| लंदन में भारती जी को याद किया गया
 दिनांक 4 नवंबर 2001 को लंदन में प्रेस्टन यूनिवर्सिटी मिडिलसेक्स कैंपस में स्व धर्मवीर भारती की स्मृति में हिंदी परामर्श मंडल के तत्वावधान में  यूके हिंदी
      समिति द्वारा एक साहित्यिक गोष्ठी आयोजित की गई।  गोष्ठी के मुख्य अतिथि भारत के सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्री अजित कुमार ने कहा कि "हिंदी पत्रकारिता को
      गौरव शिखर पर ले जाने वाले सबसे उल्लेखनीय साहित्यकार थे धर्मवीर भारती।  उन्होंने न केवल धर्मयुग के संपादक के रूप में हिंदी पत्रकारिता को समृद्ध किया
      बल्कि अपनी गहन लेखकीय और अनुशासन से भारती जी ने धर्मयुग में लोकप्रिय लेखन एवं विशिष्ट लेखन, दोनों को उत्कृष्टता के स्तर पर पहुँचाया।"
 
 श्री अजित कुमार ने श्री भारती जी के साहित्यिक जीवन पर प्रकाश डालते हुए आगे कहा कि "उन्होंने लिखना तब आरंभ किया जब दूसरा विश्व युद्ध समाप्ति पर
      था।  उन्होंने परिमल संस्था की स्थापना की  एवं अपने लेखन में यह सवाल उठाये कि सत्य क्या है?  न्याय क्या है?  मर्यादा क्या है?  एवं उसके जवाब भी स्वयं
      अपनी तरह से दिए।"  "अंधा युग" की पंक्तियाँ "टुकड़े टुकड़े बिखर चुकी है मर्यादा, सभी ने उसको तोड़ा है, पाँडवों ने कुछ कम, कौरवों ने कुछ ज्यादा" याद
      करते हुए श्री अजित कुमार जी ने कहा कि "प्रगतिवाद एवं प्रयोगवाद का जो संघर्ष छिड़ा था उसने हिंदी को विभाजित करने का काम किया जिसके कारण भारती
      जी के लेखन को उपेक्षा और तिरस्कार का सामना करना पड़ा जिससे उनकी लेखनी पर भी कुछ समय के लिए असर पड़ा।"
 
 श्री अजित कुमार ने इस अवसर पर अपनी कुछ रचनाएँ भी सुनाई।
 
 गोष्ठी के मुख्य वक्ता केंब्रिज विश्वविद्यालय के डॉ सत्येन्द्र श्रीवास्तव ने अंधा युग पर लेगेसी ऑफ कृष्णा, कृष्णा की विरासत पर शोधपरक लेख पढ़ा।  उन्होंने
      कहा कि भारती जी की लेखनी समाज को प्रतिबिंबित करती है।  अंधा युग के चरित्रों एवं पात्रों को सत्येंद्र जी ने विशिष्ट दृष्टिकोण से प्रस्तुत किया।
 
 विशिष्ट अतिथि के रूप में भारतीय उच्चायोग के हिंदी एवं सांस्कृतिक अधिकारी श्री अनिल शर्मा ने कहा कि "हिंदी साहित्य में धर्मवीर भारती का उपयुक्त मूल्यांकन
      नहीं हुआ है।" उन्होंने कहा कि "अंधा युग युद्ध विरोधी दस्तावेज़ है।  अंधा युग के माध्यम से भारती जी ने उस पूरे युग, चरित्रों और कथानक की पुर्नव्याख्या की
      है।  जो समाज अपने इतिहास पुरूषों, ग्रंथों का पुर्नमूल्यांकन नहीं करता वह संकट को निमंत्रण देता है।"  उन्होंने धर्मयुग के संपादक क रूप में भारती जी को
      भाषा और साहित्य में अनन्य योगदान प्रेरणा स्त्रोत माना।
 
 गोष्ठि का संचालन करते हुए हिंदी परामर्श मंडल, यूके के उपाध्यक्ष डॉ गौतम सचदेव ने कहा कि भारती जी युग प्रवर्तक थे।  धर्मयुग को तो उन्होंने शिखर पर
      पहुँचाया ही, साथ ही अपने लेखन के माध्यम से प्रश्न किया कि क्या युद्ध आवश्यक है?  जो आज के माहौल में भी उतना ही महत्वपूर्ण प्रश्न है।  भारती जी की
      कहानियों एवं उपन्यासों का स्मरण करते हुए डॉ गौतम सचदेव ने उनकी लिखी कुछ महत्वपूर्ण पंक्तियों को भी प्रस्तुत किया।
 
 आरंभ में यूके हिंदी समिति के अध्यक्ष श्री पद्मेश गुप्त ने सबका स्वागत करते हुए कहा कि "भारती जी एक लेखक, एक कवि एवं एक संपादक के रूप में आज
      की पीढ़ी के लेखकों का प्रेरणा रहे हैं, प्रेरणा रहेंगे।" उन्होंने बताया कि भारती जी की स्मृति में इस गोष्ठी की परिकल्पना एवं स्वप्न डॉ सत्येन्द्र श्रीवास्तव का था
      जो आज साकार हो रहा है।
 
 इस अवसर पर भारती जी के स्वर में एक दुर्लभ ऑडियो कैसेट, जिसे डॉ सत्येन्द्र श्रीवास्तव ने स्वयं उनके साथ रिकार्ड किया था, सुनाया गया तथा साहित्य
      अकादमी द्वारा निर्मित फिल्म भी प्रस्तुत की गई।
 
 गोष्ठी में उपस्थित सुप्रसिद्ध कवि श्री ओंकारनाथ श्रीवास्तव ने भारती जी को याद करते हुए कहा कि "जो लोग उनकी
      मुखाल्फत करते थे वो भी उनको सुनना पसंद करते थे एवं उनका सान्निध्य चाहते थे।"
 
 बीबीसी हिंदी सेवा के पूर्व अध्यक्ष श्री कैलाश बुधवार ने कहा कि "भारती जी अपने अनुशासन के लिए मशहूर
      थे धर्मयुग के संपादक के दौरान में पत्रिका प्रकाशित होने से पहले उसे पूरी गहराई से पढ़ते थे और यही कारण था कि उनकी संपादित कृतियों में कभी कोई गलती नहीं होती थी।"
 
 इस अवसर पर बीबीसी हिंदी सेवा के श्री भारतेन्दु विमल, श्री अरूण अस्थाना, एवं श्री एवं श्रीमती प्रसाद साबू ने भी अपने विचार एवं संस्मरण रखे।
      गोष्ठी में सुप्रसिद्ध कवयित्री श्रीमती कीर्ति चौधरी, यूके हिंदी समिति की
      उपाध्यक्ष श्रीमती माथुर, श्रीमती नैना शर्मा, श्री तेजेन्द्र शर्मा, श्री रमेश वैश्य मुरादाबादी व अन्य लोगों
      ने भाग लिया।
 कृति शर्मायूके हिंदी समिति
 लंदन
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