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                          | कहीं
            मनोविनोद ना बने गरीबों का दुःख
             (इन्दौर से) |  
                          |  | चित्र
            में : बाएं से वेबदुनिया के प्रधान संपादक रवीन्द्र शाह और
            कथाकार स्वयं प्रकाश |  इन्दौर। लेखक ज्योतिषी नही होता। वह
      भविष्यवाणी कर सकता है। कई बार वह आपसे कम जानता है। लेकिन
      लेखक संवेदनशील होता है वह लोगो की भी सुनता है जिनकी कोई
      सुनने की जरूरत नही समझता।अपनी बात भी वह करता है और आपकी
      भी।भूमंडलीयकरण पर हजार बातें सुन लीजिये लेकिन इन्दौर के
      किसी पिछडे इलाके के निम्न मध्यवर्गीय परिवार वाले पति पत्नी के
      सम्बन्धों पर उसका क्या असर पडता है,इसकी शिनाख्त एक लेखक ही कर
      सकता है। यह कहना है सुपरिचित कथाकार स्वयं
      प्रकाश का।वे बेबदुनिया साहित्य चैनल की ओर सेआयोजित एक
      संगोष्ठी को संबोधित कर रहे थे।इसमें उन्होने रचनाशीलता और
      आधुनिक मीडिया पर अपनी बेबाक राय प्रस्तुत की कि जल्द ही मीडिया के
      विकाश के साथ साहित्य में एक तरफा यातायात बंद होगा, पाठक और
      लेखक मिल कर लिखेंगे।उन्होने कहा कि रफ्तार बहुत है।सूचना
      माध्यमों में होने वाले विकास और परिवर्तनों से जुडे लोग
      भी ठीक ठीक दावा नही कर सकते कि अगले पांच वर्ष में मीडिया का
      स्वरूप क्या होगा। मीडिया की दुनिया कैसी होगी।यहां यह भी
      विचारणीय है कि इन माध्यमों पर अधिपत्य किसका होगा।गरीब की
      बात इन्टरनेट पर कोई करेगा भी की नही और करेगा तो क्यों
      करेगा।यह भय अवश्य है कि गरीबों की बात को संपन्न वर्ग शुगल
      न बना ले। दुख और चिन्ता के कारणों को अपना मनोविनोद
      बनाने की बौद्धिक क्रूरता दिखायी देने लगी है इसके बढते जाने का
      खतरा है।  मध्यवर्ग का चरित्र बदल रहा
      है।वंचित की पीडा से अब हमारे बच्चे बोर होने लगे है।नई पीढी
      को सब कुछ जल्दीजल्दी चाहिए।जिसके पास नही है उसके बारें में
      वह कहते हैं कि उसमें कुछ पाने की योग्यता ही नही थी।उसे धिक्कार
      मिल रही है। बहुत सारे बदलाव वैश्विक स्तर पर आए हैं, जिससे
      हमारा समाज प्रभावित हो रहा है।सोवियत रूस के पतन के बाद
      भूमंडलीय और बहुराष्ट्रीय कंपनियो की होड के बीच शक्तिशाली
      देशों को छोटे राष्ट्रों की संप्रभुता भी खलने लगी है।तीसरी
      दुनिया के देशों के साथ बदतमीजियां हो रही है।हमारे देश की
      कृषि पर भी धावा बोलने की कोशिश हो रही है। यदि हमारे देश की
      कृषि बरबाद हो गयी तो बचेगा क्या।मीडिया वंचितो के दुख दर्द का
      साथी नही बल्कि रेवन्यू पर जोर देता है।5 लगाया है तो 10 चाहिए,
      देखना यह होगा कि नए मीडिया के आपरेटर को आजादी कितनी है अपनी
      बात कहने की। हमें वैकल्पिक मीडिया की भी चर्चा करनी होगी। हमें
      मीडिया में जनपक्षधरता के लिए गुंजाइश बराबर रखनी होगी। कभी तमाम व्यस्तताओं के बीच भी
      गांधी और तिलक ने अखबार निकाले थे।वे जानते थे मीडिया की
      भूमिका अहम होती है।कहानी को छपाने के बदले सुनाया भी जा सकता
      है।नाटक सभागृह के बदले नुक्कड पर भी किए जा सकते है। इलेक्ट्रानिक
      मीडिया में भी विकल्प की तलाश आवश्यक है। हमें इस पर भी विचार
      करना होगा कि इस मीडिया पर नियंत्रण किसका है और उसके
      व्यावसायिक और वर्गीय हित क्या है।यह अब एक जानी हुयी बात है कि
      कोई अपने भाग्य से नही कमाता,दूसरे का मार कर खाता है। किसी न
      किसी अर्थ में मुनाफा कमाने वाला शोषण कर रहा होता है। टीवी
      चैनलों पर अमीर से अमीर व्यक्ति का बिस्तर, कमरा,परफ्यूम क्यों
      दिखाया जा रहा है।उसे हमारी नई पीठी के सपनों में शामिल किया
      जा रहा है। श्रेष्ठ जीवन की परिभाषा यूं अप्रत्यक्ष
      रूप मे गढी जा रही है।सीधे सरल मार्ग पर चल कर यह श्रेष्ठ जीवन
      हासिल नही होना है।नई पीठी को लगता है कि यह जल्दी जल्दी पाना
      है। वह तिकडम का रास्ता अख्तियार करता है या फिर कुंठा या नशे का
      शिकार बनता है। हमें यह गौर करना होगा कि एक गरीब की जेब से
      उसके बेटे की जेब में टेलकम का पैसा कौन सी अदृश्य ताकत रखवा रही
      है। ऐसे हालात में अपने देश में तीन चीजों की जरूरत है 1
      सादगी, 2 स्वावलंबन, 3 समता । हमें श्रेष्ठ जीवन की परिभाषा में
      स्टैंडर्ड आफ लाइफ नही बल्कि क्वालिटी आफ लइफ पर जोर देना होगा।
      उन्होने कहा शादियों पर होने वाला करोडों का खर्च अश्लीलता है। संगोष्ठी में वेबदुनिया के प्रधान
      संपादक रवीन्द्र शाह ने कहा कि इन्टरनेट मीडिया के तौर पर विकास की
      प्रक्रिया में है।यह अपनी भूमिका के चलते अपना विशिष्ठ स्थान बना
      लेगा। आरंभिक दौर में अन्य माध्यमों को भी अपनी जगह बनाने
      के लिए संघर्ष करना पडा है। उन्होने कहा कि  आज मीडिया ग्लैमर
      के पीछे भाग रहा है। उसने चकाचौंध की दुनिया के लोगो को अपना
      स्टार मान लिया है।गंभीर सरोकारों  से जुडे लोगो के प्रति
      मीडिया गर्म जोशी नही दिखाता और ना ही इन सबके लिए उसके पास
      बहुत स्पेस ही है। जनवादी कहानी और स्वयं प्रकाश
      विषय पर शोध कर रहे पल्लव व पत्रकारों में संजय शर्मा,
      अभिज्ञात, मनोज गुप्ता, बब्बन कुमार सिंह, बृजेन्द्र सिंह
      झाला, प्रभा राठौड, अखिलेश पांडेय ने भी आधुनिक मीडिया में
      जनपक्षधरता की संभावना पर अपने विचार प्रकट किए।
      
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