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ऊर्जा का प्राकृतिक विकल्प पवन ऊर्जा
--अभिलाष त्रिवेदी
हाल में ही हुई पेट्रोल
उत्पादों के दामों में वृद्धि होने से वैज्ञानिकों का ध्यान पुनः
ऊर्जा के अन्य स्रोतों की ओर गया है। हालाँकि पेट्रोल उत्पादों
के दाम नीचे आए हैं, पर ऊर्जा पैदा करने के अन्य तरीकों पर ध्यान
देने की आवश्यकता कम नहीं हुई है। पारंपरिक तौर पर ऊर्जा के रूप
में बिजली प्रायः तेल, कोयला, जल या परमाणु ऊर्जा से प्राप्त की
जाती है, पर आजकल पवन शक्ति से ऊर्जा एकत्र करने की संभावनाएँ
बड़े जोर- शोर से तलाशी जा रही हैं।
अकेले कैलिफोर्निया में लगी पवन चक्कियाँ लगभग २५०० मेगावाट
बिजली उत्पादन की क्षमता रखती हैं। पूरे अमेरिका में लगभग २५०००
मेगावाट बिजली पवन ऊर्जा से पैदा होती है, और अमेरिकी संस्थाएँ
सन् २०३० तक अपनी ऊर्जा आवश्यकताओं का लगभग २०% (३००००० मेगावाट)
पवन ऊर्जा से हासिल करने के लिए दृढ़ प्रतिज्ञ है। तेज़ी से
प्रगति करते हुए अमेरिका ने सबसे अधिक पवन ऊर्जा पैदा करने वाले
देश जर्मनी को भी इस वर्ष पीछे छोड़ दिया है।
इस दिशा चीन ने भी तेज़ी से प्रगति की है और पिछले चार वर्षों
में ही १२००० मेगावाट विद्युत पवन चक्की से पैदा करने की स्थिति
में पहुँच गया है। भारत ने भी इस क्षेत्र में पिछले वर्षों में
ध्यान दिया है और अब 96४५ मेगावाट विद्युत ऊर्जा पवन चक्कियों से
पैदा करता है। अमेरिका और अन्य विकसित देश भौगोलिक गर्मी को कम
करने के लिए तथा ऊर्जा के क्षेत्र में आत्म निर्भरता बढ़ाने के
लिए इस दिशा में काम कर रहे हैं, पर चीन और भारत जैसे देशों के
लिए जहाँ विद्युत उत्पादन के लिए नयी व्यवस्था बनाई जानी है, पवन
चक्कियाँ वरदान साबित हो सकती हैं, क्यों कि इन देशों में पहले से
लगे विद्युत संयत्रों को हटाकर पवन चक्की संयत्र नहीं लगाए जाने
हैं, बल्कि ऐसे क्षेत्रों में विद्युत उत्पादन किया जाना है जहाँ
अभी किसी प्रकार की समुचित विद्युत सुविधा उपलब्ध नहीं है।
पवन ऊर्जा के लाभ
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पारंपरिक ऊर्जा स्त्रोतों की
अपेक्षा पवन ऊर्जा बार-बार प्रयोग की जा सकती है और इसके चुक
जाने की कोई संभावना नहीं है। यदि इस ऊर्जा का प्रयोग बढ़ता है
तो ईंधन के अन्य प्रकार जैसे तेल और कोयला आदि का प्रयोग कम
होगा तथा इनके मूल्य स्थिर हो सकेंगे। एक बार पवन चक्की संयत्र
स्थापित करने के बाद केवल मरम्मत का खर्चा ही आवश्यक होता है,
और सामान्यतः एक पवन चक्की लगभग २० वर्षों तक आसानी से काम कर
सकती है।
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डेनमार्क की पवन चक्की बनाने
वाली कंपनी वेस्टास के एक आँकलन के अनुसार उनकी पवन चक्की अपनी
आयु के पहले वर्ष में ही अपने मूल्य के बराबर ऊर्जा पैदा करती
है। इसके अलावा जिन स्थानों पर हवा का बहाव स्वतः काफी अच्छा
होता है, जैसे समुद्री किनारों आदि पर पवन चक्की ऊर्जा उत्पन्न
करने का सर्वोत्तम साधन है।
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पवन चक्की चूँकि स्त्रोत के
रूप में पवन का प्रयोग करती है इसलिए कोयले, तेल या परमाणु
ऊर्जा की तरह कोई अवशेष की समस्या नहीं होती, जिससे मलबा हटाने
या प्रकृति दोहन की समस्या से भी मुक्ति मिल जाती है। प्रयोगों
