लाल फूलों वाला गुलमोहर
-अर्बुदा ओहरी
गुलमोहर नाम के लाल फूलों वाले
पेड़ से हम सब परिचित हैं। प्रकृति ने गुलमोहर को बहुत ही
सुव्यवस्थित तरीके से बनाया है, इसके हरे रंग की फर्न जैसी
झिलमिलाती पत्तियों के बीच बड़े-बड़े गुच्छों में खिले फूल
इस करीने से शाखाओं पर सजते है कि इसे विश्व के सुंदरतम
वृक्षों में से एक माना गया है।
गुलमोहर मूल रूप से मडागास्कर का पेड़ है। ऐसा माना जाता है
कि सोलहवीं शताब्दी में पुर्तगालियों ने मडागास्कर में इसे
देखा था। अट्ठारहवीं शताब्दी में फ्रेंच किटीस के गवर्नर
काउंटी डी पोएंशी ने इसका नाम बदल कर अपने नाम से
मिलता-जुलता नाम पोइंशियाना रख दिया। बाद में यह सेंट किटीस
व नेवीस का राष्ट्रीय फूल भी स्वीकृत किया गया। इसको रॉयल
पोइंशियाना के अतिरिक्त फ्लेम ट्री के नाम से भी जाना जाता
है। फ्रांसीसियों ने संभवत: गुलमोहर का सबसे अधिक आकर्षक नाम
दिया है उनकी भाषा में इसे स्वर्ग का फूल कहते हैं। वास्तव
में गुलमोहर का सही नाम 'स्वर्ग का फूल' ही है। भारत में
इसका इतिहास करीब दो सौ वर्ष पुराना है। संस्कृत में इसका
नाम 'राज-आभरण' है, जिसका अर्थ राजसी आभूषणों से सजा हुआ
वृक्ष है। गुलमोहर के फूलों से श्रीकृष्ण भगवान की प्रतिमा
के मुकुट का शृंगार किया जाता है । इसलिए संस्कृत में इस
वृक्ष को 'कृष्ण चूड' भी कहते हैं। भारत के अलावा यह पेड़
युगांडा, नाइजीरिया, श्री लंका, मैक्सिको, ऑस्ट्रेलिया तथा
अमेरिका में फ्लोरिडा व ब्राज़ील में खूब पाया जाता है। आजकल
इसके वृक्ष यूरोप में भी देखे जा सकते हैं। मडागास्कर से इस
पेड़ का विकास हुआ पर अब वहां यह लुप्त होने की दशा में है
इसलिए इसकी मूल प्रजाति को अब संरक्षित वृक्षों की सूची में
शामिल कर लिया गया है।
गुलमोहर का वानस्पतिक नाम डेलोंक्सि रेजिया है। यह जान कर
बहुत से लोगों को आश्चर्य होगा कि यह फली या मटर की जाति का
पेड़ है। यह उष्ण कटिबंधीय जलवायु का वृक्ष है पर ठंडे देशों
में भी गुलमोहर का विकास बहुत अच्छा होता देखा गया है। इससे
पता चलता है कि गुलमोहर करीब-करीब हर प्रकार की जलवायु में
उग सकता है फिर चाहे मिट्टी अम्लीय हो या क्षारीय, रेतीली हो
या लोमी। यहां तक कि गुलमोहर को समुद्र के किनारे उगता हुआ
भी देखा गया है। यदि जलवायु शुष्क हो तो इसकी सुंदर फ़र्न के
आकार की पत्तियाँ झड़ जाती हैं ताकि सूरज की किरणें पूरे
पेड़ पर पड़ सकें। यह पत्तियाँ पेड़ के लिए बहुत ही अच्छी
खाद का काम करती हैं। तेज़ गर्मी में इसे पानी की आवश्यकता
भी नहीं होती परंतु विकास के समय इसे अच्छा पानी चाहिए। हर
मौसम को जीने की प्रबल इच्छा गुलमोहर को पूर्ण बना देती है।
एक अकेला गुलमोहर काफ़ी है दो आंखों में सहज सौंदर्य भरने के
लिए।
गुलमोहर में नारंगी और लाल मुख्यत: दो रंगों के फूल ही होते
है। परंतु प्राकृतिक रूप से पाई जाने वाली प्रजाति
''फ्लेविडा" पीले रंग के फूलों वाली होती है। गुलमोहर का फूल
आकार में बड़ा होता है- लगभग १३ सेंटी मीटर का। इसमें पाँच
पंखुड़ियाँ होती हैं। चार पंखुड़ियाँ तो आकार और रंग में
समान होती हैं पर पाँचवी थोड़ी लंबी होती है और उस पर पीले
सफ़ेद धब्बे भी होते हैं। फूलों का रंग सभी को अपनी ओर
खींचता है यहां तक कि परागकण के लिए पक्षियों को भी।
सामान्यत: इसकी लंबाई २० से २५ फीट तक होती है और यह एक बहुत
ही जल्दी लंबा होने वाला पेड़ माना जाता है। गुलमोहर की
लंबाई प्रति वर्ष ५ फीट तक बढ़ती है। इसे परिपक्व होने में
करीब १० वर्ष तक का समय लगता है। पूर्ण परिपक्व गुलमोहर की
मनोहारी छटा देखते ही बनती है। मियामी में तो गुलमोहर को
