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फ़िल्म-इल्म

१२ अप्रैल जन्म जयंती के अवसर पर


गाते रहें हम खुशियों के गीत- गुलशन बावरा
-सुनील मिश्र
 


हिन्दी फिल्मों के जाने-माने गीतकार गुलशन बावरा का जाना पिछले समय से व्यतीत हो रहीं उन तमाम विपत्तियों में एक और कड़ी है जिसमें एक के बाद एक कृतित्व और व्यक्तित्व के धनी लेखकों, कलाकारों की क्षति हमें हतप्रभ किए हुए है। अगस्त के महीने में जब आजादी की स्मृतियों को ताजा करता देश, फिल्म उपकार के गीत, मेरे देश की धरती सोना उगले, उगले हीरे-मोती को गाता-गुनगुनाता है तब हमें इस गीत के रचयिता गुलशन बावरा के न होने की कमी बेहद खलेगी। एक ऐसा गीतकार हमारे बीच से चला गया, जिसके गीतों में बहुआयामी रंगों को देखा जाता था। प्रतिबद्धता, रूमान, दोस्ती और तमाम जज्बे उनके गीतों में दिखायी पड़ते थे।

गुलशन बावरा का व्यक्तित्व अत्यन्त सहज और आत्मीय था। छोटी उम्र की एक भयानक घटना ने उनके पूरे व्यक्तित्व को एक डरे-सहमे मनुष्य में तब्दील कर दिया था लेकिन पतली छरहरी काया में ये जीने और संघर्ष करने का हौसला भी खुद इकट्ठा करने में कामयाब हुए थे। यह सच है कि पश्चिम पाकिस्तान के शेखपुरा में अब से लगभग सत्तर वर्ष पहले बैसाखी के दिन १३ अप्रैल को जन्मे गुलशन बावरा विभाजन के बाद जब हिस्दुस्तान आ रहे थे, तभी रास्ते में उनकी आँखों के सामने उनके माता-पिता को निर्मम ढंग से मार दिया गया था। इस घटना से सिहरे गुलशन की पूरी काया में वह भय ऐसा बैठा कि जीते-जी उसके प्रभाव उनके व्यक्तित्व और अभिव्यक्ति में महसूस किए जा सकते थे। उनकी पढ़ाई-लिखाई जयपुर और फिर उसके बाद दिल्ली में हुई।

गुलशन बावरा ने छठवें दशक में तकरीबन छः साल रेलवे में नौकरी भी की। बचपन से गीत और शेरो-शायरी के शौकीन गुलशन ने अपनी माँ विद्यावती के भजन और मौलिक गीत गाने से प्रेरणा लेकर अपनी इस रुचि का विस्तार किया। बाद में उन्होंने रेलवे की नौकरी छोड़ दी और फिल्मों में गीत लिखने के लिए संघर्ष करना शुरु किया। उनको पहला अवसर फिल्म चन्द्रसेना में मिला जिसका गीत ‘मैं क्या जानूँ कहाँ लागे ये सावन मतवाला रे’, उन्होंने लिखा जिसे लता मंगेशकर ने कल्याण जी-आनंद जी के निर्देशन में गाया था। कल्याण जी-आनंद जी के ही निर्देशन में उन्होंने फिल्म ‘सट्टा बाजार’ के लिए भी गीत लिखे, चाँदी के चन्द टुकड़ों के लिए, तुम्हें याद होगा कभी हम मिले थे और आँकड़े का धंधा। युवावस्था में जमाने और रुमान को लेकर उनकी दृष्टि भी खूब थी। बीस साल की उम्र में वे इतने अच्छे गीत लिख रहे थे। दुबले-पतले गुलशन को रंग-बिरंगे कपड़े पहनने का बड़ा शौक था। अपनी गोल-मोल आँखें नचा-नचाकर ये अजब ढंग से बात करके सबको आकृष्ट कर लेते थे। एक वितरक शान्तिभाई पटेल ने गुलशन कुमार मेहता को गुलशन बावरा नाम दे दिया और तभी से वे इस नाम से लोकप्रिय हो गये।

एक गीतकार के रूप में उनको ख्याति दिलाने का काम उनके गीतों ने ही किया। मनोज कुमार की फिल्म उपकार में उनका लिखा गीत, मेरे देश की धरती, बीसवीं शताब्दी का एक अमर और यादगार देशभक्ति गीत है। सालों-साल यह गीत जवाँ होता है और अपने ही अर्थों से ऊर्जा प्राप्त करता है। अभिताभ बच्चन को स्थापित करने वाली फिल्म जंजीर में उन्होंने यारी है ईमान मेरा यार मेरी जिन्दगी और दीवाने हैं दीवानों को न घर चाहिए जैसे बेहद सफल और लोकप्रिय गीत लिखे। कहा जाता है कि अमिताभ बच्चन ने अपनी प्रिय फिएट कार जंजीर की सफलता पर गुलशन बावरा को तोहफे में दे दी थी, जिसे वे अभी तक सहेजकर रखे थे और शौक से चलाया करते थे।