में पाया गया है कि चौथाई मील की दूरी पर स्थित पवन चक्की
घरेलू रेफ्रिरेजरेटर के बराबर ध्वनि करती है, इसलिए इसके कारण
पर्यावरण में अतिरिक्त ध्वनि प्रदूषण भी नहीं होता है। चूँकि
पवन चक्की जमीन पर किसी भी अन्य ऊर्जा संयत्र से कम जगह घेरती
है, अतएव इसे खेतों या फिर बंजर भूमि पर आसानी से लगाया जा
सकता है।
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एक पवन चक्की द्वारा
उत्पादित ऊर्जा यदि किसी परंपरागत माध्यम जैसे कोयले द्वारा
उत्पादित की जाये तो वातावरण में लगभग १८०० टन कार्बन डाइ
आक्साइड, जो भौगोलिक गर्मी में बढत का एक मुख्य कारण है, कम
पैदा होगी। इतनी कार्बन डाइ आक्साइड वातावरण से हटाने के लिए
हमें कम से कम चौथाई मील का जंगल उगाना होगा।
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वायु ऊर्जा असल में एक
प्रकार की सौर ऊर्जा है। क्यों कि वातावरण में तापमान में बदलाव
आने से तथा पृथ्वी की सतह ऊँची नीची होने के कारण ही वायु बहती
है।
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पवन ऊर्जा हर देश की अपनी
होती है, इसलिए विदेशी मुद्रा की आवश्यकता न होने की वजह से
अन्य देशों पर निर्भरता समाप्त हो जाती है।
पवन
ऊर्जा संबंधी समस्याएँ
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इस दिशा में अब तक सबसे अधिक
समस्या इस प्रकार के कार्यों के लिये पर्याप्त धनराशि की कमी
रही है। क्यों कि इस प्रकार की खोज के लिए आवंटित अधिकांश धन
मुख्यतः पेट्रोल उत्पादों या परमाणु ऊर्जा की खोज में लग जाता
है।
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विभिन्न देशों की सरकारें
अभी तक पवन ऊर्जा के लिए अपनी राय पक्की नहीं कर पाई हैं,
इसलिए आवश्यक सहायता राशि और इनके विकास के लिए समुचित
कार्यक्रम नहीं बन पा रहा है।
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वर्तमान परिस्थितियों वायु
ऊर्जा का उत्पादन मुख्य ऊर्जा के स्त्रोत के रूप में नहीं हो
पा रहा है, क्यों कि पवन ऊर्जा पवन के बहने पर निर्भर करती है,
और जिसके लिए पहले से कोई निर्धारित समय नहीं होता है। अतएव
आवश्यकता होने पर इस प्रकार की ऊर्जा की उपलब्धि सुनिश्चित
करना मुश्किल हो सकता है।
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यदि इस ऊर्जा का संरक्षण
किया जा सके तो इस समस्या से मुक्ति पायी जा सकती है। कई देशों
में डीजल या फिर कोयले के विद्युत संयत्र और पवन चक्की का मिला
जुला प्रयोग इस मामले में काफी सहायक सिद्ध हुआ है। इस प्रकार
की व्यवस्था में जब तक पवन चक्की विद्युत उपलब्ध करती है तब तक
उससे काम लिया जाता है, और पवन ऊर्जा के न उपलब्ध होने की दशा
में डीजल या ताप विद्युत का प्रयोग किया जा सकता है। जैसे-जैसे
इस दिशा में वैज्ञानिक प्रगति बढ़ती है, वायु ऊर्जा की पूर्ति
मनचाहे समय पर हो सकेगी और तब इसे मुख्य उत्पाद के रूप में
प्रयोग किया जा सकेगा।
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चूँकि हवा का बहाव अधिकांश
परिस्थितियों में शहरों से दूर खुले मैदानों में होता है,
इसलिए वहाँ पर बनाई गई बिजली को वापस शहरों में लाना पड़ता है,
जिसके कारण कीमतें बढ़ती हैं।
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पवन चक्की के संयत्र को आरंभ
