| दिविक रमेश की पुस्तकों
      को राष्ट्रीय और अंन्तर्राष्ट्रीय पुरस्कार अंतर्राष्ट्रीय
      सम्मान  मई 31, 2001, एशियन
      पॅसिफिक पब्लिशर असोसिएशन की ओर से सातवे पुस्तक पुरस्कार कोरिया
      की राजधानी सिओल में दिये गये।   इतिहास में पहली बार किसी भारतीय प्रकाशक की
      हिन्दी पुस्तक को यह पुरस्कार मिला है।  यह संस्था ने एक बार में तीन पुस्तकों को तीन पुरस्कारों से
      सम्मानित करती है। सन 2000 में पितांबर प्रकाशन द्वारा प्रकाशित दिविक
      रमेश की पुस्तक 
      "कोरियायी लोक कथाएं " को कांस्य पदक से प्रतिष्ठित
      किया गया। 
       
                     राष्ट्रीय
      सम्मान
                    
                    
                    
                     भारतीय
      बाल व युवा कल्याण संस्था, खंडवा ने अपने वार्षिक बाल साहित्य
      के लिये राष्ट्रीय पुरस्कारों की घोषणा की। 
 पितांबर प्रकाशन पब्लिशिंग कंपनी प्रा लि नयी दिल्ली द्वारा प्रकाशित
      डॉ . दिविक रमेश के काव्य संग्रह 'मधुर गीत' 3 को मालती शर्मा
      पुरस्कार से 1999 से सम्मानित किया गया।
 यूके हिंदी समिति की पुरस्कार घोषणायू के हिन्दी समिति द्वारा इस वर्ष 27 अगस्त 2001 को लंदन में हिंदी दिवस के
वार्षिक कार्यक्रम में
डा सत्येंद्र श्रीवास्तव को
'हिंदी सेवा सम्मान'
एवं
सुश्री पियाली रे को
'संस्कृति सेवा सम्मान'
से सम्मानित किये जाने की घोषणा की गयी है।
 |  | नार्वे से साहित्यिक पत्रिका
      स्पाइल दर्पण विश्वजाल पर  17
      जुलाई ओसलो,     नार्वे में स्पाइल 'दर्पण' के
      कार्यालय पर श्रमिक पार्टी की नेता और संसद सदस्य मारित नीबाक ने
      नार्वे से प्रकाशित द्वेमासिक द्वेभाषिक हिन्दी
      नार्वेजीयन पत्रिका स्पाइल को विश्वजाल पर अवतरित किया। स्पाइल
      नेट के सम्पादक सुरेशचन्द्र शुक्ल को बधाई देते हुए उनकी साहित्यिक,
      सांस्कृतिक उपलब्धियों की चर्चा करते हुए मारित
      नीबाक ने कहा कि उन्होंने डॉ शुक्ल
      की कवितायें नार्वेजीय पार्लियामेन्ट में शुक्रवार को होने वाली
      संसदीय चाय काफी पार्टी में अनेक बार सुनाई है। उन्होंने
      आशा व्यक्त की कि नार्वे में इसका स्वागत किया जायेगा।
 स्पाइल (दर्पण)
      पत्रिका को विश्वजाल पर प्रकाशित होने को नार्वे में भारतीय
      राजदूत निरूपम सेन ने ऐतिहासिक बताते हुए कहा कि इससे अब भारत
      नार्वे के मध्य ही नहीं बल्कि अन्य संस्कृतियों और देशों के मध्य
      साहित्यिक और सांस्कृतिक आदान प्रदान
      बढ़ेगा। विश्वप्रसिद्ध कलाकार राया बिएलेनबर्ग ने पत्रिका को
      रेसिजम के विरूद्ध प्रयोग की सलाह
      दी तो इन्टरनेशनल फोरम की अध्यक्षा हेल्गा स्त्रोमे ने अपने प्रवासी
      संसदीय सलाहकार समिति के सदस्य साथी व सम्पादक को बधाई
      दी।  इस
      अवसर पर अनेक विद्वानों ने बधाई दी। प्रमुख थे  लेखिका
      सिगरीद मारिये रेफसुम, इंगेर मारिये लिलएंगेन, अवन्ती
      				फ्लातेब्यो, इन्दरजीत पाल, सुखदेव सिंह, 
						संगीता सीमोनसेन और
      माया भारती।  पत्र
      द्वारा बधाई देने वालों में भारत से नार्वेजीय दूतावास,
      सुप्रसिद्ध कवि एंव उत्तर प्रदेश के विधानसभा अध्यक्ष केशरी
      नाथ त्रिपाठी, कादम्बिनी के संपादक राजेन्द्र अवस्थी, विक्रम सिंह,
      यू के से तेजेन्द्र शर्मा, नार्वे से नार्वेजीय
      लेखक संघ, विकासमन्त्री सीदनेस आदि प्रमुख थे। स्पाइल (दर्पण) वेब पत्रिका के सम्पादक, लेखक सुरेशचन्द्र शुक्ल
      ने
      अपनी कविता की पंक्तियाँ पढ़ीं, "जिसका
      नहीं है दल, उसका नहीं है कल,
 आओ
      मिल मजबूत करें अपनी इन्द्रियों का बल।
 उन्होंने
      कहा कि परस्पर
      प्रेम ही हमारी शक्ति है आगे अन्य पंक्तियाँ पढ़ीं'तब तुम्हीं स्नेह लेकर प्रकाशित हुए
 चाहिये
      और क्या था सहारा मुझे,
 रूप
      कितने खड़े आज पछता रहे
 प्यार इतना मिला है तुम्हारा मुझे।
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