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'केदार सम्मान- २००७'  द्वारा पुरस्कार समारोह का आयोजन

प्रगतिशील हिन्दी कविता के शीर्षस्थ कवि केदारनाथ अग्रवाल की स्मृति में दिया जानेवाला चर्चित 'केदार सम्मान- २००७'  २७ सितम्बर २००८ को बान्दा नगर के आर्य कन्या इन्टर कॉलेज के हॉल में समकालीन हिन्दी कविता की चर्चित कवयित्री अनामिका को उनके कविता संकलन "खुरदुरी हथेलियाँ"  के लिए, प्रख्यात आलोचक डॉ. मैनेजर पांडेय के हाथों प्रदान किया गया।

इस अवसर पर बोलते हुए डॉ.मैनेजर पांडेय ने कहा, "खुरदुरी हथेलियाँ" की कविताओं में भारतीय समाज एवं जनजीवन में जो हो रहा है और होने की प्रक्रिया में जो कुछ खो रहा है उसकी प्रभावी पहचान और अभिव्यक्ति है। अनामिका की कविता में सामान्य जन के जीवन और उनके दु:ख-सुख को दर्ज़ करने की भावना प्रबल है, इसलिए केदारनाथ अग्रवाल के वैचारिक मूल्यों के बहुत करीब हैं। मैनेजर पांडेय के अतिरिक्त जितेन्द्र श्रीवास्तव व पत्रकार अंजना बख्शी ने भी अनामिका को सम्मान हेतु शुभकामनाएँ दीं। सम्मान ग्रहण करते हुए अनामिका ने कहा कि यह क्षण मुझे अभिभूत कर रहा है। केदारनाथ अग्रवाल को याद करते हुए अनामिका ने कहा, ''वे सहज जीवन और सहज कविता के अद्भुत चितेरे कवि थे।''

केदार सम्मान के इसी क्रम में डॉ. मैनेजर पांडेय द्वारा युवा आलोचक जितेन्द्र श्रीवास्तव को 'डॉ. रामविलास शर्मा आलोचना सम्मान' से सम्मानित किया। इस अवसर पर जितेन्द्र श्रीवास्तव को बधाई देते हुए डॉ. रघुवंशमणि त्रिपाठी ने कहा कि जितेन्द्र श्रीवास्तव ने स्त्री, दलित, साम्प्रदायिकता और किसान समस्या से जुड़े मुद्दों के परिप्रेक्ष्य में प्रेमचन्द के लेखन को देखने का नूतन प्रयास किया है, यह आकलन इन्होंने ऐसे समय में प्रस्तुत किया जब प्रेमचन्द को स्त्रीविरोधी बताया जा रहा है। जितेन्द श्रीवास्तव ने समकालीन हिन्दी कविता को उसकी समग्रता में विभिन्न कवियों के माध्यम से देखने का प्रयास किया है जिससे एक नई दृष्टि विकसित होती नज़र आ रही है। तत्पश्चात जितेन्द्र श्रीवास्तव ने केदार शोध पीठ न्यास,  'उन्नयन' पत्रिका व मैनेजर पांडेय का आभार प्रदर्शित किया।

इन दोनों सम्मानों के पश्चात डॉ. मैनेजर पांडेय द्वारा केदारनाथ अग्रवाल की चुनी हुई कविताओं का विमोचन किया गया। इस महत्त्वपूर्ण चयन का संपादन व चयन 'केदार शोध पीठ न्यास' के सचिव एवं समकालीन हिन्दी कविता के महत्त्वपूर्ण कवि नरेन्द्र पुंडरीक ने किया है। इस चयन का प्रकाशन अनामिका प्रकाशन इलाहाबाद द्वारा किया गया है। साथ ही इस अवसर पर लक्ष्मीकान्त त्रिपाठी के गज़ल-संग्रह का विमोचन भी डॉ. पांडेय द्वारा किया गया। इसका प्रकाशन भी अनामिका प्रकाशन द्वारा किया गया है।