करने में अधिक धन की आवश्यकता होती है, इसकी तुलना में डीजल या
कोयले के संयत्र पहले से लगे होते हैं और उन्हे केवल चलाते
रहने के लिए आवश्यक धन राशि की आवश्यकता होती है। विकसित देशों
में पवन ऊर्जा का प्रत्यक्ष लाभ नहीं है, पर भारत जैसे देशों
में जहाँ अभी सारे देश में ऊर्जा के स्त्रोत उपलब्ध नहीं है और
नये संयत्रों की आवश्यकता है। उनके लिए यह तकनीक कारगर साबित
हो सकती है, क्यों कि उन्हें तो नये संयत्र विद्युत की कमी को
पूरी करने के लिए लगाने ही हैं।
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कुछ लोग ध्वनि प्रदूषण की
शिकायत करते हैं, पर नये तकनीकों के चलते और पवन चक्की की
ऊँचाई अधिक होने से इस प्रकार की समस्या कम होती जा रही है।
विकसित देशों में ऐसा भी कहा जाता है कि पवन चक्कियाँ देखने
में अच्छी नहीं दिखती और शहरों या कस्बों की खूबसूरती बिगड़
जाती है।
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ऐसा भी पाया गया कि कभी-कभी
पक्षी पवन चक्की के पँखों से टकराकर मर जाते हैं। इस स्थित से
बचने के लिए नई चक्कियों में चेतावनी की ध्वनि तरंगों को
वातावरण में प्रसारित किया जाता है। ये ध्वनि तरंगे मनुष्यों
की श्रवण शक्ति से बाहर होती है पर पक्षियों को सुनाई देती है
और वे इनसे दूर रहते हैं।
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पवन चक्की संयत्र
लगाने की मूल भूत आवश्यकता सही जगह का चुनाव होती है। इस हेतु
वर्ष के हर दिन और मौसम के लिए आवश्यक हवा की गति के आँकड़े
एकत्र कर लिए जाते हैं। इस प्रकार अनुकूल परिस्थितियों वाले
क्षेत्रों में ही पवन चक्की संयत्र लगाये जाते हैं। संभावित
क्षेत्रों को सात स्तरों में विभाजित किया जाता है। स्तर एक या
दो के क्षेत्रों को पवन चक्कियों के अनुपयोगी माना जाता है।
तीसरे स्तर से सातवें स्तर तक के क्षेत्र पवन
चक्की
संयत्रों के लिए अनुकूल एवं आर्थिक दृष्टि से उपयोगी माना जाता
है।
पवन चक्की
की संरचना
पवन चक्कियों मुख्यतः दो प्रकार
की होती हैं, पहली क्षैतिज धुरी वाली और दूसरी ऊर्ध्व धुरी वाली।
आजकल क्षैतिज धुरी वाली पवन चक्कियाँ अधिक प्रचलित हैं। इनमें एक
बड़े से खम्भे या मीनार के ऊपरी भाग में एक गुल्लीनुमा सिलिंडर
(रोटर) होता है जिसमें गियर बक्सा, धीमी गति का साफ्ट, तेज गति
का साफ्ट, जनरेटर, नियंत्रक और गति अवरोधक आदि होते हैं। बड़ी
पवन चक्कियों में यह सिलिंडर इतना बड़ा होता है कि उस पर एक
हैलीकाप्टर उतारा जा सकता है। इस सिलिंडर के अगले भाग के मुँह पर
दो या तीन लगभग २० से ३० फीट की लंबाई और ३-४ फुट की चौड़ाई की
पँखुड़ियाँ लगी होती हैं। जब वायु बहती है तो ये पँखुड़िया हवा
के दबाव से ठीक उसी तरह घूमने लगती है, जिस प्रकार कोई पंखा
घूमता है। इनके घूमने से उत्पन्न हुई ऊर्जा को जनरेटर द्वारा
बिजली में परिवर्तित किया जाता है। रोटर के नियंत्रण के लिए
नियंत्रक के साथ जुड़ा हुआ गति मापक यंत्र हवा की गति संबंधी
जानकारी को नियंत्रक को भेजता है, जिसके आधार पर नियंत्रक इन पवन
चक्कियों का नियंत्रण करता है। यह जानकारी पवन चक्की की कार्य
क्षमता और उसकी कार्य प्रणाली को सुचारु रूप से चलाए रखने में
सहायता करती है। यदि हवा का वेग बहुत अधिक या कम होता है तो
पँखुड़ियों की दिशा को बदल कर बिजली उत्पादन का नियंत्रण किया
जाता है।
