेक महत्वपूर्ण साहित्यकार
                              उपस्थित थे।
 कार्यक्रम का संचालन प्रेम जनमेजय ने
                              किया एवं धन्यवाद ज्ञापन डॉ रत्नावली
                              कौशिक ने किया।
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                              जून 2006
            
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