केदार सम्मान के अवसर पर हैदराबाद से पधारे डॉ. ऋषभदेव शर्मा ने अपने वक्तव्य में कहा कि मेरे आने का सबसे बड़ा उद्देश्य कवि केदार की इस पावनभूमि को प्रणाम निवेदित करना था। आगे बोलते हुए उन्होंने कहा कि केदार की कविता मानवीय संघर्षों के प्रति अखंड विश्वास की कविता है। डॉ. शर्मा ने बल दिया कि केदार जी की कविताओं के कुछ नए पाठ तैयार किए जाने की आवश्यकता है, जिन्हें उनके अलग-अलग काल से जोड़ कर देखे जाने से कुछ नए तथ्य उद्घाटित होंगे।

केदार शोधपीठ व सम्मान समिति के निमन्त्रण पर पधारीं "विश्वम्भरा" की संस्थापक महासचिव डॉ. कविता वाचक्नवी ने केदार के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर अपना मत व्यक्त किया व उन्हें जातीय परम्परा का कवि बताया और कहा कि जातीय परम्परा में देश की धरती, धरती पर रहने वाले लोग और उन लोगों की सांस्कृतिक विरासत, मूल्य व सभ्यता आदि सभी गिने जाने चाहिए। यह भी रेखांकित किया कि एक या दो या दस संकलन या पुरस्कार आ जाने से कोई रचनाकार बड़ा नहीं होता है अपितु अपनी जातीय परम्परा में अपने सकारात्मक अवदान से उसका मूल्यांकन किया जाना चाहिए। डॉ. वाचक्नवी ने केदार के व्यक्तित्व में निहित औदात्य की चर्चा की और उसे वह मूल तत्व बताया जिससे रचना वास्तव में कालजयी हो जाती है। केदार जी के व्यक्तित्व व कृतित्व में निहित पारदर्शिता का उन्होंने विशेष उल्लेख किया।

इस अवसर पर बोलते हुए केदार शोध पीठ के सचिव नरेन्द्र पुंडरीक ने कहा कि केदार की कविता में चाहे केन नदी के सौन्दर्य के उद्दाम चित्र हों, वासन्ती हवा हो, गाँव का महाजन हो, बुन्देलखंड के लोग हों, पैतृक सम्पत्ति हो या मजदूर के जन्म की कविता हो, सभी कविताओं की भाव छवियाँ और सौन्दर्य बिम्ब अपनी धरती कमासिन में रहते हुए उनके मन में खचित हो चुके थे।

अध्यक्ष पद से बोलते हुए डॉ. मैनेजर पांडेय ने कहा कि कविता एवं साहित्य के क्षेत्र में सावधानी बरतना बहुत आवश्यक है। उन्होंने कहा कि केदार जी साहित्य के बहुत बड़े पुरोधा हैं। केदार की कविता में विविधता एवं व्यापकता है। कविता संस्कृति का निर्माण करती है और उसका संरक्षण करती है। केदार जी अपने क्षेत्र की प्रकृति के कवि हैं। प्रकृति का संस्कृति से गहरा रिश्ता होता है। चूँकि केदार प्रकृति के कवि हैं अत: वे संस्कृति का निर्माण करते हैं। केदार जी की कविताएँ मनुष्य को सामाजिक बनाती हैं।

आयोजन के इस सत्र में मुख्य रूप से इनके अतिरिक्त ज्योति अग्रवाल (केदार जी की बहू), लक्ष्मीकान्त त्रिपाठी, द्वारका प्रसाद माया ( हैदराबाद), डॉ. रामगोपाल गुप्ता, योगेश श्रीवास्तव, चन्द्रपाल कश्यप, पवन कुमार सिंह, श्री अरुण निगम (चेयरमैन के.सी.एन.आई.टी.), विजय गुप्त आदि ने सक्रिय भागीदारी निभाई। इस सत्र का संचालन 'वचन' पत्रिका के संपादक प्रकाश त्रिपाठी ने किया और आभार श्री प्रकाश मिश्र संपादक 'उन्नयन' एवं विनोद शुक्ल 'अनामिका प्रकाशन, इलाहाबाद' ने किया। आयोजन के सायंकालीन चरण में कवि-सम्मेलन सम्पन्न हुआ। जिसका संचालन डॉ. अश्विनी कुमार शुक्ल ने किया। नगर पधारे साहित्यिक आगंतुकों को विशेष रूप से केदार जी के आवास पर भी रात्रि में ले जाया गया।

२७ अक्तूबर २००८

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