गुलशन बावरा ने अपनी सक्रियता के निरन्तर समय में लगातार लोकप्रिय गीत लिखे। कल्याण जी-आनंद जी से उनकी ट्यूनिंग खूब जमती रही। लगभग सत्तर से भी ज्यादा गाने उन्होंने उनके लिए लिखे। बाद में उनका जुड़ाव राहुल देव बर्मन से भी हुआ। एक बार गुलशन उनकी टीम में क्या आये, गहरे मित्र बन गये। राहुल देव बर्मन को गुलशन सहित उनके तमाम दोस्त पंचम कहकर बुलाया करते थे। इस टीम ने भी अनेक सफल और लोकप्रिय फिल्मों में मधुर और अविस्मरणीय गीतों की रचना की। एक सौ पचास से ज्यादा गाने गुलशन और पंचम की जोड़ी की उपलब्धि है। जिन फिल्मों के लिए गुलशन बावरा ने गीत लिखे उनमे सट्टा बाजार, राज, जंजीर, उपकार, विश्वास, परिवार, कस्मे वादे, सत्ते पे सत्ता, अगर तुम न होते, हाथ की सफाई, पुकार ,सनम तेरी कसम, हकीकत, ये वादा रहा, झूठा कहीं का, जुल्मी आदि प्रमुख हैं। गुलशन बावरा ने पंचम के साथ उनकी फिल्म पुकार और सत्ते पे सत्ता में गानों में भी सुर मिलाए।

मेरे देश की धरती सोना उगले, यारी है ईमान मेरा, दीवाने हैं दीवानों को न घर चाहिए, हमें और जीने की चाहत न होती अगर तुम न होते, प्यार हमें किस मोड़ पे ले आया, जिन्दगी मिल के बिताएँगे हाल ए दिल गा के सुनाएँगे, कस्मे वादे निभाएँगे हम, वादा कर ले साजना, कितने भी तू कर ले सितम, जीवन के हर मोड़ पे मिल जायेंगे हमसफर, तू तो है वही दिल ने जिसे अपना कहा, आती रहेंगी बहारें जैसे गाने हमारे बीच जब-जब ध्वनित होंगे, गुलशन बावरा हमें बहुत याद आयेंगे।

एक गीतकार के रूप में खासे ख्यात रहे गुलशन बावरा की एक और विशेषता उनका छोटी-छोटी भूमिकाओं में कुछ-कुछ फिल्मों में दिखायी देना थी। वे शौकिया अभिनय करते थे। कई निर्देशक, जिनके लिए वे गीत लिखा करते थे, या न भी लिखा करते थे, वे उन्हें अपनी फिल्मों में एकाध कॉमिक रोल उन्हें देते थे, जिसे वे आत्मविश्वास के साथ निभाया करते थे। उपकार में सुन्दर और शम्मी के मूर्ख बेटों में मोहन चोटी के साथ एक वे भी थे। दोनों सोम-मंगल की भूमिका में थे। इसी तरह जंजीर में दीवाने हैं दीवानों को न घर चाहिए, गाने का फिल्मांकन भी उन्हीं पर हुआ जिसमें वे एक नर्तकी के साथ हारमोनियम गले में बाँधे गाते दिखायी देते हैं। विश्वास, परिवार, गँवार, पवित्र पानी, लफंगे, ज्वार भाटा, जंगल में मंगल, हत्यारा, अगर तुम न होते, बीवी हो तो ऐसी, इन्द्रजीत और एक पंजाबी फिल्म सस्सी पुन्नू में उनकी ऐसी ही भूमिकाएँ पहचानी जा सकती हैं।

गुलशन बावरा फिल्मी दुनिया में रहने के बावजूद उस दुनिया के स्याह रंग का हिस्सा कभी नहीं बने। उनकी दोस्तियाँ बड़ी सीमित थीं। वे अड्डेबाजी का हिस्सा कभी नहीं रहे मगर राहुल देव बर्मन से उनकी दोस्ती खूब निभी। पंचम की स्मृतियों और गीतों की कम्पोजिशन के पहले की सृजनात्मक प्रक्रिया और घटनाक्रमों पर उनका एक ऑडियो सीडी भी दो वर्ष पहले जारी हुआ था। सारा जीवन वे चुस्त-दुरुस्त रहे। कोई बीमारी न हुई। सुबह-शाम घूमने का खूब शौक था। रात को समय पर खाना खाकर सो जाते थे। उनकी पत्नी अंजू उनका बड़ा ख्याल भी रखती थीं। कैंसर जैसी बीमारी उनको बमुश्किल छः माह पहले हुई और देखते ही देखते इस बीमारी ने उनके जीवन को अचानक ऐसा संक्षिप्त कर दिया कि वे अलस्सुबह अचानक चले गये। गुलशन बावरा को एक प्रेक्टिकल गीतकार कहना ठीक न होगा, वे एक संवेदनशील मनुष्य थे जिन्होंने जीवन के अर्थात को बड़ी गहराई से समझा था। मृत्यु से पहले ही देहदान का संकल्प और निर्णय ले चुके गुलशन बावरा आज भले ही इस दुनिया में नहीं हैं मगर अपने अनेक गानों के जरिए शब्द-माधुर्य रचकर वे ऐसा इन्तजाम कर गये हैं कि हम उनको कभी न भुला पाएँ।

१३ अप्रैल २०१५

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