नई तकनीकों में से एक नये प्रकार के पंखो का प्रयोग करती है। इस
तकनीक में पँखों के नुकीले सिरे को थोड़ा सा झुकाव दे दिया जाता
है। शोध के दौरान यह पाया गया है कि इस प्रकार बने पंखे ५ से १०
प्रतिशत अधिक ऊर्जा का संचयन कर सकते हैं।
नये प्रकार के गियर बक्सों में
एक नयी प्रकार के गियर का प्रयोग होता है जिससे एक गियर बाक्स
अलग-अलग ड्राइव बेल्टों के द्वारा चार स्थायी चुम्बकीय जनरेटरों
को एक साथ चलाता है।
इसी प्रकार एक नयी संरचना में स्थायी चुम्बक जनरेटर का एक नये
प्रकार के शक्ति परिवर्तक के साथ प्रयोग होता है जो वायु से
प्राप्त शक्ति के बदलाव के साथ अपनी कार्यक्षमता को उसके अनुरूप
बदल सकता है और बेहतर कार्य कर सकता है।
पवन चक्कियाँ भविष्य के लिए ऊर्जा का अच्छा स्त्रोत साबित हो
सकती हैं। इसलिए इनकी कार्यक्षमता और कार्य प्रणाली दोनों मे
लगातार सुधार किया जा रहा है। पवन चक्की का सबसे महत्वपूर्ण अंग
रोटर है होते हैं और पंखे रोटर से जुड़े होते हैं इसलिए ऐसे
पंखों पर कार्य चल रहा है जो कि मजबूत हों, सीधे रहें और
अधिकाधिक वायु को रोक सकें परंतु वजन में हल्के हों। इस प्रकार
उत्पादक इन अवयवों से बनी पवन चक्कियों को अधिक सुचारु रूप से
तथा कम मरम्मत करके चला सकेंगे।
बस्ती के पास बनी पवन चक्कियाँ ध्वनि प्रदूषण कर सकती हैं। इसलिए
ऐसे रोटर और पंखे तथा खम्भे आवश्यक है जो कि कम से कम ध्वनि
प्रदूषण करें। व्यापारिक प्रयोग के लिए बनाई गई पवन चक्कियों में
ध्वनि प्रदूषण समस्या विशेष परेशानी नहीं खड़ी करती है क्यों कि
वे अधिकांशतः नगरों से दूर होती हैं। इस कारण से घरेलू और
व्यावसायिक पवन चक्कियों मे अलग-अलग प्रकार की व्यवस्था और अवयव
प्रयोग किये जाते है ताकि व्यावसायिक पवन चक्की की कीमत अनावश्यक
रूप से न बढ़े।
कम हवा वाले क्षेत्रों में अधिकाधिक विद्युत उत्पादन के लिए पवन
चक्की को अधिक से अधिक ऊँचाई पर ले जाना होता है जहाँ पर तेज
हवाएँ चलती हैं। पर अधिक ऊँचाई पर हवा की गति में बहुत अधिक उतार
चढ़ाव आता रहता है जिससे पवन चक्की की यंत्र व्यवस्था को क्षति
पहुँच सकती है। इस अवस्था में पवन चक्की के नियंत्रक का कार्य
बढ़ जाता है, जिसे तेज हवा में गति अवरोधक का प्रयोग करके चक्की
को कम गति से घुमाना होता है और मंद प्रवाह की अवस्था में पंखों
को इस प्रकार व्यवस्थित करना होता है ताकि वायु दबाब को सही
प्रकार से प्रयोग करके अधिकाधिक विद्युत उत्पादन किया जा सके।
नये
प्रयोगों मे कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय और आस्ट्रेलिया के कुछ
अभियंता एक नई प्रकार की पवन चक्की पर काम कर रहे हैं। इस
व्यवस्था में रोटर और पंखों वाला भाग पतंगों की तरह हवा में उड़
सकेगा। इस प्रयोग में हवा की गति कम होने की अवस्था में पवन
चक्की जिस प्रकार पतंग हवा में ऊँची उठती चली जाती है उसी प्रकार
उठ सकेगी। इसके फलस्वरूप लगातार विद्युत का उत्पादन संभव हो
सकेगा। इस प्रकार उत्पन्न विद्युत को विशेष प्रकार के बने लंबे
तारों से धरती पर लाया जायेगा और वितरित किया जायेगा। पर इस
प्रकार बनी चक्कियों के विद्युत प्रवाह वाले तार आपस में उलझने
की संभावना है। साथ ही ऐसे पदार्थों पर भी खोज जारी है जो कि
हल्के तो हों पर मजबूत हों साथ ही विद्युत प्रवाह के लिए उपयुक्त
भी हों।
६ अप्रैल
२००९ |