| 'वागर्थ
            र्' के संपादक रवीन्द्र कालिया ने इस बात पर चिन्ता व्यक्त की कि
            युवा पीढी देवनागरी के स्थान पर एसएमएस और ई-मेल
            में धडल्ले से प्रयोग कर रही है। इस से देवनागरी को
            सामने रोमन लिपि ने एक चुनौती खडी कर दी है। उन्होंने ये
            विचार लंदन के नेहरू केन्द्र में हुए अतर्राष्ट्रीय इंदु शर्मा कथा
            सम्मान एवं पद्मानंद साहित्य सम्मान के आयोजन के अवसर
            पर प्रकट किए। 
 इस अवसर पर अतर्राष्ट्रीय इंदु शर्मा कथा सम्मान साहित्यकार
            विभूति नारायण राय को उनके उपन्यास 'तबादला' के लिए दिया
            गया। साथ ही बीबीसी की अध्यक्ष अचला शर्मा को उनके
            रेडियो नाटकों के संग्रह 'पासपोटर्' और 'जडें' के लिए
            पांचवां पद्मानंद साहित्य सम्मान दिया गया।
 
 कार्यक्रम के मुख्य अतिथि रवीन्द्र कालिया ने आगे कहा कि एक
            समय था जब दक्षिण भारत में हिन्दी को स्वीकार नहीं किया जा
            रहा था, मगर आज जब यहां स्थिति बदल रही है तो अब उसके
            सामने प्रौद्योगिकी को अनुरूप ढलने की चुनौती है। उन्होंने
            कहा यह दुर्भाग्य की बात है कि हिन्दी के साथ कुछ ऐसा है कि वह
            एक कदम आगे बढती है और उसे दो कदम पीछे हटना पड़ जाता है।
 उन्होंने इस वर्ष अतर्राष्ट्रीय इंदु
            शर्मा कथा सम्मान से अलंकृत उपन्यास 'तबादला' के बारे में
            कहा कि 'तबादला' भारत में तेजी से फैल रहे 'तबादला' उद्योग की
            सही तस्वीर प्रस्तुत करता है। 'तबादला' की तुलना श्रीलाल शुक्ल के
            राग दरबारी के साथ किए जाने पर रवीन्द्र कालिया का कहना था,
            "यथार्थ भी गतिशील है। जैसे अपने समय के यथार्थ का
            चित्रण श्रीलाल शुक्ल ने राग दरबारी में किया था, उसी तरह
            आज के यथार्थ का चित्रण विभूति नारायण राय ने तबादला में
            किया है। अध्यक्षीय भाषण देते हुए नेहरू
            केन्द्र के निदेशक पवन कुमार वर्मा ने कहा कि हिन्दी रोजगार से
            जुड़ चुकी है और हिन्दी में ही भारत का भविष्य है। 'तबादला'
            की भाषा एवं कथानक की तारीफ करते हुए उन्होंने कहा कि श्री
            विभूति नारायण राय बधाई के पात्र हैं कि पुलिस की नौकरी
            में रहते हुए भी उन्होंने तबादला जैसे निर्भीक उपन्यास की
            रचना की है। उन्होंने कथा यूके को आश्वासन दिया कि
            भविष्य में नेहरू केन्द्र कथा (यूके) और हिन्दी की
            साहित्यिक और रचनात्मक गतिविधियों के लिये हमेशा उपलब्ध
            रहेगा। इस अवसर पर श्री वर्मा ने कथा (यूके) द्वारा
            प्रकाशित संकलन कथा दशक (संपादक - सूरज पकाश) का भी
            विमोचन किया। कथा (यूके) के महासचिव
            एवं कथाकार तेजेन्द्र शर्मा ने इंदु शर्मा कथा सम्मान के दस
            वर्षों की खट्टी मीठी यादों का जिक्र करते हुए कहा कि इस यात्रा
            में जहां एक ओर डा धर्मवीर भारती से लेकर सूरज प्रकाश
            जैसे कई अन्य साहित्यकारों ने उन्हें कभी न भूलने वाले पल
            दिए हैं, वहीं प्रकाशकों की पुरस्कार एवं सम्मान को लेकर पूरी
            उदासीनता उन्हें समझ नहीं आई। जब वे मुड कर पीछे देखते हैं,
            तो पाते हैं कि प्रकाशक किसी भी रूप में इस यज्ञ में उन्हें
            अपने साथ खडा नहीं दिखाई देता।अंतर्राष्ट्रीय इंदु शर्मा कथा सम्मान प्राप्त करने वाले विभूति
            नारायण राय का कहना था कि हिन्दी के अधिकतर पुरस्कार अपनी
            विश्वसनीयता खो चुके हैं, और इसीलिए उन्हें बहुत कम
            लोग गंभीरता से लेते हैं। खुशी की बात है कि अभी भी इंदु
            शर्मा कथा सम्मान की प्रतिष्ठा बरकरार है, और इसीलिए लोग
            उत्सुकता से हर वर्ष इसकी घोषणा की प्रतीक्षा करते हैं। हमारे
            समाज की जो विकृतियां और विषमताएं हैं, मेरे विचार
            में उसे व्यंग्य के माध्यम से अधिक बेहतर तरीके से व्यक्त किया
            जा सकता है।
 'तबादला' उपन्यास पर अपना आलेख
            पढते हुए, भारतीय उच्चायोग के हिन्दी एवं संस्कृति अधिकारी श्री
            अनिल शर्मा ने कहा कि यह उपन्यास उत्तर भारत की कार्य संस्कृति,
            सामाजिक राजनीतिक परिवेश, ऊपर से नीचे तक जड जमा चुके
