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प्रेरक-प्रसंग

अंतिम अनुबंध
-मुक्ता

एक बूढ़ा बढ़ई अपने काम के लिए काफी जाना जाता था, उसके बनाये लकड़ी के घर दूर-दूर तक प्रसिद्ध थे। पर अब बूढा हो जाने के कारण उसने सोचा कि बाकी की जिन्दगी आराम से गुजारी जाए और वह अगले दिन सुबह-सुबह अपने मालिक के पास जाकर बोला, "ठेकेदार साहब, मैंने बरसों आपकी सेवा की है पर अब मैं बाकी का समय आराम से पूजा-पाठ में बिताना चाहता हूँ, कृपया मुझे काम छोड़ने की अनुमति दें"।

ठेकेदार बढ़ई को बहुत मानता था, इसलिए उसे ये सुनकर थोडा दुःख हुआ पर वो बढ़ई को निराश नहीं करना चाहता था, उसने कहा, "आप यहाँ के सबसे अनुभवी व्यक्ति हैं, आपकी कमी यहाँ कोई नहीं पूरी कर पायेगा लेकिन मैं आपसे निवेदन करता हूँ कि जाने से पहले एक अंतिम अनुबंध पूरा करते जाइये।”

“जी, क्या काम करना है?” बढ़ई ने पूछा।

“मैं चाहता हूँ कि आप जाते-जाते हमारे लिए एक और लकड़ी का घर तैयार कर दीजिये।”, ठेकेदार घर बनाने के लिए जरूरी पैसे देते हुए बोला।

बढ़ई इस काम के लिए तैयार हो गया। उसने अगले दिन से ही घर बनाना शुरू कर दिया, पर यह जान कर कि ये उसका आखिरी काम है और इसके बाद उसे और कुछ नहीं करना होगा वह थोड़ा ढीला पड़ गया। पहले जहाँ वह बड़ी सावधानी से लकड़ियाँ चुनता और काटता था अब बस काम चलाऊ तरीके से ये सब करने लगा। कुछ एक हफ्तों में घर तैयार हो गया और वह ठेकेदार के पास पहुँचा, "ठेकेदार साहब, मैंने घर तैयार कर लिया है, अब तो मैं काम छोड़ कर जा सकता हूँ ?”

ठेकेदार बोला "हाँ, आप बिलकुल जा सकते हैं लेकिन अब आपको अपने पुराने छोटे से घर में जाने की जरुरत नहीं है, क्योंकि इस बार जो घर आपने बनाया है वो आपकी बरसों की मेहनत का इनाम है, जाइये अपने परिवार के साथ उसमें खुशहाली से रहिये!”

बढ़ई यह सुनकर स्तब्ध रह गया, वह मन ही मन सोचने लगा, “कहाँ मैंने दूसरों के लिए एक से बढ़ कर एक घर बनाये और अपने घर को ही इतने घटिया तरीके से बना बैठा काश! मैंने ये घर भी बाकी घरों की तरह ही बनाया होता।”

कब आपका कौन सा काम किस तरह हमें प्रभावित कर सकता है यह बताना मुश्किल है। यह भी समझने की जरुरत है कि हमारा काम हमारी पहचान बना भी सकता है और बिगाड़ भी सकता है। इसलिए हमारी कोशिश होनी चाहिए कि हम हर एक काम अपनी सामर्थ्य के अनुसार सर्वोत्तम तरीके से करें फिर चाहे वो हमारा आखिरी काम ही क्यों न हो!

७ जुलाई २०१४

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