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                        विजयदशमी
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						मुक्ता पाठक
 
						महिषासुर राजा बना तो उसने 
						घोर तपस्या से ब्रह्माजी को प्रसन्न कर उनसे वरदान माँगा, 
						देव, दानव व मानव- इन तीनों में से किसी भी पुरुष द्वारा 
						मेरी मृत्यु न हो सके। स्त्री तो मुझे वैसे भी मार नहीं 
						सकती। वर पा लेने के बाद उसने पृथ्वी को जीत लिया और 
						स्वर्ग पर आक्रमण करके वहाँ से देवताओं का आधिपत्य छीन 
						लिया।
 डरे हुए देवतागणों ने ब्रह्मा और विष्णु के पास जाकर अपनी 
						रक्षा एवं सहायता की प्रार्थना की। देवता जानते थे कि 
						वरदान प्राप्त होने के कारण महिषासुर का वध केवल एक स्त्री 
						ही कर सकती है। अतः उन्होंने भगवान विष्णु से पूछा कि ऐसी 
						कौन स्त्री होगी जो दुराचारी महिषासुर को मार सके, तब 
						भगवान विष्णु ने कहा कि यदि सभी देवताओं के तेज से, सबकी 
						शक्ति के अंश से कोई सुंदरी उत्पन्न की जाये, तो वही 
						स्त्री दुष्ट महिषासुर का वध करने में समर्थ होगी। सभी 
						देवतोओं के तेज से एक सुन्दर तथा महातेजस्विनी नारी प्रकट 
						हो गई।
 
 सिंह पर सवार, वस्त्राभूषणों से सुसज्जित देवी की शोभा 
						अवर्णनीय थी। सब देवों ने उन्हें विविध अजेय शस्त्र प्रदान 
						किये। इस प्रकार सब आभूषणों, अस्त्रों और शस्त्रों से 
						सुसज्जित देवी को साक्षात पाकर सभी उनकी स्तुति करने लगे। 
						उन्हें महिषासुर के उपद्रवों की सूचना दी गयी और उनसे 
						रक्षा की प्रार्थना की गयी। प्रार्थना सुनकर भगवती ने 
						देवताओं को अभय का वरदान देते हुए कहा- भय का त्याग करो, 
						उस मंदमति महिषासुर को मैं नष्ट कर दूँगी।
 
 जब महिषासुर ने इस देवी की सुंदरता के बारे में सुना तो वह 
						उन पर मोहित हो गया। उसने देवी के पास अपने दूत भेजे और 
						उनको आदेश दिया कि सुंदरी को साम, दाम, दंड, भेद किसी भी 
						एक या अनेक उपायों से जीतकर मेरे पास ले आओ।
 
 इन दूतों को देखकर गर्जन करती हुई सुंदर, लेकिन भयभीत करने 
						वाली देवी ने कहा- अब तुम उस पापी से जाकर कह दो कि यदि 
						जीवित रहना चाहते हो तो तुरंत पाताल लोक चले जाओ, अन्यथा 
						मैं बाणों से तुम्हारा शरीर नष्ट -भ्रष्ट करके तुम्हें 
						यमपुरी पहुँचा दूँगी। इस उत्तर को सुनकर महिषासुर क्रोधित 
						हो उठा। दोनो ओर से भयंकर युद्ध हुआ, जिसमें देवी ने 
						महिषासुर की सारी सेना का वध कर दिया और महिषासुर को 
						ललकारा- अब तू मुझसे युद्ध कर या पाताल लोक में जाकर रह, 
						अन्यथा मैं तेरा वध कर दूँगी। देवी द्वारा ऐसा कहने पर वह 
						क्रोधित हो गया और महिष का रूप धारण कर के सींगों से देवी 
						पर प्रहार करने लगा।
 
 भगवती चण्डिका ने अपने त्रिशूल से महिषासुर का सामना किया 
						और सहस्र धार वाला चक्र हाथ में लेकर उस पर छोड़ दिया। 
						महिषासुर का मस्तक कटकर युद्ध-भूमि में जा-गिरा। इस प्रकार 
						दैत्यराज महिषासुर का अंत हुआ व भगवती महिषासुरमर्दिनी 
						कहलायीं। तीनो लोकों में आनंदसूचक जयघोष हुआ। महिषासुर की 
						मृत्यु के बाद जीवित बचे हुए भयभीत दानव अपने प्राण बचा कर 
						पाताल लोक भाग गए। देवी और महिषासुर तथा उसकी सेना के बीच 
						नौ दिन युद्ध चला इसलिए विजयदशमी के पहले आने वाले नौ दिन 
						नवरात्र कहलाते है और दसवें दिन महिषासुर का वध हुआ इसलिए 
						इस दिन विजयादशमी कहते हैं।
 
      १ अक्टूबर २०२१ |