            भ्रष्टाचार, जातिवाद, पैसे और सेक्स के वीभत्स और
            घिनौने गठजोड की कथा है। इसमें कुंभ को रूपक के रूप में
            इस्तेमाल किया गया है। यह उपन्यास धन, सेक्स और राजनीति
            के संगम को परत दर परत सामने लाता है। उपन्यास में उत्तर
            भारत की नस नस में फैलै जातिवाद के जहर का चित्रण अंडर करेंट
            की तरह उपस्थित है। कथा (यूके) ने इस उपन्यास को
            सम्मानित कर यह सिद्ध कर दिया है कि कथा (यूके) के
            साहित्य के मूल्यांकन के मानदण्ड उत्कृष्ट हैं। पद्मानंद साहित्य सम्मान से
            सम्मानित अचला शर्मा ने इस मौके पर रेडियो नाटकों की
            विधा पर चर्चा करने के साथ ही आजकल टेलिविजन पर दिखाए
            जा रहे फिल्म छाप धारावाहिकों पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा,
            "टेलिविजन पर नाटक की जो स्वस्थ परंपरा 'हम लोग',
            'तमस', 'कक्का जी कहिन' जैसे धारावाहिकों ने डालने की
            कोशिश की थी, वह कब की लुप्त हो गई है। और उसके साथ ही
            लुप्त हो गया है आम आदमी, लुप्त हो गई है आम औरत।" अचला शर्मा ने इस बात की उम्मीद
            जाहिर की कि भारत में रेडियो के सुनहरे दिन फिर लौटेंगे।
            उनका कहना था, "मेरा विश्वास था कि घर-घर तक, घर-घर
            की कहानी पहुंचानी है तो रेडियो जैसा सशक्त माध्यम
            दुनियां में दूसरा नहीं है। अब लोग शायद सोचेंगे कि
            मैं कितना गलत सोचती थी। मगर मेरा विश्वास आज भी
            बरकरार है कि रेडियो के वे दिन फिर लौटेंगे।" इस
            अवसर पर कृष्णकांत टंडन ने अचला शर्मा के रेडियो नाटकों पर
            मीडिया समीक्षक सुधीश पचौरी के लेख के अंश का पाठ किया
            जिसमें श्री पचौरी ने इन नाटकों में परंपरावादी और
            युरोपीय मूल्यों की जीवंत, रचनात्मक मुठभेड का उल्लेख
            किया है। सुधीश लिखते हैं, "एक
            खुला-खुला ग्लोबल नजरिया, एक सख्त किस्म की मानवीयता,
            गहन संवेदनशीलता, जीवन के मार्मिक प्रसंगों की गहरी
            पहचान, बदलते समय की अनंत जटिलताओं के भीतर प्रवेश कर
            उनकी परतों को खोलना, प्रवास, प्रवासी अस्तित्व और इस
            जीवन्त जगत के मानवीय मूल्यों को परत दर परत खोलते जाने
            वाली अचला को इन नाटकों के जरिए इस लेखक ने एक बार फिर
            जाना है।" उन्होंने इस मौके पर इस बात की
            भी सराहना की कि एसे समये में जबकि बडे़-बडे़ साहित्य
            सम्मान अपनी विश्वसनीयता खो चुके हैं, इन दोनों
            पुरस्कारों की विश्वसनीयता बढ रही है। यूके हिन्दी समिति के अध्यक्ष
            डा पद्मेश गुप्त ने यूनाइटेड किंगडम के हिन्दी जगत की ओर
            से कथा (यूके) एवं तेजेन्द्र शर्मा को पुरस्कारों की
            दसवीं वर्षगांठ पर बधाई देते हुए कहा कि किसी भी पुरस्कार या
            कार्यक्रम की घोषणा कर देना बहुत आसान होता है किन्तु उसे
            अनवरत दस वर्षों तक कार्र्यान्वित करते जाना एक महत्वपूर्ण
            उपलब्धि बन जाता है।इस अवसर पर अचला शर्मा के रेडियो नाटक 'परिंदे' के एक अंश का
            खूबसूरत अभिनय के साथ मंचन किया सलमान आसिफ एवं
            दीप्ति कुमार ने जबकि विभूति नारायण राय के उपन्यास
            'तबादला' के अंश की रोचक प्रस्तुति परवेज आलम ने की। सरस्वती
            वंदना भारत से पधारे परमानंद शर्मा ने की।
 अन्य लोगों के अतिरिक्त कैलाश
            बुधवार, सत्येन्द्र श्रीवास्तव, सुषम बेदी (न्यूयॉर्क),
            गौतम सचदेव, मोहन राणा (बाथ), निर्मला सिंह (बरेली),
            इंद्रजीत पाल (मुंबई), केसी मोहन, सलमा जैदी,
            विजय राणा, मीरा कौशिक, संतोष सिन्हा, शिवकांत शर्मा,
            महेन्द्र वर्मा, उषा वर्मा, राहुल बेदी, तितिक्षा शाह, शैल
            अग्रवाल, डाकेके श्रीवास्तव, वेद मोहला, हिना बक्षी,
            रमेश पटेल, मंजी पटेल वेखारिया, भारतीय जीवन बीमा
            निगम के सतीश चन्द्र सिंह, एवं एअर इंडिया की भाषा ठेंगडी
            ने कार्यक्रम में उपस्थित रह कर कार्यक्रम की गरिमा बढाई।
                              
            
                                नैना शर्मा,
            लंदन से
            
                               |