इतना पसंद किया जाता है कि वे लोग अपना वार्षिक पर्व भी तभी
मनाते है जब गुलमोहर के पेड़ में फूल आते हैं।
गुलमोहर के फूल मकरंद के अच्छे स्रोत हैं। शहद की मक्खियाँ
फूलों पर खूब मँडराती हैं। मकरंद के साथ पराग भी इन्हें इन
फूलों से प्राप्त होता है। सूखी कठोर भूमि पर खड़े फैली हुई
शाखाओं वाले गुलमोहर पर पहला फूल निकलने के एक सप्ताह के
भीतर ही पूरा वृक्ष गाढ़े लाल रंग के अंगारों जैसे फूलों से
भर जाता है। वसंत से गर्मी तक यानी मार्च अप्रैल से लेकर जून
जुलाई तक गुलमोहर अपने उपर लाल नारंगी रंग के फूलों की चादर
ओढ़े भीषण गर्मी को सहता देखने वालों की आंखों में ठंडक का
अहसास देता है। इसके बाद फूल कम होने लगते हैं पर नवंबर तक
पेड़ पर फूल देखे जा सकते हैं। इसकी इसी विशेषता के कारण
पार्क, बगीचे और सड़क के किनारे इसे लगाया जाता है।
इसकी फली का रंग हरा होता है जबकि बीज भूरे रंग के बहुत सख्त
होते हैं। कई जगहों पर इसे इंधन के काम में भी लाया जाता है।
जब हवाएँ चलती हैं तो इनकी आवाज़ झुनझुने की तरह आती है, तब
ऐसा लगता है जैसे कोई बातें कर रहा है इसीलिए इसका एक नाम
"औरत की जीभ" भी है। गुलमोहर से किसी जगह की खूबसूरती बढ़ानी
है तो कुछ बातों का विशेष ध्यान रखना चाहिए जैसे कि दो
गुलमोहर के बीच में कम से कम दस फीट की दूरी हो ताकि इसकी
जड़ों को फैलने का स्थान मिल सके। तेज़ हवा या तूफ़ान को
गुलमोहर सहन नहीं कर पाता क्यों कि इसकी जड़ें ज़मीन में गहरी
नहीं होती है और इसकी लकड़ी भी कमज़ोर होती है। गुलमोहर अपने
आसपास किसी भी वनस्पति को पनपने नहीं देता। एक विशेष बात यह
है कि गुलमोहर की जड़ें पास की इमारत की नींव को भी नुकसान
पहुंचा सकती है। गुलमोहर इतना सुंदर है तभी शायद इतना दंभी
भी कि इसे अपने नज़दीक कुछ भी पसंद नहीं, हालाँकि बोगनवेलिया
के साथ इसे आसानी से उगाए जाने के प्रयोग सफल हुए हैं।
गुलमोहर को सामान्यतया बीज से ही उगाया जाता है पर इसे कलम
से भी उगाया जा सकता है। वनस्पति वैज्ञानिकों ने इसके दस
वर्ष पुराने बीजों को उगाने में सफलता प्राप्त की है। उनके
अनुसार बीज को करीब चौबीस घंटे तक गरम पानी में भिगो कर रखना
चाहिए फिर यदि उनको उगाएँ तो नब्बे प्रतिशत तक सफलता मिल
जाती है। गुलमोहर के बोनसाइ की तो बात ही अलग है, घर के आंगन
में किसी चौड़े गमले में लगा गुलमोहर का बोनसाइ सचमुच बगीचे
की शोभा बढ़ा देता है।
गुलमोहर की छाल और बीजों का आयुर्वेदिक महत्व भी हैं।
आदिवासी लोग सिरदर्द और हाजमे के लिए इसकी छाल का प्रयोग
करते है। मधुमेह की कुछ आयुर्वेदिक दवाओं में भी गुलमोहर के
बीजों को अन्य जड़ी-बूटियों के साथ मिला कर भी उपयोग किया जा
चुका है। मलेरिया की दवा में भी गुलमोहर की छाल का उपयोग
किया जाता है। ऐसी बहुत-सी दवाएँ आज बाज़ार में उपलब्ध हैं
जिनमें गुलमोहर के बीज या छाल को किसी न किसी रूप में डाला
गया है। होली के रंग बनाने में गुलमोहर फूलों का प्रयोग किया
जाता है।
गुलमोहर को जंगल की आग भी कहा जाता है। फूलों से सजे हुए
गुलमोहर के छतरीनुमा पेड़ ऐसे दिखाई देते हैं जैसे सचमुच का
दावानल हो। तीखी गर्मी में बाग में स्थिर खड़ा गुलमोहर कितना
आश्वस्त लगता है अपनी प्रकृति और सुंदरता को समेटे हुए। यह
सूर्य प्रिय पेड़ है तभी तो गर्मी में फलता-फूलता है। ऐसा
लगता है कि सूरज की तपन को सह कर अपने सारे प्यार और तड़प को
यह आग की तरह दहकते फूलों में दर्शाता है। गुलमोहर कितना
शांत दिखता है और साथ ही सहनशील भी पर दूसरी ओर यही गुलमोहर
कितना निर्बल भी है। अपने इन्हीं गुणों के कारण गुलमोहर आज
मानव जाति का मित्र बन कर नगरों की शोभा का महत्वपूर्ण
हिस्सा बन गया है।